भूमिहार ब्राह्मण एक परिचय
सारस्वता: कान्यकुब्जा उत्कला गौड़ मैथिला:।
पंचगौड़ा: समाख्याता विन्ध्स्योत्तर वासिन: ।।
कर्णाटकाश्च तैलंगा द्राविडा महाराष्ट्रका:।
गुर्जराश्चेति पञ्चैव द्राविडा: विन्ध्यदक्षिणे ।।
गुर्जराश्चेति पञ्चैव द्राविडा: विन्ध्यदक्षिणे ।।
पञ्चगौड़ और पञ्चद्रविड़ ब्राह्मणों के अंतर्गत अयाचक त्रिकर्मी ब्राह्मणों का वह दल जो भगवान् परशुराम में अपनी संतति ढूँढते हैं साथ ही पेशा के तौर पर कृषि और शासन प्रमुख रहा उन्हें भारत वर्ष के भिन्न भिन्न क्षेत्रों में अलग अलग नामों से जाना गया है |
जैसे -
१. भूमिहार (बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश)
२. त्यागी (उत्तर प्रदेश)
३. मोह्याल (पंजाब)
४. अनावील (गुजरात)
५. चितपावन (महाराष्ट्र)
६. नियोगी (आंध्र प्रदेश)
७. नम्बुद्दरी (केरल)
जैसे -
१. भूमिहार (बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश)
२. त्यागी (उत्तर प्रदेश)
३. मोह्याल (पंजाब)
४. अनावील (गुजरात)
५. चितपावन (महाराष्ट्र)
६. नियोगी (आंध्र प्रदेश)
७. नम्बुद्दरी (केरल)
भूमिहार ब्राह्मण समाज:
पञ्चगौड़ के अंतर्गत सारस्वत, कान्यकुब्ज, गौड़, मैथिल तथा पञ्चद्रविड़ से महाराष्ट्र और द्रविड़ के अयाचक त्रिकर्मी ब्राह्मणों का एक दलीय समूह है, जो भगवान् परशुराम में अपनी संतति ढूँढते हैं साथ ही पेशा के तौर पर कृषि और शासन प्रमुख है |
भूमिहार समाज पुरोहिती से भी जुड़े रहे हैं जैसे देश के प्रमुख मंदिरों में –
१) गया विष्णुपद मंदिर
२) देव सूर्य मंदिर .....इत्यादि |
पञ्चगौड़ के अंतर्गत सारस्वत, कान्यकुब्ज, गौड़, मैथिल तथा पञ्चद्रविड़ से महाराष्ट्र और द्रविड़ के अयाचक त्रिकर्मी ब्राह्मणों का एक दलीय समूह है, जो भगवान् परशुराम में अपनी संतति ढूँढते हैं साथ ही पेशा के तौर पर कृषि और शासन प्रमुख है |
भूमिहार समाज पुरोहिती से भी जुड़े रहे हैं जैसे देश के प्रमुख मंदिरों में –
१) गया विष्णुपद मंदिर
२) देव सूर्य मंदिर .....इत्यादि |
सारस्वत से पराशर गोत्र, महाराष्ट्र से कौण्डिन्य तथा विष्णुवृद्धि गोत्र, द्रविड़ से हरित गोत्र तथा कान्यकुब्ज, गौड़, मैथिल से शेष सभी गोत्र |
नोट: कर्म से ही जाति का बोध होता आया है शाश्त्रों के अनुसार, भूमिहार जाति है संस्कृति नहीं | अगर संस्कृति है तो उन सभी जातियों को क्या कहेंगे जिनका बोध कर्म के अनुसार जाना जाता है |
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