Sunday 19 August 2018

टिकारी राज सात आना के प्रथम राजा

टिकारी राज सात आना के प्रथम राजा
मोद नारायण सिंह
महाराजा राजा मित्रजित सिंह के लड़के --
1. हित नारायण सिंह,
2. मोद नारायण सिंह,
3. खान बहादुर  खान   ( अल्ला ज़िल्लाई उर्फ़ बरसाती बेगम से ) इनको टिकारी राज का १ आना भाग का सम्पति पहले ही मिल गया था.
तीन लड़कियां ---
1. राजकुमारी राजेश्वरी कुंवर
2. राजकुमारी ....(नाम नहीं मालुम )
3. राजकुमारी शिव रत्न कुंवर
मित्रजित सिंह के दोनों लड़के हित नारायण सिंह और मोद नारायण सिंह अकुशल और अविवेकी थे. दोनों का व्यवहार, बोलचाल और रहन सहन आपस में मेल नहीं खाता था. आये दिन राज परिवार में कलह होते रहता था.
मोद नारायण सिंह योग्यता और राज प्रबंधन में अपने बड़े भाई हित नारायण सिंह से ज्यादा कुशल और व्यावहारिक थे. वे महाराजा मित्रजित सिंह के प्रतिनिधि के रूप में ज्यादा कुशलता  से कार्य करते थे. 
पिता जी के द्वारा मोद नारायण सिंह को टिकारी राज का राजा बनना ---
मित्रजित सिंह ने २४ मई १८१९ को  बक्शीशनामा के द्वारा अपने छोटे पुत्र मोद नारायण सिंह को टिकारी राज की गद्दी सौपी दी थी.
बड़े पुत्र हितनारायण सिंह उक्त बक्शीशनामा के खिलाफ पटना में प्रांतीय कह्चरी में मुकदमा किया और उक्त वाद में अपने पिता और छोटे भाई को पक्षकार बनाया. १३ फरबरी १८२२ को पटना के प्रांतीय कहचरी ने बक्शीशनामा को निरस्त कर दिया.
टिकारी राज का बटवारा ---
अंत में दोनों के व्यवहार से थक हार कर मित्रजित सिंह अपने राज का बटवारा सन १८४० को दोनों पुत्रों के बीच कर दिया. बड़े पुत्र हितनारायण सिंह को बड़े होने के नाते ज्येठांश के रूप में १ आना ज्यादा भाग ९ / १६ भाग यानि नौ आना दिया और छोटे पुत्र मोद नारायण सिंह को ७/१६, सात  आना दिया गया.
टिकारी राज के बटवारा में टिकारी राज नौ आना को टिकारी, दक्षिण बिहार के पहाड़ी भाग, औरंगाबाद स्टेट में ज़मीन और गया शहर में काफी ज़मीन दिया गया था. इस राज की ज्यादतर ज़मीन पथरीला और बंजर थी, जबकि टिकारी राज सात आना को उतर बिहार के मैदानी एवं उपजाऊ ज़मीन, गया के शहर में ज़मीन, टिकारी किला के चारों ओर उपजाऊ और अन्य जगह का ज़मीन मिला था. जिससे टिकारी राज सात आना का राजस्व टिकारी राज नौ आना से ज्यादा आता था.
टिकारी राज सात आना की गद्दी पर बैठना-
०१.०१.१८४० को मोद नारायण सिंह टिकारी राज से कट कर बने नए टिकारी राज सात आना के गद्दी पर बैठे. सन १८४५ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से उन्हें महाराजा की उपाधि और खिल्लत प्रदान की गयी.
महाराजा मोद नारायण सिंह का जन्म ---
मित्रजित सिंह के छोटे लड़के मोद हित नारायण सिंह का जन्म १८०४  इसवी में हुआ था.
युवा अवस्था में चंचलता ---
यह युवा अवस्था में काफी शोख, चंचल और हिम्मती थे. इनके बारें में कहा जाता है की इनके साथ ८-१० युवा दोस्तों का दल था. सभी लोगों के पास अच्छे नस्ल के घोड़े थे. ये अपने दोस्तों के साथ रात में करीब १०-१२ के बीच निकल कर अपने राज से १००-१०० किलो मीटर दूर जा कर अपने दुश्मनों से मारपीट जैसे अप्रिय वारदात करके लौट जाते थे. 
उनके खिलाफ शिकायत कलेक्टर के पास आने लगा अंत में उनके व्यवहार से काफी परेशान हो कर तत्कालीन गया जिला के प्रभारी कलेक्टर थॉमस लॉ टिकारी राज आये और उनके बारें में काफी छानबीन किये लेकिन उनके खिलाफ कोई साबुत नहीं मिला. अंत में थक हार कर कलेक्टर ने उनको रात में निगरानी रखने के लिए टिकारी राज के चारो तरफ पहरा बैठा दिया था. उस दिन भी रात में उन्होंने अपने दोस्तों के साथ निकल कर अप्रिय घटना के अंजाम देते हुए अहले सुबह आकर अपने बिस्तर पर सो गए थे. उधर घटना की जानकारी मिलते ही कलेक्टर का आदमी सुबह में उनके पास आया तो उनको विस्तर पर गहरी नींद में सोते हुए पाया था और उन पर लगा आरोप गलत पाया गया.
सात आना किला को दुर्ग के रूप में बनाने का प्रयास -
महाराजा मोद नारायण सिंह को बटवारा में टिकारी राज से सटे उत्तर में बड़े मैदान से आच्छादित छोटा सा किला परिसर मिला था. वह अपने किला परिसर को दुर्ग नुमा बनाना चाहते थे.
कहा जाता है की उनको पाश्चात्य संस्कृति से बहुत लगाव था, वे एक बार विदेश घुमने के लिए लंदन गए हुए थे, वहां बने हुए मकान इनको बहुत भा गया था, वह वहां से लौट कर टिकारी राज में उसी तरह के रूप अपने किला परिसर को विस्तार करने का फैसला किया. इसके लिए अपने सात आना सफील से सटे रकवा से मिटटी काट कर, सफील पर मिटटी भरवा कर land scapping करके, उसके ऊपर बहु मंजिला ईमारत बनाने कार्य शुरू किया था. इसी बीच उनकी मृत्यु हो गयी और उसके बाद यह कार्य अधुरा रह गया.
१८५७ का स्वतंत्रता आन्दोलन ---
गया के तत्कालीन कलेक्टर एलंजो मनी लिखते है की वे शेरघाटी में विद्रोहियों को कुचने के करवाई में लगे हुए थे की १० जुलाई १९५७ को पटना प्रमंडल के आयुक्त विलियम टेलर का महत्वपूर्ण पत्र उनके पास आया, उसमें उन्होंने लिखा था की टिकारी राज सात आना के राजा मोद नारायण सिंह ने किले के चारों ओर करीब २०० तोपों लगा रखी है. आप तुरंत वहां एक गुप्तचर को भेजिए और गुप्तचर आ कर पुष्टि करें तो आप सिख और अँगरेज़ सेना को लेकर रातों रात प्रस्थान करों और टिकारी राज किला पर आक्रमण कर दो. एलंजो मनी ने तुरंत एक जासूस को पता लगाने के लिए टिकारी राज भेजा, जासूस के आने के खबर मिलते ही राजा ने सभी तोपों को वापस बुला लिया था. गुप्तचर गया आकर इस सूचना को गलत बताया.
गया में पकडे गए विद्रोहियों के अस्त्र-शस्त्र टिकारी राज के शस्त्रागार में रखे हुए हथियारों से मेल खाता था. अंत में अंग्रेज अधिकारियों ने टिकारी राज सात आना और नौ आना के सभी  हथियार और किले में रखे गए २०० तोपों को जब्त कर लिया.
पटना के प्रमंडल आयुक्त विलयम टेलर ने उस समय कलकत्ता में तत्कालीन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रांतीय लेफ्टिनेंट गवर्नर फेडेरेक हालीडे को टिकारी राज के विद्रोही क्रिया कलाप पर विस्तृत रूप से पत्र लिखा था. पत्र के अंत में विलियम टेलर ने फेडरेक हालिडे से टिकारी किला को तोप से उडा कर नेस्तनाबूद कर देने का आदेश माँगा. लेकिन लेफ्टिनेंट गवर्नर हालीडे ने टेलर को इसकी इज़ाज़त नहीं दी.विलियम टेलर के इस कार्य में पटना प्रमंडल में तैनात प्रभारी मजिस्ट्रेट जे एम लेविस का भी सहयोग प्राप्त था.
पटना प्रमंडल के आयुक्त विलियम टेलर बहुत ही क्रूर था, उसमें आतंक और हिंसा का भावना था, उनमें ठोस विचार, साहस और वीरता जैसे गुणों से सुसज्जित थे. हर बागी की सजा उसके विचार से मौत हुआ करती थी. उसने पटना में कई विद्रोहियों को फांसी पर लटका दिया था. कई का घर ज़मिन्दरोज कर दिया था. उसके व्यवहार से लेफ्टिनेंट गवर्नर फेडरेक हालिडे बहुत ही खफा रहते थे,
प्रांतीय लेफ्टिनेंट गवर्नर हालिडे फेडरेक सरकारी कार्यो से सम्बंधित कोई स्वंतत्र राय नहीं रखते थे. दोस्तों और मित्रों की राय प्रायः उनकी रहनुमाई किया करती थी. वे शांतिप्रिय थे और दूसरों के बात पर बहुत ध्यान देते थे.
गया के कलेक्टर एलान्जो मनी का स्वाभाव में दिखावा, रंग बदलना और उतावलापन था. उनका दिमाग शीघ्र विचार करने में और उस पर कारवाई करने में असमर्थ था और उनके निर्णय शक्ति प्रायः डगमगाती रहती थी.
उपरोक्त अफसरों में राय में भिन्नता और आपस में एक दुसरे की सामंजस्यता नहीं रहने के कारण टिकारी राज बर्बाद होने से बच गया.
टिकारी राज का तोप का कारखाना ---
उस समय टिकारी राज अंतर्गत दाऊद नगर में टिकारी राज के लिए पीतल के तोप ढाली जाती थी. वहां तोप बनाने की बहुत बड़ा कारखाना था. इसके लिए टिकारी राज ने उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर से बहुत से कारीगरों को दाऊद नगर  बुलवाया था.
०१.०१.१८४० को मोद नारायण सिंह टिकारी राज डाट आना के गद्दी पर बैठे. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से उन्हें महाराजा की उपाधि और खिल्लत प्रदान की गयी.
अपने राज में विद्यालय की स्थापना---
महाराजा मोद नारायण सिंह ने अपने शासन काल में शिक्षा के प्रसार के लिए टिकारी और शेरघाटी में नए विद्यालय की स्थापना की थी.
विवाह ---
मोद नारायण सिंह की पहला विवाह उनकी बारह वर्ष की आयु में, सन १८१६ में बनारस के महाराजा महीप सिंह की पुत्री अश्वमेघ कुंवर के साथ हुई थी. इनकी दूसरी शादी सुनीत कुंवर के साथ हुई थी. रानी सुनीत कुंवर की मृत्यु सन १८७३ इसवी में हो गयी थी. इनकी दोनों रानियाँ से कोई बाल- बच्चे नहीं हुए थे.
महाराजा की बेगम --
महाराजा मोद नारायण सिंह ने तीसरी शादी मुस्लिम महिला बैराती बेगम से हुई है. बैराती बेगम से दो पुत्र और दो पुत्रियाँ हुई थी. उनलोगों के परवरिश के लिए महाराजा मोद नारायण सिंह ने सन १८५१ में बेलखरा महाल से ८९ गाँव और दाखनेर महाल से २१ गांवों को काट कर बेलखरा स्टेट बना कर दिया था. (इनके बारें में अलग से पोस्ट होगा )
उतराधिकारी --
राजा मोद नारायण सिंह की मृत्यु १० सितम्बर १८५७ को हो गयी थी.इनकी मृत्यु के बाद टिकारी राज नौ आना के महाराजा हितनारायण सिंह ने सात आना को अपने राज में मिला लिया था. जिसे गया के जिला कलेक्टर एलंजो मनी उसे अवैध करार दे दिया और टिकारी राज सात आना को पुनः अलग कर दिया.
राजा मोद नारायण सिंह की मृत्यु के बाद इनकी दोनों पत्नियाँ अश्वमेघ कुंवर और सुनीत कुंवर टिकारी राज सात आना के मालकिन हो गयी.
रानी अश्वमेघ कुंवर को अपने पति से सात आना की आधी और रानी सुनीत कुंवर से आधी ज़मींदारी दो अलग अलग अधिकार पत्र ३१ अगस्त १८७२ और ५ अप्रैल १८७३ को मिली थी. इसके बाद रानी अश्वमेघ कुंवर टिकारी राज सात आना की पूर्ण मालकिन हो गयी.
रानी द्वारा गोद लेना --
रानी अश्वमेघ कुंवर ने टिकारी राज परिवार के उतरावां गढ़ के कुंवर चैन सिंह के परपोते और बिशुन सिंह @ विश्राम सिंह के बेटे कुंवर रन बहादुर सिंह को सन १८७३ में गोद ले ली थी.
राज का वारिस ---
रन बहादुर सिंह को सन १८८८ में राजा और खिल्लत की उपाधि मिली.
रानी की मृत्यु-
बड़ी रानी अश्मेघ कुंवर उर्फ़ बौधी रानी की मृत्यु १९ अक्टूबर १८७६ इसवी में हो गयी थी और छोटी रानी सुनीत कुंवर की मृत्यु ३० नवम्बर १८७२ इसवी को हो गयी थी.