Monday, 5 October 2015

ब्रह्मर्षि : चित्पावन

गोपाल यादव ने ब्रह्मर्षि समाज के संदर्भ में ये बातें फेसबुक के एक समूह में लिखीं हैं :

भूमिहारों के मराठी भाई चित्पावनों ने महात्मा गाँधी की हत्या की| चित्पावन हर तरफ़ से महात्मा गाँधी के राजनैतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले, सहयोगी बाल गंगाधर तिलक और हत्यारा नाथूराम गोडसे तीनों ही चित्पावन थे| इसके अलावा महात्मा गाँधी के परम चेले बिनोबा भावे भी चित्पावन!!!!!!! बिनोवा भावे को बिहार के अलावा कोई और जगह ठीक नहीं लगी काम करने के लिए| अरे भाई यहाँ उनके भूमिहार बंधुओं का राज था| बात समझ में आई| भूमिहार को समझना हो तो चित्पावनों को समझो| कभी कभार कुछ पढ़ लिख भी लिया करो :-
http://www.mkgandhi.org/assassin.htm
https://wideawakegentile.wordpress.com/…/jews-killed-mahat…/
https://wideawakegentile.wordpress.com/…/nathuram-godse-th…/
महात्मा गाँधी को मारने का षड्यंत्र रचने वालों में एक दो चमचों को छोड़ कर सभी भूमिहरों के बंधु चित्पावन ब्राह्मण थे| पूरे भारत के देशभक्ति का ठेका चित्पावनों ने ही ले रखा है| बाकी सभी भाई भारत छोड़ कर बाहर चले जाओ वरना ये सभी सबको मार देंगे|

मुकेश कुमार का गोपाल यादव को जवाब :

भाई साहब वैसे तो मैं जातिवादी मिजाज़ का नहीं हूँ लेकिन चूँकि आप एक जाती सिशेष को गलत तरीके से दानव बताने का प्रयास कर रहे हैं इसीलिए कुछ चीजें आपके ध्यान में लाना जरुरी समझता हूँ , आपने लिखा चित्पावन ने ये किया,वो किया और फिर उन्हें भूमिहार से जोड़ दिए,सही भी है चित्पावन भूमिहार ही हैं , आप किसी भूमिहार को महात्मा गाँधी के मारे जाने से जोड़ रहे हैं तो वीर बैकुंठ शुक्ल का भी तो नाम लीजिये जिसने भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने वाले फनिन्द्र्नाथ घोष को बीच दोपहर बेतिया बाज़ार में गोली मार दिया और हँसते हँसते गया जेल में फांसी पर चढ़ गया. नाम लेना है तो सर गणेश दत्त सिंह का नाम लीजिये जिन्होंने अपनी पूरी संपत्ति और जीवन भर की कमाई बिहार के शिक्षा एवं स्वास्थ्य के लिए दान दे दिया. नाम ही लेना है तो स्वामी सह्जन्नद सरस्वती का नाम लीजिये जिन्होंने जमींदारी उन्मूलन के लिए जीवन भर संघर्ष किया और उनके क्रियाकलापों से सबसे ज्यादा यदि किसी को फायदा मिला तो कोयरी,कुर्मी और यादवों एवं अन्य छोटे-मझोले किसानो को ही मिला. उनसे बडा सामजिक न्याय के प्रवर्तक आपको आज के बिहार में कोई नहीं मिलेंगे.लोहिया, नम्बुदरीपाद,जयप्रकाश सब स्वामी जी के चेले थे. यदि नाम ही लेना है तो श्री बाबु का नाम लीजिये जिन्होंने अपने समय में बिहार को पुरे हिंदुस्तान में टॉप पर बना कर रखा, ब्राह्मणों के विरोध के बावजूद देवघर मंदिर में दलितों को घुसाया, नाम ही लेना है तो वीर बसावन सिंह,पंडित यमुना कारजी, यदुनंदन शर्मा,रामब्रिक्ष बेनीपुरी आदि का लीजिये जो ज़मींदार घरानों से आने के बावजूद समाजवाद की लौ पूरे बिहार में फूंकी,आज के सब समाजवादी इनके बाद ही हैं..रामधारी सिंहदिनकर का नाम लीजिये जिन्होंने आजादी के समय अपनी कविताओं के जरिये पूरे भारत को आंदोलित किया.महाराजा चेतसिंहऔर फतेहबहादुर का लीजिये जिन्होंने कभी अंग्रेजों के आगे घुटने नहीं टेके, बनारस,प्रयाग और गया महाराज का नाम लीजिये जिन्होंने हिन्दू धर्म के तीन बड़े स्थलों का संरक्षण किया. ये सभी भूमिहार ही थे, स्वतंत्रता संग्राम से लेकर,साहित्य तक और धर्म से लेकर दर्शन तक फेहरिश्त अभी काफी लम्बी है,समय और जगह कम पड़ जायेगा. कितने भी राजनीती से प्रेरित हों परन्तु इतिहास का तो सही विश्लेषण कीजिये.इनसे ज्यादा योगदान देश और बिहार के लिए किसी और ने किया हो तो भी तथ्य के साथ बताइयेगा.

ऊपर जितने भी उद्धारण दिए हुए हैं ये करोड़ों लोगों को जागृत करने एवं उनके अधिकारों के लिए लड़ने का मामला है ,जितना लिखा हूँ उससे कई गुना उद्धारण और दे सकता हूँ । आप जो भी जानकारी देना चाहते हैं तथ्यों के साथ दें। मुस्लिम और अंग्रेजों के समय में भी इस जाती के लोगों ने हमेशा तलवार ही उठाया ,उसमे कुछ उद्धारान तो ऊपर हैं और अनेक हैं। परशुराम से लेकर सहजानंद ,दिनकर तक इस जाती का इतिहास अतुलनीय है।

घृणा से, राजनीती से या सिर्फ किसी के कहने भर से किसी जाती के संस्कार को बढ़ाया या घटाया नहीं जा सकता। तथ्य तो तथ्य होते हैं,नहीं चाहने वाले को भी मानना पड़ता है।

3 Comments:

At 30 October 2020 at 07:50 , Blogger MANOJ RAI said...

गाँधी को अंग्रेजों ने जवाहरलाल की अनुकूलता के लिए और अपने रास्ते से हटाने के लिए गाँधी की हत्या कराई , जिसमे सबसे बड़ा राजनैतिक लाभ जवाहरलाल को होना तय था।

अब समझ लीजिये कि गाँधी को किसने मरवाया?

 
At 30 October 2020 at 07:53 , Blogger MANOJ RAI said...

गाँधी की उपयोगिता अंग्रेजों के लिए समाप्त हो चुकी थी, इसीलिए १९४८ से पहले भी कई बार ख़त्म करने के प्रयास हो चुके थे, वो किसने ने कराये या किया थे? नाथूराम गोडसे ने तो नहीं किये थे, फिर कौन था?

याद कीजिये राजाराम मोहन राय की भी सामान्य मौत नहीं हुयी थी , बस इतने में समझ लीजिये

 
At 30 October 2020 at 07:55 , Blogger MANOJ RAI said...

जितने भी प्रमुख नाम थे सभी नाम कथित आजादी के कुछ ही वर्षों में शांत हो गए, सोचिये कैसे और क्यों?

मात्र जहरलाल को स्थापित करने के लिए उसके समस्त संभवित राजनैतिक अवरोधों को समाप्त कर दिया गया धीरे धीरे

 

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