हाँ ब्रह्मर्षि भूमिहार हूँ मैं
हाँ ब्रह्मर्षि भूमिहार हूँ मैं,
धर्म सनातन का संस्कार हूँ मैं।
जिसके तेज से काँपी धरती,
उसी फरसे की तेज धार हूँ मैं।।
जिसकी कड़ी प्रतिज्ञा से थर्राया जग,
हाँ उसी परशुराम का संतान हूँ मैं।
जिसने अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ उठायी आवाज़,
हाँ वो मंगल पांडेय महान हूँ मैं।।
दंडी स्वामी सहजानंद का दिया हुआ ज्ञान हूँ मैं,
काशी के कलकल गँगा का नरेश विभूति नारायण हूँ मैं।
शिक्षा की लौ जलाने वाला गणेश दत्त महान हूँ मैं,
हाँ परशुराम पुत्र ब्रह्मर्षि भूमिहार हूँ मैं।।
रामधारी दिनकर की रक्त रंजित कविता का सार हूँ मैं,
महाकाव्य की बिंदी रश्मिरथी जैसा श्रृंगार हूँ मैं।
बेनीपुरी,सांकृत्यायन,और नेपाली के कलम की धार हूँ मैं,
हाँ है स्वाभिमान,ब्रह्मर्षि भूमिहार हूँ मैं।।
केशरी श्री कृष्ण के राजनीति का बखान हूँ मैं,
अनगिनत साम्राज्यों का भूपति महान हूँ मैं।
धधकती खान से निकली ब्रह्मेश्वर की तलवार हूँ मैं,
माथे पे तिलक लगाए "रणवीर" का सिपाही वफ़ादार हूँ मैं।।
हाँ ब्रह्मर्षि भूमिहार हूँ मैं।।
जय परशुराम
जय भूमिहार।।
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home