Monday, 29 December 2014

शेरपुर

मार्क्स का मजदूर वर्ग तुलसीराम के लिए भारत का दलित और निम्न तबका है जो अपने सभी अधिकारों से वंचित है। ऐसे वर्ग पर तुलसीराम लिखते हैं और विरोध का शिकार होते हैं। पत्रिकाओं से सक्रिय रूप से जुड़े होने के चलते उनका लेखन निम्न वर्ग के शोषण को लाता रहा, जिसका कुछ सभ्रांत वर्ग के लोगों द्वारा विरोध किया गया। इस विकृत मानसिकता का एक रूप गाजीपुर जिले के चमटोली (चमार बस्ती) में देखने को मिलता है, जहां भूमिहार जमींदारों द्वारा पूरी चमटोली को श्मशान बना दिया गया। तुलसीराम एक जमींदार के शब्दों में समाज की जातीय मानसिकता को उद्घाटित करते हैं, "चमटोली देखै जात हउवा, अरे ! चमारन के जरावत केतना देर लगी।' इसी तरह का एक और वाकया बताते हुए वे लिखते हैं, "कुछ कहिए मत साहब, संविधान में संशोधन करके चमारों को तमाम सुविधाएं दी गयी हैं। वे कलेक्टर, एसएसपी और मंत्री होने लगे हैं, जिससे उनका दिमाग चढ़ गया है।' समाज की इस मानसिकता को खत्म किये बिना समाजवाद की स्थापना एक स्वप्न है, जिसे तुलसीराम गहराई से महसूस करते हैं। दलित राजनीति के सवालों पर तुलसीराम ने बहुत सही लिखा है कि "जब कोई उच्च जाति का व्यक्ति दलितों पर किये जाने वाले अत्याचार पर लिखता या बोलता है, तो समाज सुधारक कहलाता है, किंतु जब वही बात कोई दलित लिखता या बोलता है तो उसे जातिवादी मान लिया जाता है।'

2 Comments:

At 22 June 2015 at 05:59 , Blogger Gopal ji rai said...

तुलसी राम ने एक पक्षीय लिखा है

 
At 22 June 2015 at 05:59 , Blogger Gopal ji rai said...

तुलसी राम ने एक पक्षीय लिखा है

 

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