Sunday 21 October 2018

जब मोरारजी ने तारकेश्वरी से पूछा, तुम लिपस्टिक लगाती हो, कीमती कपड़े पहनती हो? @सुरेन्द्र किशोर

तारकेश्वरी सिन्हा ने एक बार कहा था कि ‘रात के अंधेरे में भी मोरारजी के कमरे में जाकर कोई जवान और सुंदर महिला सुरक्षित वापस लौट कर आ सकती है 

वर्ष 1957 के आम चुनाव होने वाले थे. कांग्रेस के केंद्रीय प्रेक्षक बन कर मोरारजी देसाई पटना पहुंचे थे. गांधीवादी मोरारजी अन्य बातों के अलावा उम्मीदवारों के पहनावे के बारे में भी कड़ाई से पूछते थे. सन 1952 में सांसद चुनी जा चुकीं तारकेश्वरी सिन्हा एक बार फिर उम्मीदवार थीं. मोरार देसाई ने उनसे पूछा कि ‘तुम लिपस्टिक लगाती हो, कीमती कपड़े पहनती हो?’
यह सुनकर तारकेश्वरी जी को गुस्सा आ गया. उन्होंने कहा कि ‘हमारे यहां चूडि़यां पहनना अपात्रता नहीं बल्कि क्वालिफिकेशन माना जाता है. आप जो शाहहूश की बंडी पहने हैं, इसकी कीमत से मेरी 6 कीमती साड़ियां आ सकती हैं. उसके बाद तारकेश्वरी सिन्हा ने जवाहरलाल नेहरू को चिट्ठी लिखी कि आप कैसे-कैसे प्रेक्षक भेजते हैं?
खैर यह तो पहली मुलाकात थी. चुनाव के बाद नेहरू जी ने एक दिन संसद में नयी मंत्री तारकेश्वरी का परिचय कराते हुए कहा कि ‘ये इकाॅनोमिक अफेयर की मंत्री हैं.’ इस पर फिरोज गांधी ने उठकर तपाक से सवाल किया, ‘सर, यह क्या बात है! जहां कहीं अफेयर की बात चलती है, स्त्री अवश्य होती है.’
तारकेश्वरी सिन्हा ने पद्मा सचदेव से अपने खट्ठे-मीठे अनुभव साझा किए 
इसी तरह की टीका-टिप्पणियों, छींटाकशी और अफवाहों के बीच पुरूष प्रधान राजनीति की उबड़-खाबड़ जमीन में तारकेश्वरी सिन्हा ने शान से दशकों बिताए. उन दिनों #MeeToo का तो जमाना था नहीं. पर महिला कार्यकर्ताओं और नेताओं की राह आसान भी नहीं थी. 80 के दशक में तारकेश्वरी सिन्हा ने पद्मा सचदेव के साथ अपने तरह-तरह के खट्ठे-मीठे अनुभव साझा किए थे.
Tarkeshwari Sinha
तारकेश्वरी सिन्हा ने 1960 में केंद्रीय वित्त मंत्री की डिप्टी के रूप में भी काम किया था (फोटो: फेसबुक से साभार)
दिवंगत श्रीमती सिन्हा ने कहा था कि ‘सबसे बड़ी बात यह रही कि मेरे परिवार ने मुझे पूरा सपोर्ट किया. हां, राजनीति की व्यस्तता में बच्चे अवश्य उपेक्षित हुए.’ बता दें कि तारकेश्वरी सिन्हा 1952, 1957, 1962 और 1967 में बिहार से लोकसभा की सदस्य रहीं. बाद में उन्होंने कई चुनाव लड़े, पर कभी सफलता नहीं मिली.
तारकेश्वरी सिन्हा हिन्दी और अंग्रेजी में धारा प्रवाह बोल सकती थीं. सैकड़ों शेर-ओ-शायरी उनकी जुबान पर रहती थीं. उन्हें बहस में शायद ही कोई हरा पाता था. वो पलट कर माकूल जवाब देने में माहिर थीं. पद्मा सचदेव ने एक दिन तारकेश्वरी जी से पूछा, संसद में आपके बड़े चर्चे रहते थे. इनमें से कुछ सच भी था? मेरा मतलब है कि कभी बहुत अच्छा लगा क्या? तारकेश्वरी जी ने जवाब दिया, ‘मैंने आसपास जिरिह बख्तर (लोहे का पहनावा) पहन रखा था. फिर भी लोहिया जी बड़े अच्छे लगते थे. बड़े शाइस्ता (उम्दा) आदमी थे. छेड़ते बहुत थे. हमारे व्यक्तित्व को पूर्णतः भरने में बड़ा हाथ था उनका.
फिरोज के साथ हम अपने-आप को बेहद सुरक्षित समझते थे. उनसे बात कर के अहसास होता था कि मैं भी इंसान हूं. बड़े रसिक व्यक्ति थे. अब ऐसे लोग कहां जो भीतर-बाहर से एकदम स्वच्छ हों. फिरोज भाई ने ही मुझे अहसास दिलाया कि मैं खिलौना नहीं हूं. हम अच्छे दोस्त थे. लोग इंदिरा गांधी के कान भरते रहते थे. एक बार किसी ने कहा कि आप गलतफहमी दूर करवाइए, इंदिरा जी आपकी बड़ी खिलाफ हैं. पर मैंने सोचा कि इसके लिए कोई कारण तो है नहीं. अगर मैं फिरोज भाई से बात करती हूं तो इसमें कौन सी गलतफहमी पैदा हो जाएगी?
इंदिरा गांधी ने कई वर्षों तक तारकेश्वरी सिन्हा को माफ नहीं किया 
हालांकि इंदिरा गांधी ने बाद के कई वर्षों तक तारकेश्वरी सिन्हा को माफ नहीं किया. 1969 में कांग्रेस में हुए महाविभाजन के बाद तारकेश्वरी जी संगठन कांग्रेस में रह गई थीं. इंदिरा जी ने अलग पार्टी बना ली. 1971 के चुनाव में तारकेश्वरी सिन्हा संगठन कांग्रेस की ओर से बाढ़ में ही लोकसभा की उम्मीदवार थीं. उस साल मधु लिमये मुंगेर से लड़ रहे थे.
Indira Gandhi
इंदिरा गांधी
इंदिरा जी ने पटना में मशहूर कांग्रेसी नेता राम लखन सिंह यादव के सामने अपना आंचल फैला दिया. कहा कि हमें मुंगेर और बांका सीट दे दीजिए. उन दिनों राम लखन ही बिहार में यादवों के लगभग एकछत्र नेता थे. इन दोनों चुनाव क्षेत्रों में यादवों की अच्छी-खासी आबादी थी. 1971 में मधु लिमये और तारकेश्वरी सिन्हा चुनाव हार गए. जिन उम्मीदवारों ने उन्हें हराया था, वो दोनों केंद्र में उपमंत्री बन गए थे.
हालांकि बाद में समस्तीपुर लोकसभा उपचुनाव में तारकेश्वरी सिन्हा इंदिरा कांग्रेस की ओर से उम्मीदवार बनी थीं. हालांकि वो हार गईं. कर्पूरी ठाकुर के इस्तीफे से वो सीट खाली हुई थी. मोरारजी देसाई के बारे में तारकेश्वरी सिन्हा ने पद्मा जी को बताया था कि ‘जब मैं मोरारजी भाई की डिप्टी थी तो कामकाज के सिलसिले में उनके पास आना-जाना पड़ता था. वो पंखा नहीं चलाते थे. पर हम जाते तो चलवा देते थे. हमें बहुत मानते थे. एक बडे़ पत्रकार ने लिख दिया कि हमारा उनसे अफेयर चल रहा है. अब बताइए कि अगर कोई पुरूष उनका डिप्टी होता और मिलता-जुलता तो कोई ऐसी बात तो न करता. पर मैं डिप्टी थी और स्त्री भी. यह सब खराब लगता था. चूंकि यह सब अखबारों में आता था. मेरे पति भी यह सब बात सुनते थे, पर वो विश्वास नहीं करते थे.’
Morarji Desai
मोरारजी देसाई
'मोरारजी के कमरे में जाकर सुंदर और जवान महिला सुरक्षित लौट सकती है'
तारकेश्वरी सिन्हा के अनुसार, ‘मोरारजी को देख कर पंडित नेहरू हमेशा कहते थे कि तारकेश्वरी ने मोरारजी को लकड़ी के कुंदे से इंसान बना दिया. तारकेश्वरी सिन्हा ने एक बार कहा था कि ‘रात के अंधेरे में भी मोरारजी के कमरे में जाकर कोई जवान और सुंदर महिला सुरक्षित वापस लौट कर आ सकती है.’

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