Monday, 12 January 2015

सतीश पाण्डेय / रंजन ऋतुराज

मुझे यह नही पता नही था या इसका यह अहसास नही था की यह "ब्लॉग" की चर्चा मे पुरा देश लपेट मे आ जाएगा ! अखबार मे पहले पृष्ठ पर "जाति गत" गमले देख मैं स्तब्ध रह गया !
मैं शर्मिंदा हूँ अपने उन पाठकों से - अपने बचपन के दोस्तों से और अपने साथ वालों से की जति के जहर पर चर्चा ने सब के मुह को बेस्वाद किया ! हम सभी पत्रकार नही है - हमारी आवाज़ "हिंदुस्तान दैनिक" मे नही उठ सकती है - हमारे पीछे कोई राज नेता नही है ! और न ही हम सभी कोई दवा कम्पनी के "दलाल" हैं ! न ही किसी राजनेता के इशारे पर कर रहे हैं और न ही किसी "दवा कम्पनी " से उगाही का इरादा है !
दुःख सिर्फ़ यह हुआ की "दवा के व्यापार " को जति से जोड़ दिया गया ! ठीक कुछ महीनों पहले उक्त 'कथित पत्रकार' ने एक रिपोर्ट मे आईडिया कम्पनी के प्रचार को जोर शोर से दिखाया - वह वही प्रचार था जिसमे एक खास जति को लड़ते हुए दिखाया गया ! ये वही कथित पत्रकार है - जिनके रिपोर्ट से बाकी दुनिया जानी ! उसके पहले "कथित पत्रकार" ने उपन्यास लिखने के दौरान लगातार एक खास जाती को निशाना बनते चले गए ! उसी दौरान - बिहार के एक बाहुबली विधायक पर न्यूज़ रूम से लेकर कैमेरामन तक एक साजिश रची और फलस्वरूप खुलेआम न्यूज़ रूम से खास जाति को बाहुबली विधायक से जोड़ दिया गया ! किसी भी ब्रह्मण के लिए यह कितना कष्ट दायक होगा जब हम यहाँ दिल्ली मे बैठे - यह घोषित कर देन की बिहार के सबसे कुख्यात अपराधी "सतीश पण्डे" को पूरे ब्रह्मण समाज का आशीर्वाद प्राप्त है - यह सरासर अन्याय होगा ! जबकि पुरा बिहार जनता है की सतीश पण्डे एक खास जाति के खून के प्यासे हैं और वह जितने खुद कर चुके है - उसमे अधिकतर एक खास जाती के ही निर्दोष लोग हैं ! अगर "जातिये दुराग्रह " पर आधारित ऐसे आरोप भारत के प्रतिभाओं को गाली देना होगा ! देश मे आज भी कई एक से बढ़ कर एक प्रतिभावान "ब्रह्मण" हैं ! कहाँ भी जाता है - देश को तीन ब्रह्मण चला रहे हैं - तमिल ब्रह्मण , कश्मीरी ब्रह्मण और मैथिल ब्रह्मण ! क्योंकि इनसे तेज कोई जाति नही है ! पर सतीश पांडे जैसे अपराधी को भारत के समस्त ब्राहमणों से जोड़ कर देखना कितना उचित होगा ? ठीक उसी तरह किसी दवा व्यापारी को , किसी बाहुबली विधायक को या किसी पत्रकार को जाति की नज़रों से देखना किसी भी पढे लिखे इंसान को शोभा नही देता है !
आप बड़े हैं - आप आदरनिये हैं - आप समाज मे अपनी एक पहचान रखते हैं - आपको जातिगत निगाह से किसी ख़ास जाति को अपने तीर से लगातार निशाना बनाना शोभा नही देता ! इस तरह के हथकंडों से आपकी गरिमा नीचे गिरती है !

आज के दौर मे जाति कहीं से भी ना तो आपकी पहचान है और न ही मेरी ! हमारा ब्लॉग गाओं मे बैठा कोई नही पढ़ रहा है - जिसके बदौलत मुझे कोई राजनीती करनी है - और ना ही आपको - फ़िर यह जाति का जहर क्यों ? क्या आप डाक्टर के यहाँ जाति देख कर इलाज कराने जाते हैं ? क्या दवा कम्पनी की जात देख कर दवा खरीदते हैं ? या फ़िर आप नया इतिहास लिखेंगे ?
इस हमाम आप बिल्कुल नंगे खड़े हैं ! जातिये दुराग्रह छोडिये और उपन्यास लिखिए !
"बिहार" जैसे प्रान्त को सपूत की जरूरत है यह ना की अपनी माँ के फटे आँचल को दुनिए के सामने बेचने वालों की !
मैं उन सभी लोगों से क्षमा प्रार्थी हूँ जिन्हें मेरे लेख से दुःख हुआ होगा ! व्यक्तिगत हमलों के दौरान शायद हम सभी ने जातिये हमले भी किए होंगे - जिसका इरादा और सोच बिलकूल नही थी !

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