विवेकी राय हिन्दी और भोजपुरी भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। वो मूल रूप से ग़ाजीपुर के सोनवानी नामक ग्राम के हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार ने विभिन्न सम्मान दिये हैं। वो ५० से अधिक पुस्तकों की रचना कर चुके हैं। वे ललित निबंध, कथा साहित्य और कविता कर्म में समभ्यस्त हैं। उनकी रचनाएं गंवाई मन और मिज़ाज़ से सम्पृक्त हैं। विवेकी राय का रचना कर्म नगरीय जीवन के ताप से ताई हुई मनोभूमि पर ग्रामीण जीवन के प्रति सहज राग की रस वर्षा के सामान है जिसमें भींग कर उनके द्वारा रचा गया परिवेश गंवाई गंध की सोन्हाई में डूब जाता है। गाँव की माटी की (सोंधी) महक उनकी ख़ास पहचान है। ललित निबंध विधा में इनकी गिनती आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, व िद्यानिवास मिश्र और कुबेरनाथ राय की परम्परा में की जाती है। मनबोध मास्टर की डायरी और फिर बैतलवा डाल पर इनके सबसे चर्चित निबंध संकलन हैं और सोनामाटी उपन्यास राय का सबसे लोकप्रिय उपन्यास है। उन्हें हिन्दी साहित्य में योगदान के लिए २००१ में महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार एवं २००६ में यश भारती अवार्ड से नवाज़ा गया। उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा महात्मा गांधी सम्मान से भी पुरस्कृत किया गया। उन्होंने कुछ अच्छे निबंधों की भी रचना की है
ललितनिबंध
- मनबोध मास्टर की डायरी
- गंवाई गंध गुलाब
- फिर बैतलवा डाल पर
- आस्था और चिंतन
- जुलूस रुका है
- उठ जाग मुसाफ़िर
कथा साहित्य
- मंगल भवन
- नममी ग्रामम्
- देहरी के पार
- सर्कस
- सोनमती
- कलातीत
- गूंगा जहाज
- पुरुष पुरान
- समर शेष है
- आम रास्ता नहीं है
- आंगन के बंधनवार
- आस्था और चिंतन
- अतिथि
- बबूल
- जीवन अज्ञान का गणित है
- लौटकर देखना
- लोकरिन
- मेरे शुद्ध श्रद्धेय
- मेरी तेरह कहानियाँ
- सवालों के सामने
- श्वेत पत्र
- ये जो है गायत्री
काव्य
- दीक्षा
साहित्य समालोचना
- कल्पना और हिन्दी साहित्य, अनिल प्रकाशन, १९९९
- नरेन्द्र कोहली अप्रतिम कथा यात्री
अन्य
- मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनायें, १९८४
निबंध एवं कविता
- भोजपुरी निबंध निकुंज: भोजपुरी के तैन्तालिस गो चुनाल निम्बंध, अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, १९७७
- गंगा, यमुना, सरवस्ती: भोजपुरी कहानी, निबंध, संस्मरण, भोजपुरी संस्थान, १९९२
- जनता के पोखरा: तीनि गो भोजपुरी कविता, भोजपुरी साहित्य संस्थान, १९८४
- विवेकी राय... के व्याख्यान,भोजपुरी अकादमी, पटना, तिसरका वार्षिकोत्सव समारोहा, रविवारा, २ मई १९८२, के अवसर पर आयोजित व्याख्यानमाला में भोजपुरी कथा साहित्य के विकास विषय पर दो। भोजपुरी अकादमी, १९८२
उपन्यास
- अमंगलहारी, भोजपुरी संस्थान, १९९८
- के कहला चुनरी रंगा ला, भोजपुरी संसाद, १९६८
- गुरु-गृह गयौ पढ़ान रघुराय, १९९२
बहुपयोगी जानकारी
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