नेशनल हेराल्ड @सूर्यभान राय
आजकल नेशनल हेराल्ड चर्चा में है. एक वाकया याद आ गया जिसे बड़े भाई अजय राय (अमर उजाला , वाराणसी ) ने बताया है और एक लेख में लिखा भी है...
करो या मरो आंदोलन के बाद नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन बंद हो गया था. वर्ष 1945 में अख़बार का प्रकाशन फिर हुआ तो उसमें बलिया और ग़ाज़ीपुर में अंग्रेजों के उत्पीड़न की दास्तान "ग़ाज़ीपुर की नादिरशाही " शीर्षक से छपी -
पूर्वांचल के अन्य ज़िलों की तरह ग़ाज़ीपुर को भी 1942 और उसके बाद क्रूर दमन का शिकार बनना पड़ा. शेरपुर गांव जहाँ शेर दिल लोग रहते है. इनलोगो ने कांग्रेस राज की स्थापना कर दी. उनका संगठन बेहतरीन था और उन्होंने गांव में कुछ दिनों तक शांतिपूर्ण तरीके से प्रशासनिक व्यवस्था संभाली. मगर कुछ ही दिनों बाद हार्डी और उसकी सेना ने मार्च करना शुरू कर दिया था.अख़बार के मुताबिक 24 अगस्त को ग़ाज़ीपुर का जिला कलक्टर मुनरो 400 बलूची सैनिकों के साथ शेरपुर गांव पहुंचा और निहत्थे ग्रामीण हथियारबंद सेना का सामना नहीं कर पाये.गांव को अच्छी तरह लूटा गया, महिलाओं के गहने तक छीने गए. पुरे गांव में आग लगा दी गयी.80 घरों को जला दिया गया. इससे गांव को 2 लाख रूपये से अधिक का नुकसान हुआ |
करो या मरो आंदोलन के बाद नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन बंद हो गया था. वर्ष 1945 में अख़बार का प्रकाशन फिर हुआ तो उसमें बलिया और ग़ाज़ीपुर में अंग्रेजों के उत्पीड़न की दास्तान "ग़ाज़ीपुर की नादिरशाही " शीर्षक से छपी -
पूर्वांचल के अन्य ज़िलों की तरह ग़ाज़ीपुर को भी 1942 और उसके बाद क्रूर दमन का शिकार बनना पड़ा. शेरपुर गांव जहाँ शेर दिल लोग रहते है. इनलोगो ने कांग्रेस राज की स्थापना कर दी. उनका संगठन बेहतरीन था और उन्होंने गांव में कुछ दिनों तक शांतिपूर्ण तरीके से प्रशासनिक व्यवस्था संभाली. मगर कुछ ही दिनों बाद हार्डी और उसकी सेना ने मार्च करना शुरू कर दिया था.अख़बार के मुताबिक 24 अगस्त को ग़ाज़ीपुर का जिला कलक्टर मुनरो 400 बलूची सैनिकों के साथ शेरपुर गांव पहुंचा और निहत्थे ग्रामीण हथियारबंद सेना का सामना नहीं कर पाये.गांव को अच्छी तरह लूटा गया, महिलाओं के गहने तक छीने गए. पुरे गांव में आग लगा दी गयी.80 घरों को जला दिया गया. इससे गांव को 2 लाख रूपये से अधिक का नुकसान हुआ |
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