Friday 26 October 2018

धौलानी भूमिहार ब्राह्मण परिचय @विभास चंद्र

#धौलानी भूमिहार ब्राह्मण परिचय :

धौलानी अर्थात धौलपुर,राजस्थान के वासी।
धौलपुर के काश्यप गोत्रिय गौर ब्राहमण जो कश्मीर से श्रीगंगानगर के आसपास तक के निवासी थे।
पश्चीमोत्तर भारत पर लगातार यवनों,शकों,हुणों के आक्रमण के बाद काश्यप गोत्रिय ब्राह्मणों ने कान्यकुब्ज क्षेत्र के सुरक्षित क्षेत्र की ओर पलायन कर अपनी शैव परंपरा को बचाये रखा। कान्यकुब्ज क्षेत्र में वाजपेयी यज्ञ किया गया। जिसमें यज्ञ भाग के रूप में भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्र से आये काश्यप गोत्रिय ब्राम्हणों जिन्हें कान्यकुब्ज के ब्राह्मणों ने वाम शाखा का अंग घोषित किया,उन्हें कीकट(बिहार) के मगध क्षेत्र(पटना के आसपास) में यज्ञभूमि सौंपी। क्योंकि इस क्षेत्र में बहुत पहले से ही काश्यप गोत्रिय ब्राह्मणों का आश्रम हुआ करता था। उसी परंपरा का पालन करते हुये वाजपेयी काश्यप ब्राह्मण ब्रम्हदेव भट्ट को मगधक्षेत्र में यज्ञभूमि आश्रम बनाने के लिए प्रदान की गयी। हलांकि इनका अपने पुर्वजों की भूमि से आना जाना लगा रहा।ये हमेशा भ्रमणशील रहे।
उसी वंश में धवलदेव ठाकुर का जन्म हुआ ।उनके पुत्र हुये गणेश ठाकुर ।
इनके तीन पुत्र हुये -
श्री गंगा राय,श्री गंभीर राय और श्री महेश राय।
श्री गंगा राय की मुलाकात अकबर से शिवनार के गंगा किनारे इमली के वृक्ष के पास हुआ । अकबर उस समय अपने शत्रु दाउद खां का पीछा करते हुये थकामांदा मुंगेर से लौट रहा था। गंगा राय ने अकबर को इमली का पन्ना बनाकर पिलाया। किन्तु, अकबर ने शंकावश कि इमली के पन्ने में जहर तो नहीं है,यह सोचकर गंगा राय को गिरफ्तार कर आगरा लेकर चला गया। जब यह बात राजा मान सिंह को पता लगा कि एक धौलपुर के वाशिंदे ब्राह्मण को शंका पर गिरफ्तार कर लिया है,तब मानसिंह ने गंगा राय को एक युक्ति लगाकर निकलवा लिया। साथ ही पन्ना पिलाने के एवज में गंगा राय को तीन परगने - ग्यासपुर,ईब्राहिमपुर और इस्माईलपुर की जमींदारी भी दिलवा दी। इसके बाद राजा मानसिंह ने बैकठपुर के शिवमंदिर में स्वयं सुबा ए बंगाल-बिहार की सुबेदार रहते
गंगा राय को "रायचौधरी" की उपाधी प्रदान की।
रायचौधरी गंगा राय ने साम्यागढ को अपनी गढी बनायी और गंभीर राय को शिवनार का हिस्सा दिया गया और छोटे भाई महेश राय को लक्खीसराय के नदवां की मिलकीयत मिली।
"धौलानी भूमिहार ब्राह्मणों" को लोकभाषा में "धौरानी बाभन" कहा जाता है।
इस समुदाय का इतिहास कश्मीर से बिहार,बंगाल,उड़ीसा तक विस्तृत रूप से फैला हुआ है।
यह समुदाय अपने परोपकार, सहृदयता और लगन के लिए जाना जाता है।
धौलानी समुदाय हमेशा से ही कमजोर वर्ग के हित हेतु प्रयत्नशील रहा है। जमींदारी मिलने के बावजूद यह समुदाय कभी भी अहम् को अपने पास फटकने नहीं दिया। बौद्धिक होकर भी कभी ज्ञान का अभिमान नहीं पाला और वीर होकर भी अपना ब्रम्हणत्व नहीं खोया।
आज भी धौरानी क्षेत्र के ब्राह्मण और गैर ब्राह्मण में अलगाव की भावना नहीं पायी जाती है। सबसे बड़ी बात धौरानी बाभन भौतिकवाद की भेड़चाल में नहीं पड़ता।
जितनी जरूरत ,उतना ही लेने की प्रकृति धौरानी बाभन में रही है।
लोगों का हित और सम्मान धौरानी बाभन की कुल परंपरा रही है।

1 Comments:

At 25 December 2018 at 07:31 , Blogger Unknown said...

धन्यवाद भाई जी।

 

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