Thursday 19 March 2020

महामानव बाबू लंगट सिंह और उनके परिवार @विकास कुमार

महामानव बाबू लंगट सिंह
और उनके परिवार का
समाज को योगदान
जीवन परिचय,,,
हाजीपुर मुजफ्फरपुर रेल खण्ड के सराय स्टेशन से 5 की मी पश्चिम वैशाली जिले के धरहरा ग्राम के गोउनाइत् मूल के भूमिहार ब्राह्मण किसान बाबू बिहारी सिंह के पुत्र के रूप में लंगट सिंह का जन्म सन 1850 के अश्विन माह में हुआ। इनके दादा उजियार सिंह पढ़े लिखे किसान थे ।गांव में कोई स्कुल नही होने की वजह से इनकी शिक्षा प्राइमरी तक हुई ।15-16वर्ष में हीं इनकी शादी हो गई।
लंगट सिंह के परिवार को कोई ज्यादा भूमि नही थी जिस वजह से लंगट सिंह आजीविका के लिये समस्तीपुर आ गए जहाँ समस्तीपुर दरभंगा रेल लाइन का काम चल रहता वहाँ इनको रेल पटरी के बगल में टेलीफोन लाइन में लाइन मैन का काम मिल गया।रेल लाइन का काम कर रहे अंग्रेज अभियंता ग्रीयर विल्सन इनके काम के लगन से प्रभावित होकर इनको मजदूरों का सुपरवाइजर बना दिया और लंगट सिंह ग्रीयर साहव के साथ दरभंगा में रहने लगे।ग्रीयर साहव की पत्नी की बहन मुजफ्फरपुर रहती थी जिसके पति जेम्स विलियम विल्सन मुजफ्फरपुर के निलहे जमींदार थे। उन दिनों मुजफ्फरपुर दरभंगा टेलीफोन से ज़ुरा हुआ नही था जिस वजह से ग्रीयर साहव की पत्नी का जरूरी पत्र जिसमें ग्रीयर साहब की पत्नी की बहन‌ के संतानोत्पत्ति की खबर लेकर लंगट सिंह पैदल मुजफ्फरपुर आये वह भी बाढ़ के समय में और 18 घण्टे में जवाव लेकर लौट आये जिससे ग्रीयर साहव की पत्नी लंगट सिंह को काफी मायने लगी और लंगट सिंह को अंग्रेजी लिखना बोलना सिखाई और ग्रीयर साहव से पैरवी कर दरभंगा नरकटियागंज रेल लाइन निर्माण में ठेकेदारी दिलवा दी और लंगट सिंह मजदूर से ठीकेदार हो गए। रेल लाइन निर्माण के क्रम में ट्राली से जाते समय लंगट सिंह का ट्राली मालगाड़ी से टकरा गया जिसके चलते इनको अपना एक पैर गवाना पड़ा ।लेकिन लंगट सिंह ने हर नही मणि और न अंग्रेज ग्रियरसह्व ने लंगट बाबु का साथ छोड़ा।ठीकेदारी के काम में इनके लड़के श्यामानन्द प्रसाद सिंह उर्फ आनन्द बाबू सहयोग देने लगे। रेल की ठीकेदारी से लंगट सिंह ने काफी रुपया कमाया ।गांव में बहुत सी जमीन और जमींदारी खरीद और अपने गांव में भव्य मकान बनाने शुरू किया ।
कलकत्ता प्रवास ,,,
दरभंगा से ग्रीयर साहव कलकत्ता महा नगरनिगम के अभियंता बनकर कलकत्ता आ गए तब ग्रीयर दम्पति के अनुरोध पर लंगट सिंह भी अपने पुत्र आनन्द बाबु के साथ 1880 के लगभग कलकत्ता आ गए और कलकत्ता महा नगरनिगम में ठीकेदारी करने लगे ।ठीकेदारी और काम में ईमानदारी के लिये लंगट सिंह का नाम आदर के साथ लिया जाता था। मैक डोनाल्ड बोर्डिंग हॉउस के निर्माण के दौरान लंगट सिंह का पंडित मदन मोहन मालवीय से सम्पर्क हुआ।मालवीयजी के अलावे वहाँ स्वमी दयानन्द सरस्वती,रामकृष्ण परमहंस, ईश्वरचंद विद्या सागर आशुतोष बनर्जी से सम्पर्क हुआ।इन महापुरुषों के सम्पर्क में आने के बाद लंगट सिंह का झुकाव भारतीय स्वतन्त्रा आंदोलन की ओर हो गया।लंगट सिंह स्वदेशी के समर्थक हो गए।कलकत्ता में स्थापित प्रथम स्वदेसी बिक्री केंद्र स्वदेसी स्टोर्स बंग कॉटन मिल्स के लंगट सिंह भी एक निर्देशक थे लंगट सिंह ने मुजफ्फरपुर में भी पहला स्वदेसी तिरहुत स्टोर्स खुलबाया।1890 के अस पास लंगट सिंह को मुजफ्फरपुर जिला परिषद के अंदर भी बारे बारे कार्यो का ठीक मिलना शुरू हो गया।ठीके का सारा काम उनके पुत्र देखते आए और ठीकेदारी से बाबु लंगट सिंह और उनके पुत्र ने काफी धन कमाया और मुजफ्फरपुर का जो आज सुतापट्टी है वहां से कल्याणी तक लंगट सिंह ने करीव 50 बीघा जमीन खरीदी तथा बहुत से मौजे की जमींदारी भी खरीदी।
कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन 1886 ,
कलकत्ता प्रवास के दौरान मदन मोहन मालवीय और अन्य विद्वानों के सानिध्य में लंगट सिंह ने देशदुनिया का ज्ञान अर्जित किया और अपना समय समाज सेवा में देने लगे और लंगट सिंह ने कांग्रेस के कलकत्ता महाधिवेशन में भाग लिया।
1895 भूमिहार ब्राह्मण महासभा बनारस,
मालवीय जी के अनुरोध पर लंगट सिंह भूमिहार ब्राह्मण महासभा में पहलीबार बनारस में सम्मिलित हुई ।कशी नरेश की अध्यक्षता में हुई इस माह सभा में तमकुही नरेश, दरभंगा महाराज, हथुआ महाराज, टेकरी महाराज,माझा स्टेट सहित भूमिहर जमींदार सम्मलित हुए।महासभा में मालवीय जी के प्रयास से बनारस में हिन्दू विश्वविद्यालय खोलने का प्रस्ताव पास हुआ ।सभी राज्यों ने चन्दा देने की बात कही लेकिन जब चन्दा के रूप में लंगट सिंह ने एक लाख टका की अपनी बोरी रखी तो सभी चकित हो गए की एक बैशाखी से चलनेवाला साधारण व्यक्ति इतना बड़ा चन्दा दे सकता है तब मालवीयजी ने लंगट सिंह का सभमे परिचय करवाया ।उक्त महासभा में लंगट सिंह को काफी सम्मान मिला, सभा में ही लंगट सिंह को मुज़फ़्फ़रपुर में भी कॉलेज खोलने का विचार आयाऔर लंगट सिंह ने इसी उद्देश्य से मुजफ्फरपुर में भूमिहार ब्राह्मणों की सभा बुलाने का कशी नरेश से आग्रह किया जिसे सभा ने स्वीकार किया।
1899 भूमिहार ब्राह्मण महासभा मुज़फ़्फ़रपुर,
बाबु लंगट सिंह के प्रयास से जनवरी 1899में भूमिहार ब्राह्मण सभा का मुजफ्फरपुर मेंअधिवेशन हुआ जिसमें खाशी नरेश महाराज प्रभुनारायन सिंह, दरभंगा महाराज, तमकुही नरेश, हथुआ महाराज, ,टेकरी नरेश, माझा स्टेट के अलावे मुजफ्फरपुर के आस पास के सभी जमींदार और विद्वत जन सम्मलित हुए।महासभा में लंगट सिंह द्वारा मुजफ्फरपुर में डिग्री कॉलेज खोलने के प्रस्ताव को महासभा द्वारा पास किया गयाऔर कॉलेज निर्माण के लिये सभी ने चन्दा देना स्वीकार किया।महासभा की समाप्ति के बाद हथुआ महाराज ओ दरभंगा महाराज ने मुज़फ़्फ़रपुर में कॉलेज खोले जाने को लेकर बाबु लंगट सिंह को सहयोग नही दिया क्योंकि दरभंगा महाराज दरभंगा में कॉलेज खोलने चाहते थे जवकि हथुआ महाराज छपरा में जिस वजह से लंगट सिंह को परेशानी होने लगी तब लंगट सिंह ने मुजफ्फरपुर के सभी जमींदारों की मुजफ्फरपुर में बैठक बुलाई जिसमे सभी ने मुजफ्फरपुर में हाई स्कुल के साथ कॉलेज खोलने का प्रस्ताव दिया क्योंकि मुजफ्फरपुर में जो जिला स्कुल था उसमें गरीव वच्चो का एडमिशन नही हो पाता थाइस बैठक में हाई स्कूल और कॉलेज खोलने और उसका खर्च और संचालन का जिम्मेवारी उठानेवाले एक 22 सदस्यों की प्रबन्ध समिति गठित की गई जिसमे बाबू लंगट सिंह के अलावे शिवहर नरेश शिवराज नन्दन सिंह,हरदी के जमींदार बाबु कृष्ण नारायण सिंह,जैतपुर स्टेट के रघुनाथ दास,,यदुनन्दन शाही,महंथ प्रमेश्वरनारायन,महंथद्वारिका नाथ,योगेंद्रनारायन सिंह थे।इसी बैठक में बाबु लंगट सिंह ने स्कुल और कॉलेज खोलने के लिये अपनी सरैयागंज वाली 13 एकर जमीन दिया ।
भूमिहार ब्राह्मण कॉलेजिएट स्कुल और भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज की स्थापना ,,
बाबु लंगट सिंह के नेतृत्व में गठित प्रबन्ध समिति के सदस्यों द्वारा 3 जुलाई 1899को सरैयागंज में बाबु लंगट सिंह द्वारा दी गई भूमि13 एकर भूखण्ड में भूमिहार ब्राह्मण कॉलेजिएट स्कुल और भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज की नींव रखते हुए शुभारम्भ किया गयाऔर 2 माह के अंदर ही छात्रों के पढ़ने के लिये कमरा तैयार हो गया और शिक्षकों की व्यवस्था कर पढ़ाई चालू हो गई ।
कॉलेज का कोलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बन्धन ,
बाबु लंगट सिंह के प्रयास से सन1900 में ही कॉलेज को प्री डिग्री कॉलेज के रूप में मान्यता मिल गई ओ बाद में लंगट सिंह के मित्र और सहयोगी ग्रीयर साहब के सहयोग से कॉलेज को डिग्री तक मान्यता मिल गई।बाबु लंगट सिंह को जीवन में आगे बढ़ाने का श्रेय ग्रीयर साहव का रहा और उन्होंने कॉलेज स्थापित करने में लंगट सिंह को काफी मद्दत की जिस वजह से बाबु लंगट सिंह ने कॉलेज के नाम के आगे ग्रीयर कानाम जोर दिया और कॉलेज का नाम ग्रीयर भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज हो गया। सन1906 में बाबु लंगट सिंह कॉंग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में भाग लेने गए जहाँ उनकी मुलाकात बाबु राजेन्द्र प्रसाद से हुई और लंगट सिंह ने राजेन्द्र प्रसाद को कॉलेज में पढ़ने के लिये राजी कर लिया और राजेंद्र प्रसाद सन 1908 मेप्रोफेसर के रूप में कॉलेज में आ गए।सन1909 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि कॉलेज निरीक्षण के लिये मुजफ्फरपुर आया और विश्वविद्यालय प्रतिनिधि ने एक ही कैम्पस मे स्कुल और कॉलेज और छोटे छोटे कमरों में छात्रों की पढ़ाई की व्यवस्था पर भड़क गया और प्रबन्ध समिति को धमकी दिया की कॉलेज के लिये अलग जमीन और भवन की व्यवस्था नही हुई तो कॉलेज की मान्यता खत्म हो जायेगी जिसके बाद बाबु लंगट सिंह और प्रबन्ध समिति के सदस्यों ने खबरा के जमींदार के सहयोग से दमुचक और कलमबाग चौक के बीच 22 एकर जमीन खरीद किया और इस भूमि में 1911 से कॉलेज केलिये मकान बनना शुरूहुआ इसी बीच15 अप्रैल 1912 को महामानव लंगट सिंह का स्वर्गवास हो गया उनकी मृत्यु के बाद लगा की कॉलेज का काम ठप्प हो जायेगा लेकिन लंगट बाबु के पुत्र अनन्द बाबु ने अपने पिता द्वारा शुरू किये गए इस कॉलेज के भवन का कार्य पुरा करवाया और कॉलेज अपने नये भवन में 1915 में आ गया और कॉलेज का नाम ग्रीयर भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज से लंगट सिंह कॉलेज हो गया और पटना विश्वविधालय के गठन के बाद लंगट सिंह कॉलेज 1917 में पटना विश्वविद्यालय से सम्बद्ध हो गया ।
बाबु लंगट सिंह के सम्बन्ध में समाज में यह भ्रान्ति है कि वे अनपढ़ थे।है यह सही है कि वे किसी स्कुल कॉलेज में नही पढ़े ।वचपन में वे सिर्फ प्राइमरी तक पढ़ना लिखना शिख सके लेकिन कार्य केदौरान अपने स्वअध्ययन के बल पर अंग्रेजी,बंगला, और हिंदी का अध्ययन किया ।यदि लंगट बाबु अनपढ़ होते तो कलकत्ता के विद्वतजन और मालवीयजी या अंग्रेज अधिकारी से उनका सम्पर्क होना मुश्किल था।बाबु लंगट सिंह को 7 दिसम्बर 1910 में हुई इलाहबाद के कॉंग्रेस अधिवेशन में मुजफ्फरपुर का प्रतिनिधि निर्वाचित किया गया इलाहाबाद कुम्भ में धर्म संसद द्वारा बाबु लंगट सिंह को बिहार रत्न से सम्मानित किया गया साथ ही इंग्लैंड के राजा द्वारा लंगट बाबु को बिहार का शिक्षा स्तम्भ घोषित किया गया।
बाबु लंगट सिंह का रैनी स्टेट से सम्बन्ध,,,,,
मुजफ्फरपुर जिले का रैनी स्टेट का शाहू परिवार में सबसे धनी घराना था ।कुछ मुकदमो के दौरान लंगट बाबू के परिवार के जमीन सम्बन्ध्ति केवला दस्तावेज 1900 से 1917 के बीच का देखने का मुझे मौका मिला जिसमे कई एक दस्तावेज।लंगट बाबु के लड़के अनन्दा बाबू और रैनी स्टेट के वरिसो के संयुक्त नाम में है ।लोगो ने बताया कि रेल की ठेकेदारीया अन्य जगहों की ठेकेदारी मेंलंगट सिंह को पैसा रैनी स्टेट से मिलता था यानी लंगट बाबु के परिवार का रैनी स्टेट से व्यवसायिक सम्बन्ध था ।
लंगट बाबु के पुत्र अनन्दा बाबू,,
अनन्दा बाबु शुरू से ही अपने पिता की ठीकेदारी का काम देखते थे।उनके पिता का अंग्रेज अधिकारी और गोवर्नर जेनरल तक नाम आदर के साथ लिया जाता था और अनन्दा बाबु का भी उनसे सम्बन्ध अच्छा था।पिता की जिंदगी से ही अनन्दा बाबु कॉलेज का काम देखते आएऔर पिता की मृत्यु के बाद अनन्दा बाबु ने अपने पिता द्वारा शुरू किये गए कॉलेज को भव्य बनाने के उद्देश्य से अपने अंग्रेज मित्र से सम्पर्क किया और इंग्लैंड के ऑक्स्फोर्ड विश्वविद्यालय केवेलियोल कॉलेज के भवन के समान कॉलेज भवन बनाने के लिये प्रयास शुरू किया और वर्तमान में जो लंगट सिंह कॉलेज का भवन है वह 1912 में बनना शुरू हुआ जिसका उद्घाटन 22जुलाई 1922 को राज्य के गोवर्नर द्वारा कियागया और अनन्दा बाबु के प्रयास से कॉलेज को सरकार ने ले लिया।इस तरह अनन्दा बाबु ने अपने पिता द्वारा शुरू कॉलेज को पूर्णता और भभ्यता प्रदान की।अनन्दा बाबु ने अपने गांव में एक है हाई स्कूल के अलावे कई संस्था का निर्माण किया ।अनन्दा बाबु देश के स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारियों को आर्थिक सहयोग दिया गद्दार फणीन्द्र नाथ घोष हत्या में फंसे क्रन्तिकारी बैकुंठ शुक्ल और उनके साथियों को वचाने के लिये प्रिवी कौंसिल तक क़ानूनी खर्चे किये।आज अनन्दा बाबु द्वारा समाज के लिये किया गये उनके कार्यो को लोग भुला चुके हैतथा नई पीढ़ी को उनके बारे में कोई जानकारी भी नही है।
बाबु लंगट सिंह के पौत्र,,
बाबु लंगट सिंह के पौत्र बाबु दिग्विजय नारायण सिंह राजनीतिक सन्त हुए 1930 में कॉंग्रेस से जुड़े और आजादी के बाद सन 1952 से 1980 28 वर्ष तक लगातार मुज़फ़्फ़रपुर और वैशाली से सांसद रहे ।1980 में चुनाव हारने के बाद चुनावी राजनीति से सन्यास ले लिया ।दिग्विजय बाबु ने समाज सेवा में अपने पुरखों की समाप्ति बेच कर लगा दिया ।1952 में बिहार विश्वविद्यालय के लिये करीव 70 बीघा जमीन दान दे दी
बाबु लंगट सिंह के प्रपौत्र,,
बाबू दिग्विजय नारायण सिंह के दो पुत्र अलखनारायन सिंह और प्रगति कुमार का किसी भी राजनितीक दलसे या राजनीती से सम्बन्ध नही है।प्रगति कुमार पटने में डॉक्टर हैं