Saturday, 2 February 2019

अनंत सिंह, मोकामा

राहुल गांधी की पटना रैली और बिहार के सत्तासीनों के लिए मोकामा की महत्ता के बीच अब #अनंत के सहारे कांग्रेस ।

दालान वाले रंजन ऋतुराज कहते हैं कि यह लड़ाई तो है....  सरकार बनाम सरकार :

पटना जिले के बाढ़ अनुमंडल का लदमा गाँव आज़ादी पूर्व से ही बाहुबल और ताकत का प्रतीक होता रहा है । तब होते थे - भागवत बाबू । 2500 एकड़ के ज़मीन के गृहस्थ । गाँव के सरताज और पूरा गाँव और इलाका में तूती । कई हाथी और घोड़ा । दरवाजे पर पूरे क्षेत्र के पहलवानों का जमघट - कहते हैं बिहार का कोई भी ऐसा पहलवान नही था जिसे भागवत बाबू ने अपने दरवाजे पर सुशोभित नही किया हो   ।

1973 में उनकी मृत्यु के बाद श्राद्ध में एक हाथी , एक घोड़ा और 27 गाय का दान हुआ । दान में हाथी , घोड़ा और गाय को खिलाने के लिए 12 एकड़ जमीन भी । उनकी पुत्री का विवाह बरबीघा के तेउस गाँव के जज गीता बाबू से और भतीजी की शादी गीता बाबू के छोटे भाई भोला बाबू से हुई थी । उनके पुत्र स्व मुन्नू बाबू की शादी बेतिया के बेला बिलासपुर में हुई थी - मुन्नू बाबू के साले श्री चंद्र मोहन राय नीतीश सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके हैं ।

दरअसल इस 'सरकार बनाम सरकार' के खेल में इतिहास महत्वपूर्ण है । मोकमा कि मिट्टी अदभुत लड़ाकू और ऊर्जा से भरपूर रही है । वहीं के एक गाँव लखंचन्द के बच्चा बाबू से मुज़फ़्फ़रपुर में मेडिकल कॉलेज खोलने को ज़मीन मांगा गया तो वो क्षण के अंदर अपनी 100 एकड़ की ज़मीन दान कर दी । यह एक उदाहरण उस विशाल हृदय और कुब्बत को दर्शाता है ।

बिहार की गद्दी पर जो भी आया वह किसी राजा से कम नही रहा और उसकी आकांक्षा मोकमा के किसी शेर को अपने दरबार मे सुशोभित करना । यह मनोभाव रहा । और इसी आकांक्षा में मोकमा में आधुनिक शूरवीर / बाहुबली पैदा लेते गए या उन्हें पैदा किया गया । यह वही मोकामा था जिसके बल पर कांग्रेसी विधायक श्याम सुंदर सिंह धीरज की तूती पूरे पटना में चलती थी । तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे के राज में महज उप मंत्री होते हुए भी धीरज जी की धमक किसी भी कैबिनेट मंत्री से कम नही रही । और धीरज जी के दाहिने हाथ होते थे - अनंत सिंह के अग्रज दिलीप सिंह , जिन्हें बड़े सरकार कहा जाता था ।

दिलीप सिंह धीरज जी का ही विरोध कर के विधायक बने फिर इसी लालू ने उन्हें मंत्री बना उनका कद और ऊंचा किया । फिर दिलीप सिंह का विरोध कर के सूरजभान विधायक बने जिन्होंने सन 2000 में नीतीश कुमार को अन्य 14 बाहुबली विधायकों का समर्थन देकर उन्हें 7 दिन का मुख्यमंत्री बनाया ।

नीतीश कुमार को बाढ़ लोकसभा से सांसद बनना था और मुख्यमंत्री भी । सूरजभान पाला बदल सन 2004 में बेगूसराय से लोकसभा सांसद बने । नीतीश कुमार ने दिलीप सिंह की मृत्यु के बाद अनंत सिंह को आगे बढ़ाया । तब से अनंत सिंह लगातार विधायक हैं ।

खैर , यह खेल पटना में खेला जाता है । पटना के सत्ता में एक कुंठा है - मोकामा की मिट्टी को अपने काबू में रखना और मोकमा के प्राकृतिक या कृतिम बाहुबल इसका सौदा करता है । मुफ्त में कुछ नही मिलता । इसी सौदा बाज़ी में यह क्षेत्र न जाने कब सूरजभान और अनंत सिंह जैसों के हाथ चला गया और अब जाने अनजाने में यही लोग समाज के प्रतीक बन गए ।
लेकिन अनंत सिंह और अन्य बाहुबली में एक अंतर है । अन्य के पास शूटर होते हैं और अनंत सिंह 'गुरिल्ला वार' पद्धति में विश्वास रखते हैं । यह वही गुरिल्ला पद्धति है जिसके बदौलत वो टाल क्षेत्र में अपनी ज़मीनों को लालू के गुण्डों से मुक्त कराते आये हैं या फिर बाढ़ शहर में अपनी चाल से अन्यों को दुबकने पर मजबूर करते आये हैं । लेकिन आप सिर्फ अनंत सिंह या सूरजभान को गलत नही कह सकते - यह पटना के सत्ताशीनों की कुंठा थी जो इन्हें वो बड़ा करते गए । जो जब जैसा सत्ता में रहा - मोकामा को रौंदने की लालसा में उटपटांग हरकतों को आगे बढ़ाता गया । शायद यह एक राजनीति भी रही - एक मोकामा के वीर  लड़ाकू कौम का चेहरा दिखा पूरे बिहार के अन्य का वोट लेना ।

कुछ तो खून और मिट्टी की गर्मी भी होती है - कभी वो बच्चा बाबू और भागवत बाबू पैदा करती है तो कभी अनंत सिंह और सूरजभान ।
'हे रे नुनु ...कुछ समझ मे आइलों ?' 😊

और इसलिए मेरे मित्र हरेश भाई कहते हैं कि पटना में रैली कांग्रेस की है या अनंत की।

कांग्रेस की रैली है या अनंत सिंह का। कांग्रेस से लोकसभा का टिकट लेने के लिए अनंत सिंह एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। पटना में रैली कर वह अपनी ताकत का प्रदर्शन तो कर ही रहे साथ में कांग्रेस नेताओं को यह भी बता रहे कि देख लो अपनी औकात एक रैली भी अकेले दम पर नहीं कर सकते। इन सबके बावजूद कांग्रेस लालू प्रसाद यादव के डर से अनंत सिंह को मंच पर जगह नहीं देगी।

ये भी हो सकता है कि अनंत सिंह को कांग्रेस बाहर से ही समर्थन करे,ताकि बात भी रह जाए और काम भी बन जाए। शुरू से ही कांग्रेस का यही चरित्र है। हालांकि, सोशल मीडिया के  कारण अब कुछ छुप नहीं सकता।

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