Wednesday, 7 June 2017

उत्कर्ष का जातिवादी चरित्र दिखाते हुए स्वयं उसे भूमिहार पत्रकार बता रही है

नेशनल जनमत नाम की एक वेबसाइट है। दिलीप मंडल सर (Dilip C Mandal) इसके बहुजनवादी होने के दावे करते हैं। सर ने आज बिहार के टॉपर गणेश के संदर्भ में एबीपी न्यूज़ के पत्रकार उत्कर्ष सिंह पर कुछ पोस्ट्स लिखे जिसके लिए उन्हें उसके (उत्कर्ष के) पुराने पोस्ट खंगालने पड़े।
यदि कोई व्यक्ति गलत है या आपको गलत लगता है तो आप उसका खूब विरोध कर सकते हैं पर विषयांतर कर एक वर्ष पुराना किस्सा जो इस विषय से जुड़ा भी नहीं, उधेड़ना मेरी समझ से परे है। इस तरीके से सहानुभूति बटोरी जा सकती है पर मुख्य विषय पीछे छूट जाता है।
ख़ैर, नेशनल जनमत ने उत्कर्ष की सोच इंगित करते हुए उसकी पोस्ट्स पर निशाना साधा है। साइट ने उत्कर्ष के जातिवादी पोस्ट पर लिखी अपनी स्टोरी का शीर्षक दिया है - पढ़िए गणेश का इंटरव्यू करने वाले एबीपी न्यूज़ के भूमिहार पत्रकार का जातिवादी चरित्र
ध्यान दें कि साइट की ये स्टोरी उत्कर्ष का जातिवादी चरित्र दिखाते हुए स्वयं उसे भूमिहार पत्रकार बता रही है। मैं सम्पादक से यह जानने की इच्छा रखती हूं कि उत्कर्ष के ऐसा करने पर उसकी जाति पर प्रकाश डालने का क्या औचित्य है? आप स्वयं जातिवादी चरित्र दिखाते हुए एक पत्रकार की जाति बता रहे हैं जो विरोधाभास प्रकट करता है। उस स्टोरी में उत्कर्ष की रिपोर्टिंग को लेकर एक वाक्य भी नहीं कहा गया है, सिर्फ़ उसके पुराने पोस्ट दिखाये गए हैं और एक दृष्टिकोण बनाया गया है। वेबसाइट की ये स्टोरी आपको जानकारी नहीं देती कि उत्कर्ष ने क्या गलत किया और लोग कैसे उसके पक्ष या विरोध में खड़े हुए, वह स्वयं ये सिद्ध करती नज़र आती है कि पत्रकार का बैकग्राउंड 'खराब' रहा है और यह खराब ही है। सम्पादक को यह बात समझनी चाहिए कि पत्रकारिता में समाचार लिखते वक्त जानकारी देने की छूट होती है निर्णय सुनाने की नहीं।
दिलीप सर, आपको लाखों लोग पढ़ते हैं, आपसे सीखते हैं। अतः आग्रह है कि जातिवाद पर प्रहार करने के नाम पर जातिवाद फैलाने के हर तरह के प्रयास रोकें। आपने स्वयं अपने एक पोस्ट में लिखा है कि अब आप ब्राह्मणों की बात का जवाब तभी देंगे जब वो संस्कृत में बात करेंगे। ऐसी बातें अचंभित करती हैं। जातिवाद खत्म करने की कोशिश में यदि इस तरह हर तरफ जातिवाद बोया जाएगा तो निश्चित तौर पर खाई गहरी ही होगी! हर सही काम का समर्थन और गलत काम का विरोध बिना जाति इंगित किये भी किया जा सकता है। और यकीन मानें सर, हम में से कोई भी किसी दलित-दमित वर्ग का दुश्मन नहीं है, हम सभी चाहते हैं कि सब साथ चलें। जाति के नाम पर हो रहे शोषण का खूब विरोध हो, पर हर बात में जाति ढूंढकर दलितों को दूसरे वर्गों से दूर किया जा रहा है। वो द्वेष भरा जा रहा है जो है ही नहीं या बहुत कम है। हर विषय में जाति-तत्त्व दिखाकर दलितों का नेता बना जा सकता है पर उनका उत्थान नहीं किया जा सकता। ऐसे में आप द्वारा हर विषय में जाति-भावना शामिल करना और जातियों के नाम पर गड्ढे खोदना पीड़ादायी है।
उम्मीद है कि आप मेरी बात पर बिना मेरी जाति की ओर ध्यान दिये ग़ौर करेंगे।

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