पूर्वांचल के विकास पुरुष बाबू कल्पनाथ राय
पूर्वांचल में विकास पुरुष के नाम से जाने जाने वाले दिग्गज नेता कल्पनाथ राय का जन्म उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के सेमरीजमालपुर नामक गाँव में 4 जनवरी 1941 को हुआ था और उनकी शिक्षा-दीक्षा गोरखपुर विश्वविद्यालय में हुई. विश्विद्यालय जीवन में ही उन्होंने छात्र नेता के रूप में अपने राजनैतिक जीवन का आरंभ किया और समाजवादी युवजन सभा के सदस्य रहे और 1963 में इसके जेनरल सेक्रेटरी चुने गये. वे इंदिरा गाँधी और नरसिंहराव सरकारों में मंत्री रहे. राव सरकार में 1993-1994 में वे खाद्य मंत्रालय में राज्यमंत्री थे. अपने राजनीतिक जीवन में वे उत्तर प्रदेश के घोसी लोकसभा से चार बार सांसद चुने गए. इसके अलावा वे तीन बार राज्य सभा में काँग्रेस पार्टी की तरफ से चुनकर भेजे गए.
हिन्दुस्तान की एक पुरानी खबर : कल्पनाथ के बिना अधूरा है पूर्वांचल का जिक्र
‘जबतक सूरज चांद रहेगा, कल्पनाथ तेरा नाम रहेगा..’, ‘पूर्वाचल का एक ही नाथ, कल्पनाथ-कल्पनाथ..।’ ये वो नारे हैं जो पूर्व सांसद कल्पनाथ के असामयिक निधन पर घोसी संसदीय क्षेत्र के लोगों ने लगाये थे। यश भारती सम्मान से नवाजे गये मशहूर बिरहा गायक स्व. बालेश्वर के तो न जाने कितने गीत कल्पनाथ व उनके विकास कार्यो को समर्पित हैं। आज भी भाषणों में यदि कल्पनाथ राय जिक्र होता है तो मऊ (घोसी) के शिल्पी के रूप में। कहा जाता है कि घोसी या फिर पूर्वाचल क7े तरक्की की बात हो और कल्पनाथ की चर्चा न हो तो सबकुछ अधूरा-अधूरा सा लगता है।
वर्ष 1989 से 6 अगस्त 1999 (इसी दिन उनकी मौत हुई थी) तक चार बार सांसद रहे कल्पनाथ ने चुनाव में हमेशा विकास और सिर्फ विकास को ही अपना मुद्दा बनाया। मुद्दे भी सिर्फ चुनाव जीतने के लिए नहीं गढ़े बल्कि उसे अमली जामा भी पहनाया। घोसी के विकास की एक-एक ईंट आज भी कल्पनाथ की गाथा बयां करती है। शायद यही वजह है कि दल-पार्टी से अलग घोसी का हर नेता या जनप्रतिनिधि आज भी कल्पनाथ की सोच को आगे बढ़ाने की दुहाई देता नजर आता है। न सिर्फ घोसी बल्कि पूर्वाचल के अन्य जिलों बलिया, गाजीपुर और यहां तक कि वाराणसी की तरक्की में भी कल्पनाथ का बड़ा योगदान रहा।
गोरखपुर विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान ही राजनीति में कदम रखने वाले कल्पनाथ 1974 में हेमवंती नंदन बहुगुणा व श्रीमती
इंदिरा गांधी के कहने पर कांग्रेस में शामिल हुए। आजमगढ़ से अलग मऊ को स्वतंत्र जिला बनवाने के बाद कल्पनाथ उसकी समृद्धि में जुट गये। उसी समय वे राज्यसभा के सदस्य बने और अगले दो कार्यकाल में वे उच्च सदन में ही रहे। वर्ष 1982 में उन्होंने संसदीय कार्य व उद्योग मंत्री के रूप में दो मंत्रलयों की जिम्मेदारी संभाली।
वर्ष 1993-94 में खाद्य राज्य मंत्री रहते समय कल्पनाथ का नाम चीनी घोटाला में भी आया। उन्हें जेल भी जाना पड़ा लेकिन वे पाक साफ निकले। घोसी से चार बार सांसद कल्पनाथ राय ने अंतिम चुनाव समता पार्टी के बैनर से लड़ा था। हालांकि बाद में वे कांग्रेस में चले गये। उनके साथ लम्बे समय तक काम करने वाले सुरेश बहादुर सिंह कहते हैं, पूर्वाचल की तरक्की कल्पनाथ के जेहन में रची-बसी थी। ‘फक्कड़’ व ‘औघड़’ किस्म के थे वो।
वादों को पहनाया अमलीजामा -
वाराणसी में कमलापति जी की स्मृति में सब स्टेशन हो या बलिया के सिकंदरपुर, टीका देवरी नगपुरा या गाजीपुर में उपकेन्द्रों का जाल। बिजली व सड़क उनकी प्राथमिकताओं में था। घोसी में कसारा पावर हाउस, डिजिटल दूरदर्शन केन्द्र, ढाई से तीन सौ सब स्टेशन, छोटे से शहर में तीन ओवरब्रिज, एशिया का दूसरा गन्ना अनुसंधान केन्द्र, मऊ को बड़ी लाइन, सौर ऊर्जा केन्द्र, आदि तमाम विकास कार्य कल्पनाथ के प्रयासों की देन हैं।
फिर भी जीत को मशक्कत -
तरक्की और सिर्फ तरक्की ही कल्पनाथ का चुनावी एजेंडा था। विकास के जो वायदे किये उसे पूरा करके भी दिखाया। बावजूद इसके उन्हें लोकसभा चुनाव में जीत के लिए पापड़ बेलने पड़ते थे। वजह, उस समय भी जाति व धर्म की राजनीति अपनी जड़े जमाने लगी थीं। विकास की लम्बी श्रृंखला घोसी संसदीय क्षेत्र में प्रस्तुत करने के बाद भी कल्पनाथ राय का चुनाव जातीय समीकरणों में उलझ कर रह जाता था। हालांकि इसके क्षेत्र की जनता का उन्हें भरपूर आशीर्वाद मिला। जैसा कि सुरेश बहादुर सिंह कहते हैं, यह सच है कि विरोधियों के पास कल्पनाथ के खिलाफ कोई मुद्दा नहीं होता था, बावजूद इसके जाति-धर्म के नाम पर वोट हथियाने का नुस्खा खूब आजमाया जाता था।
निधन के बाद नहीं सहेज सके थाती -
कल्पनाथ राय के निधन के बाद घोसी संसदीय क्षेत्र के विकास का पहिया तो थमा ही, राजनीतिक विरासत की थाती को भी परिवार के लोग सहेज नहीं सके। निधन के बाद उनकी पत्नी ने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा तो उनके खिलाफ बेटा और बहू ही ताल ठोंकने लगे। नतीजा, कल्पनाथ की विरासत तार-तार होती नजर आने लगी। उधर, घोसी के लिए कल्पनाथ के विकास कार्यो पर भी विराम लगता दिखने लगा। भारत का पहला और एशिया का दूसरा गन्ना अनुसंधान संस्थान कल्पनाथ राय ने मऊ के कुसमौर में स्थापित कराया। लेकिन इसी बीच उनके निधन के बाद उचित पैरवी के अभाव में संस्थान बंगलौर को स्थानांतरित हो गया। हालांकि उस भवन में अब पूर्वाचल का इकलौता राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो (एनबीएआईएम) व बीज अनुसंधान निदेशालय (डीसीआर) संचालित हो रहा है।