Monday 22 April 2019

*गरीबी एवं आभाव से लड़ने के लिए नरेंद्र मोदी से लड़ने की जरूरत नहीं है बल्कि नरेंद्र मोदी के साथ गरीबी एवं आभाव से लड़ना जरूरी है* मनीष कुमार शेखर

बिहार के गोपालगंज जिले के फुलवरिया गांव के मुखिया स्व. शिवध्यान चौधुर भूमिहार ब्राह्मण जाति के थे जो लालू प्रसाद के माता पिता के संरक्षक थे । लालू प्रसाद का बचपन एवं पालन पोषण भूमिहार ब्राह्मण जाति के मुखिया शिवध्यान चौधुर के सानिध्य में ही हुआ है । लालू प्रसाद का बचपन संवारने वाला भूमिहार है फिर भी अपना राजनीतिक दुश्मन भूमिहार को ही मान कर कार्य करते हैं ।

भले ही लालू प्रसाद ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए भूमिहारों को राजनीतिक हाशिए पर रखने की रणनीति पर काम किया है लेकिन इतिहास भूमिहार एवं यादवों का मजबूत गठबंधन का है। बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री बिहार केसरी डॉ श्रीकृष्ण सिंह ने हमेशा यादवों को अपने सबसे ज्यादा शुभचिंतक के रूप में अपने साथ लेकर बिहार की राजनीति की थी । श्रीबाबू के समय बिहार देश के अग्रणी राज्यों में सुमार होता था।

लालू प्रसाद के राज में भूमिहारों को कमज़ोर करने की साजिश हुई जिसमें भूमिहार तो कमजोर नहीं हुआ,  अपना रास्ता बदल लिया । भूमिहार बिहार छोड़ कर अन्य राज्यों में अपने हुनर के बल पर कार्य करने लगा लेकिन बिहार जरुर कमजोर हो गया । वर्ष 1990 के दशक में जहां सभी राज्य तेजी से विकास के दौर में था वहां बिहार जातिवाद का दंश झेलते हुए  कमजोर हो रहा था । विकास की जगह हत्या, लूट एवं अपहरण का उद्योग के रूप में केन्द्र बनता गया । बिहार की छवि पुरी दुनिया में धुमिल होने लगी थी । लालु प्रसाद ने बिहार के लोगों में जातिवाद का जहर घोलने में सफल हो गये थे । लोगों के पास कुछ विकल्प दिख नहीं रहा था और बिहार पिछड़ रहा था । कांग्रेस को भी लालू प्रसाद ने अपने साथ कर लिया था। भारतीय जनता पार्टी के बिहार के प्रथम अध्यक्ष स्व कैलाशपति मिश्रा के नेतृत्व में  भूमिहार ब्राह्मण सत्ता से बाहर रहकर बिहार के विकास की आवाज को बुलंद करता रहा लेकिन अगड़ा पिछड़ा की गुंज में विकास पिछड़ रहा था । तभी लालु प्रसाद से अलग होकर नीतीश कुमार ने अलग पार्टी बना कर राजनीति शुरू किया जिसमें कैलाशपति मिश्रा ने उन्हें भाजपा गठबंधन में शामिल कर लिया । कैलाशपति मिश्रा के इस निर्णय से भूमिहारों ने नीतीश कुमार में आशा की एक किरण के रुप में देखा तथा अपनी पुरी ताकत नीतीश कुमार के पीछे लगा दिया । आप कह सकते हैं कि नीतीश कुमार भूमिहार ब्राह्मण के प्रायोजित नेता के रूप में उभरे । जब नीतीश कुमार वर्ष 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बनने में सफल हो गये तो बिहार के विकास की कहानी पुन: शुरू हो गई । बिहार में क्रांतिकारी बदलाव दिखने लगा । तेजी से सड़को का निर्माण, अस्पताल में सुधार, शिक्षक विहीन स्कूलों में शिक्षको की बहाली आदि कार्य ऐसे होने लगा जैसे बिहार का खोया हुुुआ गौरव पुुन: वापस अा रहा है । इन सबके पीछे भूमिहार ब्राह्मण का प्रबंधन ही था जो सरकार के अंदर एवं बाहर से नीतीश कुमार सरकार के माध्यम से बिहार के विकास को गति देने का काम कर रहा था । कोई भी सफल सरकार के बेहतर प्रबंधन के लिए कुशल टीम एवं पवित्र नियत दोनों आवश्यक होता है । प्रथम कालखंड में नीतीश कुमार सरकार पूरी तरह भूमिहार ब्राह्मणों के माध्यम से संचालित था जिसके विकास की कहानी ऐतिहासिक है।

देश में लोकसभा के चुनाव चल रहे हैं जिसमें लालू प्रसाद ने नरेंद्र मोदी को हटाने के लिए गठबंधन किया है, जिसमें अति महत्वाकांक्षी लोगों का समूह है।
वर्ष 2014 में नरेेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनवाने के लिए देश एवं दुनिया के  कोने कोने के भूमिहार ब्राह्मणों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी । लेकिन  वर्ष 2019 में  स्थानीय राजनीति के शिकार में बिहार झारखंड में भूमिहार ब्राह्मण टिकट पाने में वंचित रह गए, मात्र एक टिकट बेगूसराय से गिरिराज सिंह को  मिल पाया। टिकट नहीं मिलने से लोग आक्रोश एवं नाराजगी दिखा रहे थे लेकिन लालू प्रसाद ने अपने पुत्र तेजस्वी यादव को भी अपने जमाने की रणनीति का ज्ञान दे दिया था, जिसके कारण उसने भी भूमिहार ब्राह्मण को एक भी टिकट ना देकर बिहार के विकास के प्रति अपने नियत को प्रदर्शित किया। यह सच है  की भारतीय जनता पार्टी में भूमिहार ब्राह्मणों की उपेक्षा से भूमिहार जाति के लोग  नाराज एवं निराश हैं, जिससे  सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों की जानकारी नहीं दे रहे हैं। चाय चौपाल, चौक चौराहा पर दर्शक दीर्घा में श्रोता बनकर रह रहे हैं। इसका अर्थ कतई नहीं है कि वे बिहार को पीछे धकेलने वाली ताकतों का साथ देंगे। यह हो सकता है कि भूमिहार ब्राह्मणों की निराशा एवं निष्क्रियता से 2019 के चुनाव में बिहार में विकास विरोधी ताकतों को कुछ सीटें बढ़ जाए  लेकिन इससे उनको भविष्य में कोई लाभ नहीं मिलने वाला है क्योंकि यह निराशा एवं नाराजगी अस्थाई है।

लालू प्रसाद ने नरेंद्र मोदी  सरकार को  घेरने के लिए  भूमिहार जाति के एक सदस्य को अपना मोहरा बनाया है। जेएनयू कैंपस में भारत के टुकड़े करने के नारे लगाने वाले  गैंग के समर्थक सदस्य के रूप में जब बेगूसराय का कन्हैया कुमार चर्चा में आया तो लालु प्रसाद ने अपने घर बुलाकर अपने चरणों में झुका कर उसे भी ठगने का काम किया। वामपंथी विचारधारा के लोग ईश्वर की सत्ता में भी विश्वास नहीं रखते हैं वह अपने साथी को भी दोनों हाथ जोड़कर  प्रणाम नहीं करते बल्कि एक हाथ से मुट्ठी बांधकर लाल सलाम बोलते हैं। वामपंथी  विचारधारा की बात कहने वाले  युवा को अपने चरणों में झुकाने वाले लालु प्रसाद की बुद्धि को दाद देनी होगी । कन्हैया कुमार कोई विचारधारा को मानने वाला नहीं है वरना कुछ पाने के लिए लालु प्रसाद के सामने गिरता नहीं । भारत के टुकड़े करने के नारों के समर्थन करने में जेल जाने के बाद कभी भी नहीं कहा कि जेएनयू मे जो नारे लगे हैं वह गलत थे, ऐसा कभी नहीं हो सकता है, बल्कि जेल से निकलने के बाद यह कहा की "बदनाम हुए तो क्या नाम न हुआ"। यह  स्कूल के पुस्तकों में पढ़ाई जाने वाली "अखबार में नाम" कहानी के जैसा है जिसका पात्र अखबार में नाम छपवाने के लिए गाड़ी के नीचे आ जाता है। देश को कमजोर करने वाली ताकतों को साथ देकर चर्चा में रहने से अच्छा है कि एक गांव में छोटा कार्य कर चंद लोगों के बीच चर्चा में रहना । पहले भूमिहार ब्राह्मण लोग जिस प्रकार अपने राजनीतिक एवं सामाजिक दुश्मन को कमजोर करने के लिए जिन लोगों को महत्व देकर गाली दिलवाते थे, आज वही काम कन्हैया से करवाया जा रहा है। कन्हैया को भूमिहार ब्राह्मण लोग ही गाली देकर चर्चा में लाया था, जिसके बाद उसे अब विकास विरोधी लोग नरेंद्र मोदी को कमजोर करने के लिए उपयोग कर रहे हैं। गरीबी एवं आभाव ही आतंकवाद का कारण है जिससे लड़कर नया भारत बनेगा जहां हिंसा, द्वेष एवं नफरत के लिए कोई जगह नहीं होगी। गरीबी एवं आभाव से लड़ने के लिए नरेंद्र मोदी से लड़ने की जरूरत नहीं है बल्कि नरेंद्र मोदी के साथ गरीबी एवं आभाव से लड़ना जरूरी है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गांव गरीब एवं किसानों के जीवन में बदलाव लाने के लिए कार्य कर रहे हैं जिसका परिणाम भी दिखाई दे रहा है। सरकार की सीमाएं हैं, सिर्फ सरकार के बल पर सब कुछ करना संभव नहीं है। सरकार का काम है मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराना तथा विकास का मार्ग बनाना। विकास के लिए राज्य के लोगों को ही आगे आना होगा । सरकार और समाज दोनों के सहयोग से ही विकास होगा।

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