रिटायर आईएएस अधिकारी प्रोमिला शंकर की हालिया किताब ‘गॉड्स ऑफ करप्शन’ भले ही उत्तर प्रदेश में नौकरशाही की भ्रष्ट छवि को कुछ और पुख्ता करती हो, लेकिन इसी तंत्र में कुछ ऐसे अधिकारी भी हैं जिनका काम इस छवि को चुनौती देता है.
राम और कृष्ण की जन्म भूमि के रूप में चर्चित उत्तर प्रदेश में अब एक और तरह के देवता भी अवतरित होने लगे हैं. ये हैं ‘भ्रष्टाचार के देवता’. रिटायर आईएएस अधिकारी प्रोमिला शंकर की हाल में आई किताब ‘गॉड्स ऑफ करप्शन’ में उत्तर प्रदेश में नौकरशाहों के राजनीतिक रिश्तों और इनके कारण लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार के ताने-बाने का बारीक खुलासा किया गया है. प्रोमिला शंकर ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर राजनीतिक दलों के हिसाब से रंग बदलने वाले नौकरशाहों के कई कारनामों से पर्दा हटाया है.+
इस किताब के बाजार में आने के बाद उत्तर प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में काफी सुगबुगाहट है, किताब में जिस तरह के अधिकारियों का उल्लेख है, उनकी लॉबी अब प्रोमिला शंकर की लागत-मलानत में जुट गई है. प्रोमिला शंकर की किताब बताती है कि एक वक्त देश में सर्वश्रेष्ठ समझी जाने वाली उत्तर प्रदेश की नौकरशाही अब पूरी तरह राजनीतिक भ्रष्टाचार की चेरी बन गई है और ज्यादातर नौकरशाह अब सत्ता के यस मैन की तरह काम कर रहे हैं.+
प्रोमिला शंकर की किताब बताती है कि एक वक्त देश में सर्वश्रेष्ठ समझी जाने वाली उत्तर प्रदेश की नौकरशाही में अब ज्यादातर अफसर सत्ता के यस मैन की तरह काम कर रहे हैं.
हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब उत्तर प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी के अन्दर से अपनी सड़ांध का प्रतिकार हो रहा हो. प्रोमिला शंकर की किताब में जिन एपी सिंह पर अंगुली उठी है उन्हें तो उनके दो अन्य साथियों सहित उन्हीं के संवर्ग ने वोट डाल कर महाभ्रष्ट तक चुना था. आईएएस एसोसिएशन की वार्षिक बैठक में अपने बीच महाभ्रष्ट चुनने के लिए 1997 में बाकायदा वोटिंग हुई थी. उस समय आईएएस कैडर के लोगों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए ‘एक्शन ग्रुप’ नामक एक संगठन भी बनाया था. इस लड़ाई की प्रेरणा एक पूर्व आईएएस अधिकारी धर्म सिंह रावत थे जो खुद सेवा में रहते हुए लखनऊ में गांधी प्रतिमा के सामने सरकारी तंत्र के खिलाफ 1986 में धरने पर बैठ चुके थे. रावत का मानना था कि लोकतंत्र में असली सत्ता जनता के हाथों में होती है. वे भ्रष्टाचार को मुद्दा तो मानते थे, लेकिन असल मुद्दा नहीं. उनका कहना था कि असल बात जवाबदेही और पारदर्शिता है. यह होगी तो भ्रष्टाचार खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगा.+
2001 के बाद एक बार फिर उत्तर प्रदेश की नौकरशाही ने अपने गिरेबान में झांकने की कोशिश की. ‘इंडिया रिजुवेनेशन इनीशिएटिव’ (आईआरआई) के तहत नौकरशाही के काम काज में जवाबदेही और पारदर्शिता लाने का यह मिशन भी कुछ दिन खूब जोर शोर से चला. लेकिन 2006 के बाद उत्तर प्रदेश में नई सरकार के साथ साथ यह कमजोर पड़ता चला गया. अब एक बार फिर प्रोमिला शंकर की किताब ने गड़े मुर्दे उखाड़ दिए हैं. हालांकि उनसे असहमत लॉबी कहती है कि उन्होंने यह सब नौकरी में रहते हुए क्यों नहीं लिखा या कहा. यह तो वही बात हो गई कि जैसे बीएसपी से निकाले जाने वाला हर नेता एक ही आरोप दोहराता है कि पार्टी में पैसे लेकर टिकट बेचे जाते हैं.+
बहरहाल प्रोमिला शंकर की किताब इस समय इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गई है कि आजकल राज्य में कुछ बड़े अधिकारी लगातार भ्रष्टाचार और गैर जिम्मेदाराना प्रशासन के खिलाफ मुखर हैं. इसमें से एक हैं आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर. तमाम दबावों के बावजूद अमिताभ राज्य में हो रही हर गड़बड़ के खिलाफ आवाज उठाने में लगे हैं. अभी हाल में उन्होने उत्तर प्रदेश में जिलों में नेताओं को दी जाने वाली ‘गार्ड ऑफ आनर’ प्रथा को खत्म करने की मांग की है. इसके पहले भी वे सरकार के अनेक फैसलों के खिलाफ आवाज उठा चुके हैं. अपनी पत्नी नूतन ठाकुर के साथ वे सूचना के अधिकार (आरटीआई) और जनहित याचिकाओं को हथियार बना कर अन्याय और असमानता के खिलाफ लड़ रहे हैं. कुछ समय पहले नूतन द्वारा आरटीआई के जरिये मिली जानकारी से पता चला था कि उत्तर प्रदेश में 43 आईपीएस अफसर हैं जिनका अपने अब तक के करियर में 40 से भी ज्यादा बार तबादला हो चुका है.+
उत्तर प्रदेश का निजाम ऐसा है कि नोएडा प्लाट आवंटन के मामले में सजायाफ्ता राजीव कुमार जैसे अधिकारी एक ‘स्टे’ के सहारे पूरे सूबे में अधिकारियों की तैनाती करने वाले नियुक्ति विभाग के प्रमुख सचिव बने हुए हैं.
हाल ही में अमिताभ ने सेवानिवृत्ति के बाद आईएएस और पीसीएस अधिकारियों की पुर्ननियुक्ति पर सवाल उठाए. मुख्यमंत्री के खास समझे जाने वाले शंभू सिंह यादव और आजम खान के निजी सचिव के सेवा विस्तार को आधार बना कर उठा यह मामला एक जनहित याचिका के रूप में हाईकोर्ट में विचाराधीन है. कांग्रेस नेता रीता बहुगुणा का घर जलाए जाने के आरोप में सीबीसीआईडी द्वारा डीजीपी एके जैन के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगने के बावजूद जैन को सेवा विस्तार दे दिए जाने के खिलाफ भी अमिताभ मुखर हैं. वे कहते हैं कि जब नीरा यादव के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ एक भी मामला विचाराधीन हो तो उसे सेवा विस्तार नहीं दिया जाना चाहिए. तब जैन को सेवा विस्तार क्यों दिया गया. यह मामला भी अब अदालत में है.+
अमिताभ को इस ‘हिम्मत’की कीमत भी चुकानी पड़ रही है. उन्हें लगातार महत्वहीन पदों पर तैनाती मिलती है. व्यक्तिगत तौर पर भी उन्हें प्रताड़ित किया गया है. खनन मंत्री गायत्री प्रजापति के खिलाफ अवैध खनन का मामला उठाने पर उन्हें फोन पर धमकी मिली थी. इसके बाद महिला आयोग में एटा और गाजियाबाद की दो अज्ञात महिलाओं की ओर से अमिताभ और उनकी पत्नी के खिलाफ बलात्कार, यौन उत्पीड़न व देह व्यापार की शिकायत कराई गई. इस दंपत्ति ने दोनों ही मामलों में जांच की मांग की, पुलिस में रिपोर्ट भी कराई मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई.+
अब सरकार ने अमिताभ से जवाब-तलब किया है कि वे अपनी सेवा शर्तों का उल्लंघन क्यों कर रहे हैं. वे कहते हैं, ‘सेवा शर्तों का उल्लंघन तो वे लोग कर रहे हैं जो न्याय के मामले में कानून के बजाय अपनी जाति, अपने वर्ग और अपनी पसंद को ज्यादा वजन दे रहे हैं. मैं तो सिर्फ एक नागरिक होने का फर्ज अदा कर रहा हूं.’ उनके मुताबिक आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही बिलकुल नहीं रह गई है. वे कहते हैं, ‘यह हो तो सारी चीजें ठीक हो जाएं. दूसरी समस्या निष्पक्षता की है. पर्सनल लाइकिंग-डिसलाइकिंग से शासन नहीं चलता. पर आज यही हो रहा है.’+
अमिताभ को इस ‘हिम्मत’की कीमत भी चुकानी पड़ रही है. उन्हें लगातार महत्वहीन पदों पर तैनाती मिलती है. व्यक्तिगत तौर पर भी उन्हें प्रताड़ित किया गया है.
उत्तर प्रदेश में ‘गॉड्स आफ करप्शन’ के बारे में अमिताभ का कहना है कि अब राजनीतिक व्यवस्था और नौकरशाह, दोनों को अपनी अपनी ताकत का अहसास हो चुका है. दोनों ही जानते हैं कि एक दूसरे की मदद के बिना उनका ‘भला’नहीं हो सकता. इसलिए आज बहुत सारे अधिकारी एक अच्छा लोक सेवक होने के बजाय अपना खुद का हित साधने में जुट गए हैं. इसीलिए वे राज्य का होने के बनिस्बत सत्ताधारी दल का होना ज्यादा पसन्द करने लगे हैं और यहीं से सारी गड़बड़ी की शुरूआत होती है.+
गहराई से देखें तो यह बात काफी हद तक सही दिखाई देती है. मायावती सरकार के कई बड़े अधिकारी राजनीतिक दलों की शरण में मौज काट रहे हैं. कुछ ने बीएसपी की कृपा हासिल की तो कुछ को ‘नेताजी’की छत्रछाया में सम्मान की प्राप्ति हो रही है. जिन्हें जेल में होना था वो राजनेता बने घूम रहे हैं. शायद ही कोई जिला हो जहां प्रशासन के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई बड़ा मामला न चल रहा हो. राज्य के 25 से ज्यादा बड़े अधिकारियों के खिलाफ बड़ी जांचें चल रही हैं. मगर निजाम ऐसा है कि नोएडा प्लाट आवंटन के मामले में सजायाफ्ता राजीव कुमार जैसे अधिकारी एक ‘स्टे’ के सहारे पूरे सूबे में अधिकारियों की तैनाती करने वाले नियुक्ति विभाग के प्रमुख सचिव बने हुए हैं और मलाई काट रहे हैं. केंद्र सरकार में पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किए बिना जबरन यूपी कैडर में वापस भेज दिए गए अधिकारी सदाकान्त आवास विभाग के प्रमुख सचिव बने हुए हैं तो दीपक सिंघल प्रमुख सचिव सिंचाई जैसे महत्वपूर्ण पद पर तैनात हैं. नियमानुसार केंद्र से इस तरह बैरंग लौटाए गए अधिकारियों को कोई महत्वपूर्ण नियुक्ति नहीं दी जानी चाहिए थी.+
लेकिन ये यूपी है. यहां नियमों के अलावा सब कुछ चलता है. लेकिन ‘सब चलता है’ की इस धारा के विपरीत भी अब यहां कुछ चलने लगा है. धारा के विपरीत कुछ हलचलें हैं, कुछ आवाजें हैं. अमिताभ ठाकुर के अलावा ऐसी ही एक और आवाज है सार्वजनिक उद्यम विभाग के प्रमुख सचिव एसपी सिंह की. एसपी सिंह भी इन दिनों राज्य सरकार की आंख की किरकिरी बने हुए हैं.+
26 जिलों में इस अभियान के तहत 151 परीक्षा केंद्रों मे सामूहिक नकल पकड़ी गई. एक केंद्र में तो राज्य के एक मंत्री की बेटी ही नकल करते हुए पकड़ी गईं. मगर सरकार की तरफ से सिंह को शाबाशी मिलना तो दूर उल्टे उन्हें ही निशाना बनाया गया.
पिछले डेढ़ वर्ष में छह तबादले झेल चुके एसपी सिंह इससे पहले माध्यमिक शिक्षा विभाग में प्रमुख सचिव थे. वहां उन्होने बोर्ड परीक्षाओं में संगठित नकल को रोकने के लिए कुछ योजनाएं बनाईं. मगर वे उन पर पूरी तरह अमल कर पाते, इसके पहले ही नकल माफिया ने उनकी छुट्टी करवा दी. एक महीना दस दिन में ही उनका तबादला हो गया. सिंह ने नकल माफिया के खिलाफ वास्ट ( वॉलेंटरी एक्शन फॉर सोशल ट्रांसफार्मेशन) नामक एनजीओ की मदद से जोरदार अभियान छेड़ा था. 26 जिलों में इस अभियान के तहत 151 परीक्षा केंद्रों मे सामूहिक नकल पकड़ी गई. एक केंद्र में तो राज्य के एक मंत्री की बेटी ही नकल करते हुए पकड़ी गईं. मगर सरकार की तरफ से सिंह को शाबाशी मिलना तो दूर उल्टे उन्हें ही निशाना बनाया गया.+
2000 करोड़ के नकल उद्योग से लड़ने के अलावा सिंह ने किसानों की आत्महत्या के सवाल को भी बड़ा सवाल बनाया है. उन्होंने बड़े अधिकारियों सहित राज्य की सत्ता को भी इसके लिए कठघरे में खड़ा किया है. इस कारण उनको प्रताड़ित किया जाने लगा है. उदाहरण के लिए कुछ दिन पहले उन्हें मुख्यमंत्री आवास पर समीक्षा बैठक के लिए सुबह नौ बजे बुलाया गया. वे गए तो वहां बैठक के बारे में कोई सूचना ही नहीं थी. काफी देर खड़े रहने के बाद उन्हे वापस लौटना पड़ा. लेकिन सिंह इससे जरा भी विचलित नहीं हैं. वे कहते हैं, ‘मैं तो वही कर रहा हूं जो राज्य सरकार का काम है. पता नहीं इसका इतना हौव्वा क्यों बनाया जा रहा है. मुझसे कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री मुझसे नाराज हैं. मैं नहीं मानता ऐसा कुछ होगा. मैं फेसबुक पर अपने दोस्तों से अपनी पीड़ा शेयर करता हूं तो इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है.’ अपनी फेसबुक वाल पर उन्होंने लिखा है, ‘कई बार मुझे शंका होती है – क्या ये लोकतंत्र है या षडयंत्र तंत्र या भय तंत्र?’+
‘मैंने कोई पाप नहीं किया, कुछ ज्वलन्त मुद्दे जन सामान्य के हित में ही तो उठाए हैं. नकल रोको अभियान चलाया. किसान का बेटा होने के नाते आत्महत्या कर रहे किसानों के मुआवजे का मुद्दा उठाया… क्या ये सब एक लोक सेवक द्वारा किया गया अपराध है ?’
सिंह कहते हैं, ‘मैंने कोई पाप नहीं किया, कुछ ज्वलन्त मुद्दे जन सामान्य के हित में ही तो उठाए हैं. जैसे नकल रोको अभियान चलाया. किसान का बेटा होने के नाते आत्महत्या कर रहे किसानों के मुआवजे का मुद्दा उठाया, बालिका कुपोषण प्रोग्राम चला रहा हूं. क्या ये सब एक लोक सेवक द्वारा किया गया अपराध है ?’ वे आगे कहते हैं, ‘मैं तो पहले भी ऐसा ही था लेकिन अब सत्ता का चेहरा और चरित्र दोनों बदल गए हैं. अकबर को जिल्ले इलाही इसलिए कहा जाता था क्योंकि वे अपनी कमियों और गलतियों के बारे में दूसरों से सुन कर क्रोधित होने के बजाय उन्हें ठीक करने की कोशिश करते थे. आज भी मुख्यमंत्री को मेरे सवालों को व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने के बजाय न्याय का मुद्दा बनाना चाहिए.’ उनसे जवाब-तलब किए जाने पर सिंह का का कहना है कि फेसबुक पर वे जो भी लिखते हैं वह अपने दोस्तों से निजी बातचीत है. वे कहते हैं, ‘निजी बातचीत के आधार पर सर्विस कंडक्ट रूल के उल्लंघन का कोई मामला नहीं बनता.’ सिंह मानते हैं कि उनका कोई व्यक्तिगत एजेंडा नहीं है. वे तो बस अपना उत्तरदायित्व पूरा कर रहे हैं.+
उत्तर प्रदेश में अब ज्यादातर अधिकारी राजनीतिक रूप से निष्पक्ष नहीं रह गए हैं. अपनी सुविधा और फायदे के लिए वे सत्ता की राजनीति से जुड़ जाते हैं और इसके बाद उन्हे किसी जवाबदेही की जरूरत नहीं रह जाती. सारी जवाबदेही एक जगह जाकर खत्म हो जाती है. हालात इतने खराब हो गये हैं कि कई वरिष्ठ अधिकारी भी यह स्वीकार करते हैं कि सूबे की बेहतरी के लिए सूबे की नौकरशाही को ठीक करना बहुत जरूरी है. राजनीतिक रूप से तटस्थ, जवाबदेह और पारदर्शी नौकरशाही के बिना उत्तर प्रदेश का उद्धार संभव नहीं. अमिताभ ठाकुर और एसपी सिंह जैसे लोगों की कोशिश आसमान की ओर एक पत्थर तबीयत से उछालने जैसी ही सही, बदलाव की एक मलंग पहल तो है.
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