Saturday 11 July 2020

पत्रकारों के लिए लड़ने वाले पत्रकार धर्मराज राय

रांची में अगर कोई पत्रकारों के लिए लड़ने वाला पत्रकार हुआ तो वह एक
मात्र शख्स थे धर्मराज राय। सरकार, प्रशासन या अखबार के मालिकों के गलत
कामों का कोई विरोध करने में सक्षम था तो धर्मराज राय ही थे। 1982 में जब
बिहार के मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र ने बिहार प्रेस बिल लाया तो रांची
में सर्वप्रथम आंदोलन का बिगुल धर्मराज राय ने ही फूंका। बिहार क्लब और
रांची टाइम्स के कार्यालय में पत्रकारों की बैठक बुलाना और इस पर सभी
पत्रकारों से विचार मंथन करने का काम धर्मराज राय ने किया। उस आंदोलन को
लेकर समन्वय समिति बनायी गयी जिसमें उत्तम सेन गुप्ता, बलबीर दत्त, दिलीप
कुमार दाराद इत्यादि पत्रकार शामिल हुए। उस आंदोलन के दौरान पहली बार
मैंने बिहार क्लब में आयोजित बैठक में रांची के पत्रकारों और
साहित्यकारों की एकजुटता देखी थी। सभी को धर्मराज राय ने एकजुट किया था।
बैठक में पत्रकार विशेश्वर चटर्जी, रामचंद्र वर्मा, एसपी सिन्हा, डीपी
दासगुप्ता, शारदा रंजन पांडेय, महेंद्र प्रसाद, चंद्रभूषण शर्मा आरएन झा,
बीएन झा, राजदेव तिवारी सहित काफी संख्या में रांची के पत्रकार एकत्रित
हुए। पत्रकारों के आंदोलन को धार देने के लिए उसी बिहार क्लब में पहली
बार टेलीग्राफ के संपादक एमजे अकबर आये थे। तब मुझे भी जानकारी हुई कि
एमजे अकबर भी बिहार के निवासी हैं।
रांची एक्सप्रेस में पत्रकारों को वेतनमान देने का आंदोलन भी धर्मराज राय
ने खड़ा किया था और इसका पत्रकारों को लाभ यह हुआ कि प्रबंधन को झुकना पड़ा
और सभी कर्मचारियों की नौकरी पक्की करनी पड़ी। यहां तक कि वेतनमान भी देना
पड़ा था। यह अलग बात है कि बाद में वे रांची एक्सप्रेस छोड़कर दैनिक आज में
चले गये।
एक समय था धर्मराज राय साइकिल पर चलकर रांची शहर में समाचार संकलन का काम
किया करते थे। इसके बाद उन्होंने एक मोपेड खरीद ली थी। उनके कंधे पर एक
हैडलुम का झोला अवश्य लटका रहता था। एक दौर ऐसा भी आया जब पुलिस की गाड़ी
में बैठक कर कोई चलता हुआ पत्रकार मुझे नजर आया तो वह थे धर्मराज राय।
रांची एक्सप्रेस के दफ्तर में जब वे शाम को पहुंचते थे तो उनकी झोली
नेताओं की प्रेस विज्ञप्ति से भरी होती थी।
मैं धर्मराज राय को 1977-78 से जानता था। तब मैं रांची जिला स्कूल का
छात्र था और कविताएं लिखा करता था। एक दिन एक कविता लेकर जनता टाइम्स के
संपादक शारदा रंजन पांडे से मिलने मेन रोड स्थित बागला प्रिंटिंग प्रेस
के कार्यालय में गया था। वहीं श्री पांडे ने मेरा परिचय देते हुए धर्मराज
राय को कहा था-देखो बाप तो कविता लिखता ही है अब बेटा भी कविता लिखने
लगा। पांडे जी ने धर्मराय जी को बताया कि मैं रामकृष्ण उन्मन का सुपुत्र
हूं। इसके बाद मेरी पहली कविता जनता टाइम्स में ही प्रकाशित हुई थी। तब
वहा धर्मराज राय और एसएन विनोद भी काम किया करते थे।
श्री राय खुद भी कविताएं लिखते थे और कवियों का आदर और सम्मान भी करना
जानते थे। कई बार तो ऐसा भी होता था कि रांची के आसपास के जिलों में
आयोजित कवि सम्मेलनों में कवियों को ले जाने का काम भी धर्मराज राय किया
करते थे। कौन कवि कवि सम्मेलन में जाने के लिए कितना फीस लेगा उसे भी
धर्मराज राय तय कर लेते थे। कवि सम्मेलन खत्म होने के बाद कवियों की फीस
भी वे दे देते थे। उन कवियों में मेरे पिता रामकृष्ण उन्मन, लंठ आजमगढ़ी,
रामचंद्र वर्मा, प्रकाश फिक्री, उपेन्द्र दोषी इत्यादि शामिल थे।
उन्होंने व्यंग्यकार राधाकृष्ण की स्मृति में अपनी पत्रिका ब्रह्मर्षि
समाज दर्पण का विशेषांक निकाला। इसके लिए उन्होंने राधाकृष्ण जी के अपर
बाजार स्थित आवास पर बैंड बाजा बजवाया और रांची के अधिकांश पत्रकारों और
साहित्यकारों को बुलाकर भरी गर्मी में सत्तु का शर्बत पिलाया। इस अवसर पर
उन्होंने कहा था कि मैं रांची के साहित्याकारों की स्मृति को जीवित रखना
चाहता हूं। इसलिए इस तरह आयोजन कर रहा हॅूं।
एक साल पहले वे मेरे आवास पर आये और कहा कि तुम अपने पिता की कविताओं और
साहित्यिक गतिविधियों का संकलन करो मैं उनकी स्मृति में भी अपनी पत्रिका
का विशेषांक निकालना चाहता हॅूं। उन्होंने मुझे बताया था कि 1973 मे वे
पत्रकारिता करने के लिए रांची आये थे और कोकर के होकर रह गये।

श्री राय का 4 जुलाई को जमशेदुपर में निधन हो गया। वे ब्लड कैंसर से पीड़ित थे।

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