Friday 26 October 2018

धौलानी भूमिहार ब्राह्मण परिचय @विभास चंद्र

#धौलानी भूमिहार ब्राह्मण परिचय :

धौलानी अर्थात धौलपुर,राजस्थान के वासी।
धौलपुर के काश्यप गोत्रिय गौर ब्राहमण जो कश्मीर से श्रीगंगानगर के आसपास तक के निवासी थे।
पश्चीमोत्तर भारत पर लगातार यवनों,शकों,हुणों के आक्रमण के बाद काश्यप गोत्रिय ब्राह्मणों ने कान्यकुब्ज क्षेत्र के सुरक्षित क्षेत्र की ओर पलायन कर अपनी शैव परंपरा को बचाये रखा। कान्यकुब्ज क्षेत्र में वाजपेयी यज्ञ किया गया। जिसमें यज्ञ भाग के रूप में भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्र से आये काश्यप गोत्रिय ब्राम्हणों जिन्हें कान्यकुब्ज के ब्राह्मणों ने वाम शाखा का अंग घोषित किया,उन्हें कीकट(बिहार) के मगध क्षेत्र(पटना के आसपास) में यज्ञभूमि सौंपी। क्योंकि इस क्षेत्र में बहुत पहले से ही काश्यप गोत्रिय ब्राह्मणों का आश्रम हुआ करता था। उसी परंपरा का पालन करते हुये वाजपेयी काश्यप ब्राह्मण ब्रम्हदेव भट्ट को मगधक्षेत्र में यज्ञभूमि आश्रम बनाने के लिए प्रदान की गयी। हलांकि इनका अपने पुर्वजों की भूमि से आना जाना लगा रहा।ये हमेशा भ्रमणशील रहे।
उसी वंश में धवलदेव ठाकुर का जन्म हुआ ।उनके पुत्र हुये गणेश ठाकुर ।
इनके तीन पुत्र हुये -
श्री गंगा राय,श्री गंभीर राय और श्री महेश राय।
श्री गंगा राय की मुलाकात अकबर से शिवनार के गंगा किनारे इमली के वृक्ष के पास हुआ । अकबर उस समय अपने शत्रु दाउद खां का पीछा करते हुये थकामांदा मुंगेर से लौट रहा था। गंगा राय ने अकबर को इमली का पन्ना बनाकर पिलाया। किन्तु, अकबर ने शंकावश कि इमली के पन्ने में जहर तो नहीं है,यह सोचकर गंगा राय को गिरफ्तार कर आगरा लेकर चला गया। जब यह बात राजा मान सिंह को पता लगा कि एक धौलपुर के वाशिंदे ब्राह्मण को शंका पर गिरफ्तार कर लिया है,तब मानसिंह ने गंगा राय को एक युक्ति लगाकर निकलवा लिया। साथ ही पन्ना पिलाने के एवज में गंगा राय को तीन परगने - ग्यासपुर,ईब्राहिमपुर और इस्माईलपुर की जमींदारी भी दिलवा दी। इसके बाद राजा मानसिंह ने बैकठपुर के शिवमंदिर में स्वयं सुबा ए बंगाल-बिहार की सुबेदार रहते
गंगा राय को "रायचौधरी" की उपाधी प्रदान की।
रायचौधरी गंगा राय ने साम्यागढ को अपनी गढी बनायी और गंभीर राय को शिवनार का हिस्सा दिया गया और छोटे भाई महेश राय को लक्खीसराय के नदवां की मिलकीयत मिली।
"धौलानी भूमिहार ब्राह्मणों" को लोकभाषा में "धौरानी बाभन" कहा जाता है।
इस समुदाय का इतिहास कश्मीर से बिहार,बंगाल,उड़ीसा तक विस्तृत रूप से फैला हुआ है।
यह समुदाय अपने परोपकार, सहृदयता और लगन के लिए जाना जाता है।
धौलानी समुदाय हमेशा से ही कमजोर वर्ग के हित हेतु प्रयत्नशील रहा है। जमींदारी मिलने के बावजूद यह समुदाय कभी भी अहम् को अपने पास फटकने नहीं दिया। बौद्धिक होकर भी कभी ज्ञान का अभिमान नहीं पाला और वीर होकर भी अपना ब्रम्हणत्व नहीं खोया।
आज भी धौरानी क्षेत्र के ब्राह्मण और गैर ब्राह्मण में अलगाव की भावना नहीं पायी जाती है। सबसे बड़ी बात धौरानी बाभन भौतिकवाद की भेड़चाल में नहीं पड़ता।
जितनी जरूरत ,उतना ही लेने की प्रकृति धौरानी बाभन में रही है।
लोगों का हित और सम्मान धौरानी बाभन की कुल परंपरा रही है।

Tuesday 23 October 2018

बिहार भूमिहार और नरसंहार @अभिषेक पराशर

ब्राह्मण मामलों के विशेषज्ञ यह कह रहे हैं कि बिहार में सबसे ज्यादा दलितों और पिछड़ों का नरसंहार भूमिहारों ने किया है और इसलिए यह जरूरी है कि इस जाति से जब कोई बुद्धिजीवी नेता निकले, तो उसकी जिम्मेदारी ‘’भूमिहार-ब्राह्मणों’’ को ‘’अहिंसक और सभ्य’’ बनाने की होनी चाहिए. वह कह रहे हैं कि इस जाति में समाज सुधार आंदोलन चलाने की जरूरत  है.
दोनों ही बात रखते हुए वह एक बुनियादी गलती कर रहे हैं, जो वह अक्सर करते हैं. पहला जिस सेना का जिक्र किया जा रहा है, उसमें केवल भूमिहार शामिल नहीं थे. दूसरा इस सेना को पूरे समुदाय से जोड़ देने का सामान्यीकरण एक साजिश है. रणवीर सेना का प्रभाव बिहार के एक हिस्से में सीमित रहा. राज्य के अन्य हिस्सों में उसका पासंग भर भी कोई असर नहीं हुआ.
इस पूरे विमर्श में सबसे अहम हिस्सा कथित सामाजिक न्याय की राजनीति के चैंपियन लालू यादव के राजनीतिक मॉडल का रहा है, जिस पर कोई विमर्श नहीं किया जाता. बिहार में सबसे ज्यादा नरसंहार इन्हीं के कार्यकाल में हुए. और इस बात को मजबूती के साथ कहा जा सकता है कि लालू यादव ने जानबूझकर सेना को नरसंहार की खुली छूट दी. सेना को लालू यादव के कार्यकाल में बढ़ाया गया ताकि लालू अपनी राजनीतिक आधार को मजबूत कर सकें. लालू की राजनीति के लिए एक ऐसी ताकत का दुश्मन के तौर पर होना जरूरी था और रणवीर सेना ने लालू को वहीं मौका दिया. सेना की उत्पत्ति का कारण अलग था, लेकिन उसके प्रभाव को लालू यादव ने जानबूझकर बढने दिया. सेना लालू की राजनीति की संजीवनी था.

Monday 22 October 2018

बिहार केसरी श्री कृष्ण सिंह @अभिषेक पराशर

बिहार के इतिहास में जिन दो मुख्यमंत्रियों का नाम हमेशा ही याद रखा जाएगा, उनमें दूसरे नीतीश कुमार और पहले श्रीकृष्ण सिंह होंगे. श्री बाबू जाति से भूमिहार थे और उन्होंने जिस बिहार का न केवल सपना देखा बल्कि उसकी नींव भी रखी, और जिसका जगन्नाथ मिश्रा और लालू यादव जैसे मुख्यमंत्रियों ने नाश कर दिया. बिहार में विध्वंस की राजनीति करने वालों मुख्यमंत्रियों और उनकी जाति का जिक्र किए बिना, श्रीबाबू की कोशिशों को समझना व्यर्थ होगा.
श्रीकृष्ण सिंह ने आधुनिक बिहार की नींव रखी और उसे साकार किया. बिहार कांग्रेस में श्री बाबू और अनुग्रह नारायण सिंह की जोड़ी का जलवा था. इसलिए नहीं कि दोनों सवर्ण थे. बल्कि श्रीबाबू का विजन आधुनिक बिहार के निर्माण का था. बिहार के सामाजिक बदलाव में जमींदारी प्रथा और छूआ छूत सबसे बड़ी बाधा थी.
(लालू यादव ने जमींदारी प्रथा खत्म होने के बाद भूमि सुधार को कभी हाथ नहीं लगाया, लेकिन उसके नाम पर अपनी राजनीति को स्थापित किया और यह काम भूमिहारों को विलेन बनाए बिना नहीं किया जा सकता था.)
उन्होंने दोनों पर एक साथ प्रहार किया. तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के साथ उनकी चिट्ठी पत्री में श्रीबाबू साफ-साफ इन मुद्दों पर बात करते हैं. इन चिट्ठियों में श्रीबाबू केंद्र-राज्य संबंध, सबके लिए शिक्षा जैसे मुद्दों पर अपनी राय रखते हैं, जिस पर नेहरू सहमत होते हैं. (अब यह चिट्ठी किताब के रूप में संकलित हो चुकी है.) जब श्रीबाबू बिहार में दलितों को मंदिर  में प्रवेश दिला रहे थे और जमींदारी प्रथा पर चोट कर रहे थे, तब समाज उनका साथ दे रहा था. जमींदारों ने इसका प्रतिकार किया, लेकिन वह जमींदार समुदाय के तौर पर था, न कि जातीय गोलबंदी के तौर पर. सामाजिक बदलावों के मामले में भूमिहार समुदाय श्रीबाबू के साथ था.
इसी दौरान नेहरू ने पंचवर्षीय योजना का खाका तैयार किया और पहली योजना में प्राथमिक क्षेत्रों विशेषकर कृषि को वरीयता दी गई. 1990-2005 या फिर उसके बाद के बिहार की स्थिति देखने के बाद आपके लिए विश्वास करना मुश्किल होगा लेकिन बिहार पहली पंचवर्षीय योजना में सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करने वाला राज्य था. यह सिंह का ही व्यक्तित्व था कि दूसरी योजना के दौरान जब प्राथमिकता बदली तो वह बिहार में बरौनी ऑयल रिफाइनरी, बोकारो स्टील प्लांट, सिंदरी खाद कारखाना समेत दर्जन भर से अधिक भारी उद्योगों को बिहार में स्थापित कराया, जिसमें लालू जी ने सामाजिक न्याय की राजनीति के दौरान एक-एक कर पलीता लगाया. आधुनिक बिहार की यात्रा श्रीबाबू के विजन और प्रगतिशील भूमिहार समुदाय के प्रगतिशील आंदोलन से होती है. श्रीबाबू की हैसियत बिहार के स्टेट्समैन की होनी चाहिए, जिन्होंने नेहरू के समानांतर वैसे समय में राज्य के विकास की नींव रखी, जब सब कुछ शून्य था. श्रीकृ्ष्ण सिंह, सच्चे मायनों में भारत रत्न के हकदार और बिहारी अस्मिता के प्रकाश पुंज हैं. (2)

बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री एवं आधुनिक बिहार के निर्माता डॉ श्रीकृष्ण सिंह

आज बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री एवं आधुनिक बिहार के निर्माता डॉ श्रीकृष्ण सिंह का 131 वी जयंती है देश के इस सपूत ने विकास की गंगा बहाई थी और उनके समय मे बिहार देश में नंबर एक का राज्य हुआ करता था।एक वो नेता थे जिन्होंने चीनी मिल,जुट मिल , जैसी कई फैक्टरियों की लाइन लगा दी थी ,कई व्यवसायिक क्लस्टर की स्थापना की उनके समय मे बिहारी होना गर्व का विषय था,लोग कभी रोजगार के लिए पलायन नही करते थे कुछ प्रमुख उपलब्धि इस महान विभूति की       -बिहार देश का 50% हॉर्टिकल्चर उत्पादन करता था       -बिहार देश का 25% चीनी का उत्पादन करता था।         -इनके नेतृत्व में 29 % राइस और व्हीट का उत्पादन अकेला बिहार करता था ।
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-आजाद भारत की पहली रिफाइनरी, IOCL,बरौनी

-एशिया का सबसे बड़ा इंजीनियरिंग कारखाना HEC, हटिया (रांची)

-भारत का सबसे बड़ा स्टील प्लांट, SAIL बोकारो

-गंगा पर प्रथम एवं एकमात्र रेल पुल (राजेंद्र सेतु , मोकामा)

-एशिया का सबसे बड़ा रेल यार्ड , गढ़हरा

-बिहार ,भागलपुर,रांची विश्वविद्यालय

-रांची वेटनरी कॉलेज

-लोक रंगशाला , रविन्द्र भवन पटना

-डालमियानगर इंडस्ट्रीज

- देवघर मंदिर में दलितों का प्रवेश

#एक_झलक ......

-दामोदर वैली कारपोरेशन

-मैथन ,कोशी डैम

-कोशी, गंडक, कमला,चानन,करेह इत्यादि नदी घाटी परियोजनाएं

-देश में जमींदारी उन्मूलन कानून बनाने वाला पहला राज्य बिहार बना

-पतरातू,बरौनी थर्मल पॉवर प्लांट

-NH -28,30,31 इत्यादि

-बरौनी डेयरी

-बरौनी (देवना) आद्योगिक छेत्र

-पूसा एवं सबौर एग्रीकल्चर कॉलेज

-नेतरहाट विद्यालय

-A N Sinha institute of social studies, patna

-भारत का पहला खाद कारखाना सिन्दरी एवं बरौनी फ़र्टिलाइज़र इत्यादि .....

Sunday 21 October 2018

जब मोरारजी ने तारकेश्वरी से पूछा, तुम लिपस्टिक लगाती हो, कीमती कपड़े पहनती हो? @सुरेन्द्र किशोर

तारकेश्वरी सिन्हा ने एक बार कहा था कि ‘रात के अंधेरे में भी मोरारजी के कमरे में जाकर कोई जवान और सुंदर महिला सुरक्षित वापस लौट कर आ सकती है 

वर्ष 1957 के आम चुनाव होने वाले थे. कांग्रेस के केंद्रीय प्रेक्षक बन कर मोरारजी देसाई पटना पहुंचे थे. गांधीवादी मोरारजी अन्य बातों के अलावा उम्मीदवारों के पहनावे के बारे में भी कड़ाई से पूछते थे. सन 1952 में सांसद चुनी जा चुकीं तारकेश्वरी सिन्हा एक बार फिर उम्मीदवार थीं. मोरार देसाई ने उनसे पूछा कि ‘तुम लिपस्टिक लगाती हो, कीमती कपड़े पहनती हो?’
यह सुनकर तारकेश्वरी जी को गुस्सा आ गया. उन्होंने कहा कि ‘हमारे यहां चूडि़यां पहनना अपात्रता नहीं बल्कि क्वालिफिकेशन माना जाता है. आप जो शाहहूश की बंडी पहने हैं, इसकी कीमत से मेरी 6 कीमती साड़ियां आ सकती हैं. उसके बाद तारकेश्वरी सिन्हा ने जवाहरलाल नेहरू को चिट्ठी लिखी कि आप कैसे-कैसे प्रेक्षक भेजते हैं?
खैर यह तो पहली मुलाकात थी. चुनाव के बाद नेहरू जी ने एक दिन संसद में नयी मंत्री तारकेश्वरी का परिचय कराते हुए कहा कि ‘ये इकाॅनोमिक अफेयर की मंत्री हैं.’ इस पर फिरोज गांधी ने उठकर तपाक से सवाल किया, ‘सर, यह क्या बात है! जहां कहीं अफेयर की बात चलती है, स्त्री अवश्य होती है.’
तारकेश्वरी सिन्हा ने पद्मा सचदेव से अपने खट्ठे-मीठे अनुभव साझा किए 
इसी तरह की टीका-टिप्पणियों, छींटाकशी और अफवाहों के बीच पुरूष प्रधान राजनीति की उबड़-खाबड़ जमीन में तारकेश्वरी सिन्हा ने शान से दशकों बिताए. उन दिनों #MeeToo का तो जमाना था नहीं. पर महिला कार्यकर्ताओं और नेताओं की राह आसान भी नहीं थी. 80 के दशक में तारकेश्वरी सिन्हा ने पद्मा सचदेव के साथ अपने तरह-तरह के खट्ठे-मीठे अनुभव साझा किए थे.
Tarkeshwari Sinha
तारकेश्वरी सिन्हा ने 1960 में केंद्रीय वित्त मंत्री की डिप्टी के रूप में भी काम किया था (फोटो: फेसबुक से साभार)
दिवंगत श्रीमती सिन्हा ने कहा था कि ‘सबसे बड़ी बात यह रही कि मेरे परिवार ने मुझे पूरा सपोर्ट किया. हां, राजनीति की व्यस्तता में बच्चे अवश्य उपेक्षित हुए.’ बता दें कि तारकेश्वरी सिन्हा 1952, 1957, 1962 और 1967 में बिहार से लोकसभा की सदस्य रहीं. बाद में उन्होंने कई चुनाव लड़े, पर कभी सफलता नहीं मिली.
तारकेश्वरी सिन्हा हिन्दी और अंग्रेजी में धारा प्रवाह बोल सकती थीं. सैकड़ों शेर-ओ-शायरी उनकी जुबान पर रहती थीं. उन्हें बहस में शायद ही कोई हरा पाता था. वो पलट कर माकूल जवाब देने में माहिर थीं. पद्मा सचदेव ने एक दिन तारकेश्वरी जी से पूछा, संसद में आपके बड़े चर्चे रहते थे. इनमें से कुछ सच भी था? मेरा मतलब है कि कभी बहुत अच्छा लगा क्या? तारकेश्वरी जी ने जवाब दिया, ‘मैंने आसपास जिरिह बख्तर (लोहे का पहनावा) पहन रखा था. फिर भी लोहिया जी बड़े अच्छे लगते थे. बड़े शाइस्ता (उम्दा) आदमी थे. छेड़ते बहुत थे. हमारे व्यक्तित्व को पूर्णतः भरने में बड़ा हाथ था उनका.
फिरोज के साथ हम अपने-आप को बेहद सुरक्षित समझते थे. उनसे बात कर के अहसास होता था कि मैं भी इंसान हूं. बड़े रसिक व्यक्ति थे. अब ऐसे लोग कहां जो भीतर-बाहर से एकदम स्वच्छ हों. फिरोज भाई ने ही मुझे अहसास दिलाया कि मैं खिलौना नहीं हूं. हम अच्छे दोस्त थे. लोग इंदिरा गांधी के कान भरते रहते थे. एक बार किसी ने कहा कि आप गलतफहमी दूर करवाइए, इंदिरा जी आपकी बड़ी खिलाफ हैं. पर मैंने सोचा कि इसके लिए कोई कारण तो है नहीं. अगर मैं फिरोज भाई से बात करती हूं तो इसमें कौन सी गलतफहमी पैदा हो जाएगी?
इंदिरा गांधी ने कई वर्षों तक तारकेश्वरी सिन्हा को माफ नहीं किया 
हालांकि इंदिरा गांधी ने बाद के कई वर्षों तक तारकेश्वरी सिन्हा को माफ नहीं किया. 1969 में कांग्रेस में हुए महाविभाजन के बाद तारकेश्वरी जी संगठन कांग्रेस में रह गई थीं. इंदिरा जी ने अलग पार्टी बना ली. 1971 के चुनाव में तारकेश्वरी सिन्हा संगठन कांग्रेस की ओर से बाढ़ में ही लोकसभा की उम्मीदवार थीं. उस साल मधु लिमये मुंगेर से लड़ रहे थे.
Indira Gandhi
इंदिरा गांधी
इंदिरा जी ने पटना में मशहूर कांग्रेसी नेता राम लखन सिंह यादव के सामने अपना आंचल फैला दिया. कहा कि हमें मुंगेर और बांका सीट दे दीजिए. उन दिनों राम लखन ही बिहार में यादवों के लगभग एकछत्र नेता थे. इन दोनों चुनाव क्षेत्रों में यादवों की अच्छी-खासी आबादी थी. 1971 में मधु लिमये और तारकेश्वरी सिन्हा चुनाव हार गए. जिन उम्मीदवारों ने उन्हें हराया था, वो दोनों केंद्र में उपमंत्री बन गए थे.
हालांकि बाद में समस्तीपुर लोकसभा उपचुनाव में तारकेश्वरी सिन्हा इंदिरा कांग्रेस की ओर से उम्मीदवार बनी थीं. हालांकि वो हार गईं. कर्पूरी ठाकुर के इस्तीफे से वो सीट खाली हुई थी. मोरारजी देसाई के बारे में तारकेश्वरी सिन्हा ने पद्मा जी को बताया था कि ‘जब मैं मोरारजी भाई की डिप्टी थी तो कामकाज के सिलसिले में उनके पास आना-जाना पड़ता था. वो पंखा नहीं चलाते थे. पर हम जाते तो चलवा देते थे. हमें बहुत मानते थे. एक बडे़ पत्रकार ने लिख दिया कि हमारा उनसे अफेयर चल रहा है. अब बताइए कि अगर कोई पुरूष उनका डिप्टी होता और मिलता-जुलता तो कोई ऐसी बात तो न करता. पर मैं डिप्टी थी और स्त्री भी. यह सब खराब लगता था. चूंकि यह सब अखबारों में आता था. मेरे पति भी यह सब बात सुनते थे, पर वो विश्वास नहीं करते थे.’
Morarji Desai
मोरारजी देसाई
'मोरारजी के कमरे में जाकर सुंदर और जवान महिला सुरक्षित लौट सकती है'
तारकेश्वरी सिन्हा के अनुसार, ‘मोरारजी को देख कर पंडित नेहरू हमेशा कहते थे कि तारकेश्वरी ने मोरारजी को लकड़ी के कुंदे से इंसान बना दिया. तारकेश्वरी सिन्हा ने एक बार कहा था कि ‘रात के अंधेरे में भी मोरारजी के कमरे में जाकर कोई जवान और सुंदर महिला सुरक्षित वापस लौट कर आ सकती है.’

Friday 19 October 2018

भोला सिंह बेगुसराय सांसद

#मैं_डमरुवादक_आगों_का_शोला_हूँ,
#मैं_सदा_जीवित_हूँ_हाँ_मैं_ही_भोला_हूँ...!!

#बेगूसराय_राजनीति_के_भीष्मपितामह_भोला_बाबू_का_संक्षिप्त_परिचय…

नाम:-भोला सिंह
पिता:- रामप्रताप सिंह
पत्नी:-शावित्री देवी
ग्राम:-दुनही , गढपुरा , बेगूसराय (बिहार)
     
बेगूसराय अनुमंडल का एक छोटा सा गॉव दूनही में 3 जनवरी 1939 ईo को अषाढ पूर्णिमा के दिन राम प्रताप बाबू के यहा दूसरे पुत्र का जन्म हुआ ,बच्चे के भोले सुकुमार मुखरे को देखकर  राम प्रताप बाबू के भाभी ने बच्चे को भोला नाम से पुकारा !!!!!
 
भोला बाबू का प्ररंभिक शिक्षा पिता जी के देखरेख में हुआ , उन्हे उच्च शिक्षा के लिये गाव से 12 km दूर जयमंगला उच्च विध्यालय मंझौल में नामंकन करया गया फ़िर कला विषय से उत्क्र्स्टा से परीक्षा पास करने का जो दौर शुरू हुआ वह स्नातक तक चला l उन्होने 1961ईo मे बी.ए आनर्स की परीक्षा भागलपूर यूनिवसिटी टोपर बनकर पास की एवं पीजी की पढाई पटना यूनिवर्सिटी से की…

1963 ईo मे एक प्रध्यापक की सुरआत  अस्थाई लेक्चर के रुप में टी.एन.बी.कोलेज भागलपुर से की एवं 1966 ईo में उन्होने जी.डी.कोलेज बेगूसराय में एक प्रध्यापक के रुप में कार्य प्ररंभ किये……

बेगूसराय राजनीति मे इनका आगाज साफापुर (बेगूसराय) हुए बांमपंथी और कोंग्रेस के रगड़ के बीच हुआ l साफापुर में दिये गये भाषन की औजस्व ने भोला बाबू को एक नई पहचान दे दी , बेगूसराय की गलयारियो में बस एक नाम भोला  भोला गूंज रहा था   सन 1971 राजनीतिक माहोल गर्म था , चुनव की घोषणा हो चुकी थी ,  उसके बाद स्थानीय लोकल बोर्ड के मैदान में एक बड़ी सभा हुई l  उस महती जनसभा में तृप्तिनारायण सिंह ने बेगूसराय विधानसभा से उम्मीदवार बनाने के लिये भोला बाबू नाम का प्रस्ताव रखा और काँ चन्द्रशेखर जो उसी मंच पर उपस्थित थे उनहोने उस प्रस्ताव को समर्थन कर दिया l लेकिन चुनाव के नजदिक आने पर तस्वीर बदल गयी l बांमदलो का शीर्ष नेतृत्व भोला बाबू को प्रत्याशी बनाने पर सहमत नहीं हुआ l बेगूसराय सदर से निर्दलिय उम्मीदवार के रूप भोला बाबू ने नामंकन किया , चुनाव चिन्ह मिला #उगता_सूरज ,  बांमपंथी के शीर्ष ने भले ही टिकट  से बंचित किया हो लेकिन आम आम बांमपंथी कर्यकरता की सहायता से और कंग्रेस बिरोधी लहर पर सवर होकर भोला बाबू बेगूसराय से निर्दलिय विधायक बन गए l यही से भोला बाबू के  भाग्य का सूर्य उदय  हो गय l उन्होने ने कोग्रेस उम्मीदवार राम नरयण चौधरी को 29000 हजार भोट से हराया…
                लेकिन कहते हैं न  बिना मंघी के नाव किस किनार लगेगा कहा मुसकिल होता हैं भोला बाबू को भी एक निर्दलिय उम्मीदवार के रूप में अपना राजनीति जीवन अंधकार मेय प्रतित हो रहा था l उन्होने ने वामदल जोइन की और 1969 में वामदल के टिकट पर चुनाव लड़े  l लेकिन मात्र  751 भोट से हार गये , "देहात में एक कहावत हैं होनहार बिरवान के होत चिकने पात"  फिर एक बार रोशनी प्रज्वलित हुई और बामदल के टिकट पर 1972 में चुनाव जीत गये , लेकिन अपसी मत भेद के कारन भोला बाबू को 1976 ईo में  बांमदल से त्यागपत देना पड़ा l
       सन 1976 , देश में अपातकाल का दौर चल रहा था , सभी पार्टी काँग्रेस के बिरोध में एक गुट बंध चुकी थी उस बिरोध की लहर में भोला बाबू ने काँग्रेस का हाथ थामा l  1977 बिधानसभा चुनाव , पूरे देश में काँग्रेस बिरोधी लहर  , बिहार में विधानसभा चुनाव में 324 सीट में काँग्रेस मात्र 56 सीट ही जी पाई उसमें एक सीट  अकेला भोला बाबू के बलबूते पर था l ऊस जीत ने तत्कालीन काँग्रेस में भोला बाबू का कद और रुतबा बढा दिया…

एक दौर आया जो भोला बाबू के राजनीति जीवन का अंधकार युग रहा l 1990 के विधानसभा में उन्होने काँग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और पराजीत हुए l पांच साल बाद 1995 ईo में फ़िर कंग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुंनाव लड़े फिर हार का सामना करना परा , दो - दो हार के कारन उनका महत्व और रुत्वा दोनो काँग्रेस  में काफ़ी घटा , 1995 के के हार के बाद भोला बाबू बोले  "वह हार मेरी नहीं लालू की करिश्माई जीत ज्यदा थी" वस्तूत: 1990-99 तक का मेरे जीवन का अंधकार युग था…

       2000 ईo नए  शताव्दी के साथ भोला बाबू भी भाजपा के साथ  जुरे ओर 2000 ईo के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट से एक बार  फ़िर बेगूसराय सदर के विधायक बने l खबरे 13 dec 2002 की हैं  ढाई साल से खली विधान सभा उपअध्यक्ष पद पर बैठेगा कौंन?   इसका पटाक्षेपन  रावड़ी देवी ने कर दिया उन्होंने लालू जी कि उपस्थिति में संसदीय कार्य मंत्री रामचन्द्र पूर्वे को कह कर भोला बाबू के नाम को विधानसभा उपअध्यक्ष पद पर प्रस्ताबित  करने  अनुमोदन किया  और भोला बाबू बिहार विधानसभा के प्रमोटेड स्पीकर हो गये…
   फिर 2005 ईo में  भाजपा के टिकट पर  विधायक बने  और 2008 में केंद्र नेत्वव के हस्तक्षेप के बाद नाटकिय ढग से  नगर विकाश मंत्री बनाया गया l इनके मंत्री पद के एक साल कार्यकाल में ही बेगूसराय नगरनिगम  बना l
आठ बार विधान सभा पहुचने वाले  भोला बाबू को देश कि राजनीति में कदम रखने का  का मन था ,बेगूसराय से सांसद बनने का इरादा लेकर चले भोला बाबू को पार्टी ने इन्हे नवादा से भाजपा उम्मीदवार के रुप में उतर ,  लेकिन पहला इमतिहान ही बिहार के बाहुबाली सूरजभान सिंह के साथ थोरा कठिन था ? लेकिन समय और काल दोनो  फ़िर भोला बाबू के साथ था, उन्होने सूरजभान जैसे वाहुवली को चारो खाने चित कर  नवादा में एन.डी.ए. का पताखा लहराया …

मन मे अभिलाषा थी लोकतंत्र के मंदिर में दिनकर की मिट्टी का प्रतिनिधित्व करु और ईस अभिलाषा को पूरी करने में बेगूसराय गौरवशाली जनता ने पुरा मदद किया और वो सन् 2014 लोकसभा चुनाव में शानदार जीत के साथ दिल्ली पहुच गाये,

आज सिटिंग सांसद रह्ते हूए ही इस दुनिया को अलविदा कह गये,
डूब गया राष्ट्रकवि के मिट्टी का एक चमकता सितारा , थम गई एक कर्तव्यनिष्ठ ,करुणामयी ओजस्वी तेज आवाज, सचमूच राजनिति ने आज एक बहुमूल्य कोहिनूर खोया , ललाते सूरज की जब प्राची के क्षितिज पर अस्त हो रही थी , ठीक उसी वक्त दिनकर की  मिट्टी का एक  राजनितिक पारखी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में मौत की छायावाद में डूब रहा था..

Monday 8 October 2018

आलोक जी! आप भूमिहार हैं ?

आलोक जी! आप भूमिहार हैं ?

ये एक ऐसा सवाल है जो घूम फिर कर कभी कमेंट में,कभी इनबॉक्स में तो कभी दोस्त परिचित के माध्यम से मेरे पास आ ही जाता है,मुझे पहली बार भूमिहार होने का पता तब चला जब स्कूल में एक दोस्त का बीस रुपया उधार लौटाने गया,पैसे लेते ही दोस्त बोला-'यार आलोक!तुम कहीं से लगते नहीं हो की भूमिहार हो! मैं पूछा क्यों तो बताया कि -'यार कैसे भूमिहार हो जो टाइम पे पैसे लौटा दिये', 🤔 उस दिन उसकी ये बात नहीं समझ आयी लेकिन फिर बाद में इसका मतलब पता चल गया,
चुकी भूमिहारों ने राय,पांडेय,तिवारी,सिंह,ठाकुर,त्यागी जैसे इतने सर नेम लगा लिए हैं कि लोगों को इससे भारी कन्फ्यूजन हो जाती है पहचानने में,इसी भरम में 'पांडेय' सर नेम की वजह से एक चौबे जी मुझे ब्राम्हण समझ बैठें और लगें भूमिहारों की आलोचना करने,मैं चुप चाप सुनता रहा,वो बोलते रहें-'आलोक जी! समझ जाइये की सबसे मेहीं(शातिर) लोग भूमिहारों में ही पाये जाते हैं,ये लोग पहले कलम मांगेंगे,फिर साइकिल,फिर पैसा और उसके बाद घर-दुआर लूट लेंगे और आपके दोस्त भी बने रहेंगे,' मुझे बहुत हँसी आ रही थी लेकिन न हँसने के लिए मजबूर था,मैं समझ गया था कि कोई भूमिहार लड़का इनको बढ़िया से छुआया(चुना लगाया ) है,फिर उन्होंने मुझसे कहा  की अगली बार मेरे घर कथा कहने आइयेगा पाण्डेय जी,मैं भी उन्हें हाँ कह दिया ये सोचकर कि अब आगे जो होगा देखा जाएगा,
कॉलेज़ के दिनों में घरवालों के दबाव की वजह से फेसबुक पर सिर्फ भूमिहार लड़कियां ढूंढा करता था,'Pooja rai,ballia','Nisha rai ghazipur' और 'Richa rai banaras' करके खूब सर्च मारता था, फिर उनकी प्रोफाइल्स में छंटनी करता था,जिन लड़कियों की प्रोफाइल पिक में गुलाब के फूल में चाकू घुसाकर शायरी लिखी हुई थी या जो अतिसंस्कारी बनती थीं,उस टाइप की प्रोफाइल्स इग्नोर कर देता था,ऐसी लड़की ढूंढता था जो अपने तरफ की भी हो और बाहर निकलकर पढ़ाई कर रही हो,थोड़ा ग्लोबल एक्सपोज़र हो उसका,
उसके बाद हर दिन कमसे कम बीस लड़कियों को रिक्वेस्ट भेजता था,दो एक्सेप्ट करती थीं,उनमें से एक 'Hi' का रिप्लाई करती थी और बताती थी कि उसका ऑलरेडी ब्वॉयफ्रेंड है,फिर कुछ दिनों ऐसा करता रहा और असफलता हाथ लगने के बाद ये कारोबार छोड़ दिया,
फिर एक दिन ऐसे ही सुबह उठ कर देखा तो मुझे फेसबुक के किसी ग्रुप में भूमिहार समाज का मीडिया प्रभारी बना दिया गया था,रातो रात मुझे इतनी बड़ी सफलता इससे पहले कभी नहीं मिली थी,और फिर जब 'सिंटू जी असली भूमिहार' की फ्रेंड रिक्वेस्ट आयी तब जाना कि ये समाज अब मुझे पूरी तरह से अपना चुका है,अब कोई पूछता है कि आलोक जी! आप भूमिहार हैं ? तो कहता हूँ कि -'हाँ हूँ लेकिन नहीं हूँ'
फिर वो पूछते है कि क्यों तो जौन का ये शेर तोड़ मरोड़ कर सुना देता हूँ -

ज़िन्दगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा भूमिहारी में

चलिये अब जा रहा हूँ कथा याद करने,चौबे जी के घर सुनाना जो है।

Alok Pandey