परिवर्तन की बयार में अग्रणी भूमिका निभाने के बाद, हर बार छला गया भूमिहार। आखिर क्यों? बड़ी भूमिका में आयें भूमिहार: बी बी रंजन की कलम से
नमक सत्याग्रह, जमींदारी उन्मूलन, देवघर के मंदिर में दलितों का प्रवेश, महात्मा गांधी को बिहार की धरती पर सर्वप्रथम उतारने का सुन्दर अतीत, 1967 में जनसंघ, 1977 में जनता पार्टी, 1989 में जनता दल, 1990 में लालू सरकार, 2004 में वाजपेयी सरकार, 2005 और 2010 में नीतीश सरकार, 2014 में केंद्र की नमो सरकार जैसे अन्य कई महत्वपूर्ण सकारात्मक कार्यों को मूर्त रूप देनेवाला भूमिहार लगातार हासिये पर रहा है। आज सत्ता में उसकी दशा एक असहाय चाटुकार की है। क्यों?
सीधा सा जबाब है। बिन मांगे समर्थन देने की आतुरता, बेमतलब विरोध की राजनीति, बिन पूछे चाय-पान की दुकानों पर एक के समर्थन और दूसरे के विरोध में हवा बनाने का स्वभाव, सार्वजनिक जगहों पर अगले चुनाव में दिखा देने की धमकी, बिना शर्त समर्थन, किसी नेता के सारे पुराने कारनामों को क्षणिक आवेश में भूलने की कमजोरी और गरीबी में भी अहंकार की भाषा का प्रयोग भूमिहारों को हासिये पर ले गया।
भूमिहार अपने बूते 20 सीटों पर फतह पा सकता है। बिहार की 50-60 सीटों पर किसी को हरा सकता है, किसी को सशर्त जीत दिला सकता है। फिर बननेवाली हर सरकार को आपकी शर्तों पर चलना होगा, आपकी उपेक्षा से बचना होगा।
लेकिन आप तो कभी वीपी सिंह, कभी लालू और फिर नीतीश को समझाने का दम ठोकते हैं। हर बार अपने गलत निर्णयों से खुद 5 वर्षों तक हासिये पर होते हैं। साढ़े चार वर्षों तक बड़बड़ाते हैं, अंतिम के छह महीनों में आवेश में आकर एक को ठंढा करने के लिए दूसरे को बिन मांगे समर्थन का एलान कर देते हैं। फिर, कोई आपसे बात क्यों करे, आपकी मांगों को क्यों सुने, आपकी शर्तों को क्यों माने। आप विकास की शर्तों पर समर्थन देते नहीं। आप तो भावावेश में एक को ठंढा करने की मंशा से मतदान करते हैं।
अभी आप लालू और राहुल के पक्ष में जाने की बात करने लगे हैं। कल इन्हें उखारने को आमादा थे। बारह-तेरह वर्षों में इनके चाल, चरित्र और चेहरा में कौन-सा परिवर्तन हो गया? सारे जातिगत आरक्षण के समर्थक हैं। आपकी कोई मांग नहीं, कोई शर्त नहीं, तो फिर आपकी क्या सुनी जाये, क्यों सुनी जाये? आप तो हरफनमौला है।
आप तो तथाकथिक जमींदार, बाहुबली, बुद्धिमान हैं, लेकिन चौकीदार, दफादार और गार्ड की नौकरियों में अक्सर मेरी मुलाकात आप से ही होती है। आप नेताओं के दलाल हैं, बैंकों के वसूली एजेंट हैं, थानेदारों के सेवक हैं, अधिकारियों के माध्यम हैं। आप कब, कहाँ और किस दल में हैं, कोई नहीं समझ पता। आप खुद को तीसमार खां समझते रहें, लेकिन हालत आपकी सबसे पतली है।
भ्रम त्यागें। सशर्त समर्थन की तैयारी करें, हल्ला बोलने की प्रवृति से तौबा कर लें। फिर, हर सरकार आपकी शर्तों पर बनेगी। लेकिन, आप सुनेंगे नहीं। क्योंकि आप किसी की सुनते नहीं। दरअसल दिमाग में एक बीमारी है। बस यही कि हम बुद्धिजीवी हैं, दूरदर्शी हैं। और दूरदर्शिता का भ्रम ही आपकी दुर्दशा का कारण है।