.. रवीश कुमार ने पटना के महावीर कैंसर संस्थान और किशोर कुणाल के कार्यों के बारे में अच्छा कार्यक्रम प्रस्तुत किया ..
.. किशोर कुणाल और उनके कार्यों को एक केस स्टडी की तरह देखा जाए तो कई महत्वपूर्ण बातें सामने अाती हैं ..
.. मंदिरों में चढ़ावे का नाममात्र हिस्सा जनहित के लिए बाहर आता है .. अगर जनता के उस धन का शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मूलभूत कार्यों के लिए उपयोग किया जाए तो देश भर में ऐसे संस्थानों का बड़ा ताना- बाना खड़ा किया जा सकता है ..
.. धर्मों के लोकहित के कार्य और स्टेट की लोकहित की जवाबदेही में एक संगति बैठायी जा सकती है .. जैसे, मंदिरों से समर्थन के मूलधन के आधार पर किशोर कुणाल ने बैंकों से लोन लिया और बहुत कम लागत पर गरीबों को सेवा देकर इकॉनोमी ऑफ स्केल के आधार पर लाभ कमाकर बैंकों के लोन वापस किए ..
.. सभी धर्म अपने तरीके से नैतिकता के उत्पादन और परोपकार/ सामाजिक कार्य के निष्पादन का दावा करते हैं .. धर्मों के बीच लड़ाई इस बात की होती है कि नैतिकता के उत्पादन पर सभी ध्ार्म अपना- अपना एकाधिकार जताने लगते हैं और दूसरे धर्म वालों को ख्ाारिज करते हैं, और ऐसा करने में उस धर्म विशेष का नहीं बल्कि धर्म के मठाधीश का हित ज्यादा काम कर रहा होता है .. धर्मों के बीच एकता का एक मॉडल यह हो सकता है कि सभी धर्म मिलकर नैतिकता के उत्पादन और परोपकार के निष्पादन के लिए न्यूनतम साझा विकसित करें और एक मंच पर आएं, और इस संदर्भ में वे स्टेट व धर्मनिरपेक्ष परंपराओं से भी एक न्यूनतम साझा विकसित करें ..
( एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का भी धर्मों के नैतिकता के उत्पादन और परोपकार के निष्पादन के प्रयासों से कोई अनिवार्य संघर्ष नहीं होता .. धर्मनिरपेक्ष राज्य का ध्ार्म से संघर्ष तब होता है जब धर्म नैतिकता के उत्पादन पर एकाधिकार जताता है और राज्य के संवैधानिक आदर्शों से ऊपर अपने आदर्शों को बताता है) .. किशोर कुणाल के कार्यों का मॉडल निश्चित ही एक बहुलतावादी मॉडल है जिसमें सिर्फ अपनी कमीज को सफेद नहीं बताया जा सकता ..
.. उक्त प्रकार का कोई भी ईमानदार काम अनिवार्य रूप से प्रातिनिधिकता के सिद्धांत पर विश्वास करता है .. महावीर कैंसर संस्थान की गवर्निंग बॉडी और विभागों में सायास सभी धर्मों, पिछड़ी जातियों और महिलाओं को अच्छा प्रतिनिधित्व दिया गया है ..
.. किशोर कुणाल और उनके कार्यों को एक केस स्टडी की तरह देखा जाए तो कई महत्वपूर्ण बातें सामने अाती हैं ..
.. मंदिरों में चढ़ावे का नाममात्र हिस्सा जनहित के लिए बाहर आता है .. अगर जनता के उस धन का शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मूलभूत कार्यों के लिए उपयोग किया जाए तो देश भर में ऐसे संस्थानों का बड़ा ताना- बाना खड़ा किया जा सकता है ..
.. धर्मों के लोकहित के कार्य और स्टेट की लोकहित की जवाबदेही में एक संगति बैठायी जा सकती है .. जैसे, मंदिरों से समर्थन के मूलधन के आधार पर किशोर कुणाल ने बैंकों से लोन लिया और बहुत कम लागत पर गरीबों को सेवा देकर इकॉनोमी ऑफ स्केल के आधार पर लाभ कमाकर बैंकों के लोन वापस किए ..
.. सभी धर्म अपने तरीके से नैतिकता के उत्पादन और परोपकार/ सामाजिक कार्य के निष्पादन का दावा करते हैं .. धर्मों के बीच लड़ाई इस बात की होती है कि नैतिकता के उत्पादन पर सभी ध्ार्म अपना- अपना एकाधिकार जताने लगते हैं और दूसरे धर्म वालों को ख्ाारिज करते हैं, और ऐसा करने में उस धर्म विशेष का नहीं बल्कि धर्म के मठाधीश का हित ज्यादा काम कर रहा होता है .. धर्मों के बीच एकता का एक मॉडल यह हो सकता है कि सभी धर्म मिलकर नैतिकता के उत्पादन और परोपकार के निष्पादन के लिए न्यूनतम साझा विकसित करें और एक मंच पर आएं, और इस संदर्भ में वे स्टेट व धर्मनिरपेक्ष परंपराओं से भी एक न्यूनतम साझा विकसित करें ..
( एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का भी धर्मों के नैतिकता के उत्पादन और परोपकार के निष्पादन के प्रयासों से कोई अनिवार्य संघर्ष नहीं होता .. धर्मनिरपेक्ष राज्य का ध्ार्म से संघर्ष तब होता है जब धर्म नैतिकता के उत्पादन पर एकाधिकार जताता है और राज्य के संवैधानिक आदर्शों से ऊपर अपने आदर्शों को बताता है) .. किशोर कुणाल के कार्यों का मॉडल निश्चित ही एक बहुलतावादी मॉडल है जिसमें सिर्फ अपनी कमीज को सफेद नहीं बताया जा सकता ..
.. उक्त प्रकार का कोई भी ईमानदार काम अनिवार्य रूप से प्रातिनिधिकता के सिद्धांत पर विश्वास करता है .. महावीर कैंसर संस्थान की गवर्निंग बॉडी और विभागों में सायास सभी धर्मों, पिछड़ी जातियों और महिलाओं को अच्छा प्रतिनिधित्व दिया गया है ..
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