बिहार भूमिहार और नरसंहार @अभिषेक पराशर
ब्राह्मण मामलों के विशेषज्ञ यह कह रहे हैं कि बिहार में सबसे ज्यादा दलितों और पिछड़ों का नरसंहार भूमिहारों ने किया है और इसलिए यह जरूरी है कि इस जाति से जब कोई बुद्धिजीवी नेता निकले, तो उसकी जिम्मेदारी ‘’भूमिहार-ब्राह्मणों’’ को ‘’अहिंसक और सभ्य’’ बनाने की होनी चाहिए. वह कह रहे हैं कि इस जाति में समाज सुधार आंदोलन चलाने की जरूरत है.
दोनों ही बात रखते हुए वह एक बुनियादी गलती कर रहे हैं, जो वह अक्सर करते हैं. पहला जिस सेना का जिक्र किया जा रहा है, उसमें केवल भूमिहार शामिल नहीं थे. दूसरा इस सेना को पूरे समुदाय से जोड़ देने का सामान्यीकरण एक साजिश है. रणवीर सेना का प्रभाव बिहार के एक हिस्से में सीमित रहा. राज्य के अन्य हिस्सों में उसका पासंग भर भी कोई असर नहीं हुआ.
इस पूरे विमर्श में सबसे अहम हिस्सा कथित सामाजिक न्याय की राजनीति के चैंपियन लालू यादव के राजनीतिक मॉडल का रहा है, जिस पर कोई विमर्श नहीं किया जाता. बिहार में सबसे ज्यादा नरसंहार इन्हीं के कार्यकाल में हुए. और इस बात को मजबूती के साथ कहा जा सकता है कि लालू यादव ने जानबूझकर सेना को नरसंहार की खुली छूट दी. सेना को लालू यादव के कार्यकाल में बढ़ाया गया ताकि लालू अपनी राजनीतिक आधार को मजबूत कर सकें. लालू की राजनीति के लिए एक ऐसी ताकत का दुश्मन के तौर पर होना जरूरी था और रणवीर सेना ने लालू को वहीं मौका दिया. सेना की उत्पत्ति का कारण अलग था, लेकिन उसके प्रभाव को लालू यादव ने जानबूझकर बढने दिया. सेना लालू की राजनीति की संजीवनी था.
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