77 में जनता
सरकार केन्द्र में काबिज हो चुकी थी . राज्यों के चुनाव होनेवाले थे . नेता जी
हरियाणा के प्रभारी बनाए गए थे . उन्हें
टिकट वितरण में केन्द्रीय समिति को मदद देनी थी . गुरद्वारा रकाबगंज के उनके आवास
पर टिकट मांगनेवालों की भीड़ लगी थी . इतने में एक पुराना समाजवादी नेता जी के सामने आया और
बोला “सुन नेता
हमें उस जगह से लड़ा दो .... ‘ नेता ने एक बार उसे टाला फिर वह दुबारा नमूदार हो गया और उसी
तरह बोला - राजनारायण सुन ... एक टिकट मेरा ... नेता जी ने गुस्से में बोला - तुम
मेरे बाप हो ? उसने भी उसी
तरह जवाब दिया – तू वही समझ
ले .. लेकिन टिकट दे दो .. नेता जी ने कहा - अगर न दूं तो . उसने कहा -- तो मै
तुम्हारे बंगले पर अनशन करूँगा . नेता जी गौर से उसे देखा - जाओ करो अनशन . इतना
सुनना था कि वह जोर जोर से नारा लगाना शुरू किया . 'राज नारायण . मुर्दाबाद , डॉ लोहिया अमर रहें . और जाकर बाहर लान में गमछा बिठा कर बैठ
गया . थोड़ी देर बाद नेता जी बंगले से बाहर निकलने लागे तो तो फिर वही नारा . नेता
जी रुके मुस्कुराए और चले गए . दोपहर बाद जब नेता जी लौट कर आये तो वह वहीं बैठा
मिला . गर्मी का महीना . नेता जी कुर्सी मंगवाया और वही बैठ गए . आगंतुको से मिलते रहें . बीच
बीच में वह नारा लगाता रहा . राज नारायण मुर्दाबाद , समाजवाद जिन्दाबाद , डॉ लोहिया अमर रहें . लोगो को अजीब लगता लेकिन नेता जी सुनते और
मुस्कुरा देते .अचानक नेता जी को कुछ याद आया . उन्होंने माहेश्वरी को बुलाया और
बोले - भाई यहाँ एक टेंट लगवा दो .. एक घडा पानी, एक गिलास, कुछ नीबू लाकर रख दो .
और उसका अनशन चलता रहा . दूसरे दिन नेता जी ने जूस पीला कर उनका अनशन तुड़वाया और
टिकट का ऐलान किया . वो उठा और उसी धुन में राज नारायण जिंदाबाद बोला .
ऐसे थे राजनारायन
ReplyDeleteऐसे थे राजनारायन
ReplyDeleteSave Kr rhe.... Thankyou Ese किस्सों से हमें अवगत कराने की।
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