Friday 19 October 2018

भोला सिंह बेगुसराय सांसद

#मैं_डमरुवादक_आगों_का_शोला_हूँ,
#मैं_सदा_जीवित_हूँ_हाँ_मैं_ही_भोला_हूँ...!!

#बेगूसराय_राजनीति_के_भीष्मपितामह_भोला_बाबू_का_संक्षिप्त_परिचय…

नाम:-भोला सिंह
पिता:- रामप्रताप सिंह
पत्नी:-शावित्री देवी
ग्राम:-दुनही , गढपुरा , बेगूसराय (बिहार)
     
बेगूसराय अनुमंडल का एक छोटा सा गॉव दूनही में 3 जनवरी 1939 ईo को अषाढ पूर्णिमा के दिन राम प्रताप बाबू के यहा दूसरे पुत्र का जन्म हुआ ,बच्चे के भोले सुकुमार मुखरे को देखकर  राम प्रताप बाबू के भाभी ने बच्चे को भोला नाम से पुकारा !!!!!
 
भोला बाबू का प्ररंभिक शिक्षा पिता जी के देखरेख में हुआ , उन्हे उच्च शिक्षा के लिये गाव से 12 km दूर जयमंगला उच्च विध्यालय मंझौल में नामंकन करया गया फ़िर कला विषय से उत्क्र्स्टा से परीक्षा पास करने का जो दौर शुरू हुआ वह स्नातक तक चला l उन्होने 1961ईo मे बी.ए आनर्स की परीक्षा भागलपूर यूनिवसिटी टोपर बनकर पास की एवं पीजी की पढाई पटना यूनिवर्सिटी से की…

1963 ईo मे एक प्रध्यापक की सुरआत  अस्थाई लेक्चर के रुप में टी.एन.बी.कोलेज भागलपुर से की एवं 1966 ईo में उन्होने जी.डी.कोलेज बेगूसराय में एक प्रध्यापक के रुप में कार्य प्ररंभ किये……

बेगूसराय राजनीति मे इनका आगाज साफापुर (बेगूसराय) हुए बांमपंथी और कोंग्रेस के रगड़ के बीच हुआ l साफापुर में दिये गये भाषन की औजस्व ने भोला बाबू को एक नई पहचान दे दी , बेगूसराय की गलयारियो में बस एक नाम भोला  भोला गूंज रहा था   सन 1971 राजनीतिक माहोल गर्म था , चुनव की घोषणा हो चुकी थी ,  उसके बाद स्थानीय लोकल बोर्ड के मैदान में एक बड़ी सभा हुई l  उस महती जनसभा में तृप्तिनारायण सिंह ने बेगूसराय विधानसभा से उम्मीदवार बनाने के लिये भोला बाबू नाम का प्रस्ताव रखा और काँ चन्द्रशेखर जो उसी मंच पर उपस्थित थे उनहोने उस प्रस्ताव को समर्थन कर दिया l लेकिन चुनाव के नजदिक आने पर तस्वीर बदल गयी l बांमदलो का शीर्ष नेतृत्व भोला बाबू को प्रत्याशी बनाने पर सहमत नहीं हुआ l बेगूसराय सदर से निर्दलिय उम्मीदवार के रूप भोला बाबू ने नामंकन किया , चुनाव चिन्ह मिला #उगता_सूरज ,  बांमपंथी के शीर्ष ने भले ही टिकट  से बंचित किया हो लेकिन आम आम बांमपंथी कर्यकरता की सहायता से और कंग्रेस बिरोधी लहर पर सवर होकर भोला बाबू बेगूसराय से निर्दलिय विधायक बन गए l यही से भोला बाबू के  भाग्य का सूर्य उदय  हो गय l उन्होने ने कोग्रेस उम्मीदवार राम नरयण चौधरी को 29000 हजार भोट से हराया…
                लेकिन कहते हैं न  बिना मंघी के नाव किस किनार लगेगा कहा मुसकिल होता हैं भोला बाबू को भी एक निर्दलिय उम्मीदवार के रूप में अपना राजनीति जीवन अंधकार मेय प्रतित हो रहा था l उन्होने ने वामदल जोइन की और 1969 में वामदल के टिकट पर चुनाव लड़े  l लेकिन मात्र  751 भोट से हार गये , "देहात में एक कहावत हैं होनहार बिरवान के होत चिकने पात"  फिर एक बार रोशनी प्रज्वलित हुई और बामदल के टिकट पर 1972 में चुनाव जीत गये , लेकिन अपसी मत भेद के कारन भोला बाबू को 1976 ईo में  बांमदल से त्यागपत देना पड़ा l
       सन 1976 , देश में अपातकाल का दौर चल रहा था , सभी पार्टी काँग्रेस के बिरोध में एक गुट बंध चुकी थी उस बिरोध की लहर में भोला बाबू ने काँग्रेस का हाथ थामा l  1977 बिधानसभा चुनाव , पूरे देश में काँग्रेस बिरोधी लहर  , बिहार में विधानसभा चुनाव में 324 सीट में काँग्रेस मात्र 56 सीट ही जी पाई उसमें एक सीट  अकेला भोला बाबू के बलबूते पर था l ऊस जीत ने तत्कालीन काँग्रेस में भोला बाबू का कद और रुतबा बढा दिया…

एक दौर आया जो भोला बाबू के राजनीति जीवन का अंधकार युग रहा l 1990 के विधानसभा में उन्होने काँग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और पराजीत हुए l पांच साल बाद 1995 ईo में फ़िर कंग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुंनाव लड़े फिर हार का सामना करना परा , दो - दो हार के कारन उनका महत्व और रुत्वा दोनो काँग्रेस  में काफ़ी घटा , 1995 के के हार के बाद भोला बाबू बोले  "वह हार मेरी नहीं लालू की करिश्माई जीत ज्यदा थी" वस्तूत: 1990-99 तक का मेरे जीवन का अंधकार युग था…

       2000 ईo नए  शताव्दी के साथ भोला बाबू भी भाजपा के साथ  जुरे ओर 2000 ईo के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट से एक बार  फ़िर बेगूसराय सदर के विधायक बने l खबरे 13 dec 2002 की हैं  ढाई साल से खली विधान सभा उपअध्यक्ष पद पर बैठेगा कौंन?   इसका पटाक्षेपन  रावड़ी देवी ने कर दिया उन्होंने लालू जी कि उपस्थिति में संसदीय कार्य मंत्री रामचन्द्र पूर्वे को कह कर भोला बाबू के नाम को विधानसभा उपअध्यक्ष पद पर प्रस्ताबित  करने  अनुमोदन किया  और भोला बाबू बिहार विधानसभा के प्रमोटेड स्पीकर हो गये…
   फिर 2005 ईo में  भाजपा के टिकट पर  विधायक बने  और 2008 में केंद्र नेत्वव के हस्तक्षेप के बाद नाटकिय ढग से  नगर विकाश मंत्री बनाया गया l इनके मंत्री पद के एक साल कार्यकाल में ही बेगूसराय नगरनिगम  बना l
आठ बार विधान सभा पहुचने वाले  भोला बाबू को देश कि राजनीति में कदम रखने का  का मन था ,बेगूसराय से सांसद बनने का इरादा लेकर चले भोला बाबू को पार्टी ने इन्हे नवादा से भाजपा उम्मीदवार के रुप में उतर ,  लेकिन पहला इमतिहान ही बिहार के बाहुबाली सूरजभान सिंह के साथ थोरा कठिन था ? लेकिन समय और काल दोनो  फ़िर भोला बाबू के साथ था, उन्होने सूरजभान जैसे वाहुवली को चारो खाने चित कर  नवादा में एन.डी.ए. का पताखा लहराया …

मन मे अभिलाषा थी लोकतंत्र के मंदिर में दिनकर की मिट्टी का प्रतिनिधित्व करु और ईस अभिलाषा को पूरी करने में बेगूसराय गौरवशाली जनता ने पुरा मदद किया और वो सन् 2014 लोकसभा चुनाव में शानदार जीत के साथ दिल्ली पहुच गाये,

आज सिटिंग सांसद रह्ते हूए ही इस दुनिया को अलविदा कह गये,
डूब गया राष्ट्रकवि के मिट्टी का एक चमकता सितारा , थम गई एक कर्तव्यनिष्ठ ,करुणामयी ओजस्वी तेज आवाज, सचमूच राजनिति ने आज एक बहुमूल्य कोहिनूर खोया , ललाते सूरज की जब प्राची के क्षितिज पर अस्त हो रही थी , ठीक उसी वक्त दिनकर की  मिट्टी का एक  राजनितिक पारखी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में मौत की छायावाद में डूब रहा था..

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