Saturday 10 January 2015

मैंने लोगों के दर्द को दिल से महसूस किया : ब्रह्मेश्वर मुखिया

स्वर्गीय ब्रह्मेश्वर सिंह जी का यह आखिरी इंटरव्यू

मैंने लोगों के दर्द को दिल से महसूस किया - ब्रह्मेश्वर मुखिया 

स्वर्गीय ब्रह्मेश्वर सिंह जी की शहादत को सलाम 

स्वर्गीय ब्रह्मेश्वर सिंह जी का यह आखिरी इंटरव्यू है. इंटरव्यू में हरेक मुद्दे पर उन्होंने अपनी बात बड़ी सहजता और प्रभावशाली ढंग से रखी है. खेत – खलिहान और किसानों को लेकर उन्हें कितनी चिंता थी, ये बात भी सामने आयी. पेश हैं उनका पूरा इंटरव्यू :

मुखिया जी, आप अपने जन्म एवं शिक्षा के संबंध में बतायें?

ब्रह्मेश्‍वर सिंह ऊफ ब्रह्मेश्‍वर मखिया जी – मेरा जन्म आरा जिले के खोपिरा नामक गांव में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही स्कूल में हुई थी। बाद में मैट्रिक करने के बाद मैंने जैन कालेज आरा से इंटर की परीक्षा पास की। मुझे नहीं पता कि मैंने ग्रेजुएशन किया या नहीं, क्योंकि अप्रैल 1971 में ही मैं अपने पंचायत का मुखिया बन चुका था। मुखिया बनने के बाद पढाई छूट गयी और मैं पूरी तरह समाज के प्रति समर्पित हो गया था।

प्रारंभिक दिनों में राजनीति के प्रति आपकी सोच क्या थी?

मैं तो बचपन में ही मुखिया बन गया था। लेकिन फ़िर भी मैं इस समय की धूर्त राजनीति को नहीं मानता। राजनीति का मतलब ही धूर्तता है। धूर्त व्यवहार के जरिये राजनीति को मैंने कभी पसंद नहीं किया।

जिस कालखंड में आप सक्रिय रुप से सामाजिक सेवा से जुड़े, वह समय कर्पूरी ठाकुर, दारोगा प्रसाद राय और लोकनायक जयप्रकाश नारायण का दौर था, उस समय इन नेताओं के बारे में आपकी क्या राय थी?

जेपी आंदोलन को मैंने अपना वैचारिक समर्थन दिया था। सक्रिय समर्थन देना मेरे लिये संभव नहीं था। इसकी वजह यह कि एक तो मैं मुखिया था और दूसरा यह कि मेरे पास एक बड़ी गृहस्थी भी थी। गृहस्थी चलाने के लिये खेती करना आवश्यक था। इसलिये मैंने जेपी आंदोलन में भाग नहीं लिया लेकिन मैंने तहे दिल से इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया था।

आपके बारे में कहा जाता है कि आपने रणवीर सेना का गठन किया। इसके आपकी प्रारंभिक सोच क्या थी?

ऐसी कोई बात नहीं कि रणवीर सेना का गठन जैसा कुछ किया गया था। आतंकवादी और माओवादी किसानों को हमेशा परेशान करते थे। किसानों की समस्याओं को लेकर मैं वर्ष 1970 से ही जुड़ा था। किसानों पर आक्रमण बढा तो लोग जागरूक हुए। अपने उपर होने वाले अत्याचारों के कारण लोग एकजूट हुए और फ़िर एक संघर्ष मोर्चा का गठन किया गया। अब इस मोर्चा को लोग चाहे रणवीर सेना का नाम दें या कोई और नाम। लेकिन रणवीर सेना के गठन जैसी कोई बात नहीं थी। किसानों का इन सबसे कोई वास्ता नहीं था। उग्रवादियों के विरोध में किसान संगठित हुए थे और संगठन का निर्माण किया गया था। पहले इसका नाम राष्ट्रवादी किसान संगठन था।

किस वर्ष आपने इसे बनाया था?

इसका गठन मैंने नहीं किया था। किसानों का संघर्ष चला और फ़िर जैसा कि मैंने पहले कहा कि सब कुछ स्वतः स्फ़ूर्त था।

आप पर आरोप लगाया गया कि आपके नेतृत्व में रणवीर सेना इतने सारे नरसंहार किये और फ़िर इन आरोपों के कारण आपको जेल में भी रहना पड़ा.

देखिये, मुझे जानबुझकर प्रशासन के द्वारा फ़ंसाया गया था। (कुछ देर चुप रहने के बाद) मैं किसी का नेतृत्व नहीं कर रहा था। किसान तो स्वयं जागरुक थे। बनाने की कोई जरुरत ही नहीं थी, क्योंकि सब कोई त्रस्त था उग्रवादियों से। साथ-साथ उस समय के तत्कालीन प्रशासन से भी सभी त्रस्त थे। लालू-राबड़ी के शासन से किसान और व्यवसायी सभी परेशान थे। इसलिये संगठन बनाने की आवश्यकता ही नहीं थी। सब कुछ स्वतः स्फ़ूर्त होता चला गया। सब प्रशासन की साजिश थी और मेरे उपर लगाये गये निराधार आरोपों का हश्र तो यही होना था। इन मामलों में रिहाई मिलनी ही थी। लेकिन परेशानी हुई। मैं 9 वर्षों तक नाहक जेल में रहा। आगे भी अभी 8-10 मुक्दमे चल रहे हैं। इन सभी का सामना करना है।

लालू-राबड़ी राज और आज के नीतीश राज में आप कौन सा अंतर पाते हैं?

तुलना ही नहीं है दोनों शासनकालों में। दोनों शासनकाल का तुलना करना ही व्यर्थ है। जो एक धरती से नीचे जा रहा है और एक धरती के उपर। दोनों में तुलना कैसा। तुलना तो तब किया जाता है जब दोनों एक दूसरे के समकक्ष होते। लालू की सरकार ही नहीं थी, अपराधियों की जमात भी थी ।

तो क्या आप कहना चाहते हैं कि नीतीश का शासनकाल किसानों के लिये स्वर्णिम युग है?

एक तरह से ठीक है नीतीश जी का शासनकाल। जितना फ़ंड है उतना में बहुत अच्छा कर रहे हैं नीतीश।

इसका मतलब यह कि नीतीश कुमार के शासन से आप पूरी तरह संतुष्ट हैं?

हां, उनका दिल गवाही दे रहा है। वे चाहते हैं कि बिहार के लिये कुछ करें। नीतीश जी जो कहते हैं, वह हर्टली (दिल से) महसूस किया जा सकता है। उनकी चाहत है कि बिहार विकास करे।

क्या आप ऐसा कोई अनुभव साझा करना चाहेंगे जिसने आपको सबसे अधिक उद्वेलित किया?

देखिये जब इंसान पर किसी तरह का आफ़त या विपत्ति आती है और विशेषकर जब संत प्रवृति वाले इंसान के अंदर प्रतिशोध की भावना जगती है वह बहुत कठोर होती है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम नरेश का आज बयान आया है कि नक्सल्वाद को राजनीतिक प्रक्रियाओं के जरिये दूर किया जा सकता है, पूरी तरह बेबुनियाद है और बचपना भरा है। सरकार किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य दे। किसान स्वतः ही मजदूरों को जायज मजदूरी देने लगेंगे। हिंसा का उत्‍तर हिंसा ही हो सकता है। यदि केपीएस गिल ने पंजाब में इस सिद्धांत को अपनाया होता तो पंजाब में कभी अमन-चैन स्थापित नहीं हो पाता। जिस समय बिहार में जंगलराज था उस समय आप किसी भी जिले में चले जाते किसान से लेकर व्यवसायी सभी उग्रवादियों और आतंवादियों से पीड़ित थे। उनकी समस्याओं को मैंने दिल से महसूस किया।

आज आप किसानों की समस्याओं को किस प्रकार देखते हैं?

देखिये, वैज्ञानिक विधि से खेती के लिये भी चकबंदी आवश्यक है। इसके लिये खेती का यांत्रिकीकरण भी आवश्यक है। लेकिन बिहार का दुर्भाग्य है कि अभी तक बिहार में चकबंदी नहीं किया गया है। थोड़ा बहुत जो पहले हुआ था, वह गलत ही था। मेरे हिसाब से किसानों को कोई सुविधा न दी जाय केवल उनके उत्पादन की सही कीमत मिल जाय तो वे स्वयं अपनी समस्याओं का समाधान कर लेंगे। सरकार जैसा तकनीक बता रही है, किसान उसके हिसाब से खेती कर रहे हैं, लेकिन उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। किसान आत्महत्या के लिये विवश हैं। बेटियों की शादी नहीं कर पा रहे हैं। किसान अब है ही कहां? सब दरिद्र हैं।

क्या आपको लगता है कि बिहार के लिये भूमि सुधार आवश्यक है?

मुझे नहीं लगता है कि बिहार में जमीन की कोई समस्या है। वैसे बिहार सरकार को चाहिये कि जो जमीन अनुपयोगी है और किसी भी रुप में उसका उपयोग नहीं किया जा सकता है उसकी बंदोबस्ती गरीबों के बीच कर दी जाये। इसके लिये चकबंदी आवश्यक है। यदि चकबंदी हो जाय तो फ़िर बिहार में जमीन की समस्या अपने-आप समाप्त हो जायेगी।

बिहार में वामपंथ के कमजोर पड़ने के क्या कारण हैं?

वामपंथ केवल बिहार में ही नहीं, पूरी दुनिया में ही इसका नामो निशान खत्म हो गया है। यह सब गलत नीतियों और सिद्धांतों के कारण हुआ है। चीन और रुस में वामपंथ था, वह अब है कहां?

जेल से रिहाई के बाद आपकी अपनी योजनायें क्या हैं?

हां, हां किसानों के बीच सभी तरह का रचनात्मक कार्यक्रम चल रहा है। ऐसी बात नहीं है कि मैं बैठा हूं।

भविष्य में राजनीति को लेकर कोई योजना?

नहीं, नहीं। प्रत्यक्ष राजनीति में शामिल होने की मेरी कोई योजना नहीं है। लेकिन राजनीति पर नजर रखी जायेगी। वैसे मेरा मानना है कि जिस प्रकार से एमएलए फ़ंड समाप्त हुआ है उसी प्रकार से एमपी फ़ंड भी समाप्त होना चाहिये। आरक्षण के मुद्दे मुझे नीतीश जी से जरा अलग कर रहे हैं। आरक्षण देश के लिये सबसे घातक है। भ्रष्टाचार की जननी भी आरक्षण ही है।

सवर्ण आयोग के गठन के संबंध में आप क्या कहेंगे?

सवर्ण आयोग या बैकवर्ड आयोग या फ़िर हरिजन आयोग सब पालिटिकल स्टंटबाजी है। मैं तो यह कहता हूं कि गरीबों के लिये आयोग बने। जो गरीब है उसे सुविधायें मिलनी चाहिये। मेरे हिसाब से समाज को पांच श्रेणियों में बांटा जाना चाहिये। अति निर्धन, निर्धन, सामान्य, अमीर और महा अमीर। 

(फॉरवार्ड प्रेस से साभार)

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