Monday 29 December 2014

दिनकरजी

हिंदीसेवी
स्थानीय साहित्यकार डा. आनंद नारायण शर्मा के अनुसार दिनकर राष्टीय भावनाओं के ऐसे कवि थे जिन्होंने पराधीनता काल में देश को जगाने का प्रयास किया और स्वाधीनता बाद के युग में समाज में व्याप्त विषमताओं पर प्रहार किया.
उन्होंने भारतीय संस्कृति की विशदता को अपने काव्य और गद्य दोनों से उभारा.
प्रशासन की अक्षमता को दोष देते हैं मुखिया कृष्ण कुमार शर्मा
डॉ. शर्मा कहते हैं, "दिनकर एक ऐसे कवि थे, जिन्होंने युग के साथ अपने को बदला और काव्य की नयी भूमि को अच्छी तरह मापा."
वह कहते हैं,"दिनकर केवल राष्टीय विचारों के ही संवाहक नहीं थे, उन्होंने जीवन के कोमल पक्ष को भी बड़ी मार्मिकता से प्रस्तुत किया, जैसे अपनी कृति उर्वशी में."
डा. शर्मा कहते हैं दिनकर प्रयोगवाद के प्रवक्ता न होकर भी अपने साहित्य में निरंतर प्रयोगशील थे.
'प्रणभंग' से 'हारे को हरिनाम' तक की दूरी केवल दिनकर के कवि व्यक्तित्व के विकास को ही रेखांकित नही करती, इसके माध्यम से हिन्दी कविता की आधी शताब्दी का इतिहास पढ़ा जा सकता है.
डॉ. शर्मा 'परशुराम की प्रतीक्षा' की इन पंक्तियों का उदाहरण देते हैं कि कैसे दिनकर ने देश के प्रसुप्त पौरूष के जागरण के लिए शंखनाद करने के साथ ही शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार, जातिवाद, और भाई-भतीजावाद पर करारा प्रहार भी किया-
"घातक है जो देवता सदृश दिखता है/ लेकिन कमरे में ग़लत हुक़्म लिखता है/ जिस पापी को गुण नहीं, गोत्र प्यारा है/ समझो, उसने ही हमें यहाँ मारा है."
बहरहाल, दिनकर के गाँव सिमरिया में अपराध की छाई बदरी कब हटेगी यह तो आनेवाला समय ही बतायेगा लेकिन विकास आदि को देख तथा नेताओं की घोषणाओं के मद्देनज़र वर्षों पूर्व दिनकर द्वारा लिखित पंक्तियाँ अक्षरशः सही साबित हो रही है-
"तुमने दिया देश को जीवन, देश तुम्हें क्या देगा/ अपनी आग तेज़ करने को, नाम तुम्हारा लेगा."

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home