जाने एक छोटे जमींदार से अग्रेजो द्वारा कैसे घोषित हुए हथुआ के राजा ?
जाने एक छोटे जमींदार से अग्रेजो द्वारा कैसे घोषित हुए हथुआ के राजा ?
(मानवेन्द्र मिश्रा )
पूर्वे के सारण जिले के छोटे से कस्बे हुस्सेपुर के एक छोटे जमींदार थे सरदार बहादुर शाही जिनके बड़े लड़के हुए फतेह बहादुर शाही अपने पराक्रम के बल पर हुस्सेपुर के जमींदार से बनारस के राजा चेत सिंह के सहयोग से हुस्सेपुर के राजा बने , आजाद ख्यालात एवं उद्दार विचार के राजा फतेह बहादुर शाही ने अग्रेजो के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया , अग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे बंगाल के नबाब मीरकाशिम के साथ खड़े हो गए और मुगेर से लेकर बक्सर तक सैन्य सहयता देते रहे 1765 की इलाहाबाद संधि के शर्तो के मुताबिक बंगाल बिहार और उड़ीसा के मामलो की दीवानी शक्ति अग्रेजो को प्राप्त हुई , मुगल शासको के मिली दीवानी शक्ति को बेतिया और हुस्सेपुर राज घरानों ने मिलकर अग्रेजो का विरोध किया , और सयुक्त रूप से ईस्ट इण्डिया कम्पनी को चुनवौती दी , बाद में बेतिया के शासक ने कम्पनी के अधिकारियों से समझौता कर लिया लेकिन फतेह बहादुर शाही ने अपनी हार नही मानी ,अपने मित्र आर्या शाह की सूचना पर फतेह बहादुर शाही ने अपने सैनिको के साथ मिलकर अग्रेजो के लाईन बाजार कैम्प पर हमला बोल दिया जिसमे अग्रेजो के सेनापति मिर्जाफर सहित सैकड़ो अंग्रेज मारे गए , इसी मिर्जाफर के नाम पर मीरगंज शहर का नाम मीरगंज पड़ा था , अग्रेजो के लिए यह पहला मौका था कि भारत में किसी ने उन्हें इतनी बड़ी चुनौती दी थी , फतेह बहादुर शाही के मित्र आर्याशाह को जब यह लगा की अग्रेज उन्हें अपने कब्जे में लेकर मार डालेगे तब आर्या शाह ने अपने मित्र के हाथो से अपनी समाधि तैयार कराई और हँसते हुए मौत के गले लगा लिया , आर्या शाह ने यह प्रण किया था की अग्रेजो के हाथो नही मारे जाएगे , आज अभी शाह बतरहा में आर्या शाह का मकबरा मौजूद है , थक हारकर अग्रेजो ने फतेह बहादुर शाही के भाई बसंत शाही को मिलाकर उन्हें राज सौपने का लालच दिया , और अग्रेजो ने उकसाकर बसंत शाही से जादोपुर में 25 घुड़सवारो के साथ लगान की वसूली शुरू कर दी , जब इसकी सूचना फतेह बहादुर शाही को मिली , तो अपने सगे भाई के इस धोखे से नाराज होकर फतेह बहादुर शाही ने गोपालगंज के उतर जादोपुर में 25 सौनिको से साथ लगान वसूल रहे भाई का कत्ल कर दिया , उसके बाद बसंत शाही का कटा हुआ सिर हुस्सेपुर में उनकी पत्नी शाहिया देवी के पास भेज दिया जिसे लेकर अपनी ग्यारह सखियों के साथ सती हो गयी, जिस स्थान पर सती हुई उसे आज सईया देवी के नाम से जाना जाता है ,जबकि बसंत शाही की दूसरी पत्नी गर्भवती थी जिसको बसंत शाही के विश्वाशपात्र सिपाही छ्जू सिंह फतेह बहादुर शाही के डर से अपने गाव भरथूई (जो की सिवान जिले में है ) लेकर चले गए , जहा महेशदत शाही का जन्म हुआ , पुरे जीवन महेशदत शाही को फतेह शाही के डर से छुप कर बिताना पड़ा , इसी दौरान महेश शाही को एक पुत्र हुआ जिसका नाम छत्रधारी शाही पड़ा , इधर फतेह बहादुर शाही द्वारा उत्पन्न की गयी परिस्थितियों से हारकर अग्रेजो ने हुस्सेपुर राज में वसूली बंद कर दी , 1781 में जब वारेन हेस्टिंग्स को इस बात की जानकारी हुई तो उसने भरी सैन्य शक्ति के साथ फतेह बहादुर शाही के बिद्रोह को दबाने की कोशिश की लेकिन वह भी असफल रहा अपने उपर बढ़ते दबाव और हार न मानने की जिद्द के बिच फतेह बहादुर शाही ने हुस्सेपुर से कुछ दूर जाकर पछिम-उतर दिशा में जाकर अवध साम्राज्य के बागजोगनी के जंगल के उत्तरी छोर पर तमकोही गाव के पास जंगल काटकर अपना निवास बनाया कुछ दिनों बाद अपनी पत्नी और चारो पुत्रो को लेकर वहा गये और कोठिया बनवाकर रहने लगे , इधर वारेंग हेस्टिगसन ने फतेह बहादुर के साथ जय नही तो छय की जिद्द पर इंग्लैंड से और अधिक सेना बुलाई , बनारस के राजा चेत सिंह ने वारेन हेस्टिंग्स के बनारस राज पर अतिरिक्त पांच लाख का लगाया कर दुसरे वर्ष देने से जब इनकार कर दिया तो अग्रेजो का कहर उनपर टूटना शुरू हुआ , चेत सिंह ने फतेह बहादुर शाही से मदत मांगी , फतेह बहादुर शाही चेत सिंह के मदत में आगे आए और अग्रेजो के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया फ़तेह शाही का बड़ा बेटा युद्ध में मारा गया , लेकिन अंतत: अंग्रेजी सेना को चुनार की ओर पलायन करना पड़ा ,
उसके बाद अवध के नबाब पर बनाया गया दबाव
अग्रेजो ने अवध के नबाब पर दबाव बनाया कि महाराजा फतेह बहादुर शाही को अपने क्षेत्र से निकाले, लेकिन नबाब मौन रहें , इधर अग्रेजो के पक्ष में जयचंदों , मानसिंह और मीरजाफरो की सख्या बढ़ती गयी , महाराजा फतेह बहादुर शाही 1800 तक तमकुही में रहें, इसके बाद अचानक कही चले गए , किसी ने कहा की वे सन्यासी हो गए , तो किसी ने बताया की चेत सिंह के साथ महाराष्ट्र चले गए , लेकिन उनके गुरिल्ला युद् से भयभीत अग्रेज उनके गायब होने के बाद भी कई वर्षो तक आतंकित रहें.
अंग्रेजो के सहयोग से बना हथुआ राज
महराजा फतेह बहादुर शाही जब हुस्सेपुर छोड़कर तुमकुही में अपना राज्य स्थापित कर रहें थे , उसी समय बसंत शाही के पुत्र महेशदत शाही ने अंग्रेजो के संरक्षण में हथुआ में निवास बनाया , फतेह बहादुर शाही के जीवित होने के विश्वाश होने के वर्षो तक अंग्रेजो ने वर्षो तक अग्रेजो ने हथुआ को राज का दर्जा नही दिया था , बाद के वर्षो में यह काम किया गया .
काफी चिंतित थी ईस्ट इंडिया कंपनी
ईस्ट इंडिया कंपनी इस बात से चिंतित थी कि हुस्सेपुर का राज्य किसे दिया जाय , काफी मंत्रणा के बाद महेशदत शाही के नबालिक पुत्र छत्रधारी शाही को राजा बना दिया गया , सुरक्षा को ध्यानपूर्वक रखते हुए नाबालिक राजा के पालन – पोषण का दायित्व बसंत शाही के विश्वाशपात्र सिपाही छज्जू सिंह को सौपा गया . 27 फरवरी 1837 को छत्रधारी को गद्दी पर बैठाया गया और महाराज बहादुर के ख़िताब से नबाजा गया , उसी के साथ हुस्सेपुर राज्य का हथुआ हथुआ में विलय कर दिया गया , हथुआ राज के अंतिम महाराजा महादेव आश्रम प्रताप शाही थे , 1956 में जमींदारी उन्मूलन कानून लागू हो गया , महाराजा फतेह बहादुर शाही की कीर्ति की साक्षी झरही नदी निरंतर प्रवाहित हो उनका यशोगान कर रही है .
तमकुही राज से जुड़े लोग आज भी नही पिते है हथुआ राज का पानी
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और महाराजा फतेह बहादुर शाही के साथ किये गये कुलघात और हथुआ राज को अंग्रेजों के संरक्षण बताते हुए ही तमकुही राज के लोग हथुआ राज का पानी पीना हराम समझते है , वही हथुआ और हुस्सेपुर को छोड़कर तमकुही में अपनी रियासत बनाने के बाद फतेह बहादुर ने हथुआ राज की तरफ पलट कर देखना भी हराम समझा , स्वतंत्रता के इस महानायक के सम्मान में तमकुही राज के लोग हथुआ का पानी पीना हराम समझते है , वहा के लोग आज भी बताते है की हथुआ राज का पानी तमकुही राज के लिए आज भी हरराम है ,
वही एक तरफ आज भी जिले के मशहूर थावे के मंदिर में अग्रेजो के चापलूसों और पूर्व हथुआ राज के पूर्वजो का फोटो माँ थावेवाली के मंदिर के गर्भगृह में लगाया गया है , यहा तो हथुआ राज और प्रसाशन द्वारा इतिहास को भी बदल दिया गया है , माँ थावेवाली के बारे में कहा जाता है की अपने भक्त रह्शु के पुकार पर माँ कामख्या से चलकर थावे आई थी और अतताई एवं सामंती राजा मनन सिंह के राज का नाश किया था , लेकिन हथुआ राज द्वारा यहा इतिहास बदलकर माँ थावेवाली को अपना कुल देवी बताया जाता है ,
हथुआ राज द्वारा किए जा रहे सारे काले करतूतों के वावजूद प्रशासन और सरकार कान में तेल डालकर मौन है, अब फिर एक बार हथुआ राज सरकारी जमीनों को भोले – भाले लोगो के बिच बेचने का काम शुरू कर दिया , इन सबके पीछे हथुआ राज को जिले के वरीय अधिकारियो का भी सहयोग मिल रहा है , वही हथुआ राज के गुर्गो और प्रशासनिक दलालों द्वारा सुनामी मिडिया के पत्रकारों को सच्चाई लिखने पर लगतार धमकिया भी दी जा रही है , पहले तो सुनामी मिडिया के पत्रकार को लालच देकर फसाने का काम किया गया. उसमे जब कामयाबी नही मिली तो हथुआ राज के गुर्गो द्वारा लगतार धमकी दी जा रही है , वही दूसरी तरफ हथुआ के चहुमुखी विकास के लिए कुछ युवा अब आंदोलन के मुड में है , कुछ नामी मिडिया के लोग भी अपने निजी स्वार्थ के लिए मिडिया का परिभाषा बदल कर हथुआ राज के दलाली में लगे हुए है .
(मानवेन्द्र मिश्रा )
पूर्वे के सारण जिले के छोटे से कस्बे हुस्सेपुर के एक छोटे जमींदार थे सरदार बहादुर शाही जिनके बड़े लड़के हुए फतेह बहादुर शाही अपने पराक्रम के बल पर हुस्सेपुर के जमींदार से बनारस के राजा चेत सिंह के सहयोग से हुस्सेपुर के राजा बने , आजाद ख्यालात एवं उद्दार विचार के राजा फतेह बहादुर शाही ने अग्रेजो के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया , अग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे बंगाल के नबाब मीरकाशिम के साथ खड़े हो गए और मुगेर से लेकर बक्सर तक सैन्य सहयता देते रहे 1765 की इलाहाबाद संधि के शर्तो के मुताबिक बंगाल बिहार और उड़ीसा के मामलो की दीवानी शक्ति अग्रेजो को प्राप्त हुई , मुगल शासको के मिली दीवानी शक्ति को बेतिया और हुस्सेपुर राज घरानों ने मिलकर अग्रेजो का विरोध किया , और सयुक्त रूप से ईस्ट इण्डिया कम्पनी को चुनवौती दी , बाद में बेतिया के शासक ने कम्पनी के अधिकारियों से समझौता कर लिया लेकिन फतेह बहादुर शाही ने अपनी हार नही मानी ,अपने मित्र आर्या शाह की सूचना पर फतेह बहादुर शाही ने अपने सैनिको के साथ मिलकर अग्रेजो के लाईन बाजार कैम्प पर हमला बोल दिया जिसमे अग्रेजो के सेनापति मिर्जाफर सहित सैकड़ो अंग्रेज मारे गए , इसी मिर्जाफर के नाम पर मीरगंज शहर का नाम मीरगंज पड़ा था , अग्रेजो के लिए यह पहला मौका था कि भारत में किसी ने उन्हें इतनी बड़ी चुनौती दी थी , फतेह बहादुर शाही के मित्र आर्याशाह को जब यह लगा की अग्रेज उन्हें अपने कब्जे में लेकर मार डालेगे तब आर्या शाह ने अपने मित्र के हाथो से अपनी समाधि तैयार कराई और हँसते हुए मौत के गले लगा लिया , आर्या शाह ने यह प्रण किया था की अग्रेजो के हाथो नही मारे जाएगे , आज अभी शाह बतरहा में आर्या शाह का मकबरा मौजूद है , थक हारकर अग्रेजो ने फतेह बहादुर शाही के भाई बसंत शाही को मिलाकर उन्हें राज सौपने का लालच दिया , और अग्रेजो ने उकसाकर बसंत शाही से जादोपुर में 25 घुड़सवारो के साथ लगान की वसूली शुरू कर दी , जब इसकी सूचना फतेह बहादुर शाही को मिली , तो अपने सगे भाई के इस धोखे से नाराज होकर फतेह बहादुर शाही ने गोपालगंज के उतर जादोपुर में 25 सौनिको से साथ लगान वसूल रहे भाई का कत्ल कर दिया , उसके बाद बसंत शाही का कटा हुआ सिर हुस्सेपुर में उनकी पत्नी शाहिया देवी के पास भेज दिया जिसे लेकर अपनी ग्यारह सखियों के साथ सती हो गयी, जिस स्थान पर सती हुई उसे आज सईया देवी के नाम से जाना जाता है ,जबकि बसंत शाही की दूसरी पत्नी गर्भवती थी जिसको बसंत शाही के विश्वाशपात्र सिपाही छ्जू सिंह फतेह बहादुर शाही के डर से अपने गाव भरथूई (जो की सिवान जिले में है ) लेकर चले गए , जहा महेशदत शाही का जन्म हुआ , पुरे जीवन महेशदत शाही को फतेह शाही के डर से छुप कर बिताना पड़ा , इसी दौरान महेश शाही को एक पुत्र हुआ जिसका नाम छत्रधारी शाही पड़ा , इधर फतेह बहादुर शाही द्वारा उत्पन्न की गयी परिस्थितियों से हारकर अग्रेजो ने हुस्सेपुर राज में वसूली बंद कर दी , 1781 में जब वारेन हेस्टिंग्स को इस बात की जानकारी हुई तो उसने भरी सैन्य शक्ति के साथ फतेह बहादुर शाही के बिद्रोह को दबाने की कोशिश की लेकिन वह भी असफल रहा अपने उपर बढ़ते दबाव और हार न मानने की जिद्द के बिच फतेह बहादुर शाही ने हुस्सेपुर से कुछ दूर जाकर पछिम-उतर दिशा में जाकर अवध साम्राज्य के बागजोगनी के जंगल के उत्तरी छोर पर तमकोही गाव के पास जंगल काटकर अपना निवास बनाया कुछ दिनों बाद अपनी पत्नी और चारो पुत्रो को लेकर वहा गये और कोठिया बनवाकर रहने लगे , इधर वारेंग हेस्टिगसन ने फतेह बहादुर के साथ जय नही तो छय की जिद्द पर इंग्लैंड से और अधिक सेना बुलाई , बनारस के राजा चेत सिंह ने वारेन हेस्टिंग्स के बनारस राज पर अतिरिक्त पांच लाख का लगाया कर दुसरे वर्ष देने से जब इनकार कर दिया तो अग्रेजो का कहर उनपर टूटना शुरू हुआ , चेत सिंह ने फतेह बहादुर शाही से मदत मांगी , फतेह बहादुर शाही चेत सिंह के मदत में आगे आए और अग्रेजो के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया फ़तेह शाही का बड़ा बेटा युद्ध में मारा गया , लेकिन अंतत: अंग्रेजी सेना को चुनार की ओर पलायन करना पड़ा ,
उसके बाद अवध के नबाब पर बनाया गया दबाव
अग्रेजो ने अवध के नबाब पर दबाव बनाया कि महाराजा फतेह बहादुर शाही को अपने क्षेत्र से निकाले, लेकिन नबाब मौन रहें , इधर अग्रेजो के पक्ष में जयचंदों , मानसिंह और मीरजाफरो की सख्या बढ़ती गयी , महाराजा फतेह बहादुर शाही 1800 तक तमकुही में रहें, इसके बाद अचानक कही चले गए , किसी ने कहा की वे सन्यासी हो गए , तो किसी ने बताया की चेत सिंह के साथ महाराष्ट्र चले गए , लेकिन उनके गुरिल्ला युद् से भयभीत अग्रेज उनके गायब होने के बाद भी कई वर्षो तक आतंकित रहें.
अंग्रेजो के सहयोग से बना हथुआ राज
महराजा फतेह बहादुर शाही जब हुस्सेपुर छोड़कर तुमकुही में अपना राज्य स्थापित कर रहें थे , उसी समय बसंत शाही के पुत्र महेशदत शाही ने अंग्रेजो के संरक्षण में हथुआ में निवास बनाया , फतेह बहादुर शाही के जीवित होने के विश्वाश होने के वर्षो तक अंग्रेजो ने वर्षो तक अग्रेजो ने हथुआ को राज का दर्जा नही दिया था , बाद के वर्षो में यह काम किया गया .
काफी चिंतित थी ईस्ट इंडिया कंपनी
ईस्ट इंडिया कंपनी इस बात से चिंतित थी कि हुस्सेपुर का राज्य किसे दिया जाय , काफी मंत्रणा के बाद महेशदत शाही के नबालिक पुत्र छत्रधारी शाही को राजा बना दिया गया , सुरक्षा को ध्यानपूर्वक रखते हुए नाबालिक राजा के पालन – पोषण का दायित्व बसंत शाही के विश्वाशपात्र सिपाही छज्जू सिंह को सौपा गया . 27 फरवरी 1837 को छत्रधारी को गद्दी पर बैठाया गया और महाराज बहादुर के ख़िताब से नबाजा गया , उसी के साथ हुस्सेपुर राज्य का हथुआ हथुआ में विलय कर दिया गया , हथुआ राज के अंतिम महाराजा महादेव आश्रम प्रताप शाही थे , 1956 में जमींदारी उन्मूलन कानून लागू हो गया , महाराजा फतेह बहादुर शाही की कीर्ति की साक्षी झरही नदी निरंतर प्रवाहित हो उनका यशोगान कर रही है .
तमकुही राज से जुड़े लोग आज भी नही पिते है हथुआ राज का पानी
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और महाराजा फतेह बहादुर शाही के साथ किये गये कुलघात और हथुआ राज को अंग्रेजों के संरक्षण बताते हुए ही तमकुही राज के लोग हथुआ राज का पानी पीना हराम समझते है , वही हथुआ और हुस्सेपुर को छोड़कर तमकुही में अपनी रियासत बनाने के बाद फतेह बहादुर ने हथुआ राज की तरफ पलट कर देखना भी हराम समझा , स्वतंत्रता के इस महानायक के सम्मान में तमकुही राज के लोग हथुआ का पानी पीना हराम समझते है , वहा के लोग आज भी बताते है की हथुआ राज का पानी तमकुही राज के लिए आज भी हरराम है ,
वही एक तरफ आज भी जिले के मशहूर थावे के मंदिर में अग्रेजो के चापलूसों और पूर्व हथुआ राज के पूर्वजो का फोटो माँ थावेवाली के मंदिर के गर्भगृह में लगाया गया है , यहा तो हथुआ राज और प्रसाशन द्वारा इतिहास को भी बदल दिया गया है , माँ थावेवाली के बारे में कहा जाता है की अपने भक्त रह्शु के पुकार पर माँ कामख्या से चलकर थावे आई थी और अतताई एवं सामंती राजा मनन सिंह के राज का नाश किया था , लेकिन हथुआ राज द्वारा यहा इतिहास बदलकर माँ थावेवाली को अपना कुल देवी बताया जाता है ,
हथुआ राज द्वारा किए जा रहे सारे काले करतूतों के वावजूद प्रशासन और सरकार कान में तेल डालकर मौन है, अब फिर एक बार हथुआ राज सरकारी जमीनों को भोले – भाले लोगो के बिच बेचने का काम शुरू कर दिया , इन सबके पीछे हथुआ राज को जिले के वरीय अधिकारियो का भी सहयोग मिल रहा है , वही हथुआ राज के गुर्गो और प्रशासनिक दलालों द्वारा सुनामी मिडिया के पत्रकारों को सच्चाई लिखने पर लगतार धमकिया भी दी जा रही है , पहले तो सुनामी मिडिया के पत्रकार को लालच देकर फसाने का काम किया गया. उसमे जब कामयाबी नही मिली तो हथुआ राज के गुर्गो द्वारा लगतार धमकी दी जा रही है , वही दूसरी तरफ हथुआ के चहुमुखी विकास के लिए कुछ युवा अब आंदोलन के मुड में है , कुछ नामी मिडिया के लोग भी अपने निजी स्वार्थ के लिए मिडिया का परिभाषा बदल कर हथुआ राज के दलाली में लगे हुए है .
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अंग्रेज़ो के मुखबिर भुमिहार
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