Sunday, 30 December 2018

निडर राजनेता महावीर त्यागी

ब्रह्मर्षि वंश में जन्मे , स्वतंत्रता सेनानी , निडर राजनेता, स्वत्रंत भारत के सांसद  स्व. श्री महावीर त्यागी जी

लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद में सत्ता पक्ष के नेताओं का किसी मुद्दे को लेकर एक हो जाना आम है, अब कोई अपनी सरकार का विरोध करता नहीं दिखता। वही देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू सरकार में शामिल रहे स्वतंत्रता सेनानी महावीर त्यागी ऐसे थे, जो कई मुद्दों पर अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा करने में पीछे नहीं रहते थे। उनका संसद की गरिमा को ऊंचाईयों को पहुंचाने में अहम योगदान रहा।

31 दिसम्बर 1899 को जन्मे जिले के रतनगढ़ गांव , जिला बिजनौर निवासी महावीर त्यागी जी  स्वतंत्रता संग्राम में शामिल रहे। स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने कुल मिलाकर 11 साल तक जेल यात्रा की। वर्ष 1920 में जिला कांग्रेस के संस्थापकों में उनकी गिनती होती है। बाद में उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र देहरादून बना लिया। देहरादून, बिजनौर (उत्तर-पश्चिम), सहारनपुर (पश्चिम) लोकसभा क्षेत्र से 1952, 57 व 62 में सांसद रहे महावीर त्यागी वर्ष 1951 से 53 तक केन्द्रीय राजस्व मंत्री रहे। वर्ष 1953 से 57 तक श्री त्यागी मिनिस्टर फार डिफेंस ऑर्गेनाइजेशन (1956 तक पंडित नेहरू के पास रक्षा मंत्री का कार्यभार भी था।) रहे। उनके कार्यकाल के दौरान देश में ही रक्षा सम्बंधी सामान बड़े पैमाने पर बनाने का कार्य शुरू हुआ। इस दौरान उन्होंने संसद में आजादी के बाद सेना में मुस्लिम युवकों के कम संख्या में भर्ती होने मुद्दा उठाया था। वर्ष 1957 के बाद भी वह विभिन्न कमेटियों और पुनर्वास मंत्रालय में रहे।

राजनीति के जानकार अतुल गुप्ता और साहित्यकार भोलानाथ त्यागी बताते हैं कि महावीर त्यागी ने वर्ष 1962 के युद्ध के बाद अक्साई चिन क्षेत्र चीन के कब्जे में चले जाने के मुद्दे पर संसद में प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के सामने अपना तर्क बेबाकी से रखा। पंडित नेहरू ने कहा था कि 'इस क्षेत्र में घास का एक तिनका नहीं उग सकता है...'। इस पर महावीर त्यागी ने अपने केश विहीन सिर से टोपी उतारी और कहा कि 'यहां पर भी कुछ नहीं उगता, क्या इसे काट देना चाहिए या किसी और को दे देना चाहिए?'

महावीर त्यागी वर्ष 1962 से 64 तक संसद की लोक लेखा समिति के चेयरमैन रहे। जनवरी 1966 में ताशकंद समझौते में कुछ स्थानों को पाकिस्तान को लौटाने के प्रश्न पर उन्होंने मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया। महात्मा गांधी का सानिध्य पाने वाले श्री त्यागी सरदार पटेल, पंडित नेहरू और मदनमोहन मालवीय के भी बेहद करीबी रहे। उन्होंने भाषाई आधार पर राज्यों के गठन का विरोध किया था। उनके देशप्रेम के कई किस्से है। 22 मई 1980 को नई दिल्ली में उनका देहान्त हो गया था ।

@योगेंद्र त्यागी

Wednesday, 19 December 2018

चित्पावन

चित्पावन ब्राहमणों के सामूहिक नरसंहार 31 जनवरी – 3 फरवरी 1948 तक पुणे में हुए चित्पावन ब्राहमणों के सामूहिक नरसंहार को आज भारत के 99% लोग संभवत: भुला चुके होंगे, कोई आश्चर्य नही होगा मुझे यदि कोई पुणे का मित्र भी इस बारे में साक्ष्य या प्रमाण मांगने लगेl सोचने का गंभीर विषय उससे भी बड़ा यह कि उस समय न तो मोबाइल फोन थे, न पेजर, न फैक्स, न इंटरनेट… अर्थात संचार माध्यम इतने दुरुस्त नहीं थे, परन्तु फिर भी नेहरु ने इतना भयंकर रूपसे यह नरसंहार करवाया कि आने वाले कई वर्षों तक चित्पावन ब्राह्मणों को घायल करता रहाl राजनीतिक रूपसे भी देखें तो यह कहने में कोई झिझक नही होगी मुझे कि जिस महाराष्ट्र के चित्पावन ब्राह्मण सम्पूर्ण भारत में धर्म तथा राष्ट्र की रक्षा हेतु सजग रहते थे… उन्हें वर्षों तक सत्ता से दूर रखा गया, अब 70 वर्षों बाद कोई प्रथम चित्पावन ब्राह्मण देवेन्द्र फडनवीस के रूपमें मनोनीत हुआ हैl हिंदूवादी संगठनों द्वारा मैंने पुणे में कांग्रेसी अहिंसावादी आतंकवादियों के द्वारा चितपावन ब्राह्मणों के नरसंहार का मुद्दा उठाते कभी नही सुना, मैं सदैव सोचती थी कि यह विषय 7 दशक पुराना हो गया है इसलिए नही उठाते होंगे, परन्तु जब जब गाँधी वध का विषय आता है समाचार चेनलों पर तब भी मैंने किसी भी हिंदुत्व का झंडा लेकर घूम रहे किसी भी नेता को इस विषय का संज्ञान लेते हुए नही पायाl क्या वे हिन्दू… संघ परिवार या बीजेपी के हिंदुत्व की परिभाषा के दायरे में नही आते… क्योंकि वे हिन्दू महासभाई थे … ? हिन्दू के नरसंहार वही मान्य होंगे जो मुसलमानों या ईसाईयों द्वारा किये गये होंगे ? फिर वो भले कांग्रेसी आतंकवादियों द्वारा किये गये हों, या सिख आतंकवादियों द्वारा, उनकी कोई बात नही करता इस देश में l 31 जनवरी 1948 की रात, पुणे शहर की एक गली, गली में कई लोग बाहर ही चारपाई डाल कर सो रहे थे … एक चारपाई पर सो रहे आदमी को कुछ लोग जगाते हैं और … उससे पूछते हैं कांग्रेसी अहिंसावादी आतंकवादी: नाम क्या है तेरा?? सोते हुए जगाया हुआ व्यक्ति … अमुक नाम बताता है … (चित्पावन ब्राह्मण) अधखुली और नींद-भरी आँखों से वह व्यक्ति अभी न उन्हें पहचान पाया था, न ही कुछ समझ पाया था… कि उस पर कांग्रेस के अहिंसावादी आतंकवादी मिटटी का तेल छिडक कर चारपाई समेत आग लगा देते हैंl चित्पावन ब्राहमणों को चुन चुन कर … लक्ष्य बना कर मारा गया l घर, मकान, दूकान, फेक्ट्री, गोदाम… सब जला दिए गयेl महाराष्ट्र के हजारों-लाखों ब्राह्मण के घर-मकान-दुकाने-स्टाल फूँक दिए गए। हजारों ब्राह्मणों का खून बहाया गया। ब्राह्मण स्त्रियों के साथ दुष्कर्म किये गए, मासूम नन्हें बच्चों को अनाथ करके सडकों पर फेंक दिया गया, साथ ही वृद्ध हो या किशोर, सबका नाम पूछ पूछ कर चित्पावन ब्राह्मणों को चुन चुन कर जीवित ही भस्म किया जा रहा था… ब्राह्मणों की आहूति से सम्पूर्ण पुणे शहर जल रहा थाl 31 जनवरी से लेकर 3 फरवरी 1948 तक जो दंगे हुए थे पुणे शहर में उनमें सावरकर के भाई भी घायल हुए थे l “ब्राह्मणों… यदि जान प्यारी हो, तो गाँव छोड़कर भाग जाओ..” 31 जनवरी 1948 को ऐसी घोषणाएँ पश्चिम महाराष्ट्र के कई गाँवों में की गई थीं, जो ब्राह्मण परिवार भाग सकते थे, भाग निकले थे, अगले दिन 1 फरवरी 1948 को कांग्रेसियों द्वारा हिंसा-आगज़नी- लूटपाट का ऐसा नग्न नृत्य किया गया कि इंसानियत पानी-पानी हो गई. ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि “हुतात्मा पंडित नथुराम गोडसे” स्वयम एक चित्पावन ब्राह्मण थेl पेशवा महाराज, वासुदेव बलवंत फडके, सावरकर, तिलक, चाफेकर, गोडसे, आप्टे आदि सब गौरे रंग तथा नीली आँखों वाले चित्पावन ब्राह्मणों की श्रंखला में आते हैं, जिन्होंने धर्म के स्थापना तथा संरक्ष्ण हेतु समय समय पर कोई न कोई आन्दोलन चलाये रखा, फिर चाहे वो मराठा भूमि से संचालित होकर अयोध्या तक अवध, वाराणसी, ग्वालियर, कानपूर आदि तक क्यों न पहुंचा हो .... पेशवा महाराज के शौर्य तथा कुशल राजनितिक नेतृत्व से से तो सभी परिचित हैं, 1857 की क्रांति के बाद यदि कोई पहली सशस्त्र क्रांति हुई तो वो भी एक चित्पावन ब्राह्मण द्वारा ही की गई, जिसका नेतृत्व किया वासुदेव बलवंत फडके ने… जिन्होंने एक बार तो अंग्रेजों के कबके से छुडा कर सम्पूर्ण पुणे शहर को अपने कब्जे में ही ले लिया थाl उसके बाद लोकमान्य तिलक हैं, महान क्रांतिकारी चाफेकर बन्धुओं की कीर्ति है, फिर सावरकर हैं जिन्हें कि वसुदेव बलवंत फडके का अवतार भी माना जाता है, सावरकर ने भारत में सबसे पहले विदेशी कपड़ों की होली जलाई, लन्दन गये तो वहां विदेशी नौकरी स्वीकार नही की क्योंकि ब्रिटेन के राजा के अधीन शपथ लेना उन्हें स्वीकार नही था, कुछ दिन बाद महान क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा जी से मिले तो उन्हें न जाने 5 मिनट में कौन सा मन्त्र दिया कि ढींगरा जी ने तुरंत कर्जन वायली को गोली मारकर उसके कर्मों का फल दे दियाl सावरकर के व्यक्तित्व को ब्रिटिश साम्राज्य भांप चुका था, अत: उन्हें गिरफ्तार करके भारत लाया जा रहा था पानी के जहाज़ द्वारा जिसमे से वो मर्सिलेस के समुद्र में कूद गये तथा ब्रिटिश चैनल पार करने वाले पहले भारतीय भी बने, बाद में सावरकर को दो आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गईl यह सब इसलिए था क्यूंकि अंग्रेजों को भय था कि कहीं लोकमान्य तिलक के बाद वीर सावरकर कहीं तिलक के उत्तराधिकारी न बन जाएँ, भारत की स्वतन्त्रता हेतुl इसी लिए शीघ्र ही अंग्रेजों के पिठलग्गु विक्रम गोखले के चेले गांधी को भी गोखले का उत्तराधिकारी बना कर देश की जनता को धोखे में रखने का कार्य आरम्भ कियाl दो आजीवन कारावास की सज़ा की पूर्णता के बाद सावरकर ने अखिल भारत हिन्दू महासभा की राष्ट्रीय अध्यक्षता स्वीकार की तथा हिंदुत्व तथा राष्ट्रवाद की विचारधारा को जन-जन तक पहुँचायाl उसके बाद हुतात्मा पंडित नथुराम गोडसे जी का शौर्य आता है। हुतात्मा पंडित नथुराम गोडसे के छोटे भाई गोपाल जी गोडसे भी गांधी वध में जेल में रहे, बाहर निकल कर जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने पुरुषार्थ और शालीनता के अनूठे संगम के साथ कहा: “”गाँधी जब जब पैदा होगा तब तब मारुंगा”। यह शब्द गोपाल गोडसे जी के थे जब जेल से छुट कर आये थेl तत्कालीन दंगों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक की और से किसी भी दंगापीड़ित को किसी भी प्रकार की सहायता आदि उपलब्ध न करवाई गई… न तन से, न मन से, न ही धन से, बल्कि आरएसएस प्रमुख श्री गोलवलकर ने तो नेहरु तथा पटेल को पत्र लिख कर यह तक कह डाला कि हमारा हिन्दू महासभा से कोई लेना देना नही, तथा सावरकर से भी मात्र वैचारिक सम्बन्ध है, उससे अधिक और कुछ नहीl आरएसएस प्रमुख श्री गोलवलकर ने इससे भी अधिक बढ़-चढ़ कर अपनी पुस्तक विचार-नवनीत में यहाँ तक लिख दिया कि नाथूराम गोडसे मानसिक विक्षिप्त थाl अभी 25 नवम्बर 2014 को गोडसे फिल्म का MUSIC LAUNCH का कार्यक्रम हुआ था उसमे हिमानी सावरकर जी भी आई थीं, जो लोग हिमानी सावरकर जी को नही जानते, मैं उन्हें बता दूं कि वह वीर सावरकर जी की पुत्रवधू हैं तथा गोपाल जी गोडसे जी की पुत्री हैं, अर्थात नथुराम गोडसे जी की भतीजी भी हैंl हिमानी जी ने अपने उद्बोधन में बताया कि उनका जीवन किस प्रकार बीता, विशेषकर बचपन…वह मात्र 10 महीने की थीं जब गोडसे जी, करकरे जी, पाहवा जी आदि ने गांधी वध किया l उसके बाद पुणे दंगों की त्रासदी ने पूरे परिवार पर चौतरफा प्रहार किया l स्कूल में बहुत ही मुश्किल से प्रवेश मिला, प्रवेश मिला तो … आमतौर पर भारत में 5 वर्ष का बच्चा प्रथम कक्षा में बैठता है l एक 5 वर्ष की बच्ची की सहेलियों के माता-पिता अपनी बच्चियों को कहते थे कि हिमानी गोडसे (सावरकर) से दूर रहना… उसके पिता ने गांधी जी की हत्या की हैl संभवत: इन 2 पंक्तियों का मर्म हम न समझ पाएं… परन्तु बचपन बिना सहपाठियों के भी बीते तो कैसा बचपन रहा होगा… मैं उसका वर्णन किन्ही शब्दों में नही कर सकती, ऐसा असामाजिक, अशोभनीय, अमर्यादित दुर्व्यवहार उस समय के लाखों हिन्दू महासभाईयों के परिवारों तथा संतानों के साथ हुआ l आस पास के लोग… उन्हें कोई सम्मान नही देते थे, हत्यारे परिवार जैसी संज्ञाओं से सम्बोधित करते थेl गांधी वध के बाद लगभग 20 वर्ष तक एक ऐसा दौर चला कि लोगों ने हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता को … या हिन्दू महासभा के चित्पावन ब्राह्मणों को नौकरी देना ही बंद कर दिया l उनकी दुकानों से लोगों ने सामान लेना बंद कर दियाl चित्पावन भूरी आँखों वाले ब्राह्मणों का पुणे में सामूहिक बहिष्कार कर दिया गया था गोडसे जी के परिवार से जुड़े लोगो ने 50 वर्षों तक ये निर्वासन झेला। सारे कार्य ये स्वयं किया करते थे l एक अत्यंत ही तंग गली वाले मोहल्ले में 50 वर्ष गुजारने वाले चितपावन ब्राह्मणों को नमनl अन्य राज्यों के हिन्दू महासभाईयों के ऊपर भी विपत्तियाँ उत्पन्न की गईं… जो बड़े व्यवसायी थे उनके पास न जाने एक ही वर्ष में और कितने वर्षों तक आयकर के छापे, विक्रय कर के छापे, आदि न जाने क्या क्या डालकर उन्हें प्रताड़ित किया गयाl चुनावों के समय भी जो व्यवसायी, व्यापारी, उद्योगपति आदि यदि हिन्दू महासभा के प्रत्याशियों को चंदा देता था तो अगले दिन वहां पर आयकर विभाग के छापे पड़ जाया करते थेl गांधी वध पुस्तक छापने वाले दिल्ली के सूर्य भारती प्रकाशन के ऊपर भी न जाने कितनी ही बार… आयकर, विक्रय कर, आदि के छापे मार मार कर उन्हें प्रताड़ित किया गया, ये उनका जीवट है कि वे आज भी गांधी वध का प्रकाशन निर्विरोध कर रहे हैं … वे प्रसन्न हो जाते हैं जब उनके कार्यालय में जाकर कोई उन्हें … “जय हिन्दू राष्ट्र” से सम्बोधित करता हैl हिन्दू महासभाईयों को उनके प्रकाशन की पुस्तकों पर 40% छूट आज भी प्राप्त होती हैl आज भी हिन्दू महासभाईयों के साथ भेदभाव जारी हैl और आज कई राष्ट्रवादी यह लांछन लगाते नही थकते… “कि हिन्दू महासभा ने आखिर किया क्या है?” कई बार बताने का मन होता है … तो बता देते हैं कि क्या क्या किया है… साथ ही यह भी बता देते हैं कि आर.एस.एस को जन्म भी दिया हैl परन्तु कभी कभी … परिस्थिति इतनी दुखदायी हो जाती है कि … निशब्द रहना ही श्रेष्ठ लगता हैl विडम्बना है कि … ये वही देश है… जिसमे हिन्दू संगठन … सावरकर की राजनैतिक हत्या में नेहरु के सहभागी भी बनते हैं और हिन्दू राष्ट्रवाद की धार तथा विचारधारा को कमजोर करते हैंl आप सबसे विनम्र अनुरोध है कि अपने इतिहास को जानें, आवश्यक है कि अपने पूर्वजों के इतिहास को भली भाँती पढें और समझने का प्रयास करें…. तथा उनके द्वारा स्थापित किये गए सिद्धांतों को जीवित रखेंl जिस सनातन संस्कृति को जीवित रखने के लिए और अखंड भारत की सीमाओं की सीमाओं की रक्षा हेतु हमारे असंख्य पूर्वजों ने अपने शौर्य और पराक्रम से अनेकों बार अपने प्राणों तक की आहुति दी गयी हो, उसे हम किस प्रकार आसानी से भुलाते जा रहे हैंl सीमाएं उसी राष्ट्र की विकसित और सुरक्षित रहेंगी ….. जो सदैव संघर्षरत रहेंगेl जो लड़ना ही भूल जाएँ वो न स्वयं सुरक्षित रहेंगे न ही अपने राष्ट्र को सुरक्षित बना पाएंगेl