Monday 26 October 2015

UPENDRRA RAI / उपेन्द्र राय

Young veteran, as he likes to be called himself, Upendra Rai is the youngest person ever to be Editor of a large media organization like Sahara Media. A career spanning more than a decade, he has covered Business, Politics and Entertainment with utmost sincerity. The journey began with Rashtriya Sahara in Lucknow. While still a learner himself, he had the onerous task of heading Mumbai bureau of Rashtriya Sahara way back in 1999. Star News was his next destination. As part of its launch team, he was actively involved in making of a channel that gave a new meaning to how news is disseminated in the country. He was also part of the launch team of CNBC-Awaaz, the country’s first consumer and business channel. He again came back to Star News and scaled ever greater heights. This young veteran has traveled to the US, the UK, France, Malaysia, Singapore Hong Kong and accompanied Hon’ble Vice President of India to Kuwait to cover important journalistic assignments. He accompanied H.E. The President of India during her visit to UAE & Syria in Nov 2010. He was one of the Editor’s who interacted with Hon’ble Prime Minister Dr. Manmohan Singh in a roundtable conference which was held on 16th February, 2011. He was also part of Media delegation who travelled in June, 2012 with Hon’ble Prime minister to Brazil & Mexico, Tehran in August, 2012 and Bilateral Visit-Cambodia in November, 2012.

CAREER[edit]

• Group Editorial Advisor, Business world Magazine (January,2015 onwards)
• Editor, News Director, Printer and Publisher of Sahara India News Network & Resident head, Sahara India Pariwar (January 2010 to December 2014)—The network has registered a record growth in terms of revenue and viewership and readership.
• Star News (October 2005 to December 2009)—Joined as Principal Correspondent and went on to become a Senior Editor in record two years. Did some path breaking stories related to business, politics and entertainment.
• CNBC Awaaz (September 2004 to September 2005)-One of the key members of the launch team.
• Star India Pvt Ltd (January 2003 to September 2004) - worked as Assignment Producer.
• Sahara India Pariwar (May 1997 to December 2002) - worked as Correspondent.

EDUCATIONAL QUALIFICATION

• Master of Business Administration (2003-2005)--Narsee Monjee Institute of Management, Mumbai, Maharashtra, India
• Bachelor of Art (1997 – 2000)--Lucknow University, Uttar Pradesh, India
• Early education at village Sherpur & Inter College Mohammadabad in Ghazipur, Uttar Pradesh

AWARDS

• Star Achiever Award in 2006
• Star Patrakar Ratna Award in 2007
• Indian Television Award for best reporting among Hindi news channels, 2007
• Lion Gold Awards by Lions Club International, Mumbai, 2008
• Lion Gold Award by Lions Club International, Mumbai, 2009
• Bharosa Patrakar Samman with Javed Akhtar, 2010
• Bhojpuri Ratna Award, 2010
• National Integration Award by Hon’ble Sh. Buta Singh Ji, Hubli-Karnataka, December 2010

Tuesday 20 October 2015

किशोर कुनाल

.. रवीश कुमार ने पटना के महावीर कैंसर संस्‍थान और किशोर कुणाल के कार्यों के बारे में अच्‍छा कार्यक्रम प्रस्‍तुत किया .. 

.. किशोर कुणाल और उनके कार्यों को एक केस स्‍टडी की तरह देखा जाए तो कई महत्‍वपूर्ण बातें सामने अाती हैं .. 

.. मंदिरों में चढ़ावे का नाममात्र हिस्‍सा जनहित के लिए बाहर आता है .. अगर जनता के उस धन का शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य जैसे मूलभूत कार्यों के लिए उपयोग किया जाए तो देश भर में ऐसे संस्‍थानों का बड़ा ताना- बाना खड़ा किया जा सकता है ..

.. धर्मों के लोकहित के कार्य और स्‍टेट की लोकहित की जवाबदेही में एक संगति बैठायी जा सकती है .. जैसे, मंदिरों से समर्थन के मूलधन के आधार पर किशोर कुणाल ने बैंकों से लोन लिया और बहुत कम लागत पर गरीबों को सेवा देकर इकॉनोमी ऑफ स्‍केल के आधार पर लाभ कमाकर बैंकों के लोन वापस किए ..

.. सभी धर्म अपने तरीके से नैतिकता के उत्‍पादन और परोपकार/ सामाजिक कार्य के निष्‍पादन का दावा करते हैं .. धर्मों के बीच लड़ाई इस बात की होती है कि नैतिकता के उत्‍पादन पर सभी ध्‍ार्म अपना- अपना एकाधिकार जताने लगते हैं और दूसरे धर्म वालों को ख्‍ाारिज करते हैं, और ऐसा करने में उस धर्म विशेष का नहीं बल्कि धर्म के मठाधीश का हित ज्‍यादा काम कर रहा होता है .. धर्मों के बीच एकता का एक मॉडल यह हो सकता है कि सभी धर्म मिलकर नैतिकता के उत्‍पादन और परोपकार के निष्‍पादन के लिए न्‍यूनतम साझा विकसित करें और एक मंच पर आएं, और इस संदर्भ में वे स्‍टेट व धर्मनिरपेक्ष परंपराओं से भी एक न्‍यूनतम साझा विकसित करें .. 


( एक धर्मनिरपेक्ष राज्‍य का भी धर्मों के नैतिकता के उत्‍पादन और परोपकार के निष्‍पादन के प्रयासों से कोई अनिवार्य संघर्ष नहीं होता .. धर्मनिरपेक्ष राज्‍य का ध्‍ार्म से संघर्ष तब होता है जब धर्म नैतिकता के उत्‍पादन पर एकाधिकार जताता है और राज्‍य के संवैधानिक आदर्शों से ऊपर अपने आदर्शों को बताता है) .. किशोर कुणाल के कार्यों का मॉडल निश्चित ही एक बहुलतावादी मॉडल है जिसमें सिर्फ अपनी कमीज को सफेद नहीं बताया जा सकता ..

.. उक्‍त प्रकार का कोई भी ईमानदार काम अनिवार्य रूप से प्रातिनिधिकता के सिद्धांत पर विश्‍वास करता है .. महावीर कैंसर संस्‍थान की गवर्निंग बॉडी और विभागों में सायास सभी धर्मों, पिछड़ी जातियों और महिलाओं को अच्‍छा प्रतिनिधित्‍व दिया गया है .. 

जब श्रीबाबू को जेपी ने पत्र लिख कर कहा -‘यू हैव टर्न्ड बिहार इन टू भूमिहार राज।’

लोकनायक जयप्रकाश नारायण और बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ने एक-दूसरे को ‘जातिवादी’ कहा था। भले ही इलजाम के तौर पर नहीं, बल्कि कटाक्ष के रूप में। इनके ये पत्रचार कभी सार्वजनिक नहीं हुए, लेकिन अभिलेखागार में मौजूद हैं। चर्चित संघ विचारक प्रो. राकेश सिन्हा ने उन पत्रों को जनवरी में प्रकाशित हो रही अपनी पुस्तक में शामिल किया है। उनकी यह किताब बिहार की राजनीति के कई अनछुए पहलुओं को उजागर करने के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण में संघ की भूमिका पर केंद्रित है।

भारतीय नीति प्रतिष्ठान के निदेशक एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राकेश सिन्हा पिछले दिनों पुस्तक मेला में भाग लेने पटना आए थे। वहां  उन्होंने कहा कि औद्योगिकीकरण का नहीं होना बिहार के लिए बहुत दुखद रहा है। इसी के कारण प्रदेश में जातिवाद भी जारी है। अब तो जात-पात की समस्या यहां संस्थागत रूप ले चुकी है। पूंजी का यहां प्रवेश हुआ होता तो जातिवाद खत्म हो चुका होता। जेपी ने 1974 में देश भर में इतना बड़ा आंदोलन खड़ा किया, सभी को साथ लेकर चले। उन्होंने कभी जात-पात की राजनीति नहीं की। वैसे ही श्रीबाबू (श्रीकृष्ण सिंह) ने जाति देख कर सरकार नहीं चलाई। जमींदारों के खिलाफ उनका अभियान चला तो सबसे अधिक उनके स्वजातीय ही प्रभावित हुए। वैसे, इन दोनों ने भी एक-दूसरे पर बड़े ही अनोखे अंदाज में जातिवादी होने का आरोप लगाया। श्रीबाबू को जेपी ने पत्र लिखा-‘यू हैव टन्र्ड बिहार इन टू भूमिहार राज।’ जवाब में श्रीबाबू ने उन्हें लिखा-‘यू आर गाइडेड बाई कदमकुआं ब्रेन ट्रस्ट।’

कदमकुआं इलाका उस समय जेपी के स्वजातीयों से भरा था। राजेंद्र बाबू (डॉ. राजेंद्र प्रसाद) भी जातीय सम्मेलनों में जाते थे, लेकिन इन लोगों ने ‘कास्ट’ को कभी अपनी सोच का आधार नहीं बनाया, भले ही ‘कास्ट’ के लोगों ने इन्हें कभी नहीं छोड़ा। दीन दयाल उपाध्याय भी जातिवाद के कट्टर विरोधी थे। 1963 के चुनाव में जौनपुर की सीट से जनसंघ की टिकट उन्हें जातीय समीकरण देखकर दी गई, लेकिन प्रचार में उन्होंने जातीय समीकरण के खिलाफ मुखर होकर आवाज बुलंद की। प्रतिक्रियास्वरूप वे हार गए। तब उन्होंने कहा था-‘मेरी यह हार आगे संघ (आरएसएस) के काम आएगी।’ वाकई आज संघ प्रगतिशील है। बिहार की विडंबना यह भी है कि आपातकाल के ठीक बाद 1977 में औद्योगिकीकरण के जो प्रयास हुए वे 1980 आते-आते समाप्त हो गए। उस दौरान सूबे में पहली बार गैर-वामपंथी ताकतों ने रोजगार, शिक्षा, भ्रष्टाचार जैसे जमीनी मुद्दे उठाए, लेकिन तत्कालीन नेतृत्व ‘अप्रशिक्षित’ था। तत्पश्चात कुछ और नेताओं को भी राजनीति में बड़ा मौका मिला। वे सभी जेपी के शिष्य थे, लेकिन वे भी ‘ट्रेंड’ नहीं थे। ऐसे में वे अपनी-अपनी जाति के नेता बनते गए। बिहार को अभी सिर्फ विकल्प नहीं, एक व्यापक दृष्टि वाले नेतृत्व का विकल्प चाहिए। समाज में बहुत दिनों तक प्रतिक्रयावादी एवं संकीर्ण राजनीति नहीं की जा सकती। जाति आधारित राजनीति के पनपने का एक व्यवहारिक पक्ष यह है कि उसे एक बनी-बनाई जमीन मिल जाती है। एक नेता को अपने समर्थक बनाने में दस साल से अधिक का समय लग जाता है, लेकिन जाति के नाम पर उनके पास हजारों लोग दस घंटे में ही जुट जाते हैं.

राजपूत और भूमिहार

ये राजपूत बिरादरी ये बात भूल जाते हैँ .. जब यादवोँ ने औरँगाबाद मे 57 राजपूतनीयोँ के साथ बलात्कार और नरसँहार किया था तो राजपूत लोग औरँगाबाद छोरकर भाग रहे थे ।
तो इसी भूमिहार समाज ने अपने राजपूत भाई का बदला लिया था .. रणवीर कमाँडर शुशील पाँडे ने एक एक को काट काट के दोस्ती कि एक नयी सौगात दी थी ।
जब आनँद मोहन ने अगरी कि एकजुटता का प्रभार उठाया था तो भूमिहार समाज चट्टान के तरह साथ खरा था ।
जब अगरोँ कि आबरू नीलाम होने लगी थी तो हमारे मुखिया जी ने मोर्चा सँभाला था ।
मैँ अब इस बात को कभी नही दोहराना चाहता कि कितने सीट पर राजपूत साँसद और विधायक भूमिहार वोट के बदौलत बने हैँ ।
हम शर्मिँदा तो तब होतेँ हैँ जब ये राजपूत यादवोँ के साथ भाईचारा भूमिहारोँ पर हावी होने के लिए बनाते है । अब तो ये लोग यादव को गोबार से छत्रिय भी बनाने मे तुले हुए हैँ ..बता दूँ कि भगवान KRISHNA के वँशज यदुवँशी गाँधारी के शाप से कब के खत्म हो गये ! ये तो प्रवासी होयसल यादव हैँ .. जो कि मध्य एशिया के माइगरेँट हैँ .. जिसमे एक भाग गुर्जर ,एक यादव और एक जाट का है ।
बिहार राज्य एक्ट 1956 और सेँट्रल एक्ट 1923 के अनुसार यादव का वर्ण शूद्र है और ये अति पिछरी जाति शामिल है ।
राजद ? राजद ? और राजपूत ? आरा , वैशाली मे राजपूत को 0 टिकट ! कुल 4 टिकट मिले हैँ राजपूत को राजद से !
गोली चले या तलवार लालगँज और एकमा मे भूमिहार सरकार !
छपरा जिला मे बनियापुर मे 70 हजार भूमिहार और एकमा मे 38 हजार भूमिहार ।
एकमा मे जदयू के बाहुबलि धूमल सिँह को पुर्णतः मुस्लिम ओर कुरमी का समर्थन मिल रहा है .. जेप के सँजय राय यादव के कुछ वोट मे सेँधमारी कर रहे लेकिन यादव वोट का एक बरा तबका धूमल के साथ !
भूमिहार वोट पर टिकी धूमल कि किस्मत .. सामने हैँ राजद से कामेश्वर सिँह मुन्ना !
देखते क्या हो ! बनियापुर मे भाजपा के राजपूत केदार सिँह को जीताओ ! और एकमा से धूमल सिँह ।
वोट फाँर धूमल सिँह !
एक बार फिर धूमल सिँह !
वैसे भूमिहार सीट महाराजगँज और गौरियाकोठी सीवान जिले मे आते हैँ ।
बनियापुर के हम नेता भूमिहार वीरेन्द्र ओझा को चुनाव बाद विधान परिषद के अवसर हैँ ।
छपरा जिला मे एक नयी सीट भूमिहार बिरादरी को मिली है । अमनौर से भाजपा के शत्रुघ्न तिवारी उर्फ चोकर बाबा । यहाँ 35 हजार भूमिहार वोट हैँ ..चोकर बाबा 2010 मे निर्दलीय लर काफी वोट लाये थे ।
वोट फाँर चोकर बाबा ।
राय प्रतीक सिँह
अध्य्क्ष ,

श्री कृष्ण सिंह जी ने रामधारी सिंह दिनकर जी को क्या कहा था

अपने बिरादरी के कुछ युवा सदस्यों की तकलीफ (की हमारी बिरादरी के तथाकथित नेता . . . सिरमौर) की जिनसे उम्मीद थी वे काम न आये, को यह बतला दूं की आप बच्चे हैं . . . भले लायक हो गए हों . . . आपने जो आज झेला है वह हमने 1990 में झेला था और आज से ज्यादा दर्दनाक तरह से - और पुराणी कहानियां भी सुन रखी हैं - शायद आपको मालूम हो की श्री कृष्ण सिंह जी ने रामधारी सिंह दिनकर जी को क्या कहा था . . . सीख - (1) जो करना हो अपने बल पर करो (2) अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए - स्वान्तः सुखाय - जितने में संतुष्ट हो जाओ, उतने पर रुक जाओ . . . उससे आगे दुखी हो जाओगे (3) हमारी बिरादरी का कोइ नेता नहीं है - मान लो - अब भी मान जाओ . . . हमारी बिरादरे "हम सबों के" सम्मिलित सहयोग से चलेगी - किसी नेता से कोइ उम्मीद यता उसपर भरोसा णा करें

Monday 19 October 2015

विपुल विजय सिंह

DGP Vipul Vijoy , a 1983 batch IPS officer, Vijoy is originally from Bihar whose father Lalit Vijoy Singh was an IPS officer who joined politics in late 1990s. He contested parliamentary election from Begusarai and won. He went on to become minister of state for defence in late prime minister Chandrashekar's government in 1990.

बिहार : यादव या भूमिहार ! @रविश कुमार

संजय को मैं किशोर उम्र से जानता हूं। दिल्ली में मेरे साथ भी रहा लेकिन कभी उसे जात-पात करते नहीं देखा । खुली सोच वाला और ईमानदारी से काम करने वाला संजय पटना आकर वकालत करने लगा है। अलग-अलग मुद्दों पर उसकी अपनी राय होती है और अगर उसे धक्का न दिया जाए तो अपनी राय बदलने के लिए तैयार भी रहता है। हर बार संजय की राय ही होती है न कि संजय की जाति की।

बिहार चुनाव को लेकर संजय की चिन्ता इतनी है कि कहीं फिर से नब्बे के दशक की तरह रंगदारी शुरू न हो जाए। दुकानें बंद होने लगें और पटना से फिर बाहर न जाना पड़े। संजय की यह राय कई लोगों से मेल खाती है और इसका अपना आधार भी है। संजय को यह आशंका लालू यादव के उस दौर को लेकर है। मैंने जैसे ही यह बात किसी से कही कि ऐसी चिन्ताओं का भी सम्मान किया जाना चाहिए उसने तुरंत जवाब दिया कि भूमिहार है क्या ? हां है लेकिन मैं मान नहीं सकता कि उसकी यह राय जाति के कारण है। लेकिन जिनसे यह बात कही वे मानने के लिए तैयार नहीं थे।

पटना में ही एक मित्र के साथ रिक्शे से जा रहा था। मेरे पूछने पर कहने लगा कि बीजेपी के पास चुनाव लड़ने के लिए इतना पैसा कहां से आ गया। उसका कुछ पैसा हम गरीब लोगों को ही दे देता। प्रधानमंत्री को इतनी रैली करने की क्या जरूरत है। देश कौन चलाएगा। चुनाव जीतना है जीतो लेकिन हिन्दू-मुस्लिम क्यों कराते हो। रिक्शावाला अपनी बात कह ही रहा था तभी मेरे मित्र ने टोक दिया कि आप यादव हैं क्या? उसका जवाब आया जी न मालिक, हम गरीब हैं और दूसर जात है।

संजय और रिक्शेवाले की चिन्ता अपनी अपनी जगह पर जायज़ है। मेरे लिए संजय कभी भूमिहार रहा ही नहीं लेकिन आज उसे भूमिहार कहा जा रहा है। उसकी जाति ही उसकी राय है। उसी तरह रिक्शेवाले को यादव जाति का बना दिया जाता है। इस बात के बावजूद कि संजय की चिन्ता किसी रिक्शेवाले की भी हो सकती है और किसी रिक्शेवाले का सवाल संजय का भी हो सकता है। लेकिन बिहार चुनाव ने हर राय को जाति में बांट दिया है। जो नहीं बंटा है उसे भी बंटा हुआ मान लिया गया है। बिहार चुनाव में राजनीतिक दलों, मीडिया और चर्चाकारों ने भूमिहार और यादव जाति का एक दानवी चित्रण किया है। मुसलमान से तो कोई पूछ भी नहीं रहा। किसी समाजशास्त्री का इन दो जातियों की चुनावी छवि का विश्लेषण करना चाहिए। सब मान कर चल रहे हैं कि वे किसे वोट देंगे जबकि महागठबंधन, हम और लोजपा से कई मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में हैं। इसमें दोनों राजनीतिक पक्षों ने भूमिका निभाई है, इसलिए यही दोषी हैं। क्या ऐसा कभी हो सकता है कि सारे भूमिहार एक जैसे सोचते हों या सारे यादव एक जैसे। लोकसभा चुनाव में तो यह एक जैसे नहीं सोच रहे थे फिर विधानसभा चुनावों में कैसे सोचने लगे? डेढ़ साल पहले क्या वे अपनी जाति भूल गए थे। बिहार चुनाव ने बेहद खतरनाक काम किया है। बीजेपी की रणनीति यादवों को तोड़ने की रही तो राजद की रणनीति भूमिहारों को टारगेट कर यादवों या पिछड़ों को एकजुट करने की रही। पूरे चुनाव के कवरेज में इन्हीं दो खांचों को मजबूत किया जाता रहा। क्या सारे यादव दुकान लूटने वाले होते हैं ? क्या सारे भूमिहार दबंग होते हैं ? क्या सारे भूमिहार रणवीर सेना में शामिल थे या सारे यादव साधु यादव हो गए थे ? सामंती और जातिगत शोषण सच्चाई है लेकिन उनके लिए क्या कोई जगह बची है जो अपनी जात-बिरादरी के भीतर इस सोच से लड़ रहे हैं ? क्या उनकी राय को जाति से जोड़कर हम फिर से उन्हें जाति के खांचे में धकेल नहीं रहे। हमारे राजनीतिक दलों में गजब की क्षमता है। कभी वे सबको हिन्दू-मुसलमान खेमे में गोलबंद कर देते हैं तो कभी अलग-अलग जातियों को बांट देते हैं। बिहार चुनाव ने पूरे जनमत को जाति के फ्रेम में कैद कर दिया है। यादव कहीं नहीं जाएगा, कुशवाहा आधा-आधा हो गया, राजपूत उधर होगा तो भूमिहार इधर ही होगा। यह एक दुखद चुनाव है। जहां हर मत का अपना एक अलग जात है। चश्मे का पावर फिक्स है। इसी आधार पर हार-जीत का विश्लेषण होता रहता है। यह चुनाव चर्चाकारों के लिए जात-पात चुनाव का चुनाव है। जात-पात से आगे किसी ने संजय और उस रिक्शेवाले से बात ही नहीं की।

Friday 16 October 2015

ऑपरेशन भूमिहार

आप' को आगे रखने वाले अब 'जाति' का ज़हर बोने की सुपारी भी ले लिए हैं। ये लोग अब 'आप' की बात भी करेंगे। इसकी शुरुआत आज कुछ इस अंदाज में हुई है कि वे कार्यक्रम 'ऑपरेशन भूमिहार' लेकर आये थे। टीवी न्यूज़ के इतिहास में शायद ही आपने इस स्तर का घटिया और जातिवादी हेडलाइन देखा हो! अगर सच्चाई दिखाने का आपका यही सही तरीका है तो मिस्टर एडिटर जी आप एक प्रोग्राम 'ऑपरेशन मुसलमान' बनाकर दुनिया में मुसलमान समुदाय के अत्याचार को क्यों न दिखा देते ? आप इतने भोले भी नही हैं कि मै आलोचना न करूँ। आप बेहद शातिर हैं और शातिरपना से ही ऐसे हेडलाइन बनाते हैं और एजेंडा सेट करते हैं। मै आपको एक एडिटर कहूँ या एजेंडा सेट करने की सुपारी लेने वाला कांट्रेक्टर कहूँ ?

Wednesday 14 October 2015

ऑपरेशन भूमिहार

एबीपी न्यूज द्वारा एक जाति विशेष को बदनाम कर पूरे बिहार में जहर घोलने की साजिश दुर्भाग्यपूर्ण है | महज कुछ लोगों का फीडबैक लेकर ऐसी घृणापूर्ण हरकत का अंजाम इस चैनल ने दिया है जो साबित करता है कि "महागठबंधन " के द्वारा कितना पैसा इस चैनल को दिया गया होगा |
इस चैनल के एक पत्रकार जो कि मित्र सूची में भी शामिल हैं लिखते हैं ..
"रात आठ बजे देखिए एबीपी न्यूज.. दो बातें साफ हो जाएंगी. पहली कि भूमिहार बिहार में कैसे पिछले 60 साल से लोगों को परेशान कर रहे हैं. दूसरी बात कि पिछड़ों की सियासत करने वाले लालू राज में भी भूमिहारों ने कैसे आतंक मचाया? ऑपरेशन भूमिहार"
आप बिहार के गाँव में खुद जाईये और देखिये कि ये जाति किस कदर से गरीबी और लाचारी की जिन्दगी जी रहा है | आप वहां मिल सकते हैं घर में बुर्जुर्गों से जिनके बेटे-पोते अपनी जमीन को बटाई के भरोसे छोड़कर दिल्ली-मुंबई -हरियाणा - पंजाब में सेक्युरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे हैं |
आप उस बाप से मिलेंगे जिनके बेटे पढाई के लिए घर छोड़ बैठे हैं और हर महीने खेत गिरवी रख कर पैसे भेजते हैं |
आप उस माँ से मिलेंगे जो पर्व-त्यौहार में पकवान तो बनाती है परन्तु खाने वाला आता नहीं |
आप उस गरीब से भी मिलेंगे जिसे बिटिया ब्याहनी है और उसके लिए दहेज़ और भोज-भात देना है ... जमीन बची नहीं और सामाजिक दायित्व सर पर है |
आप उस इन्जिनियर से भी मिलेंगे जिसने जमीन बेचकर 10 लाख में डिग्री हासिल की | बाहर रहकर पढाई भी की और नौकरी का दूर-दूर तक नहीं पता |
आप नब्बे के दशक के ग्रेजुएट बेरोजगारों का भी दर्शन कर सकते हैं |
बिहार के भूमिहारों के गाँव में ऐसी विधवाओं का भी दर्शन हो जाएगा जिसका सुहाग जंगलराज में उजड़ गया |
अनेकों लोगों से मिलेंगे आप |
बहुत ही बढ़िया टूरिस्ट स्पॉट बन गए हैं ये गाँव |
लेकिन एबीपी न्यूज और हमारे फेसबुक मित्र Prakash Singh जी को ये सब नहीं दिखेगा | उन्हें तो बस मसाला चाहिए | इसके बल पर वो किसी भी समाज की इज्जत घुमा-फिरा के स्टोरी और हेडिंग्स तय कर के नीलाम कर सकते हैं |
आज 8 बजे के "खोदा पहाड़-निकली चुहिया" जैसी स्टोरी एक विशेष पार्टी के वोटों को तोड़ने की साजिश के अलावा और कुछ नहीं था |
( प्रकाश सिंह जी की बहुत इज्जत करता हूँ | आशा है कि ऐसी घटिया स्टोरी के दम पर इस भरोसे को वो ना तोड़ेंगे )

ऑपरेशन भूमिहार: बिहार का ये चेहरा बेहद भयानक दिखता है!

बिहार में पहले चरण का चुनाव हो चुका है. दूसरे चरण का मतदान 16 अक्टूबर को है. 16 तारीख का इंतजार जहानाबाद के उन 10 गांव के दलित और पिछड़ी जातियों के लोग भी कर रहे हैं जिन्हें आज तक दबंगों ने कभी वोट डालने नहीं दिया. वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिये गए लोग क्या इस बार वोट दे पाएंगे?

बिहार के जहानाबाद जिले का घोषी विधानसभा क्षेत्र
घोषी के 10 गांव ऐसे हैं जहां आज तक दलित और पिछड़ी जातियों के मतदाताओं को वोट देने नहीं दिया गया. एबीपी न्यूज पहुंचा ऐसे तीन गांवों में जहां आजादी के 67 साल बाद भी दबंगों के डर से अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर पाए ये लोग. क्या इस बार ये अपना वोट दे पाएंगे?

अस्सी साल के दो बुज़ुर्ग, दो अलग अलग गांव के वासी, दो अलग व्यक्ति, दोनों मानों एक हकीकत को जीने को मजबूर. दोनों की उम्र भारतीय गणराज्य से भी ज्यादा, मगर दोनों ने एक बार भी वोट नहीं किया. वोट तो छोडिये, इन्हें ये भी नहीं मालूम के बैलट पेपर या EVM कैसा दिखता है? घोषी विधानसभा क्षेत्र जहां के 10 गांव के निवासी पिछले चार दशकों से भी ज्यादा और कुछ मामलों में आजादी से अब तक ये जीवन जीने को श्रापित हैं.
“प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कई बार इस बात की दुहाई दी है कि 67 साल से देश में विकास नहीं हुआ. हालांकि के वो ये भूल जाते हैं के इसमें NDA के 6 साल और उनके अपने डेढ़ साल शामिल हैं. मगर हम आपको जो दास्तां बताने जा रहे हैं उसमे ये जानने की कोशिश करेंगे के आज़ादी के 67 साल बाद भी कुछ लोग वोट क्यों नहीं दे पाए हैं ? 67 सालों में 10 गांव सिर्फ 2 किलोमीटर का फासला क्यों तय नहीं कर पाए? किसने रोका और उन्हें महरूम किया उनके बुनियादी अधिकारों से. 

घोषी विधानसभा क्षेत्र पर जगदीश शर्मा के परिवार का कब्ज़ा रहा है. वो जगदीश शर्मा जो चारा घोटाले में दोषी पाए गए . वे जगदीश शर्मा जो 2009 से 2014 के बीच जहानाबाद से सांसद भी थे. जिनके बेटे राहुल कुमार अब घोषी से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं और वे इस बार NDA के उम्मीदवार हैं. जीतन राम मांझी के हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा की तरफ से. कुछ लोग जगदीश शर्मा को मौसम विज्ञानी भी कहते हैं. क्योंकि ये अक्सर सत्ता के करीब रहते हैं और यही वजह है कि इनकी विधानसभा के तहत 10 गांवों के लोगों के प्रजातांत्रिक अधिकारों के साथ जो होता रहा उसे सबने नज़रंदाज़ किया. 

हमारी कहानी का आग़ाज़ होता है अल्लालपुर के शिवमंदिर के बाहर बैठे कुछ बुजुर्गों और कुछ युवाओं के साथ. इनमे उम्र का एक लम्बा फासला, मगर सबकी किस्मत एक.

तो अगर इन लोगों को दुसरे गांव के लोग वोट डालने नहीं देते, तो फिर उनके गांव में इसका इंतज़ाम क्यों नहीं किया जाता ? हमने थोडा आगे सफ़र किया तो पाया के यहां एक स्कूल है और इनकी वोटिंग का इंतज़ाम इन्ही के गांव में बाकायदा किया जा सकता है, मगर हैरत है 67 सालों से चली आ रही इस समस्या पर ध्यान किसी का नहीं गया ?

स्कूल के बाहार मुलाक़ात अस्सी साल के बुज़ुर्ग से हुई. आंखों में मानों 80 सावन के दर्द का बोझ, एक उम्मीद जो हरसाल बिखरती चली गयी.

क्या अस्सी साल के बुज़ुर्ग की हसरत इस साल भी अधूरी रह जाएगी? गांव में दाखिल होते ही हमें बच्चे दिखाई दिए . ताश खेलते हुए . इस बात से बेखबर के हालत नहीं बदले तो इनकी भी किस्मत में यही लिखा हुआ है.

अल्लालपुर के गांव की महिलाओं से जब हमने बात की तो मानो सारा गुबार निकल पड़ा. कहती हैं जब मर्दों को वोट नहीं देने दिया जाता तो हमारी क्या बिसात ?

अल्लापुर जैसे गांवों का बुरा सपना यहां ख़तम नहीं होता. इसके बाद जो हमने देखा, उस पर तो विश्वास करना भी मुश्किल था. मगर सबूत आपके सामने है. लिहाजा इससे बचना कैसा ? यहां हमने बिजली के खम्बे देखे मगर तारें नदारद.

परतें धीरे धीरे खुलती जा रही थीं और हर परत से खुलने वाली तस्वीर पहले से ज्यादा बदनुमा. अल्लालपुर से हम बढ़े एक और गांव पाखर बीघा की ओर . हमारी गाडी यहां की धुल से सनी सड़कों पर रूकी तो इस यादव बहुल गांव में भी तस्वीर हैरान करने वाली. यहां हमारी मुलाक़ात एक और अस्सी साल के बुज़ुर्ग से हुई और उनका ग़म भी वही.

यहां मालूम हुआ के हिंसा सिर्फ पोलिंग बूथ पर नहीं, कुछ मामलों में, वोट देने वालों के घर में घुसकर उनको मारा जाता था. और हैरत की बात ये की यह एक यादव बहुल गांव है. और अगर अब भी आपको इस खबर ने नहीं झकझोरा है तो अब हम आपको जो बताने वाले हैं वो अविश्वसनीय मगर सत्य की दास्तां है. घोषी थाणे में हम मिले दो चौकीदारों से. कहने को पुलिस में , मगर इन्हें भी वोट नहीं देने दिया गया.

और यह दास्तां सिर्फ इन दो गांवों या इन चौकीदारों तक सीमित नहीं . ABP न्यूज ने पाया कि कम से दस गांवों की यही दशा है और यह तो सिर्फ एक विधानसभा सीट घोषी का यह हाल है. ABP को स्थानीय सूत्रों से कुछ चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं. हमारे सामने फेहरिस्त थी उन तमाम गांवों की और उनमे बसने वाली जातियों की जिन्हें वोट नहीं देने दिया गया.

1.पत्लापुर पोखर से पासवान

2. होरिल बाघिचा से यादव और विन्द

3. वाजितपुर से यादव और बढई

4. मीरा पैठ से  रवानी और चंद्रवंशी

5. डैडी से मुसहर

6. बना बीघा से भुइया रविदास और रवानी

7. सोनवा से मुसहर

8. नगवा से यादव और पासवान

9. कुर्रे से पासवान और रविदास

10. चिर्री से रविदास मुसहर और यादव

अब आप यह जानना चाहेंगे के आखिर उस गांव का वो पोलिंग बूथ कैसा है जहां इन सबका वोट पड़ता है . धुरियारी गांव दरसल पाखर बीघा गांव से चंद कदमों की दूरी पर है.

मामला संगीन था, लिहाजा हम पहुंचे जहानाबाद के DM मनोज कुमार सिंह के पास जो प्रधानमंत्री मोदी की अगली रैली की तैयारी में मशगूल थे. हमने पुछा उनसे कि पोलिंग बूथ इन लोगों के अपने गांव में क्यों नहीं मुहैया कराया जाता है?

DM मनोज कुमार सिंह ने कहा 'देखिये पोलिंग बूथ कहां हो या कैसे हों. वह सबसे मंत्रणा करके बनाया जाता है, मगर मैं आपको आश्वासन देता हूं कि मेरी निगाह हर गांव के हर घर पर है . और उन्हें वोट देने से कोई नहीं रोक सकता है.'

यह तस्वीर वाकई हताश कर देने वाली है. क्योंकि आज़ादी के 67 साल बाद भी कोई वोट न दे पाए तो हम क्या करें? क्योंकि न सिर्फ हमें अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए बल्कि यह भी देखना होगा के दुसरे इसका इस्तेमाल कर पायें .

प्रत्येक 10 भूमिहारों में नौ ने बीजेपी गठबंधन को मत दिया था @प्रोफ़ेसर संजय कुमार सीएसडीएस

साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान चार सवर्ण जातियों (ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और कायस्थ) ने मोटे तौर पर बीजेपी को वोट दिया.
क़रीब 78 फ़ीसदी सवर्ण मतदाताओं ने बीजेपी और उनके सहयोगियों को मत दिया था.

सबसे बड़ा जातीय ध्रुवीकरण


प्रत्येक 10 भूमिहारों में नौ ने बीजेपी गठबंधन को मत दिया था.
यह बिहार ही नहीं, भारत के चुनावी इतिहास में किसी एक जाति का किसी एक पार्टी के पक्ष में सबसे बड़ा ध्रुवीकरण था.

Image copyrigप्रत्येक 10 भूमिहारों में नौ ने बीजेपी गठबंधन को मत दिया था.यह बिहार ही नहीं, भारत के चुनावी इतिहास में किसी एक जाति का किसी एक पार्टी के पक्ष में सबसे बड़ा ध्रुवीकरण था.

Monday 5 October 2015

ब्रह्मर्षि : चित्पावन

गोपाल यादव ने ब्रह्मर्षि समाज के संदर्भ में ये बातें फेसबुक के एक समूह में लिखीं हैं :

भूमिहारों के मराठी भाई चित्पावनों ने महात्मा गाँधी की हत्या की| चित्पावन हर तरफ़ से महात्मा गाँधी के राजनैतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले, सहयोगी बाल गंगाधर तिलक और हत्यारा नाथूराम गोडसे तीनों ही चित्पावन थे| इसके अलावा महात्मा गाँधी के परम चेले बिनोबा भावे भी चित्पावन!!!!!!! बिनोवा भावे को बिहार के अलावा कोई और जगह ठीक नहीं लगी काम करने के लिए| अरे भाई यहाँ उनके भूमिहार बंधुओं का राज था| बात समझ में आई| भूमिहार को समझना हो तो चित्पावनों को समझो| कभी कभार कुछ पढ़ लिख भी लिया करो :-
http://www.mkgandhi.org/assassin.htm
https://wideawakegentile.wordpress.com/…/jews-killed-mahat…/
https://wideawakegentile.wordpress.com/…/nathuram-godse-th…/
महात्मा गाँधी को मारने का षड्यंत्र रचने वालों में एक दो चमचों को छोड़ कर सभी भूमिहरों के बंधु चित्पावन ब्राह्मण थे| पूरे भारत के देशभक्ति का ठेका चित्पावनों ने ही ले रखा है| बाकी सभी भाई भारत छोड़ कर बाहर चले जाओ वरना ये सभी सबको मार देंगे|

मुकेश कुमार का गोपाल यादव को जवाब :

भाई साहब वैसे तो मैं जातिवादी मिजाज़ का नहीं हूँ लेकिन चूँकि आप एक जाती सिशेष को गलत तरीके से दानव बताने का प्रयास कर रहे हैं इसीलिए कुछ चीजें आपके ध्यान में लाना जरुरी समझता हूँ , आपने लिखा चित्पावन ने ये किया,वो किया और फिर उन्हें भूमिहार से जोड़ दिए,सही भी है चित्पावन भूमिहार ही हैं , आप किसी भूमिहार को महात्मा गाँधी के मारे जाने से जोड़ रहे हैं तो वीर बैकुंठ शुक्ल का भी तो नाम लीजिये जिसने भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने वाले फनिन्द्र्नाथ घोष को बीच दोपहर बेतिया बाज़ार में गोली मार दिया और हँसते हँसते गया जेल में फांसी पर चढ़ गया. नाम लेना है तो सर गणेश दत्त सिंह का नाम लीजिये जिन्होंने अपनी पूरी संपत्ति और जीवन भर की कमाई बिहार के शिक्षा एवं स्वास्थ्य के लिए दान दे दिया. नाम ही लेना है तो स्वामी सह्जन्नद सरस्वती का नाम लीजिये जिन्होंने जमींदारी उन्मूलन के लिए जीवन भर संघर्ष किया और उनके क्रियाकलापों से सबसे ज्यादा यदि किसी को फायदा मिला तो कोयरी,कुर्मी और यादवों एवं अन्य छोटे-मझोले किसानो को ही मिला. उनसे बडा सामजिक न्याय के प्रवर्तक आपको आज के बिहार में कोई नहीं मिलेंगे.लोहिया, नम्बुदरीपाद,जयप्रकाश सब स्वामी जी के चेले थे. यदि नाम ही लेना है तो श्री बाबु का नाम लीजिये जिन्होंने अपने समय में बिहार को पुरे हिंदुस्तान में टॉप पर बना कर रखा, ब्राह्मणों के विरोध के बावजूद देवघर मंदिर में दलितों को घुसाया, नाम ही लेना है तो वीर बसावन सिंह,पंडित यमुना कारजी, यदुनंदन शर्मा,रामब्रिक्ष बेनीपुरी आदि का लीजिये जो ज़मींदार घरानों से आने के बावजूद समाजवाद की लौ पूरे बिहार में फूंकी,आज के सब समाजवादी इनके बाद ही हैं..रामधारी सिंहदिनकर का नाम लीजिये जिन्होंने आजादी के समय अपनी कविताओं के जरिये पूरे भारत को आंदोलित किया.महाराजा चेतसिंहऔर फतेहबहादुर का लीजिये जिन्होंने कभी अंग्रेजों के आगे घुटने नहीं टेके, बनारस,प्रयाग और गया महाराज का नाम लीजिये जिन्होंने हिन्दू धर्म के तीन बड़े स्थलों का संरक्षण किया. ये सभी भूमिहार ही थे, स्वतंत्रता संग्राम से लेकर,साहित्य तक और धर्म से लेकर दर्शन तक फेहरिश्त अभी काफी लम्बी है,समय और जगह कम पड़ जायेगा. कितने भी राजनीती से प्रेरित हों परन्तु इतिहास का तो सही विश्लेषण कीजिये.इनसे ज्यादा योगदान देश और बिहार के लिए किसी और ने किया हो तो भी तथ्य के साथ बताइयेगा.

ऊपर जितने भी उद्धारण दिए हुए हैं ये करोड़ों लोगों को जागृत करने एवं उनके अधिकारों के लिए लड़ने का मामला है ,जितना लिखा हूँ उससे कई गुना उद्धारण और दे सकता हूँ । आप जो भी जानकारी देना चाहते हैं तथ्यों के साथ दें। मुस्लिम और अंग्रेजों के समय में भी इस जाती के लोगों ने हमेशा तलवार ही उठाया ,उसमे कुछ उद्धारान तो ऊपर हैं और अनेक हैं। परशुराम से लेकर सहजानंद ,दिनकर तक इस जाती का इतिहास अतुलनीय है।

घृणा से, राजनीती से या सिर्फ किसी के कहने भर से किसी जाती के संस्कार को बढ़ाया या घटाया नहीं जा सकता। तथ्य तो तथ्य होते हैं,नहीं चाहने वाले को भी मानना पड़ता है।

Friday 2 October 2015

बिहार में इंदु भूषण को साथ लेकर मुलायम सिंह किस तरह की समाजवादी राजनीति करना चाहते हैं |

बार-बार खुद को भाजपाई बताने वाले इंदु भूषण सिंह को भाजपा भी ब्रह्मेश्वर मुखिया का बेटा होने की वजह से अब तक टिकट देने से बचती रही है.
खुद को देश के सबसे बड़ा और समाजवादी नेता मानने वाले और नेताजी के नाम से मशहूर मुलायम सिंह यादव बिहार चुनाव में कुछ नये ही किस्म का समाजवाद फैलाने में लगे हुए हैं. वे यहां जो करने जा रहे हैं वह सामाजिक न्याय की राजनीति की नयी या कहें कि उलटी इबारत लिखने की कोशिश जैसा है.
उन्हें कुछ समय पहले धर्मनिरपेक्ष और सामाजिक न्याय से जुड़ी ताकतों को एक करने का जिम्मा सौंपा गया था. कुछ समय तक उन्होंने इसके लिए प्रयास भी किया. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपनी मुलाकात के बाद वे पहले तो बिहार में महागठबंधन के स्वाभिमान सम्मेलन में नहीं गए और फिर रामगोपाल यादव की भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात के बाद गठबंधन से ही किनारा कर लिया. इस तरह अचानक अलग होने से चर्चाएं चलीं कि आय से अधिक संपत्ति और यादव सिंह के मामले में चल रही सीबीआई जांचों ने उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर कर दिया.
इंदु भूषण सिंह पिछले लोकसभा चुनाव में पाटलीपुत्र से चुनावी मैदान में उतरे थे. तब हल्ला यह हुआ था कि वे लालू प्रसाद यादव के इशारे पर उतरे हैं ताकि उनकी बेटी मीसा भारती की जीत सुनिश्चित कर सकें.
इसके बाद उन्होंने अपने समधी लालू प्रसाद यादव के घोर राजनीतिक दुश्मन पप्पू यादव से हाथ मिला लिया. पप्पू यादव से मिले तो वह भी एक बात रही. फिर उन्होंने अपने बेटे और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को नीतीश-लालू के खिलाफ तीसरा मोर्चा बनाने को भेज दिया. अब वे अपने पोते और लालू प्रसाद यादव के दामाद तेज प्रताप सिंह यादव को ही बिहार में उनके खिलाफ प्रचार करने को भेज रहे हैं. तेज प्रताप मैनपुरी से समाजवादी पार्टी के सांसद हैं.
इसे कुछ लोग सपा द्वारा धर्मनिरपेक्ष समाजवादी ताकतों को भाजपा के सामने कमजोर करने के रूप में देख रहे हैं तो कुछ इसे राजनीति के गुणा-गणित के हिसाब से भी देख-समझ रहे हैं. बाद वालों का मानना है कि यह राजनीति में रोजमर्रा के अभ्यास वाला काम है. जैसे हर नेता अपनी संभावनाओं को देखता है, उसी तरह नेताजी भी अपना गणित देख रहे हैं. लेकिन नेताजी की पार्टी ने अब बिहार में एक बेहद अजीब फैसला लिया है. वहां पप्पू यादव की पार्टी, एनसपी आदि के साथ तीसरा मोर्चा बनाकर लड़ रही सपा ने भोजपुर के तड़ारी विधानसभा क्षेत्र से इंदु भूषण सिंह को टिकट देने का फैसला किया है. हालांकि एक दिन पहले तक खबर थी कि इंदु भूषण अपने संगठन – अखिल भारतीय किसान संगठन – के टिकट पर तड़ारी से चुनाव लड़ने वाले हैं. लेकिन पार्टी सूत्रों के मुताबिक अब यह तय है कि वे सपा के टिकट पर चुनाव यहां  से चुनाव लड़ेंगे.
इंदु भूषण सिंह रणवीर सेना के सुप्रीमो ब्रह्मेश्वर मुखिया के बेटे हैं. उन्हें पिता की मृत्यु के बाद उनकी विरासत का उत्तराधिकारी भी माना जाता है. ‘रणबीर सेना’ बिहार के जमींदारों द्वारा बनाया गया संगठन था जिस पर सैकड़ों दलितों के नरसंहार के आरोप हैं. अभी हाल में कोबरा पोस्ट के खुलासे के बाद यह संगठन एक बार फिर चर्चा में आ चुका है. इसके अनुसार मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा, सीपी ठाकुर और सुशील मोदी जैसे भाजपा के बड़े नेता ‘रणवीर सेना’ की प्रत्यक्ष या परोक्ष तरीके से मदद कर चुके हैं. (पढ़ें – लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार में चंद्रशेखर और यशवंत सिन्हा की भी भूमिका थी?)
कुछ माह पहले भोजपुर में ही कुरमुरी बाजार में छह महादलित महिलाओं के साथ हुए सामूहिक बलात्कार कांड में भी रणवीर सेना से जुड़े एक व्यक्ति का नाम आया था.
कोबरापोस्ट ने अपनी स्टोरी के लिए जस्टिस अमीर दास से भी बात की थी. वे लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार की जांच के लिए बने आयोग के अध्यक्ष थे. जस्टिस दास के मुताबिक भाजपा के कई बड़े नेताओं ने उनकी जांच को प्रभावित करने की कोशिश की थी. कुछ माह पहले भोजपुर में ही कुरमुरी बाजार में छह महादलित महिलाओं के साथ हुए सामूहिक बलात्कार कांड में भी रणवीर सेना से जुड़े एक व्यक्ति का नाम आया था. इसके अलावा भोजपुर इलाके में जब-तब यह संगठन चर्चा में आता ही रहता है.
इंदु भूषण सिंह पिछले लोकसभा चुनाव में पाटलीपुत्र से चुनावी मैदान में उतरे थे. तब हल्ला यह हुआ था कि वे लालू प्रसाद यादव के इशारे पर उतरे हैं ताकि भूमिहार वोटों को रामकृपाल यादव की ओर जाने से रोककर लालू प्रसाद की बेटी मीसा भारती की जीत सुनिश्चित कर सकें. लेकिन अगर ऐसा था इंदुभूषण लालू यादव की आशाओं पर खरा नहीं उतर सके थे. वे न भूमिहारों के वोट काट सके थे, न उनकी वजह से मीसा की जीत ही हो सकी थी. हालांकि इंदु भूषण लोकसभा चुनाव में हमेशा यही कहते रहे कि वे मन से भाजपाई हैं, चुनाव किसी भी तरह से लड़ें.
उन्हीं इंदुभूषण को अब समाजवादी पार्टी ने तड़ारी से मैदान में उतारने जा रही है. इसकी गंभीरता को इस तरह से भी समझा जा सकता है कि बार-बार खुद को भाजपाई बताने वाले इंदु भूषण को खुद भाजपा भी ब्रह्मेश्वर मुखिया का बेटा और उत्तराधिकारी होने की वजह से अब तक टिकट देने से बचती रही है. लेकिन मुलायम सिंह पिछड़ों के खिलाफ माने जाने वाले उन्हीं इंदु भूषण को न जाने किस सोच के साथ अपनी समाजवादी नाव का सवार बना रहे हैं.
कुछ लोगों को लगता है कि उत्तर प्रदेश वाले नेताजी की बिहार में सामाजिक न्याय की राजनीति की यह नयी धारा है तो कुछ लोग कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में ही यह धारा किस दिशा में बह रही है, इस बारे में कहना जरा मुश्किल है.