गलियों में खेल कर इंडिया टीम में पहुंची
भारतीय महिला क्रिकेट टीम में चयनित शुभलक्ष्मी ने हजारीबाग की गलियों में लकड़ी की तख्ती और प्लास्टिक की गेंद से क्रिकेट की शुरुआत की थी.
घर के अहाते में दोनों बड़े भाइयों के साथ वह क्रिकेट खेलती थी. पिता राजेंद्र प्रसाद शर्मा (एएसआइ, विशेष शाखा) ने बेटी को क्रिकेट खेलते देख कर काफी डांटा था. इसके बाद से वह पिता के डय़ूटी पर जाने के बाद उनके घर आने से पहले बीच की अवधि में ही क्रिकेट खेलती थी. कार्मेल स्कूल हजारीबाग में कक्षा आठ तक पढ़ाई के दौरान बैडमिंटन में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के रूप में उसकी पहचान बन गयी थी. अंडर-16 बैडमिंटन नेशनल खेलने के लिए केरल गयी. फाइनल में सायना नेहवाल से हार गयी. इसके बाद हजारीबाग लौट कर पढ़ाई में मन लगाने के लिए पिता का दबाव बढ़ गया.
कार्मेल स्कूल महिला क्रिकेट टीम में पहली बार चयनित : कार्मेल स्कूल महिला क्रिकेट टीम के चयन के दौरान स्कूल के टीचर मो खैल बरा उर्फ बॉबी सर ने पहली बार शुभलक्ष्मी को क्रिकेट टीम में स्थान दिया. अंतर-विद्यालय महिला क्रिकेट मैच में बेहतर प्रदर्शन करके जिला स्तरीय महिला क्रिकेट टीम में मुकाम बनाया. इसके बाद से उसने बैडमिंटन छोड़ क्रिकेट को पैशन बनाया.
पिता से मिला पहला बल्ला एक ही टूर्नामेंट में टूटा : शुभलक्ष्मी के परिवार ने उसके शौक व जुनून को आर्थिक समस्याओं के कारण कभी कम होने नहीं दिया. खेल की सामग्री एक साथ मुहैया कराना परिवार के लिए क्षमता से बाहर था. फिर भी मां और भाई ने मिल कर पिता से शुभलक्ष्मी के लिए पंद्रह सौ का एक बैट खरीदवाया. वह बैट एक टूर्नामेंट खेलने के समय ही टूट गया. शुभलक्ष्मी का शौक था कि एक पूरा क्रिकेट किट मेरे पास हो. लेकिन यह ख्वाहिश कई वर्षो तक पूरा नहीं हो पायी. जिला महिला क्रिकेट एसोसिएशन के एके मलिक ने तत्कालीन एसपी से एक बैट इसे दिलवाया, जिससे वह काफी दिनों तक खेली. इसी बीच पिता के दोस्त अपदा ने भी एक बैट-बॉल दिया. परिवार की ओर से एक क्रिकेट किट मिला. शुभलक्ष्मी ने बताया कि जीवन में पहली बार मिले क्रिकेट किट को काफी रात तक निकाल-निकाल कर देखती रही.
बेटी को क्रिकेटर बनते देख पिता का बढ़ा आत्मविश्वास : शुभलक्ष्मी वर्ष 2006 में आइसीएससी बोर्ड की परीक्षार्थी थी. उसी समय जमशेदपुर में झारखंड महिला क्रिकेट टीम में भाग लेना था. पिता ने उसे सरकारी बस स्टैंड में बस में बैठाने के समय कहा था, ‘‘अच्छा से क्रि केट खेलना. परीक्षा का टेंशन नहीं लेना’. बस खुलते ही शुभलक्ष्मी में मां को फोन किया और कहा कि पिताजी भी अब हमें क्रिकेटर के रूप में देखना चाहते हैं. क्रिकेट से रोकने व डांटनेवाले पिता के मन में क्रिकेट के प्रति बदलाव ने मेरे आत्मविश्वास को और बढ़ा दिया.
सामाजिक चुनौतियों से घबड़ायी नहीं : हमेशा अकेली लड़कों के साथ क्रिकेट वेल्स मैदान हजारीबाग में प्रैटिक्स करती रही. कौन क्या कह रहा है या मेरे बारे मे सोच रहा है, इस पर ध्यान देने से ज्यादा सिर्फ क्रिकेट पर ध्यान दिया. कोच मनोहर सिंह और मेरे दोनों भाइयों ने हमें खेल के मैदान और देश के विभिन्न प्रतियोगिताओं में साथ दिया. मैदान में मिल रही सफलता से परिवार के लोगों को विश्वास बढ़ा.
सगे-संबंधी भी अब अपने घर की लड़कियों को खेल के मैदान में भेजने लगे. मामा की लड़की सुधा नवादा जिला एथलेटिक्स टीम तक पहुंच गयी है. जब छोटे शहर से खेल कर पूर्वी क्षेत्र टूर्नामेंट में भाग लेती थी, उस समय कमियों का एहसास होता था. लेकिन खेल प्रदर्शन को ही ताकत मान कर कामयाब होती रही. युवा खिलाड़ियों से कहना चाहती हूं कि अगर ईमानदारी व लगन से मेहनत करेंगे तो जर सफल होंगे.
जहीर खान हैं रोल मॉडल : जहीर खान और ब्रेटली पसंदीदा खिलाड़ी हैं. मैं खुद को महिला क्रिकेट टीम में सबसे तेज गेंदबाज के रूप में स्थापित करना चाहती हूं.
महिला क्रि केटर को भी स्पांसर मिले : शुभलक्ष्मी की ख्वाहिश है कि उसके पास भी महंगे स्पाइक शू हों. फिलहाल एक स्पाइक शू से ही काम चला रही हूं. पुरुष क्रिकेट टीम व खिलाड़ियों को मिलने वाली सुविधा व स्पांसर काफी अधिक हैं. महिला क्रिकेटरों को भी सुविधा व स्पांसर मिले.
मीडिया का भी फोकस महिला खिलाड़ियों पर हो.
झारखंड में महिला क्रिकेट कैंप ज्यादा हो : झारखंड टीम का चयन जिला स्तरीय प्रतियोगिता से होता है. छोटे छोटे जिलों के खिलाड़ियों को प्रशिक्षण नहीं मिल पाता है. राज्य स्तर पर कई कैंप लगने चाहिए. इससे युवा खिलाड़ियों को मदद मिलेगी. सरकार की ओर से खिलाड़ियों को प्रोत्साहन व सहयोग लगातार मिलना चाहिए.
झारखंड सरकार से सम्मान व नौकरी की ख्वाहिश : अपने राज्य झारखंड व हजारीबाग में नौकरी मिले. हजारीबाग व झारखंड सरकार के समारोह में सम्मानित होने पर अधिक खुशी मिलेगी. इंडियन रेलवे की नौकरी दूसरे राज्य में मिली है.
भारतीय महिला क्रिकेट टीम में चयनित शुभलक्ष्मी ने हजारीबाग की गलियों में लकड़ी की तख्ती और प्लास्टिक की गेंद से क्रिकेट की शुरुआत की थी.
घर के अहाते में दोनों बड़े भाइयों के साथ वह क्रिकेट खेलती थी. पिता राजेंद्र प्रसाद शर्मा (एएसआइ, विशेष शाखा) ने बेटी को क्रिकेट खेलते देख कर काफी डांटा था. इसके बाद से वह पिता के डय़ूटी पर जाने के बाद उनके घर आने से पहले बीच की अवधि में ही क्रिकेट खेलती थी. कार्मेल स्कूल हजारीबाग में कक्षा आठ तक पढ़ाई के दौरान बैडमिंटन में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के रूप में उसकी पहचान बन गयी थी. अंडर-16 बैडमिंटन नेशनल खेलने के लिए केरल गयी. फाइनल में सायना नेहवाल से हार गयी. इसके बाद हजारीबाग लौट कर पढ़ाई में मन लगाने के लिए पिता का दबाव बढ़ गया.
कार्मेल स्कूल महिला क्रिकेट टीम में पहली बार चयनित : कार्मेल स्कूल महिला क्रिकेट टीम के चयन के दौरान स्कूल के टीचर मो खैल बरा उर्फ बॉबी सर ने पहली बार शुभलक्ष्मी को क्रिकेट टीम में स्थान दिया. अंतर-विद्यालय महिला क्रिकेट मैच में बेहतर प्रदर्शन करके जिला स्तरीय महिला क्रिकेट टीम में मुकाम बनाया. इसके बाद से उसने बैडमिंटन छोड़ क्रिकेट को पैशन बनाया.
पिता से मिला पहला बल्ला एक ही टूर्नामेंट में टूटा : शुभलक्ष्मी के परिवार ने उसके शौक व जुनून को आर्थिक समस्याओं के कारण कभी कम होने नहीं दिया. खेल की सामग्री एक साथ मुहैया कराना परिवार के लिए क्षमता से बाहर था. फिर भी मां और भाई ने मिल कर पिता से शुभलक्ष्मी के लिए पंद्रह सौ का एक बैट खरीदवाया. वह बैट एक टूर्नामेंट खेलने के समय ही टूट गया. शुभलक्ष्मी का शौक था कि एक पूरा क्रिकेट किट मेरे पास हो. लेकिन यह ख्वाहिश कई वर्षो तक पूरा नहीं हो पायी. जिला महिला क्रिकेट एसोसिएशन के एके मलिक ने तत्कालीन एसपी से एक बैट इसे दिलवाया, जिससे वह काफी दिनों तक खेली. इसी बीच पिता के दोस्त अपदा ने भी एक बैट-बॉल दिया. परिवार की ओर से एक क्रिकेट किट मिला. शुभलक्ष्मी ने बताया कि जीवन में पहली बार मिले क्रिकेट किट को काफी रात तक निकाल-निकाल कर देखती रही.
बेटी को क्रिकेटर बनते देख पिता का बढ़ा आत्मविश्वास : शुभलक्ष्मी वर्ष 2006 में आइसीएससी बोर्ड की परीक्षार्थी थी. उसी समय जमशेदपुर में झारखंड महिला क्रिकेट टीम में भाग लेना था. पिता ने उसे सरकारी बस स्टैंड में बस में बैठाने के समय कहा था, ‘‘अच्छा से क्रि केट खेलना. परीक्षा का टेंशन नहीं लेना’. बस खुलते ही शुभलक्ष्मी में मां को फोन किया और कहा कि पिताजी भी अब हमें क्रिकेटर के रूप में देखना चाहते हैं. क्रिकेट से रोकने व डांटनेवाले पिता के मन में क्रिकेट के प्रति बदलाव ने मेरे आत्मविश्वास को और बढ़ा दिया.
सामाजिक चुनौतियों से घबड़ायी नहीं : हमेशा अकेली लड़कों के साथ क्रिकेट वेल्स मैदान हजारीबाग में प्रैटिक्स करती रही. कौन क्या कह रहा है या मेरे बारे मे सोच रहा है, इस पर ध्यान देने से ज्यादा सिर्फ क्रिकेट पर ध्यान दिया. कोच मनोहर सिंह और मेरे दोनों भाइयों ने हमें खेल के मैदान और देश के विभिन्न प्रतियोगिताओं में साथ दिया. मैदान में मिल रही सफलता से परिवार के लोगों को विश्वास बढ़ा.
सगे-संबंधी भी अब अपने घर की लड़कियों को खेल के मैदान में भेजने लगे. मामा की लड़की सुधा नवादा जिला एथलेटिक्स टीम तक पहुंच गयी है. जब छोटे शहर से खेल कर पूर्वी क्षेत्र टूर्नामेंट में भाग लेती थी, उस समय कमियों का एहसास होता था. लेकिन खेल प्रदर्शन को ही ताकत मान कर कामयाब होती रही. युवा खिलाड़ियों से कहना चाहती हूं कि अगर ईमानदारी व लगन से मेहनत करेंगे तो जर सफल होंगे.
जहीर खान हैं रोल मॉडल : जहीर खान और ब्रेटली पसंदीदा खिलाड़ी हैं. मैं खुद को महिला क्रिकेट टीम में सबसे तेज गेंदबाज के रूप में स्थापित करना चाहती हूं.
महिला क्रि केटर को भी स्पांसर मिले : शुभलक्ष्मी की ख्वाहिश है कि उसके पास भी महंगे स्पाइक शू हों. फिलहाल एक स्पाइक शू से ही काम चला रही हूं. पुरुष क्रिकेट टीम व खिलाड़ियों को मिलने वाली सुविधा व स्पांसर काफी अधिक हैं. महिला क्रिकेटरों को भी सुविधा व स्पांसर मिले.
मीडिया का भी फोकस महिला खिलाड़ियों पर हो.
झारखंड में महिला क्रिकेट कैंप ज्यादा हो : झारखंड टीम का चयन जिला स्तरीय प्रतियोगिता से होता है. छोटे छोटे जिलों के खिलाड़ियों को प्रशिक्षण नहीं मिल पाता है. राज्य स्तर पर कई कैंप लगने चाहिए. इससे युवा खिलाड़ियों को मदद मिलेगी. सरकार की ओर से खिलाड़ियों को प्रोत्साहन व सहयोग लगातार मिलना चाहिए.
झारखंड सरकार से सम्मान व नौकरी की ख्वाहिश : अपने राज्य झारखंड व हजारीबाग में नौकरी मिले. हजारीबाग व झारखंड सरकार के समारोह में सम्मानित होने पर अधिक खुशी मिलेगी. इंडियन रेलवे की नौकरी दूसरे राज्य में मिली है.
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