Saturday 30 April 2016

उपेंद्र राय ने सीईओ और एडिटर इन चीफ पद से इस्तीफा दिया

जब मालिक पैसे नहीं देगा तो सीईओ और एडिटर इन चीफ क्या कर लेगा. लंबे समय के जद्दोजहद के बाद उपेंद्र राय ने इस्तीफा दे दिया. बात वही थी. सुब्रत राय फंड रिलीज नहीं कर रहे थे और कर्मचारियों की सेलरी की डिमांड बढ़ती जा रही थी. ऐसे में रोज रोज के किच किच से तंग आकर उपेंद्र राय ने ग्रुप एडिटर इन चीफ और ग्रुप सीईओ के दोनों पदों से इस्तीफा दे दिया है. सहारा के उच्च पदों पर आसीन लोगों ने इस खबर को कनफर्म किया है. यह भी बताया जा रहा है कि अभिजीत सरकार को अब सहारा मीडियाा की भी पूरी जिम्मेदारी दे दी गई है.
पूर्वी यूपी के जिला गाजीपुर के रहने वाले उपेंद्र राय ने सहारा समूह में बहुत छोटे पद से शुरुआत की थी और पूरे ग्रुप को आगे बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई. उनकी कमर्ठता और निष्ठा को देखते हुए सहारा प्रबंधन लगातार उन्हें बड़ी जिम्मेदारियां देता गया. उपेंद्र राय ने पूरी लायल्टी और डेडीकेशन के साथ सहारा समूह को अपने योगदान से काफी बड़ा बनाने में भरपूर योगदान दिया. बाद में किन्हीं मुद्दों को लेकर सहारा प्रबंधन से उपेंद्र राय का विवाद हुआ तो वो इस्तीफा देकर स्टार न्यूज चले गए. ऐसा कम होता है जब सहारा में काम किया कोई वरिष्ठ कर्मी किसी दूसरे ग्रुप में बड़े पद पर जाए. उपेंद्र राय ने दिल्ली और मुंबई में रहकर स्टार न्यूज के लिए जमकर काम किया.
उपेंद्र राय की मेहनत और लगन को देखते हुए, साथ ही पुराने विवादों को निराधार व मनगढ़ंत पाते हुए सहारा प्रबंधन ने उपेंद्र राय के सहारा में कार्यकाल के दौरान कर्तव्यनिष्ठ इतिहास के मद्देनजर उन्हें एक बार फिर सहारा में ससम्मान वापसी कराई. उन्हें मीडिया हेड का पद दिया गया. लेकिन फिर किन्हीं आंतरिक उपद्रवों के चलते उपेंद्र राय को सहारा से साइडलाइन कर दिया गया. ऐसे में उपेंद्र राय ने अपनी मेधा और क्षमता के बल पर जी न्यूज में शीर्षस्थ पद पर ज्वाइन कर सेवा देने की शुरुआत की. कुछ दिनों बाद एक बार फिर सहारा प्रबंधन उपेंद्र राय के शरणागत हुआ और उन्हें ग्रुप सीईओ और एडिटर इन चीफ बनाकर सहारा के मुश्किल दिनों में वापसी कराई. लेकिन सहारा प्रबंधन जिन शर्तों और वादों के जरिए उपेंद्र राय को संस्थान में बड़े पद पर वापस लाया, उन वादों को निभाने में विफल हुआ. सहारा समूह अपने ही कर्मचारियों को सेलरी दे पाने में असफल होता रहा. ऐसे में उपेंद्र राय ने आज एक बार फिर से अपना इस्तीफा प्रबंधन को सौंप दिया है. 
माना जा रहा है कि सहारा प्रबंधन अब सिर्फ वादों और भरोसों के जरिए सहारा कर्मियों को अपने साथ जोड़े रखना चाहता है. लेकिन जब तक सहारा कर्मियों को तनख्वाह न दी जाएगी, तब तक वो कैसे सहारा की सेवा कर पाएंगे. ऐसे में अब बड़ा सवाल सहारा कर्मियों के भविष्य का है. क्या सहारा की गाड़ी अब पूरी तरह डगमगा गई है और पूरी ताकत सिर्फ व सिर्फ सहारा श्री सुब्रत राय को छुड़ाने में लगा दिया है, भले ही सहारा कर्मियों का घर बार चौपट होता रहे. कहा जा रहा है कि आने वाले दिन सहारा समूह के लिए बेहद मुश्किल भरे दिन साबित होने वाले हैं. देखना है कि नए मीडिया हेड अभिजीत सरकार इस मुश्किल वक्त को कैसे हैंडल कर पाते हैं.

Monday 18 April 2016

गाजीपुर के शेर : बाबू हरि नारायण सिंह ( ग्राम - कुंडेसर )

(दो घूंसे और एक लात में ढेर हो गया नरभक्षी)

शेर को मारकर फरीद खान से शेरशाह बनने वाले का इतिहास सबको पता है लेकिन करइल के एक ऐसे ही शख्स के बारे में शायद कुछ ही लोगों को पता हो। फरीद खान ने तो तलवार से शेर पर वार किया था लेकिन इस बहादुर नौजवान ने घूंसे और लात से ही एक आदमखोर शेर को ढेर कर दिया था।

आप में से बहुत लोगों को ये बात कपोल कल्पना लग सकती है। लेकिन ब्रिटिश जर्नलिस्ट ‘मार्कूस ट्रोवर’ ने अपनी पुस्तक ‘दि लास्ट रेसलर्स’ में इस घटना पर कई पन्ने रंगे हैं। ट्रोवर ने अपनी किताब के रिसर्च में भारत, मंगोलिया, नाइजीरिया और ब्राजील में सात साल बिताने के बाद प्रामाणिक जानकारियां इकट्ठा कीं। ट्रोवर के मुताबिक सन 1880 में इस भारतीय पहलवान ने निहत्थे ही एक शेर को मार डाला। इस दिलेर पहलवान का नाम था हरिनारायण सिंह। उत्तर प्रदेश में गाजीपुर जिले के कुंडेसर गांव के रहने वाले हरिनारायण सिंह पिंडदान के लिए नाई और पुरोहित को साथ लेकर गया जा रहे थे। रास्ता घने जंगलों से होकर जाता था। कुछ दूर जाने के बाद ही अंग्रेज सिपाहियों ने आगे जाने से मना किया लेकिन हरिनारायण सिंह नहीं माने। वो अपनी जोखिम पर आगे बढ़े। नाई और पुरोहित जी को उन्होंने अपने पीछे चलने को कहा। थोड़ी दूर जाने के बाद ही शेर की दहाड़ सुनाई दी। हरी बाबू ने पुरोहित और नाई को फौरन पेड़ पर चढ़ जाने को कहा और खुद उस दिशा में आगे बढ़े जिधर से दहाड़ सुनाई दी थी। उनको शेर को तलाशने में ज्यादा देर नहीं हुई वो बिल्कुल सामने आ गया। ये शेर नरभक्षी हो चला था और इंसान को देखते ही पागल हो उठा। शेर ने हाड़ मांस के इंसान पर छलांग लगा दी। लेकन हरी बाबू का जोरदार थप्पड़ खाकर शेर मुंह के बल गिर पड़ा। पेड़ पर चढ़े नाई की चीख निकल गई। उसे लगा कि शेर बाबू साहब को मार डालेगा। उसने रोते-चिल्लाते बाबू साहब से पेड़ पर चढ़कर जान बचाने की गुहार लगाई लेकिन हरी बाबू ने उसे शांत रहने को कहा। इतने में शेर फिर से उठ खड़ा हुआ। लेकिन जब गुस्से में आकर उसने अपने दोनों पंजो से बाबू साहब पर हमला किया तो हरी बाबू ने उसके दोनों बाजू अपने फौलादी पंजो से जकड़ लिए। शेर मुंह फाड़कर जोर से दहाड़ा लेकिन हरि बाबू ने उसकी कमर पर ऐसी जोरदार लात मारी की उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गई। शेर की दहाड़ से जंगल थर्रा उठा। अंग्रेज सिपाही हवा में गोलियां चलाते उस ओर भागे लेकिन उनको करने के लिए कुछ बचा ही नहीं था। शेर जमीन पर पड़ा दम तोड़ रहा था। नमन है अपने ऐसे पुरखों को !!!
मिथक और यथार्थ
कहते हैं बाबू हरिनारायण सिंह जी प्रतिदिन 10,000 दंड और बैठक लगाते थे। साथ ही वो अपने दोनों हाथों से 40 किलो के मुगदर भी भांजते थे, हालांकि ट्रोवर को इन बातों पर संदेह हुआ था। संदेह होना लाजिमी भी था। आज के जमाने में जब सौ-पचास दंड में अच्छे-अच्छे बॉडी बिल्डर्स के पसीने छूट जाते हैं, कौन यकीन करेगा उन बातों पर। सच यही है कि करइल क्षेत्र में बाबू हरिनारायण सिंह के बारे में इतने किस्से हैं कि लोगों को सहज में उनपर यकीन होना संभव भी नहीं। खुद ट्रोवर ने अपनी पुस्तक में लिखा है :

"I never actually saw anyone do 5,000 squats and 5,000 push-ups - bethaks and dands, I'll use the Hindi names - but I have no doubt that the old wrestlers I talked did these kinds of amounts in their heyday. These guys were professionals who just trained and trained all day, and when they weren't training they were eating ghee and drinking huge quantities of milk to build up. A Pehalwan, for example, who I interview in the book, was in his eighties when I met him in his village, and it was said that he would do 5,000 bethaks a day and 3,000 dands. In his day, he was over six foot five and weighed 135kg. Every day, he also wrestled all the wrestlers in his gym, ran five miles, and did exercises with mugdars - wooden clubs - that weighed 40kg each. Someone like Sadho was pushing towards the limits. Bear in mind, incidentally, that the squats/bethaks were/are performed fast, so although it sounds like doing 5,000 of them is going to take you all morning, that wouldn't be the case. The most I heard anyone talk about a wrestler having done was 10,000 of each a day. This was Hari Narayan Singh, the wrestler who killed a lion in the 1880s whose story I tell, and it was his grandson, a doctor, who related how much exercise he did. In this case I doubt it was actually true - I'm sure he did a lot, but probably not that much. These days, wrestlers in India - the ones that I met anyway - tend to just do a few (say, between 50 and 200) dands and bethaks after wrestling sessions. In the past, however, it was considered an essential and important part of training, and wrestlers would get up early, at 4am say, to get on with the exercises.”
बाबू हरिनारायण सिंह को क्षेत्र की जनता प्यार से ‘मल्ल बाबू’ कहती थी। लेकिन एक पहलवान होने के बावजूद वो सिर्फ शौकिया तौर पर कुश्ती लड़ते थे। उन्होंने कुश्ती में करियर नहीं बनाया। लोग बताते हैं कि एक बार वो अखाड़े में रियाज के बाद आम के पेड़ की एक डाल पर बैठे हुए विश्राम कर थे कि तभी दूर इलाके से उनका नाम सुनकर एक पहलवान उनसे हाथ मिलाने के लिए आ पहुंचा। उसने बाबू साहब के सामने अपनी ख्वाहिश रखी। बाबू साहब मुस्कराए और बोले कि आप यहां बैठिए तब तक मैं पसीना पोंछ लूं। पहलवान को पेड़ की डाल पर बिठाकर बाबू साहब जैसे ही उतरे कि वो पहलवान पेड़ की डाल के साथ सात फिट उपर लटक गया। पहलवान फौरन डाल से कूदा और बाबू साहब के पांवों में लिपट गया। उसने कहा कि आपका नाम सुना था, आज देख भी लिया। फिर उसने पूछा कि मेरा वजन भी आपके आस-पास ही है फिर ये क्या माजरा है। तब मल्ल बाबू ने पास में जमीन में गड़ी लकड़ी की एक बल्ली में पैर फंसाकर पेड़ की डाली को पकड़कर झुका लिया और दोबारा उसपर बैठ गए। मल्ल बाबू की इस ताकत के सामने वो पहलवान एक बार फिर नतमस्तक हो गया।
कहते हैं एक बार उनके गांव कुंडेसर में दो सांड आपस में काफी देर से लड़ रहे थे। उन दोनों ने इस लड़ाई में कई लोगों को घायल कर दिया था। गांव के लोग लाठी डंडे से उन्हें भगाने की कोशिश में लगे रहे लेकिन वो दोनों सांड लड़ना छोड़ लोगों पर ही झपट पड़ते थे। मल्ल बाबू को खबर मिली। आकर उन्होंने माजरा देखा और दोनों सांडों की सींगे अलग कर उन्हें दो-दो थप्पड़ लगाया। फौलादी थप्पड़ खाकर दोनों सांड वहां से भाग खड़े हुए।
मल्ल बाबू के बारे में एक दूसरा किस्सा ये है कि एक बार वो अपनी रिश्तेदारी में भागलपुर गए थे। वहां उनके रिश्तेदारों के विरोधी उनकी जमीन को जबरन कब्जा कर रहे थे। मना करने पर वो लोग लठैतों के साथ खेत पर पहुंच गए। मल्ल बाबू भी वहां पर थे। समझाने-बुझाने के बावजूद उनमें से एक लंपट किस्म के नौजवान ने मल्ल बाबू की कदकाठी देखकर बोला कि "ये अखाड़ा नहीं है पहलवान, लाठियां पड़ेंगी तो सब समझ में आ जाएगा लेकिन निहत्थे हो इसलिए जान बख्श दे रहे हैं"। इस पर मल्ल बाबू ने पास में लगी बंसवार (बांस के झुरमुट) से एक झटके में एक मोटा बांस उखाड़ लिया और आगे बढ़े। फिर क्या था जो जहां खड़ा था वहीं से भाग खड़ा हुआ।