राजनीति में बयानों के बुरे दिन @सीमा मुस्तफा
यदि राजीव गांधी ने एक गोरी महिला के बजाय किसी नाईजीरियाई स्त्री से विवाह किया होता, क्या तब भी कांग्रेसी उनका नेतृत्व स्वीकार करते?" यह बात किसी नस्लवादी व्यक्ति ने नहीं, बल्कि भारत सरकार के मंत्री गिरिराज सिंह ने कही है। गिरिराज हमेशा से ही आक्रामक राजनेता रहे हैं और मंत्रिपद तक पहुंचने में उनकी सफलता के लिए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से उनकी नजदीकी को मुख्य कारण बताया जाता है।
लेकिन उपरोक्त आपत्तिजनक विवाद देने के बाद भी कहानी वहीं खत्म नहीं हो गई। उनका स्पष्टीकरण तो और विवादास्पद था। उन्होंने कहा कि वे तो महज अनौपचारिक रूप से (ऑफ द रिकॉर्ड) ऐसा कह रहे थे, मानो ऐसा बताकर वे अपने कहे को जायज ठहराने की कोशिश कर रहे हों। उन्होंने यह भी कहा कि 'अगर" सोनिया और राहुल गांधी को मेरे कथन से कोई ठेस पहुंची हो तो मैं खेद व्यक्त करता हूं। इस कथन से भी यही ध्वनि निकलती है कि उन्होंने जो कहा, उसमें राजनीतिक या नस्लवादी दृष्टि से कुछ अनुचित तो नहीं था, फिर भी अगर भूल से उससे किसी को ठेस पहुंची हो तो वे खेद जताते हैं। निश्चित ही, यह बात भी उन्होंने पार्टी नेतृत्व के दबाव के चलते ही कही थी।
जाहिर है, सिंह के इस बयान पर विपक्ष की ओर से तीखी प्रतिक्रिया हुई और यहां तक कि खुद भाजपा नेत्री किरन बेदी ने उनकी टिप्पणी को 'शॉकिंग" करार दिया। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने तो यहां तक कह दिया कि 'लगता है प्रधानमंत्री को खुश करने की निरंतर कोशिशों के चलते वे अपना मानसिक संतुलन गंवा बैठे हैं।" कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग की कि वे इस बयान के लिए गिरिराज सिंह को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करें। माकपा नेत्री बृंदा करात ने उन्हें 'सीरियर ऑफेंडर" का खिताब दिया और कहा कि वे इस पर प्रधानमंत्री के 'मन की बात" जानना चाहेंगी। साफ है कि गिरिराज सिंह की टिप्पणी के कारण प्रधानमंत्री मोदी भी विपक्ष के निशाने पर आ गए हैं और ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। पिछले काफी समय से यह देखा जा रहा है कि भाजपा और उससे जुड़े संगठनों के लोग जो मन में आया बोल देते हैं और प्रधानमंत्री से संसद के भीतर और बाहर जवाब मांगा जाता रहता है।
जबकि गौर करने वाली बात यह है कि गत नवंबर में जब मोदी सरकार का मंत्रिमंडलीय विस्तार हुआ तो उसमें गिरिराज सिंह को जगह दी गई थी। उन्हें सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यमों का राज्यमंत्री बनाया गया था। उन्हें पदोन्न्ति देने का सरकार के पास कोई आधार रहा होगा, जबकि इससे पहले भी वे विवादास्पद बयान दे चुके थे। लेकिन तथ्य यह है कि गिरिराज सिंह बिहार के भूमिहार ब्राह्मण हैं और वर्ष 2013 तक वे बिहार की नीतीश सरकार में शामिल थे। जब जदयू और भाजपा का गठबंधन टूटा तो उन्हें सरकार से निकाल बाहर कर दिया गया। लोकसभा चुनावों के दौरान गिरिराज सिंह तब सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने कहा था कि मोदी का विरोध करने वाले पाकिस्तान जा सकते हैं। उनके इस बयान पर भी तब बहुत बवाल मचा था, लेकिन भाजपा द्वारा इस पर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई थी।
जुलाई में गिरिराज सिंह फिर विवादों के दायरे में थे, इस बार किंचित विचित्र कारणों से। 8 जुलाई को उन्होंने एक शिकायत दर्ज कराई कि उनके घर से कुछ गहनों और 50 हजार रुपयों की चोरी हुई है। पुलिस तुरंत हरकत में आई (जबकि अमूमन ऐसा होता नहीं) और चोर को गिरफ्तार कर लिया गया। दिनेश कुमार नामक उस व्यक्ति के पास से एक सूटकेस बरामद हुआ, जिसमें गहने, महंगी घड़ियां, चांदी के सिक्के, 600 यूएस डॉलर्स और 1.14 करोड़ रुपए नगद बरामद हुए! चोर ने स्वीकार किया कि उसने यह तमाम सामग्री गिरिराज सिंह के घर से चुराई है।
इसके बाद बिहार विधानसभा में खासा हंगामा हुआ और राज्य सरकार उनकी गिरफ्तारी की मांग करने लगी। यह तथ्य भी सामने आया कि चुनाव आयोग के समक्ष दर्ज किए गए अपने हलफनामे में गिरिराज सिंह ने अपनी कुल संपत्ति ही 1.14 करोड़ रुपए दर्ज कराई थी। जबकि इतनी रकम तो अन्य संपत्तियों के साथ उस चोरी गए सूटकेस से ही बरामद हुई थी! जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने तब कहा था कि कानून के मुताबिक गलत हलफनामा दर्ज किए जाने पर कोई सांसद अपनी संसद सदस्यता गंवा सकता है और सिंह को आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय व चुनाव आयोग को बताना चाहिए कि इतनी रकम व संपत्ति उनके घर से कैसे चोरी हुई।
लेकिन इन तमाम विवादों के बावजूद कुछ नहीं हुआ और उलटे नवंबर में मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में गिरिराज सिंह को प्रवेश देकर उन्हें पुरस्कृत किया गया। निश्चित ही इसका कारण उनकी राजनीतिक निष्ठा थी, क्योंकि बिहार में भाजपा-जदयू गठबंधन टूटने के बाद गिरिराज सिंह ने बहुत मुखर स्वरों में नीतीश कुमार का विरोध किया था। उन्होंने यहां तक कहा था कि वे तो अपना पद नहीं छोड़ेंगे, यदि नीतीश कुमार में हिम्मत है तो उन्हें बर्खास्त करके दिखाएं। उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया था कि उनकी निष्ठा बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री के बजाय गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री के प्रति अधिक है।
जब गुजरात में मोदी ने उपवास किया तो बिहार में गिरिराज सिंह ने भी उपवास किया था। जब नीतीश कुमार ने मोदी को बिहार में चुनाव प्रचार करने की अनुमति नहीं दी तो गिरिराज सिंह ने आगे बढ़कर कहा कि मोदी उनके विधानसभा क्षेत्र नवादा में आकर प्रचार करें। निश्चित ही, बाद में गिरिराज सिंह को इन्हीं तमाम बातों का फायदा मिला और केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिली। यह विडंबना ही है कि आज वे ही अपने बयानों से मोदी सरकार की किरकिरी करा रहे हैं।
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