Monday, 22 October 2018

बिहार केसरी श्री कृष्ण सिंह @अभिषेक पराशर

बिहार के इतिहास में जिन दो मुख्यमंत्रियों का नाम हमेशा ही याद रखा जाएगा, उनमें दूसरे नीतीश कुमार और पहले श्रीकृष्ण सिंह होंगे. श्री बाबू जाति से भूमिहार थे और उन्होंने जिस बिहार का न केवल सपना देखा बल्कि उसकी नींव भी रखी, और जिसका जगन्नाथ मिश्रा और लालू यादव जैसे मुख्यमंत्रियों ने नाश कर दिया. बिहार में विध्वंस की राजनीति करने वालों मुख्यमंत्रियों और उनकी जाति का जिक्र किए बिना, श्रीबाबू की कोशिशों को समझना व्यर्थ होगा.
श्रीकृष्ण सिंह ने आधुनिक बिहार की नींव रखी और उसे साकार किया. बिहार कांग्रेस में श्री बाबू और अनुग्रह नारायण सिंह की जोड़ी का जलवा था. इसलिए नहीं कि दोनों सवर्ण थे. बल्कि श्रीबाबू का विजन आधुनिक बिहार के निर्माण का था. बिहार के सामाजिक बदलाव में जमींदारी प्रथा और छूआ छूत सबसे बड़ी बाधा थी.
(लालू यादव ने जमींदारी प्रथा खत्म होने के बाद भूमि सुधार को कभी हाथ नहीं लगाया, लेकिन उसके नाम पर अपनी राजनीति को स्थापित किया और यह काम भूमिहारों को विलेन बनाए बिना नहीं किया जा सकता था.)
उन्होंने दोनों पर एक साथ प्रहार किया. तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के साथ उनकी चिट्ठी पत्री में श्रीबाबू साफ-साफ इन मुद्दों पर बात करते हैं. इन चिट्ठियों में श्रीबाबू केंद्र-राज्य संबंध, सबके लिए शिक्षा जैसे मुद्दों पर अपनी राय रखते हैं, जिस पर नेहरू सहमत होते हैं. (अब यह चिट्ठी किताब के रूप में संकलित हो चुकी है.) जब श्रीबाबू बिहार में दलितों को मंदिर  में प्रवेश दिला रहे थे और जमींदारी प्रथा पर चोट कर रहे थे, तब समाज उनका साथ दे रहा था. जमींदारों ने इसका प्रतिकार किया, लेकिन वह जमींदार समुदाय के तौर पर था, न कि जातीय गोलबंदी के तौर पर. सामाजिक बदलावों के मामले में भूमिहार समुदाय श्रीबाबू के साथ था.
इसी दौरान नेहरू ने पंचवर्षीय योजना का खाका तैयार किया और पहली योजना में प्राथमिक क्षेत्रों विशेषकर कृषि को वरीयता दी गई. 1990-2005 या फिर उसके बाद के बिहार की स्थिति देखने के बाद आपके लिए विश्वास करना मुश्किल होगा लेकिन बिहार पहली पंचवर्षीय योजना में सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करने वाला राज्य था. यह सिंह का ही व्यक्तित्व था कि दूसरी योजना के दौरान जब प्राथमिकता बदली तो वह बिहार में बरौनी ऑयल रिफाइनरी, बोकारो स्टील प्लांट, सिंदरी खाद कारखाना समेत दर्जन भर से अधिक भारी उद्योगों को बिहार में स्थापित कराया, जिसमें लालू जी ने सामाजिक न्याय की राजनीति के दौरान एक-एक कर पलीता लगाया. आधुनिक बिहार की यात्रा श्रीबाबू के विजन और प्रगतिशील भूमिहार समुदाय के प्रगतिशील आंदोलन से होती है. श्रीबाबू की हैसियत बिहार के स्टेट्समैन की होनी चाहिए, जिन्होंने नेहरू के समानांतर वैसे समय में राज्य के विकास की नींव रखी, जब सब कुछ शून्य था. श्रीकृ्ष्ण सिंह, सच्चे मायनों में भारत रत्न के हकदार और बिहारी अस्मिता के प्रकाश पुंज हैं. (2)

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