महावीर त्यागी ने अपनी पुस्तक ‘मेरी कौन सुनेगा ‘मे सरदार बल्लभ भाई पटेल
काँग्रेस के पुराने नेता महावीर त्यागी ने अपनी पुस्तक ‘मेरी कौन सुनेगा ‘मे सरदार बल्लभ भाई पटेल के सीधे सादे जीवन पर प्रकाश डाला है जो आज क हर दल के भोगी नेताओ के लिए शायद अनुकरणीय बने ।त्यागीजी अपनी पुस्तक मे लिखते हैं कि उन्हे पटेलजी के यहाँ जाने की कोई रोक टोक नहीं थी,वे उनके बहुत निकट थे ,एक बार जब वे पटेलजी के घर गए तो उन्होने पाया कि मणि बेन सरदार को दवाई दे रही थी और उन्होने देखा कि मणिबेन(पटेलजी की लड़की ) की साड़ी मे बहुत से पैवंद लगे हुये है।उन्होने ज़ोर से कहा कि मणिबेन तुम तो अपने को बहुत बड़ा आदमी मानती हो ।तुम ऐसे बाप की बेटी हो जिसने साल भर मे चक्रवर्ती अखंड राज्य स्थापित कर दिया जितना न भगवान राम चन्द्र का था ,न कृष्ण का न अशोक का ,न अकबर का और न अंग्रेज़ का ।एक ऐसे बड़े राजो और महाराजों के सरदार की बेटी होकर तुम्हें शर्म नहीं आती ?यह सुन कर मणिबेन मुंह बना बिगड कर कहा कि शर्म उनको आए जो झूठ बोलते हैं ,बेइमानी करते हैं ?मुझे क्यो शर्म आए?।त्यागी ने जबाब दिया कि हमारे देहरे शहर मे निकाल जाओ तो लोग तुम्हारे हाथ मे दो पैसे या इक्कनी रख देंगे ।यह समझ कर कि कोई भिखारिन जा रही है ।तुम्हें शर्म नहीं आती कि धेंगली लगी धोती पहनती हो?। त्यागीजी लिखते हैं कि मैं मज़ाक कर रहा था ।इसे सुन कर
सरदार भी खूब हँसे और कहा कि बाज़ार मे तो बहुत लोग फिरते हैं ।एक –एक आना करके शाम को बहुत रुपया इकट्ठा कर लोगी ।त्यागी जी लिखते है –‘मे तो शर्म से डूब मरा जब डॉ ० सुशीला नायर ने कहा –‘त्यागीजी ,किससे बात कर रहे हैं ?।मणिबेन दिन भर सरदार की सेवा करती है।फिर डायरी लिखती है और फिर नियम से चरखा चलती है , जो सूत बनता है,उसी से सरदार के कुर्ते,धोती बनते हैं ।आपकी तरह सरदार अपना कपड़ा खादी भंडार से थोड़े खरीदते है ।जब सरदार साहिब के कुर्ते –धोती फट जाते है तो उसी से काट छाँट कर मणिबेन अपनी साड़ी और कुर्ता बनाती है ।
त्यागी जी आगे लिखते हैं कि मैं उस देवी के सामने अवाक हो गया,कितनी पवित्र आत्मा है मणिबेन ।उसके पैरे छूने से हम पापी पवित्र हो सकते हैं ।फिर सरदार बोल उठे –‘गरीब आदमी की बेटी है,कहाँ से लाये उसका बाप इतना रुपया ?,बाप कुछ कमाता तो नहीं ।‘ फिर उन्होने अपने चश्मे का केस दिखाया ।शायद 20 पुराना होगा ।इसी तरह 30 वर्ष पुरानी घड़ी देखी ,चश्मा ऐसा जिसमे एक ओर कमानी तो दूसरी ओर धागा बंधा था ,कैसी पवित्र आत्मा थी और आज देश मे ,कोंग्रेसी नेता उनकी तप तपस्या की कमाई खा रहे हैं । कहाँ सरदार का सादगीपूर्ण जीवन और कहाँ आज के नेताओ का विलासपूर्ण रहन सहन ।क्या किसी मंत्री ,नेता के बच्चे मणिबेन के चरण की धूल बनने लायक भी है ?
सरदार भी खूब हँसे और कहा कि बाज़ार मे तो बहुत लोग फिरते हैं ।एक –एक आना करके शाम को बहुत रुपया इकट्ठा कर लोगी ।त्यागी जी लिखते है –‘मे तो शर्म से डूब मरा जब डॉ ० सुशीला नायर ने कहा –‘त्यागीजी ,किससे बात कर रहे हैं ?।मणिबेन दिन भर सरदार की सेवा करती है।फिर डायरी लिखती है और फिर नियम से चरखा चलती है , जो सूत बनता है,उसी से सरदार के कुर्ते,धोती बनते हैं ।आपकी तरह सरदार अपना कपड़ा खादी भंडार से थोड़े खरीदते है ।जब सरदार साहिब के कुर्ते –धोती फट जाते है तो उसी से काट छाँट कर मणिबेन अपनी साड़ी और कुर्ता बनाती है ।
त्यागी जी आगे लिखते हैं कि मैं उस देवी के सामने अवाक हो गया,कितनी पवित्र आत्मा है मणिबेन ।उसके पैरे छूने से हम पापी पवित्र हो सकते हैं ।फिर सरदार बोल उठे –‘गरीब आदमी की बेटी है,कहाँ से लाये उसका बाप इतना रुपया ?,बाप कुछ कमाता तो नहीं ।‘ फिर उन्होने अपने चश्मे का केस दिखाया ।शायद 20 पुराना होगा ।इसी तरह 30 वर्ष पुरानी घड़ी देखी ,चश्मा ऐसा जिसमे एक ओर कमानी तो दूसरी ओर धागा बंधा था ,कैसी पवित्र आत्मा थी और आज देश मे ,कोंग्रेसी नेता उनकी तप तपस्या की कमाई खा रहे हैं । कहाँ सरदार का सादगीपूर्ण जीवन और कहाँ आज के नेताओ का विलासपूर्ण रहन सहन ।क्या किसी मंत्री ,नेता के बच्चे मणिबेन के चरण की धूल बनने लायक भी है ?