Thursday, 29 January 2015

गौरी शंकर राय - कीर्ति कलश


गौरी शंकर राय जी का व्यक्तित्व बहुआयामी था | वे साधन की पवित्रता पर अटल विश्वास करने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी समाजवादी विचारक , मूल्यों की राजनीति के प्रबल पक्षधर , राजनीति के अपराधीकरण के विरुद्ध संघर्षरत राजनीतिज्ञ , अदम्य पुरुषार्थी , सिद्धांतवादी , अक्खड़ स्वभाव के फक्कड , नेता संसदीय परम्पराओं के संस्थापक , साम्यवाद के प्रखर विरोधी व मानवीय मर्यादाओं से परिपूर्ण राष्ट्रभक्त  थे |उन्होंने शोषितों , पिछड़ों ,अल्पसंख्यकों व महिलाओं की मूक पीड़ा को वाणी देने तथा उनके ऊपर होने वाले अन्याय /उत्पीडन के विरुद्ध लड़ने वाले योद्धा के रूप में अपनी पहचान बनाई थी | मूल्याधारित राजनीति के लिए समर्पित जीवन , राजनीति का सामाजिक जीवन से सामंजस्यपूर्ण समायोजन व गरीब किसानो के लिए आजीवन संघर्ष में उनका अटूट विश्वास था |
१८५७ के महानायक श्री मंगल पाण्डेय , १९४२ में अंगरेजी राज्य को बलिया  में समाप्त करने वाले चित्तू पाण्डेय तथा १९७५ में आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष के नायक जयप्रकाश की धरती का यह सपूत आपातकाल के दौरान भूमिगत रहकर देश भर में अन्याय के विरुद्ध अलख जगाता रहा , फलस्वरूप आपातकाल का समापन व लोकतंत्र की पुन: स्थापना हुई |                                                
राय साहब के इन्ही जीवन मूल्यों व संकल्पों से समाज व नई पीढ़ी को नई दिशा मिली  | उनके प्रेणादायक संघर्षों की झलकी उनकी रचित पुस्तकों में देखने को मिलती है जो विभिन्न विषयों पर आधारित हैं |उन्होंने नई पीढ़ी को अपनी पुस्तकों और लेखों  के माध्यम से नई दिशा देने का प्रयास किया है| उनके  ये दस्तावेज किसानों की समस्या और उनका समाधान से लेकर किसानो के अन्याय , किसानो के आन्दोलन का इतिहास , गन्ना उत्पादकों की लड़ाई से लेकर विधान परिषद के गठन राष्ट्रवादी पूंजीवाद , समाजवाद मुद्रास्फीति पर आधारित तो है ही साथ ही साथ उन्होने उर्दू की तरक्की , अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण , कम्युनिष्टों की भूमिका और राष्ट्रसंघ की विसंगतियों पर भी अनेक दस्तावेज  दिए हैं |
गौरी शंकर राय के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता थी - दूसरों के दुःख को देखकर दुःख से अभिभूत हो उठना और उसे दूर करने का अंतिम साँस तक प्रयास करना | शायद यही वो गुण था जिसने राय साहब को कभी किसी क्षेत्र या समुदाय की सीमा में बंधने नहीं दिया | वे सही अर्थों में मानवता वादी थे | उनकी करुणा का प्रसार समाज के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक था | सुरसरी की पवित्र लहरों की तरह वे एक ऐसे मनीषी थे , जो सारे जनमानस को अपने में जी लेते थे | राय साहब बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने के साथ -साथ एक उच्च कोटि के इंसान भी थे |युवकों के बीच युवक और बुजुर्गों के बीच बुजुर्ग , साहित्यकारों के बीच साहित्यकार , नेताओं के बीच नेता थे | हिंदी , अंगरेजी , उर्दू लिखने -बोलने में उन्हें महारत हासिल था | लोक-जीवन और लोकसंस्कृति से वे जीवन पर्यन्त जुड़े रहे |वे जितनी अच्छी भोजपुरी लिखते और बोलते थे उतने  अच्छे--अच्छे भोजपुरी साहित्यकार भी नहीं लिख या बोल पाते | अदम्य साहस , निष्कपट व्यक्तित्व , भ्रष्टाचार से मुक्त धवल चरित्र और स्पष्टवादी नेता थे गौरीशंकर राय |
आजादी के बाद सत्तासीन लोगों की विचारधाराओं से मेल ना खाने की स्थिति में उन्होंने समझौता करने के बजाय अपना लग रास्ता बनाना उचित समझा और १९४८ में आचार्य नरेन्द्रदेव और बाबु जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में उन्होंने अपने को कांग्रेस से अलग कर लिया था | सोशलिस्ट पार्टी फिर प्रजा सोशलिस्ट के कार्यकर्त्ता और नेता के रूप में वे नए भारत के निर्माण में जुट गए |
उनका व्यक्तित्व , कृतित्व दोनों अपने आप में महान  था | व्यक्तित्व की महानता के कारण  ही लगभग पांच दशकों तक वे राजनीति में स्काउट , नेता , सेनानी , क्रांतिकारी , सांसद , विधायक आदि अनेक रूपों में चर्चित रहे | वह एक कुशल पथ-प्रदर्शक  के रूप में जाने जाते रहे |श्री चंद्रशेखर को प्रारंभिक राजनीतिक मार्गदर्शन श्री राय से ही मिला था | १८ वर्ष की आयु से श्री राय स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए थे तीन पुत्रों के बाप श्री गौरीशंकर राय पर कभी भी पुत्रवादी होने का आरोप नहीं लगा | उन्होंने परिवार और राजनीति को हमेशा अलग रखा | 1957 में वे विधानसभा सदस्य , 1967  में विधानपरिषद सदस्य , 1974 में विधानपरिषद में नेता विरोधी दल , 1977  में गाजीपुर से सांसद , 1978  में संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के प्रतिनिधि एवं उत्तेर प्रदेश गन्ना किसान संघ के अध्यक्ष के रूप में श्री गौरी शंकर राय के उपलब्धि ने नए  क्रीतिमान स्थापित किये | संयुक्त राष्ट्र महासभा में अटल बिहारी वाजपेयी और राय साहब ने हिन्दी में भाषण देकर हिन्दी के प्रति जो दायित्व का निर्वाह  किया वह अविस्मरणीय रहेगा | होनकोंग , सिंगापुर , जापान साऊथ कोरिया , ब्रिटेन , कनाडा , अमेरिका तथा और भी कई यूरोपीय देशों के भ्रमण के दौरान उन्होंने कभी भी भारतीय संस्कृति और हिन्दी की उपेक्षा नहीं होने दी |
                    श्री राय  की  उच्च शिक्षा  और स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी को देखते हुए उन्हें उपपुलिस अधीक्षक जैसे पद देने की पेशकश की  गयी थी उन्होंने लेने से इंकार कर दिया |नैनीताल में शासन द्वारा इन्हें 50  एकड़ भूमि भी दी जा रही थी जिसे उन्होंने यह कहकर सधन्यवाद वापस कर दिया कि जिसे जरुरत है , उसे दें | हमारा कम वैसे ही चल जायेगा |
                    यह सच है कि गौरी शंकर राय एक इतने  विशाल  व्यक्तित्व का नाम है , जिसे चंद शब्दों में बांधा नहीं जा सकता  और ऐसा कोई प्रयास धृष्टता मन जायेगा | विस्तृत को सीमित करने का प्रयास उसकी सत्ता को चुनौती है |गौरी शंकर राय जी एक ऐसे नक्षत्र हैं जो डूबते नहीं | जिसका प्रकाश समय की पगडंडियों पर चल रहे पूरे जनमानस को प्रकाशित करता रहता है |भौतिक रूप में आज वे हमारे बीच भले ही ना हो , उनका वजूद आज भी हमारे बीच है , उनके शब्दों की प्रतिध्वनि आज भी एक अनुगूँज बनी चारो ओर तरंगित हो रही है |

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