इंदिरा गांधी को रायबरेली में चुनावी मात देनेवाले 'आपातकाल के धूमकेतु' राजनारायण के बहुमुखी किरदार से परिचय / मेरी समीक्षा
2017 इंदिरा गांधी की जन्मशती है। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि उनके प्रखर राजनीतिक विरोधी राजनारायण का भी यह जन्म शताब्दी वर्ष है। जानकारी के लिए बताते चलें कि 1975 में लगे आपातकाल के नायकों में अक्खड़ समाजवादी राजनारायण को शुमार किया जाता है। इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा राजनारायण की याचिका पर 1971 के आम चुनावों में इंदिरा गांधी को अपने निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली में धांधली का दोषी माना गया था, जिसके बाद इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी। 1977 में हुए चुनावों में इंदिरा गांधी को राजनारायण के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। आजाद भारत के इतिहास में पहली और अभी तक एकमात्र बार वह मौका था, जब किसी प्रधानमंत्री को चुनावों में हार मिली। इन्हीं कुछ जानकारियों के साथ अमूमन राजनारायण का परिचय सिमट जाता है, जबकि राम मनोहर लोहिया के साथ समाजवादी विचार को जमीनी स्तर पर उतारने और लोकतांत्रिक रूप से सफल बनने में उनकी अहम भूमिका रही। वह कांग्रेस की प्रभुत्व वाली संसदीय व्यवस्था में विपक्ष के विचार के मजबूत पैरोपकार रहे।वरिष्ठ पत्रकार धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव और पूर्व प्रशासक लाल जी के संपादन में आई पुस्तक ‘‘लोकबंधु राजनारायण विचार पथ-1’ अच्छी पहल है। पुस्तक पांच खंडों में विभाजित है। पहले खंड में राम मनोहर लोहिया और चौधरी चरण सिंह द्वारा समय विशेष पर राजनारायण के संदर्भ में व्यक्त की गई राय है। राम मनोहर लोहिया जहां ‘‘अपने अर्जुन के सिद्धांत’ शीर्षक वाले लेख में उत्तर प्रदेश विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में उनके द्वारा दृढ़ता से उठाए गए मुद्दों के लिए आजाद भारत के प्रारंभिक वर्षो में सबसे सफल विधायक के रूप में इतिहास में दर्ज किए जाने की बात करते हैं। साथ में, यह भी कहते हैं कि अगर राजनारायण जैसे दो-चार लोग भी रहते हैं, तो देश में कोई भी तानाशाह बहुत देर तक नहीं टिक सकता। राजनारायण लोहिया की इस भविष्यवाणी पर खरे भी उतरे।किसानों के मसीहा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने उन्हें विशिष्ट राजनीतिक बताया है। राजनारायण को ज्ञान और कर्म के बेजोड़ समन्वय बताते हैं, लक्ष्मण और हनुमान को आदर्श मानने वाला एक ऐसा व्यक्ति जो सदा दूसरों के लिए कष्ट झेलने को तैयार रहता है। इसी खंड में मुलायम सिंह यादव, लोक सभा के पूर्व अध्यक्ष रवि राय और कांग्रेस नेता तारकेश्वरी सिन्हा के भी संस्मरण हैं। दूसरे खंड में जनता सरकार में उनके स्वास्य मंत्री रहते स्वास्य सचिव राजेश्वर प्रसाद जैसे उनके सहयोगियों की नजर से उनके काम करने के तरीके को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। तीसरे खंड में उन्हें बेहद करीब से देखने वाले चंचल, कुर्बान अली जैसे पत्रकारों से उनके बारे में संतुलित दृष्टिकोण मिलता है। चौथे खंड में बीएचयू, इलाहाबाद और लखनऊ विविद्यालयों के छात्र आंदोलन के नायकों जैसे प्रो. आनंद कुमार आदि से उनके समकालीन युवा मन की धारणा का पता चलता है। अंतिम खंड उत्तर प्रदेश विधान सभा में उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों से संबंधित है। यह खंड 50 के दशक में उत्तर प्रदेश की समस्याओं को समझने में महत्त्वपूर्ण है। उम्मीद है आने वाले खंडों में जो पक्ष और संस्मरण रह गए हैं, उन्हें भी समाहित किया जाएगा। पुस्तक संग्रहणीय है और राजनारायण को चाहने वालों के लिए अनूठा उपहार भी है।पुस्तक : लोकबंधु राजनारायण-विचार पथ-एकसंपादन : धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तवप्रकाशक : सरस्वती रमाशंकर स्मृति ट्रस्ट, लखनऊमूल्य : 595 रुपये
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