Sunday, 1 February 2015

राजनारायण जी @चंचल जी

77 में जनता सरकार केन्द्र में काबिज हो चुकी थी . राज्यों के चुनाव होनेवाले थे . नेता जी हरियाणा के  प्रभारी बनाए गए थे . उन्हें टिकट वितरण में केन्द्रीय समिति को मदद देनी थी . गुरद्वारा रकाबगंज के उनके आवास पर टिकट मांगनेवालों की भीड़ लगी थी . इतने में  एक पुराना समाजवादी नेता जी के सामने आया और बोला सुन नेता हमें उस जगह से लड़ा दो .... नेता ने एक बार उसे टाला फिर वह दुबारा नमूदार हो गया और उसी तरह बोला - राजनारायण सुन ... एक टिकट मेरा ... नेता जी ने गुस्से में बोला - तुम मेरे बाप हो ? उसने भी उसी तरह जवाब दिया तू वही समझ ले .. लेकिन टिकट दे दो .. नेता जी ने कहा - अगर न दूं तो . उसने कहा -- तो मै तुम्हारे बंगले पर अनशन करूँगा . नेता जी गौर से उसे देखा - जाओ करो अनशन . इतना सुनना था कि वह जोर जोर से नारा लगाना शुरू किया . 'राज नारायण . मुर्दाबाद , डॉ लोहिया अमर रहें . और जाकर बाहर लान में गमछा बिठा कर बैठ गया . थोड़ी देर बाद नेता जी बंगले से बाहर निकलने लागे तो तो फिर वही नारा . नेता जी रुके मुस्कुराए और चले गए . दोपहर बाद जब नेता जी लौट कर आये तो वह वहीं बैठा मिला . गर्मी का महीना . नेता जी कुर्सी मंगवाया  और वही बैठ गए . आगंतुको से मिलते रहें . बीच बीच में वह नारा लगाता रहा . राज नारायण मुर्दाबाद , समाजवाद जिन्दाबाद , डॉ लोहिया अमर रहें . लोगो को अजीब लगता लेकिन नेता जी सुनते और मुस्कुरा देते .अचानक नेता जी को कुछ याद आया . उन्होंने माहेश्वरी को बुलाया और बोले - भाई यहाँ एक टेंट लगवा दो .. एक घडा पानी, एक गिलास, कुछ नीबू लाकर रख दो . और उसका अनशन चलता रहा . दूसरे दिन नेता जी ने जूस पीला कर उनका अनशन तुड़वाया और टिकट का ऐलान किया . वो उठा और उसी धुन में राज नारायण जिंदाबाद बोला . 

3 comments:

  1. ऐसे थे राजनारायन

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  2. ऐसे थे राजनारायन

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  3. Save Kr rhe.... Thankyou Ese किस्सों से हमें अवगत कराने की।

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