Monday 8 October 2018

आलोक जी! आप भूमिहार हैं ?

आलोक जी! आप भूमिहार हैं ?

ये एक ऐसा सवाल है जो घूम फिर कर कभी कमेंट में,कभी इनबॉक्स में तो कभी दोस्त परिचित के माध्यम से मेरे पास आ ही जाता है,मुझे पहली बार भूमिहार होने का पता तब चला जब स्कूल में एक दोस्त का बीस रुपया उधार लौटाने गया,पैसे लेते ही दोस्त बोला-'यार आलोक!तुम कहीं से लगते नहीं हो की भूमिहार हो! मैं पूछा क्यों तो बताया कि -'यार कैसे भूमिहार हो जो टाइम पे पैसे लौटा दिये', 🤔 उस दिन उसकी ये बात नहीं समझ आयी लेकिन फिर बाद में इसका मतलब पता चल गया,
चुकी भूमिहारों ने राय,पांडेय,तिवारी,सिंह,ठाकुर,त्यागी जैसे इतने सर नेम लगा लिए हैं कि लोगों को इससे भारी कन्फ्यूजन हो जाती है पहचानने में,इसी भरम में 'पांडेय' सर नेम की वजह से एक चौबे जी मुझे ब्राम्हण समझ बैठें और लगें भूमिहारों की आलोचना करने,मैं चुप चाप सुनता रहा,वो बोलते रहें-'आलोक जी! समझ जाइये की सबसे मेहीं(शातिर) लोग भूमिहारों में ही पाये जाते हैं,ये लोग पहले कलम मांगेंगे,फिर साइकिल,फिर पैसा और उसके बाद घर-दुआर लूट लेंगे और आपके दोस्त भी बने रहेंगे,' मुझे बहुत हँसी आ रही थी लेकिन न हँसने के लिए मजबूर था,मैं समझ गया था कि कोई भूमिहार लड़का इनको बढ़िया से छुआया(चुना लगाया ) है,फिर उन्होंने मुझसे कहा  की अगली बार मेरे घर कथा कहने आइयेगा पाण्डेय जी,मैं भी उन्हें हाँ कह दिया ये सोचकर कि अब आगे जो होगा देखा जाएगा,
कॉलेज़ के दिनों में घरवालों के दबाव की वजह से फेसबुक पर सिर्फ भूमिहार लड़कियां ढूंढा करता था,'Pooja rai,ballia','Nisha rai ghazipur' और 'Richa rai banaras' करके खूब सर्च मारता था, फिर उनकी प्रोफाइल्स में छंटनी करता था,जिन लड़कियों की प्रोफाइल पिक में गुलाब के फूल में चाकू घुसाकर शायरी लिखी हुई थी या जो अतिसंस्कारी बनती थीं,उस टाइप की प्रोफाइल्स इग्नोर कर देता था,ऐसी लड़की ढूंढता था जो अपने तरफ की भी हो और बाहर निकलकर पढ़ाई कर रही हो,थोड़ा ग्लोबल एक्सपोज़र हो उसका,
उसके बाद हर दिन कमसे कम बीस लड़कियों को रिक्वेस्ट भेजता था,दो एक्सेप्ट करती थीं,उनमें से एक 'Hi' का रिप्लाई करती थी और बताती थी कि उसका ऑलरेडी ब्वॉयफ्रेंड है,फिर कुछ दिनों ऐसा करता रहा और असफलता हाथ लगने के बाद ये कारोबार छोड़ दिया,
फिर एक दिन ऐसे ही सुबह उठ कर देखा तो मुझे फेसबुक के किसी ग्रुप में भूमिहार समाज का मीडिया प्रभारी बना दिया गया था,रातो रात मुझे इतनी बड़ी सफलता इससे पहले कभी नहीं मिली थी,और फिर जब 'सिंटू जी असली भूमिहार' की फ्रेंड रिक्वेस्ट आयी तब जाना कि ये समाज अब मुझे पूरी तरह से अपना चुका है,अब कोई पूछता है कि आलोक जी! आप भूमिहार हैं ? तो कहता हूँ कि -'हाँ हूँ लेकिन नहीं हूँ'
फिर वो पूछते है कि क्यों तो जौन का ये शेर तोड़ मरोड़ कर सुना देता हूँ -

ज़िन्दगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा भूमिहारी में

चलिये अब जा रहा हूँ कथा याद करने,चौबे जी के घर सुनाना जो है।

Alok Pandey

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