Tuesday, 24 February 2015

"बिहार रत्न" ही नहीं मानव रत्न थे लंगट बाबु




मुजफ्फरपुर की धरती अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक जागृति के अग्रदूतों की धरती रही है जिन्होंने देश की आजादी, सामाजिक परिवर्तन और शैक्षणिक क्षेत्रों में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। जानकी वल्लभ शास्त्री, रामबृक्ष बेनीपुरी, शहीद जुब्बा सहनी जैसे अनेक विभूतियों के नाम से मुजफ्फरपुर व बिहार की प्रतिष्ठा बढती है। ऐसे ही एक महापुरुष थे बाबु लंगट सिंह।


साहस, संकल्प और संघर्ष की बहुआयामी जीवन जीनेेवालें बाबु लंगट सिंह का जन्म आश्विन मास, सन 1851 में धरहरा, वैशाली निवासी अवध बिहारी सिंह के यहाँ हुआ था। निर्धनता का अभिशाप झेलते, जीवन जीने को संघर्ष करते परिवार में जन्म लेने की वजह से लंगट बाबु पढाई नहीं कर पाए। कहा जाता है कि मनुष्य जीवन का विकास जटिल परिस्थितियों में होता है। संघर्ष की अग्नि से ही आतंरिक शक्ति का सच्चा विकास होता है। लंगट बाबु ने भी संघर्ष का रास्ता चुना व 24-25 वर्ष की उम्र में जीविका की तलाश में, घर की आर्थिक सुधारने की संकल्प लिए निकल पड़े घर सेे। काम मिली भी तो, रेल पटरी के साथ साथ बिछाए जा रहे टेलीग्राम के खम्भों पर तार लगाने का। उसके बाद रेलवे के मामूली मजदूर से जमादार बाबु, जिला परिषद्, रेलवे और कलकत्ता नगर निगम के प्रतिष्ठित ठेकेदार बनने की कहानी, आधुनिक फिल्मों की पटकथा से कम नहीं लगती।
              साधारण मजदूर से अपनी कठोर मेहनत, बुद्धि और स्थायी विश्वसनीयता के बल पर अत्यंत दायित्व-संपन्न, सम्मानास्पद ठेकेदार और उदार जमींदार के रूप में स्थापित हो गये थे। जीवन के कई वर्ष उन्होंने कलकत्ता में ठेकेदारी करते हुए बिताये। कलकत्ता के संभ्रांत समाज में उनकी कहीं ऊँची प्रतिष्ठा थी। बंगाली समुदाय से वे इतना घुल-मिल गये थे कि उन्हें लोग शुद्ध बंगाली ही माना करते थे। वे वहां के सभ्य समाज में स्वदेशी आंदोलनों के मंच पर प्रभावशाली आत्मविश्वास से भरी भाषण देते थे। वहा के शैक्षणिक, सांस्कृतिक, राष्ट्रीय जागरण की उस फिजां में स्वामी दयानंद, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, ईश्वरचंद विद्यासागर, सर आशुतोष मुखर्जी आदि के स्वर गूंज रहे थे। उस समय प्रसिद्ध युग-निर्माताओं के सतत संपर्क में ही नही थे बाबु साहब, अपितु बहुयामी राष्ट्रिय महत्व के कार्यों से बहुत प्रभावित भी थे और उनसे जुड़े हुए थे। सदियों से मंद पड़ी विद्यानुराग कि वह पवित्र बीज वही कलकत्ता में फूटी और आज एल.एस. कॉलेज के रूप में वटवृक्ष की तरह खड़ी है।
बाबु लंगट सिंह की जीवन-दृष्टि बहुत ही उदार, उदात्त और व्यापक थी। खास कर बिहार में अपनी जीवन-यात्रा के पथ पर पं. मदन मोहन मालवीय जी, महाराजाधिराज दरभंगा, काशी नरेश प्रभुनारायण सिंह, परमेश्वर नारायण महंथ, द्वारकानाथ महंथ, यदुनंदन शाही, धर्म्भुषन रघुनन्दन चैधरी और जुगेश्वर प्रसाद सिंह जैसे विभिन्न वर्गों के विद्याप्रेमी सज्जनों के साथ जुड़कर शिक्षा का अखंड दीप उन्होंने मुजफ्फरपुर में जलाया था। जब बात काशी हिन्दू विश्वविद्यालय बनने की आयी तो उन्होंने एल.एस. कॉलेज के निर्माण कार्य हेतु रखे पैसे दान कर दिए। यही थी उनकी अनोखी, सबों को समेट कर किसी शुभ कार्य को संपन्न करने की विलक्षण जीवन-साधना, दृष्टि और शैली। अद्भुत मेधा के युग-निर्माता, एक कृति पुरुष थे बाबु साहब, जिसका उदहारण मिलना कठिन है अब।
बाबु लंगट सिंह मनुष्य रूप में क्या थे? सद्गुणों के ज्योतिर्मय एक प्रकाश-पिंड! अदम्य उत्साह, अटूट आस्था और ज्वलंत पौरुष के अनुपम प्रतिमान, एक विलक्षण मेधावी और त्याग की मूर्ति, महान मनुष्य!
सचमुच में सिर्फ ष्बिहार रत्नष् ही नही, मानव रत्न थे मुजफ्फरपुर, तिरहुत की धरती के लिए। लंगट बाबु ने धन अर्जित किया तो श्रम से, अच्छे साधनों से, धन खर्च किया ऊँचे उदेश्यों की पूर्ति के लिए, श्रेष्ठतम जीवन-मूल्यों की रक्षा के लिए। आज से सौ वर्ष पहले काशी और कलकत्ता के मध्य गंगा के उत्तरी तट पर तब कोई कॉलेज नहीं था। हाई स्कूलों की संख्या नगण्य थी। तब उस शिक्षा के घोर अन्धकारच्छन्न युग में, ऊँची शिक्षा के लिए, मुजफ्फरपुर में कॉलेज की स्थापना को, पुरे दृढ वुश्वास के साथ चरितार्थ किया। कितने बड़े साहस का काम था कॉलेज खोलने का! यदि यह नहीं हो पता तो लाखों छात्र स्नातक और स्नातोकोत्तर परीक्षाओं  में उतीर्ण हो राष्ट्र की बहुमुखी जीवन-धारा में ऐसी गति दे पाते क्या? कतई संभव नहीं था। ऊँची शिक्षा के प्रसार,  सांस्कृतिक उत्थान और सामाजिक परिवर्तन के लिए बिहार में उनकी जो महत्वपूर्ण भूमिका रही है, वह इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णाक्षरों में लिखी जाएगी।


आज उनको दिवंगत हुए १०० वर्ष हो गये, तब भी उनका परोपकार-प्रियता, समग्र समाज की सेवा भावना, शिक्षा-प्रेम, सांस्कृतिक जागरण के प्रति उनकी कठोर प्रतिबद्धतता -उनके जीवन की ये खूबियाँ हमें उस महापुरुष की याद दिलाती है, शुभ कर्मों के लिए प्रेरणा देती है। लंगट बाबु के जीवन की ऊँची नीची घाटियों की यात्रा, कितनी जटिल, श्रमसाध्य और विपत्तियों से बेतरह भरी हुई थी, उसका सम्पूर्ण लेखा-जोखा 15 अप्रैल, 1912 को उनके निधन के साथ ही शून्य में विलीन हो गयी। परन्तु उस साहसिक जीवन-यात्रा, सच्चे उदेश्य के लिए सतत निष्ठापूर्वक श्रम, समाज के लिए उदहारण है। जब भी मुजफ्फरपुर और तिरहुत के इतिहास के पन्ने लिखे जायेंगे वह बिना लंगट बाबु के कभी पूरा नहीं होंगी।

Sunday, 22 February 2015

Shri Vijay Chhibber is New Secretary of Road Transport and Highways


Shri Vijay Chhibber assumed charge of Secretary ,Ministry of Road Transport And Highways here today. He replaces Shri A.K.Upadhyay, IAS (BH:75) on his retirement yesterday. Shri V.Chhibber is an IAS officer of 1978 batch and belongs to Manipur Tripura Cadre. He is on central deputation and was holding the charge of Secretary, Department of Ex-Servicemen Welfare from 10.09.2012 to 31.1.2013.

He had earlier been Special Secretary & FA Ministry of Road Transport and Highways & Ministry of Shipping. Shri Chhibber is an alumni of St. Stephens College, Delhi University and belongs to Haryana.
Mr. Shri. Vijay Chhibber, IAS, M.A. served as an Additional Secretary and Financial Advisor, Ministry of Shipping, Road Transport & Highways. Shri. Chhibber served as Joint Secretary to the Government of India, Ministry of Chemicals & Fertilisers. He held several posts in both the State and Central Governments and was the Under Secretary and Deputy Secretary in the Department of Commerce, Deputy Director in AIIMS, Director in Cabinet Secretariat and Joint Secretary in Department of Fertilizers. He has also worked as Deputy and Joint Secretary in the Departments of Energy, Public Works, as Director in Department of Industries and Secretary to the Chief Minister Manipur. He was also a District Magistrate of Ukhrul District in Manipur. Shri. Chhibber has held the post of Principal Secretary/Commissioner, Government of Manipur with responsibilities relating to Finance, Health, Education, Public Health & Engineering, Social Welfare, Tribal Welfare, Elections, etc. He has also been the Chief Election Officer of the State of Manipur. He has been a Director of Mountney since February 24, 2006. He has been a Director of National Highways Authority Of India since February 1, 2013. He served as Director of Indian Potash Limited since February 24, 2006. He served as Director of Indian Indian Road Construction Corporation Ltd. since January 15, 2009. He served as a Part-time Official Director of Shipping Corp. of India from December 26, 2008 to September 21, 2012. He served as Director of Madras Fertilizers Ltd. until January 30, 2009. He served as a Trustee of Jawaharlal Nehru Port Trust from April 1, 2011 to September 10, 2012. He served as a Non-Executive Director of National Fertilizers Ltd. from August 30, 2005 to December 1, 2008. He served as a Part-time Director of The Fertilisers And Chemicals Travancore Limited since September 5, 2005 and also served as its Director. Shri. Chhibber is an Alumni of the National Defence College. Shri. Chhibber holds a Graduate and Post Graduate Degree in History from St. Stephen’s College, University of Delhi.

Friday, 20 February 2015

हमें चाहिए हमारे ही जैसा नेता @ प्रीतीश नंदी

अब तक तो आप में से ज्यादातर लोगों को मालूम पड़ गया होगा कि मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई बहुत बड़ा प्रशंसक नहीं हूं। ईमानदारी से कहूं तो मैं इसके पहले भी कभी किसी प्रधानमंत्री का प्रशंसक नहीं रहा हूं। उनसे होने वाली मुलाकातों के कारण मैं उन सबको अच्छी तरह जानता था। जो चीज मुझे बहुत चकित कर देती थी कि वह यह थी कि कैसे कोई आकर्षक और प्राय: बहुत ही शानदार व्यक्ति, जिस क्षण उस पद पर बैठता है, जिसे इस देश का सर्वोच्च पद कहा जाता है, वह तत्काल अपना आकर्षण खो बैठता है। और ऐसा हमेशा हुआ है। यह सिलसिला कभी टूटा नहीं।
शायद प्रधानमंत्री के पद के कारण ऐसा नहीं होता। यह उन चापलूस दरबारियों या लालबत्ती वाली कारों के काफिले और चीखते साइरनों के कारण होता होगा। महान नेता कहीं भी जाए, ये उसके साथ होते हैं। जिस क्षण आप यह दायित्व स्वीकारते हैं, आप यह भूल जाते हैं कि यह काम भी अन्य किसी काम की तरह ही है और उतनी ही दक्षता और निष्ठा के साथ इसे करने की जरूरत है। इसकी बजाय हर कोई ‘मैन ऑफ डेस्टिनी’ बनना चाहता है।
ऐसे नेताओं के प्रति विनीत न होने की मेरी वजह सरल-सी है। मैं पत्रकार हूं। एक छोटा-सा पेशेवर, जिसका अपना अहंकार होता है। मुझसे अपेक्षा नहीं होती कि मैं लोगों की चापलूसी करता फिरूं खासतौर पर सत्ता में बैठे लोगों की चापलूसी। इसकी वजह यह है कि मुझे उनसे किसी चीज की अपेक्षा नहीं है। न मुझे लोकप्रियता के किसी मतसंग्रह में विजयी होकर दिखाना है। दुर्भाग्य से प्रधानमंत्रियों को इसकी दरकार होती है, इसलिए यह उनका काम है कि वे आकर्षक नजर आएं। हॉलैंड एंड शेरी सिग्नेचर जैकेट पहनें और इसके साथ, चाहे यह बहुत हास्यास्पद लगे, लेकिन लोगों को यह यकीन दिलाने का प्रयास भी करें कि वे विदर्भ के कर्ज में दबे किसानों को आत्महत्या करने से रोक लेंगे। मुझसे पूछो तो यह कोई आसान काम नहीं है।
प्रसिद्धि किसी भी काम को उतना ही ज्यादा कठिन बना देती है। प्रत्येक प्रधानमंत्री जो फैसले लेता है, उससे कुछ लोगों को फायदा होता है और ढेर सारे अन्य लोगों को चोट पहुंचती है। ऐसे में यदि कोई वास्तविक काम करके दिखाना चाहता है, वह हर कदम पर कुछ प्रशंसक जुटाता है और उससे असहमत लोगों को नाराज करता है। उन्हें खो देता है। यह बारूदी सुरंग से भरी जमीन पर छलांग लगाकर आगे बढ़ते रहने जैसा है। इसमें असली हुनर यह है कि कुछ फैसले ऐसे हों कि जिससे उसे ज्यादा समर्थक हासिल हो सकें। यही एकमात्र ऐसा तरीका है कि वह सत्ता विरोधी रुख से बचकर आगे बढ़ सके।
एक कदम गलत उठा कि परम चापलूस को भी चीखते-चिल्लाते शत्रु में बदलते देर नहीं लगती। सच तो यह है कि हर चापलूस वास्तव में खतरनाक प्रतिद्वंद्वी ही होता है, जो निराश किए जाने के लिए गिड़गिड़ा रहा है। हर दिन पाला बदलने के लिए एकदम तैयार। वफादारी राजनीति में कोई गुण नहीं है। केवल मूर्ख ही यह गुण अपनाते हैं। चतुर खिलाड़ी जानता है कि इस गुण को पक्षपात के बाजार में खरीदा व बेचा जा सकता है। बीते कल का लिजलिजा चापलूस, आने वाले कल का गुस्ताख व ढीठ विद्रोही हो सकता है (नीतीश कुमार से पूछो)।
मुझे पक्का मालूम है कि मोदी यह सब जानते हैं। यदि न भी जानते होंगे तो अब तक उन्हें पता चल गया होगा। संघ परिवार के भीतर ही उनके लिए खंजर निकाले जा चुके हैं। मीडिया अब तक तो उनकी बुद्धिमत्ता और प्रोत्साहन देने वाले उदार बजट की विरुदावली गा रहा था। अब उसी ने सबसे पहले उन्हें पराजित व्यक्ति के रूप में खारिज किया है। फिर भी सच तो यह है कि इसी पराजय में विजयी रणनीति तैयार करने का सटीक अवसर मौजूद है। उम्मीद है कि यह नाकामी उन्हें जमीन से जोड़ेगी। मोदी चाहे जो कहते हों, लेकिन उसके विपरीत यह देश शक्तिशाली, लड़ाकू, अपने दृष्टिकोण पर एकदम दृढ़ रहने वाले नेता के लिए व्याकुल नहीं है। भारत कोई रूस नहीं है। यह तो अमेरिका भी नहीं है। भारत तो भारत ही है। यहां चीजें लगातार बदलती रहती हैं। जब राजनीतिक विकल्पों के चुनाव का मामला हो तो हम सब अस्थिर, चंचल हो जाते हैं, क्योंकि लोकतंत्र ने हमें बिगाड़ दिया है। हम ऐसे नेता खोजते हैं, जिनमेें लचीलापन हो, जो हमारे बदलते विश्वासों को पहले से समझकर उससे निपटने की क्षमता रखता हो। हमें उबाऊ निरंतरता नहीं चाहिए। हमें ऐसे नेता चाहिए जो करुणा की बात करते हों, जिनमें कमियां-खामियां हों, जो मानवीय हों। इस क्षेत्र में गलतियां तो होनी ही हैं। जब तक वे माफी मांगने को राजी हैं, हम माफ करने को तैयार हैं।
सारांश यह है कि हम अपने जैसे लोगों को चुनते हैं, जो हमारे सपनों में भागीदार बनना चाहते हैं।
हमें वे नेता नहीं चाहिए, जो इतिहास में जगह बनाना चाहते हैं बल्कि ऐसे नेता चाहते हैं, जिन्हें हममें से एक होने में कोई शर्मिंदगी महसूस न हो। हम हमेशा महात्मा की खोज में रहते हैं और हममें से यदि कोई उसे गोली मार भी दे तो हम छह दशक उसका कोई कच्चा-पक्का प्रतिरूप खोजने में लगा देते हैं। कोई ऐसा व्यक्ति, जो हमारा नेतृत्व करें, हमें निराश करे, खुद को संभाले और फिर कोशिश करे। यही वजह है कि 49 दिनों में पद छोड़कर भागने वाले अरविंद केजरीवाल इतने बड़े बहुमत से फिर सत्ता में भेजे गए हैं। हम दुनिया को बता देना चाहते हैं कि हम नाकामी से नहीं घबराते। हम किसी को भी एक और मौका देने को तैयार हैं।
इसीलिए दिल्ली में कोई मोदी की हार नहीं हुई है। यह अरविंद की जीत है। यह उम्मीद और आम आदमी के साहस की जीत है। हमारे नेता चाहे राजनीति को युद्ध के रूप में लेते होंगे, लेकिन हम नहीं लेते। हमारे लिए तो चुनाव हमारे विकल्पों को आजमाने का एक और मौका है। हो सकता है हम हमेशा ही सर्वश्रेष्ठ लोगों को न चुनते हों, लेकिन इसमें कोई बुराई नहीं है। देश जानता है कि गलती कैसे सुधारी जाती है। हमारे लिए तो अपनी इच्छा का पूरी स्वतंत्रता के साथ इस्तेमाल ही महत्वपूर्ण है। यही तो हमें वह बनाता है, जो एक राष्ट्र के रूप में हम हैं।
इन्हीं सब कारणों से हमारी राजनीति में किसी को खारिज नहीं किया जा सकता। हमने बार-बार खारिज किए नेताओं को कामयाब होते देखा है। ठीक वैसे ही जैसे कोई भी हमेशा विजेता नहीं बना रह सकता। हमारे सार्वजनिक जीवन का यही तो जादू है। यह हमारी असली जिंदगी की तरह है। भयावह तरीके से अस्थिर। उतार-चढ़ाव से भरपूर। विजेता तो वे होते हैं, जो डटे रहते हैं। मुझे लगता है मोदी ऐसा कर सकते हैं।

‘Juvenile’ shoots dead UP history-sheeter Vicky Tyagi in courtroom

शार्प शूटर विक्की त्यागी की मौत भले ही सागर की पिस्टल से निकली गोलियों से हुई हो, लेकिन उसके पीछे अहम कारण अति आत्मविश्वास भी रहा। बड़कली सामूहिक हत्याकांड में उदयवीर पक्ष की 'रीढ़' टूटने के खम ने विक्की त्यागी को निश्चिंत कर दिया था। यह अहम कारण रहा कि विक्की त्यागी पुरानी बिसात पर सजे नए मोहरों को नहीं पहचान सका। सूत्रों की मानें तो गुर्गो की सुगबुगाहट को भी विक्की ने अनसुना कर दिया। विक्की के करीबियों की मानें तो 'फिल्डिंग' सजाने की खबर लगी थी, लेकिन वह विक्की के लिए थी इसकी भनक देर से लगी।

गैंगस्टर विक्की त्यागी की बधाई खुर्द के उदयवीर चेयरमैन व उसके परिवार से खुली अदावत भी सभी की जुबान पर आम है। दोनों तरफ से कई मर्तबा आमना-सामना हुआ, जबकि कई लाशें भी गिरीं। जुलाई 2011 में बड़कली में हुए सामूहिक हत्याकांड में उदयरवीर चेयरमैन समेत उसके परिवार के सात लोगों की मौत में विक्की त्यागी, उसकी पत्‍‌नी मीनू त्यागी व पूर्व प्रधान सुशील शुक्ला समेत कई लोग जेल गए। उदयवीर पक्ष की रीढ़ टूटने के बाद मुकदमेबाजी तो हुई, लेकिन सीधे तौर पर पेशबंदी पर लगाम लग गई। सामूहिक हत्याकांड के बाद गैंगवार या हमले की आशंकाएं जताई जाती रहीं, हालांकि ऐसा हुआ नहीं। सूत्रों के मुताबिक, उदयवीर पक्ष के एक जिम्मेदार शख्स ने विक्की से मिलकर बीच का रास्ता निकालने का न्यौता भी दिया। सूत्रों की मानें तो विक्की सतर्क तो था, लेकिन सीधे हमले की बेफीक्री भी थी। यही टारगेट का टर्निग प्वाइंट साबित हुआ। जेल से गिरोह चला रहे विक्की त्यागी की बादशाहत को चुनौती और 'मूंछ' का सवाल बनते देख 'रंजिश की बिसात' पर 'मोहरे' बदल गए। आत्मविश्वास की अति और बदले मोहरों ने बाजी पलट दी।

संजीव जीवा की फील्डिंग का था अंदेशा

सूत्रों की मानें तो विक्की त्यागी के गुर्गो ने बड़ी वारदात की फिल्डिंग जमाने और अंजाम देने के लिए स्वचालित असलाहों के इंतजाम की भनक पहुंचाई थी, लेकिन विक्की त्यागी इसका सटीक विश्लेषण नहीं कर पाया। सूत्रों की मानें तो विक्की त्यागी को अंदेशा था कि वारदात की फिल्डिंग का शिकार संजीव जीवा है।

देर आए न दुरुस्त

छपार के कुख्यात रोबिन त्यागी के बंदी वाहन पर हमले में विक्की त्यागी का नाम सामने आया तो अनिल दुजाना और रोबिन त्यागी से भी पेशबंदी शुरू हो गई। चुन्नी लाल हत्याकांड में नाम आने और रिमांड की प्रक्रिया शुरू होने पर विक्की त्यागी और परिजनों के कान खड़े हुए, साथ ही गुर्गो की सुगबुगाहट पुष्ट होती दिखी। भनक लगते ही विक्की त्यागी और उसके परिजनों ने हत्या का अंदेशा जताते हुए चिट्ठी-पत्री कर दी। सूत्रों की मानें तो उसमें उन्हीं पर हत्या का अंदेशा जताया गया, जिनमें से अधिकांश मुकदमे में नामजद हैं।

गैंगवार रोकने को पुलिस का मंथन

मुजफ्फरनगर: पुलिस विक्की त्यागी हत्याकांड के खुलासे के लगभग करीब है। पुलिस का मानना है कि हत्याकांड का खुलासा होने पर जिले में नई गैंगवार जन्म लेगी। इस गैंगवार को कैसे रोका जाए? इसी पर पुलिस फिलहाल होमवर्क कर रही है। विक्की के हत्यारे के परिवार के अलावा वेस्ट यूपी के माफिया डॉन के गुर्गो व उसके चिरपरिचित धुरविरोधियों की घेराबंदी करने में पुलिस जुटी है। इसके साथ ही विक्की पक्ष के शातिरों की लोकेशन भी ट्रेस की जा रही है। पुलिस की कोशिश विक्की के प्यादों की मुश्कें कसने की भी है। इसके लिए विक्की के शातिर शार्प शूटरों की सूची तैयार की जा रही है। इसके तहत जेल में बंद मीनू त्यागी की गतिविधि पर नजर रखी जा रही है। इसके अलावा वेस्ट यूपी के इस बड़े माफिया डॉन व विक्की के विरोधियों को चिंहित किया जा रहा है।

A history-sheeter of Muzaffarnagar district, Vicky Tyagi was shot dead during a hearing in the court of the additional district and sessions judge on Monday afternoon.
The killer, who claimed to be a juvenile and was wearing a lawyer’s uniform, was caught soon after he fired several gunshots with a .30 bore pistol killing Tyagi (38) on the spot. In April last year, he had escaped from Muzaffarnagar juvenile home, where he was kept after he allegedly killed the husband of his village’s pradhan following an enmity in July, 2013. He was untraceable since then.
The boy, who belongs to Shamli district, was held guilty in the murder case along with his brother, who is still absconding. He was caught and shifted to a juvenile home after court declared him a minor.
The youth told the police after he was caught that he had come to know that his rivals had given Tyagi a contract to kill him and his family members. Before Tyagi could have planned the strike, he killed him, he added.
Meerut Zone IG Alok Sharma said the court proceedings were on when the shooter fired at Tyagi. He said the killer has claimed he is a juvenile and was born in June, 1997. Police will seek opinion of medical experts to determine his age, Sharma added.
Tyagi had been brought to the Muzaffarnagar district court for hearing in a case. Lodged in Muzaffarnagar jail since 2012, he was a history-sheeter of Charthawal police station and had 32 criminal cases, including several that of murder, pending against him.
Senior Superintendent of Police, Muzaffarnagar, K B Singh said they are verifying the killer’s claims regarding the motive behind the murder.
Station House Officer of Civil Lines police station, Chandra Kiran Yadav said that on Monday afternoon, policemen escorting Tyagi took him to the courtroom.
While the court proceedings were on and Tyagi was standing in front of the judge, the killer fired 14 rounds at him, he added.
Hearing the gunshots, policemen rushed inside the courtroom and caught the shooter. Tyagi was lying on the floor with blood oozing out of his body. He had sustained about nine gunshot injuries, Yadav said.
Tyagi was recently held guilty along with Muzaffarnagar riots accused Muzammil for planning the murder of local jail head warden Chunni Lal Sharma from the prison on December 5. He was also held guilty for the attack on his rival Robin Tyagi while he was being escorted to Bulandshahr jail in a police van after a court hearing in Muzaffarnagar.
One of the escorting police constables, Narendra Singh had died in the attack while Robin and other policemen were injured. AK-47 rifles were used in the attack.

Monday, 9 February 2015

प्रदीप राय / पत्रकार

गाजीपुर जिले के निवासी और जी न्यूज, दिल्ली में क्राइम रिपोर्टर के तौर पर तीन वर्षों तक सेवा देने वाले युवा पत्रकार प्रदीप राय का निधन हो गया है. उन्होंने अंतिम सांस बनारस के एक अस्पताल में ली. बताया जाता है कि प्रदीप की किडनी और लीवर में प्राब्लम थी जिसका इलाज चल रहा था.

प्रदीप को बनारस के भोजूबीर स्थित अलकनंदा अस्पताल में भर्ती कराया गया था. बताया जाता है कि प्रदीप अल्कोहल लेने के आदी थे. बीच में उन्हें जांडिस की शिकायत हुई पर डाक्टरी सलाह के बावजूद जांडिस में भी मदिरा सेवन करते रहे. प्रदीप ने करियर की शुरुआत गाजीपुर जिले से स्टार न्यूज के स्ट्रिंगर के बतौर की थी. बाद में उन्होंने बनारस में जी न्यूज ज्वाइन कर लिया. फिर जी न्यूज ने उन्हें दिल्ली आफिस बुला लिया और उन्हें रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी दी गई. उन्होंने तीन वर्षों से ज्यादा समय तक जी में क्राइम रिपोर्टर के रूप में काम किया.

प्रदीप की पहचान अच्छे रिपोर्टर के तौर पर थी. उनकी उम्र 30 वर्ष थी. वर्ष 2009 के दिसंबर महीने में प्रदीप की शादी हुई थी और उन्हें हाल ही में एक बिटिया हुई. बिटिया के जन्म के बाद वे गांव चले गए थे. कुछ लोगों का यह भी कहना है कि उन्होंने जी न्यूज से किन्हीं वजहों से इस्तीफा देने के बाद अपने गांव का रुख कर लिया था. प्रदीप के निधन की सूचना देर में दिल्ली तक पहुंची. उनको जानने-चाहने वाले प्रदीप के अचानक चले जाने से स्तब्ध और दुखी हैं.

राष्ट्रवाद के जुझारू युद्धा दीनानाथ मिश्र

13 नवम्बर को अपराह्न  3 बजे श्री रामबहादुर राय का फोन आया कि अभी आधा घंटा पहले दीनानाथ मिश्र ने नोएडा के कैलाश अस्पताल में अपना शरीर त्याग दिया। सुनकर धक्का लगा, पर आश्चर्य नहीं हुआ। पिछले दो-तीन साल से उनका मृत्यु के साथ संघर्ष चल रहा था, उनकी सार्वजनिक गतिविधियां लगभग समाप्त हो गयी थीं और उनका अधिकांश समय अपने घर में या कैलाश अस्पताल में बिस्तर पर कट रहा था। उनसे मिलने के बाद कोई सहसा अनुमान  नहीं कर सकता था कि इस जर्जर शरीर के भीतर कितने जुझारू योद्धा का मस्तिष्क व अंत:करण विद्यमान है।दीनानाथ से मेरे परिचय व सम्बंध की यात्रा 1968 में आरंभ हुई। उस वर्ष फरवरी 1968 में पं.दीनदयाल उपाध्याय  की रहस्यमय मृत्यु के पश्चात पाञ्चजन्य का प्रकाशन लखनऊ से दिल्ली लाने का निर्णय लिया गया। एक दिन अचानक मुझे सरकार्यवाह स्व.बालासाहेब देवरस ने झंडेवालान कार्यालय पर बुलाकर कहा कि हम पाञ्चजन्य को दिल्ली ला रहे हैं और उसका संपादन तुम्हें संभालना है। मैं सहसा विश्वास नहीं कर सका, क्योंकि 1960 में जिन कारणों से मुझे पाञ्चजन्य से अलग होना पड़ा था, उनकी पृष्ठभूमि में मुझे पुन: यह दायित्व सौंपना बहुत बड़ा निर्णय था। मैं संगठन की इस विशाल हृदयता से अभिभूत हो गया और मैंने हां कर दी। उस समय मैं एक कालेज में पूर्णकालिक शिक्षक था और संगठन पर आर्थिक बोझ न बनने के लिए कृत्संकल्प था। शिक्षक रहते हुए ही मेरी सम्पादक यात्रा आरंभ हो गयी। व्यवस्था यह थी कि पाञ्चजन्य का स्वामित्व लखनऊ के राष्ट्रधर्म प्रकाशन के पास ही रहेगा पर उसका सम्पादन, मुद्रण और प्रसारण दिल्ली में उसकी सहयोगी संस्था भारत प्रकाशन संभालेगा। अब आवश्यकता थी मुझे सक्षम सहयोगी देने की। इस कमी को पूरा करने दीनानाथ मिश्र जोधपुर से दिल्ली लाये गये। उनका परिवार बिहार के गया जिले का निवासी था पर वह राजस्थान के जोधपुर नगर में आ गया था। वहीं दीनानाथ जी ने पढ़ाई की, वहीं वे संघ के निष्ठावान कार्यकर्त्ता बने। पर उनमें लेखन की जन्मजात प्रवृत्ति थी, पत्रकारिता की ओर उनका सहज झुकाव था। यह झुकाव ही उन्हें पाञ्चजन्य में खींच लाया और उनकी पत्रकार यात्रा आरंभ हो गयी। खुली चर्चा का वह दौरवे काफी पढ़ने-लिखने वाले व्यक्ति थे। मेरे कालेज से लौटने के पश्चात हम लोग ताजे घटनाचक्र पर खुली चर्चा करते। मुझे स्मरण है कि1969 में गांधी जी का जन्मशताब्दी वर्ष आया। हमने पाञ्चजन्य का विशेषांक आयोजित करने का विचार किया। गांधी जी के जीवन दर्शन, जीवनशैली एवं संस्कृति बोध से पूरी तरह सहमत होते हुए भी एक सामान्य धारणा मनों में बैठ गयी थी कि गांधी जी यदि चाहते तो देश विभाजन रुक सकता था। हिन्दू समाज को उन्होंने भरोसा दिलाया था कि ह्यविभाजन मेरी लाश पर होगाह्ण। समाज के इस विश्वास को वे नहीं निभा पाये और यह दंश अभी तक दिलों में बैठा हुआ था। काफी बहस के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि विभाजन का अध्याय तो पीछे जा चुका है, अब हमें गांधी जी के राष्ट्र निर्माता के पक्ष को ही प्रस्तुत करना चाहिए। इस प्रकार पाञ्चजन्य का वह विशेषांक संघ क्षेत्रों में गांधी जी की पुनर्मूल्यांकन का उदाहरण बन गया। 1971 का बंगलादेश मुक्ति संग्राम पाञ्चजन्य की पत्रकारिता को नयी ऊंचाइयां देने का माध्यम बन गया। घटनाचक्र तेजी से घूम रहा था। कल क्या होगा, इसका अनुमान लगाने में बड़ा मजा आता था। तब तक एक युवा कार्यकर्त्ता विजय क्रांति भी हमारी टीम में जुड़ गये थे। पूर्वी और पश्चिमी दोनों मोर्चों पर युद्ध चल रहा था। एक अंक को हम लोगों ने शीर्षक दिया ह्यलाहौर गिरा, कि याहिया गयेह्ण और वही हो गया, लाहौर गिर गया, याहिया चले गये। इस युद्ध का दुखांत था शिमला समझौता। यह विश्व इतिहास की अपूर्व घटना थी कि पाकिस्तान के 95000 सैनिक भारत के युद्धबंदी बन गये थे। भारत पाकिस्तान से जो चाहे शर्तें मनवा सकता था पर शिमला में इंदिरा जी जैसी कुशल और यथार्थवादी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के अभिनय से गच्चा खा गयीं और उन्होंने केवल एक मौखिक आश्वासन के आधार पर उन युद्धबंदियों को रिहा कर दिया। इससे तिलमिलाकर हमारे युवा साथी विजय क्रांति ने एक सैनिक की वेदना को अभिव्यक्त करने वाली कविता लिखी जिसे पाञ्चजन्य ने छापा और जिस पर भारत सुरक्षा कानून के अन्तर्गत देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया।उस समय पाञ्चजन्य की प्रसार संख्या प्रति सप्ताह हजारों में बढ़ी। उसे पाञ्चजन्य का चरमोत्कर्ष कहें तो अत्युक्ति न होगी। किंतु उन्हीं दिनों पाञ्चजन्य के स्वामी राष्ट्रधर्म प्रकाशन ने एक बड़ा निर्णय लिया। लखनऊ में उनके पास एक बड़ा छापाखाना था जिसका पेट भरने के लिए काम चाहिए था। प्रबंधन ने तय किया कि पाञ्चजन्य का संपादन तो दिल्ली में ही हो पर उसका मुद्रण लखनऊ में हो। इस आशय का एक पत्र मुझे भेजा गया। मैं अवाक् था कि इतना बड़ा अव्यावहारिक निर्णय संपादक के नाते मुझे विश्वास में लिये बिना क्यों ले लिया गया। मैंने संपादन से अलग रहने का निश्चय किया। दीनानाथ से चर्चा की। वे मेरी सोच से सहमत तो थे, पर संगठन के निर्णय का सम्मान करने के लिए वे प्रयोग करना चाहते थे। इस मन:स्थिति में 15 अगस्त 1972 को स्वतंत्रता की रजत जयंती विशेषांक के बाद उन्होंने पाञ्चजन्य का संपादक पद संभाला और 1974 तक वे इस प्रयोग की सफलता के लिए प्रयास करते रहे। प्रबंधन ने चाहा कि वे लखनऊ रहकर संपादन करें पर यह दीनानाथ जी की पारिवारिक स्थितियों में व्यवहार्य नहीं था। अत: वे लखनऊ नहीं जा सके और वह प्रयोग विफल हो गया।प्रगट हुआ योद्धा रूप1974 में गुजरात में नव निर्माण और बिहार में लोकनायक जयप्रकाश के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन का तूफान उमड़ने लगा था। इसकी परिणति 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा में हुई। राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लग गया, लगभग पूरा राजनीतिक नेतृत्व जेलों में ठूंस दिया गया, मीडिया के मुंह पर सेंसरशिप का ताला ठोंक दिया गया। इस समय दीनानाथ का योद्धा रूप प्रगट हुआ। वे भूमिगत हो गये। उन्होंने अपने परिवार को बिहार भेज दिया। मकान के मुख्य दरवाजे पर बड़ा सा ताला ठोंक दिया और स्वयं पिछले दरवाजे से रात में सोने के लिए आने लगे। पर एक दिन पुलिस को सुराग मिल गया और इनकी गिरफ्तारी हो गयी। इनके कारावास काल में इनके एक भाई की अस्पताल में दुखद स्थितियों में मृत्यु हो गई। तब कहीं इन्हें पैरोल मिला। वे पुन: भूमिगत हो गये और आंदोलन का भूमिगत बुलेटिन ह्यप्रजावाणीह्ण नाम से निकालने में जुट गये। घोर आर्थिक कठिनाइयों में भी संघर्षरत रहे। 1977 में जनता पार्टी का शासन आने पर इनकी पत्रकारीय क्षमताओं के आधार पर इन्हें नवभारत टाइम्स में स्व.सच्चिदानंद अज्ञेय के संपादककाल में नियमित नौकरी मिली। अज्ञेय जी के बाद स्व.राजेन्द्र माथुर के संपादक काल में दीनानाथ बिहार में प्रतिनिधि बनाकर भेजे गये। उन्हीं दिनों उन्होंने जयपुर से नवभारत टाइम्स का संस्करण निकालने की योजना माथुर जी को दी, जिससे प्रभावित होकर उन्होंने दीनानाथ के संपादकत्व में जयपुर संस्करण निकालने का निर्णय लिया। 1979 में जनता पार्टी में आंतरिक सत्ता संघर्ष के समय जब संघ की दोहरी सदस्यता के प्रश्न को उछाला गया तब दीनानाथ ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वास्तविक स्वरूप की जानकारी देते हुए एक पुस्तक प्रकाशित की।व्यंग्य लेखन में माहिरहिन्दी के साथ-साथ अंग्रेजी पत्रकारिता में भी उन्होंने कदम बढ़ाये। 1977 में पाञ्चजन्य पुन: लखनऊ से दिल्ली लाया गया, पर इस बार उसका स्वामित्व भी राष्ट्रधर्म प्रकाशन से भारत प्रकाशन को हस्तांतरित किया गया। पाञ्चजन्य के इस चरण में दीनानाथ ने ह्यरमतेराम की डायरीह्ण शीर्षक से व्यंग्य लेखन में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। उनके व्यंग्य लेखों का एक संकलन ह्यघर की मुर्गीह्ण शीर्षक से छपा, जिसे उन्होंने मुझे समर्पित कर गौरव प्रदान किया।  ह्यचापलूसी के आरोप के डर से मैं पद पर बैठे बड़े लोगों में से किसी को यह पुस्तक समर्पित नहीं कर रहा। मैंने समर्पण के लिए एक बड़े आदमी को चुना, जो किसी पद पर नहीं हैं-देवेन्द्र स्वरूप जी अग्रवाल को। घर की मुर्गी दाल बराबर को ह्यघर की मुर्गीह्ण समर्पित-दीनानाथ मिश्र।ह्ण अंग्रेजी के ह्यपॉलिटिकल और बिजनेस आब्जर्वरह्ण पत्र में वे नियमित स्तंभ लेखक बन गये। रफी मार्ग पर आईएनईएस बिल्डिंग में उन्होंने अपने बैठने का स्थान भी बनाया। वही बैठकर वे लेखन कार्य करते एवं पत्रकार जगत से सम्पर्क बनाये रखते।योजकता का प्रमाणदीनानाथ के व्यक्तित्व में राष्ट्रभक्ति, संस्कृतिनिष्ठा, बौद्धिक प्रतिभा, संगठन कौशल्य एवं महत्वाकांक्षा का अद्भुत संगम था। उनका मस्तिष्क हर समय नयी-नयी बौद्धिक गतिविधियों व संपर्कों की योजना बनाता रहता था। भारतीय राजनीति के तत्कालीन शिखर पुरुष लालकृष्ण आडवाणी के वे अति विश्वास पात्र माने जाते थे। 1998 में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राजग की सरकार बन जाने पर उन्हें राज्यसभा की सदस्यता प्राप्त हुई। वे 1998 से 2004 तक राज्यसभा सदस्य रहे। इसी काल में उन्होंने इंडिया फर्स्ट फाउंडेशन नामक एक प्रतिष्ठान की स्थापना की और उस प्रतिष्ठान के तत्वावधान में राष्ट्र के समकालीन एवं मूलभूत प्रश्नों पर भारतीय राष्ट्रवाद के दृष्टिकोण से विपुल साहित्य सृजन की महत्वाकांक्षी योजना तैयार की। उन्होंने प्रत्येक विषय के लिए योग्य लेखकों के नाम ढूंढे, उनसे लेखन का अनुबंध किया। यह पूरी योजना तो क्रियान्वित नहीं हो पायी पर उसका जितना अंश हो पाया है, वह ही दीनानाथ की योजकता का प्रमाण है। कुछ समय तक दीनानाथ जी का इंडिया फर्स्ट फाउंडेशन बौद्धिक कार्यक्रमों एवं बौद्धिकों के समागम का बड़ा सक्रिय केन्द्र बना रहा। इस फाउंडेशन का कार्यालय ही एस.गुरुमूर्ति की ह्यग्लोबल फाउंडेशन फार सिविलाइजेशनल हार्मनीह्ण की आधारभूमि बना।इसी फाउंडेशन के तत्वावधान में उन्होंने अक्तूबर 2008 में ह्यईटरनल इंडियाह्ण नामक एक मासिक शोध पत्रिका आरंभ की जो मई 2011 तक लगातार निकलती रही। उसकी सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने अक्तूबर 2009 में चिरंतन भारत नाम से हिन्दी पत्रिका आरंभ की। इा दोनों पत्रिकाओं का स्तर अनुकरणीय है। किंतु मई 2011 तक आते-आते दीनानाथ का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य काम के दबाव एवं साधनों के अभाव के कारण गिरने लगा। उन्हें बार-बार फाउंडेशन का स्थान बदलना पड़ा। बाईपास सर्जरी से गुजरना पड़ा। डाक्टरी परामर्श पर उन्हें अपने खान-पान की आदतों को बदलना पड़ा। उनके कुछ कठोर निर्णयों ने उनके निकट सहयोगियों को भी चौंका दिया।पत्रकारिता के उन्नयन की सतत चिंताभारतीय पत्रकारिता का चरित्र और पक्षीय राजनीति के लिए उसके दुरुपयोग के बारे में दीनानाथ हमेशा चिंतित रहते थे। इस विषय पर उन्होंने कई नोट तैयार किये, कई केन्द्रीय सूचना व प्रसारण मंत्रियों को रचनात्मक सुझाव दिये। अभी भी समय है कि दीनानाथ की उन चिंताओं और योजनाओं का संग्रह करके उनके क्रियान्वयन हेतु कोई अध्ययन ग्रुप काम करे।भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के रजत जयंती वर्ष 2005 में भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के इतिहास एवं दस्तावेजों को कई खंडों में संकलित एवं प्रकाशित करने के विशाल प्रकल्प के मार्गदर्शन का भार दीनानाथ को दिया गया जो उन्होंने 2005 के अंत तक पूरा कर दिखाया। यह विशाल ग्रंथावली दीनानाथ की योजकता से अधिक उनकी प्रकाशन-सुरुचि को प्रतिबिम्बित करती है।दीनानाथ थोड़ा जल्दी चले गये। वे मुझसे आयु में भले ही दस वर्ष कम रहे हैं, किंतु उनकी क्षमताएं एवं कतृर्त्व बहुत बड़ा है। उनकी जीवन यात्रा के बिखरे सूत्र अभी बटोरे जाने हैं। उस दिशा में यह पहला पग मात्र है। दीनानाथ ने मुझे बहुत स्नेह व सम्मान दिया। 1968 से अपनी यात्रा के प्रत्येक सोपान पर मुझे साथ लेने का प्रयास किया। मेरा मन इस समय कृतज्ञता और अपूरणीय अभाव की वेदना से भरा है। भारतीय राष्ट्रवाद के इस जुझारू योद्धा को अश्रुपूरित विदा। ल्ल देवेन्द्र स्वरूप   14 नवम्बर, 2013

भाजपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य और लेखक दीनानाथ मिश्र का बुधवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया।

76 साल के मिश्र पिछले कुछ समय से बीमार थे। उन्हें हाल ही में एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

मिश्र ने अपना करियर बतौर पत्रकार शुरू किया था। वह वर्ष 1971 से 1974 तक आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य के संपादक रहे थे।

बाद में वह नवभारत टाइम्स के संपादक भी रहे। मिश्र वर्ष 1998 से 2004 तक सांसद रहे थे।

वह मूल रूप से बिहार के गया के रहने वाले थे लेकिन वे 1967 में अपने परिवार के साथ दिल्ली आ गए और यहीं बस गए।

उनके परिवार में पत्नी, बेटा और तीन बेटियां हैं। उनकी मौत पर भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने शोक जताया है। 

Sunday, 1 February 2015

Atul Kumar Rai Former Managing Director, Chief Executive Officer and Director, IFCI Limited

Shri Atul Kumar Rai served as Chief Executive Officer and Managing Director at IFCI LTD from July 11, 2007 to May, 2013. Shri Rai served as a Secretary of IFCI Factors Ltd. He holds 20 years experience in Government Service. He served as a Director of Land Finance at Delhi Development Authority and worked in Intelligence Bureau in Department of Industrial Policy and Promotion, Planning Commission, and Forward Market Commission of Government of India. He serves as Chairman at IFCI Factors Ltd. He served as the Chairman at IFCI Venture Capital Funds Ltd. He served as Chairman at IFCI Infrastructure Development Ltd. He served as Chairman at Tourism Finance Corp. of India Ltd from August 8, 2012 to May 31, 2013 and its Additional Director since June 28, 2007. He served as Deputy Chairman at Haldia Petrochemicals Limited and its Director since September 2007. Shri Rai serves as a Director (EA & IFI) in the Banking Division at Ministry of Finance. He has been Independent & Nominee Director at Marck Biosciences Ltd. since December 27, 2008. He serves as a Director of MCX Stock Exchange Ltd. He served as Director of Assets Care Enterprise Ltd. (ace). He served as a Director of Industrial Finance Corp. of India Ltd. from August 23, 2005 to March 2007. He served as a whole time Director of Industrial Finance Corp. of India Ltd. from June 1, 2007 to July 2007 and also its Director from August 23, 2005 to March 2007 and from July 2007 to May 2013. He served as an Additional Director at GIC Housing Finance from August 13, 2007 to February 4, 2009. He served as a Director of Vijaya Bank, Ltd., from June 1, 2004 to August 19, 2007. He served as a Director of Dena Bank and India Infrastructure Finance Company, Ltd. Shri Rai served as Director Industrial Investment Bank of India Ltd. from December 2002 to August 14, 2007.


Board Members Memberships*

Former Chairman
Former Director
Former Director
Director
Former Chairman
Chairman and Chairman of Remuneration Committee
2002-N/A
Former Director and Member of Audit Committee
2002-2007
Former Director
2004-2007
Former Director, Member of Audit Committee, Member of Management Committee, Member of Directors Promotion Committee and Member of Customer Service Committee
2007-N/A
Former Deputy Chairman, Chairman of Borrowings & Risk Management Committee, Member of Audit Committee and Member of Committee for Share transfers etc
2007-2013
Former Managing Director, Chief Executive Officer and Director
2007-2009
Former Additional Director
2008-Present
Independent & Nominee Director
2012-2013
Former Chairman

Education*

Unknown/Other Education
University of Delhi
BA
University of Delhi
Master's Degree
Jawaharlal Nehru University

Other Affiliations*


Pritam Singh

Executive Profile

Pritam Singh M.Com., MBA (USA), Ph.D.

AgeTotal Calculated CompensationThis person is connected to 3 Board Members in 3 different organizations across 9 different industries.

See Board Relationships
73--

Background

Dr. Padmasri Pritam Singh, M.Com., MBA (USA), Ph.D. has been a Director General of International Management Institute, New Delhi since April 7, 2011. Dr. Singh serves as Dean of ASCI Hyderabad and IIM, Bangalore. He serves as a Member of the Local Board for Northern area of Reserve Bank Of India. He has been a Non-Executive Independent Director at Parsvnath Developers Limited since March 11, 2006. Dr. Singh has been an Independent Non Executive Director of Hero MotoCorp Limited (formerly, Hero Honda Motors Limited) since August 22, 2005. He serves as a Director of Shipping Corporation of India and The Delhi Stock Exchange Association Limited. He has been an Independent Director of Godrej Properties Limited since January 16, 2008. He served as a Shareholder Director of Dena Bank from March 17, 2009 to April 25, 2013. He served as a Director of ICRA Limited until May 9, 2006. He served as a Director of Dish TV India Ltd., from April 27, 2007 to October 2012. He served as a Director at Punjab National Bank. from August 6, 2002 to August 6, 2005. He served as a Director of Shipping Corp. of India from March 2000 to July 27, 2007. He served as a Trustee of UTI Trustee Company Private Limited at UTI Mutual Fund - Children Career Plan until January 13, 2006. Dr. Singh is one of the pioneers of management education in India and abroad. Dr. Singh initiated a number of social projects focusing on Healthcare, Education, Water Management and Road Building for the surrounding community to improve the quality of life. He serves as a Director of Management Development Institute, Gurgaon. He served as a Director of the Indian Institute of Management, Lucknow. He is WCL Chair Professor of ASCI Hyderabad and Professor of O.B. He is author of seven academically reputed books and published over 50 research papers. Owing to his contributions towards building intellectual capital at Administrative Staff College and refocusing of IIM, Bangalore as a truly integrated management school, he is branded as a Change Master par excellence and a Renaissance leader. He was awarded the Padma Shri in 2003 and many prestigious management awards such as UP Ratna Award in 2001 and Best Director Award of Indian Management Schools in 1998. Notable among them are ESCORT Award (1979 and 2002), FORE Award (1984), Best Motivating Professor IIM Bangalore Award (1993), Outstanding CEO (Chief Executive Officer) National HRD Award (2001) UP RATNA Award (2001), Wisitex Foundation Award - Eminent Personality of the Decade (2002) TIEUP California USA Outstanding Entrepreneur Award (2002), IMM Outstanding Management Educator Award (2002) and Managerial GRID Leadership Excellence Award (2002). Dr. Singh holds PhD and Masters degree in Commerce from Benares Hindu University and Masters degree in Business Administration from the Indiana University Bloomington Indiana USA.

Corporate Headquarters

Central Office Building
Mumbai, Maharashtra 400001

India
Phone--
Fax--

Board Members Memberships

Former Director
Former Trustee of UTI Trustee Company Private Limited
2000-2007
Former Director and Member of Audit Committee
2002-2005
Former Director
2005-Present
Independent Non Executive Director, Chairman of Stakeholders' Relationship Committee and Member of Audit Committee
2006-Present
Non-Executive Independent Director, Chairman of Nomination & Remuneration Committee and Member of Audit Committee
2007-2012
Former Independent Non-Executive Director, Member of Audit Committee and Member of Remuneration Committee
2008-Present
Independent Director, Member of Audit Committee and Member of Nomination \ Remuneration Committee
2012-2013
Former Director, Member of Management Committee, Member of Remuneration Committee, Member of Monitoring Large Value Frauds Committee and Member of Committee On HR

Education

Master's Degree
Indiana University, Bloomington
MBA
Indiana University, Bloomington
PhD
Banaras Hindu University
Master's Degree
Banaras Hindu University
MBA
Indiana State University

Other Affiliations

Annual Compensation

There is no Annual Compensation data available.

Stocks Options

There is no Stock Options data available.

Total Compensation

There is no Total 

PROFILE OF DIRECTOR

Dr. Singh was appointed as an Additional Director on the Board of the Company on September 28, 2004. in the category of Non-Executive and Independent Director. He is author of seven academically reputed books and over 50 research papers. Dr. Pritam Singh is one of the pioneers of Management Education in India who has devoted his life to the development of Management Education in India and abroad. Dr. Singh received the Padam Shri Award in 2003 for his contributions to this field.

Building on the strong foundation that Dr. Pritam Singh has built, I will work with the distinguished faculty members & administrative staff Dr Bakul Dholakia, DG Designate, IMI New Delhi

After lending his Midas touch to yet another institution, Dr Pritam Singh, Director General (DG), International Management Institute (IMI) New Delhi, is stepping down from his office owing to health reasons. Former IIM Ahmedabad Director Dr Bakul Dholakia will be stepping into his shoes as Director General of IMI New Delhi from October 1, 2014. Both Dr Pritam Singh and Dr Bakul Dholakia have confirmed this significant development with MBAUniverse.com.
Confirming the development, Dr Bakul Dholakia told MBAUniverse.com, “I am looking forward to my association with IMI New Delhi at its new Director General from Oct 1, 2014. Building on the strong foundation that Dr. Pritam Singh has created, I will work with the distinguished faculty members & administrative staff to make IMI a premier world-class Business School.”
Dr Pritam Singh took over as the DG of IMI in April 2011. In a short span of three years, IMI New Delhi has significantly improved its position on major B-school Rankings, expanded physical infrastructure at its New Delhi campus, significantly increased applications to its PGDM programs and shored up the Placements significantly. IMI has also doubled its faculty strengths in this period. The recent rapid growth at IMI New Delhi gains even greater significance, as the period (2010-2014) coincided with an unprecedented churn in Indian management education.
Dr Singh's colleagues give him full credit for resurrecting IMI and other institutions in past. Dr Subir Verma, Dean, Placement & Corporate Connections, IMI said, “There are three facets of Dr Singh that make him unique. As a leader, he creates a shared-vision, and then aligns all institutional resources towards executing the vision. He is a great academic administrator, who believes in empowerment to Deans and Faculty Council. Finally, as a person, he stands for fairness & justice.” Dr B Metri, Dean, Academic at IMI, added, “Dr Singh is a wonderful leader. He is a visionary who always has the big picture in mind.”
A recipient of the Padma Shri, Dr Singh is widely known as the man with the 'Midas Touch'. He is credited with turning around the fortunes of Management Development Institute (MDI), Gurgaon, and the Indian Institute of Management, Lucknow. He was Director of MDI twice - from 1994 to 1998 and then from 2003 to 2006. He headed IIM Lucknow from 1998 to 2003. He was also the Dean at IIM Bangalore & ASCI, where he played a significant role in repositioning the institutions.
IMI New Delhi, established in 1981, is known as India’s first corporate sponsored Business School with sponsorship from corporate houses like RPG Enterprises, Nestle, ITC amongst others. With its focus on building intellectual capital, IMI quickly rose to become a leading B-school in 1990s. However, IMI went into a quiet phase in 2000s, even though the competition within B-schools increased ferociously. Since Dr Singh took over as its DG in 2011, IMI has risen significantly on the B-school ranking. IMI was ranked #10 by Business Today in October 2013 and was ranked #6 by NHRDN Ranking in May 2013.
Speaking on his vision for IMI New Delhi, Dr Dholakia said, “IMI is very strong on intellectual capital. We will work on enhancing its National, Asian and Global visibility and will further enhance IMI's stature and appeal to key stakeholders like Recruiters, Applicants and Peers among Global B-schools.”
Much respected for his bold stance on the ‘Autonomy of Higher Education Institutions’, Padma Shri awardee Dr. Bakul Dholakia was the guiding force behind the expansion of activities at IIMA. Dr Bakul Dholakia is currently the Director of Adani Institute of Infrastructure Management, Ahmedabad and Advisor to Adani Group. Dr Dholakia was awarded the Padma Shri in 2007.

Pritam Singh Ranked 27

An Inspiring role model, Dr. Pritam Singh has spent his entire life tirelessly doing what he does best: awakening students, academia, corporate heads and policy makers to raise their excellence to the next level. As the chairman and member of several policymaking committees and bodies of Government of India, he has stamped his perspective on policy issues that surround both management education and corporate management in India. He sits on the Board of more than 50 reputed private and public sector organizations helping them initiate the change process and charter a winning corporate strategy. As a consultant, Dr Pritam Singh has done work with more than 200 CEOs in India and abroad and conducted more than 100 retreats for the top management of both private and public sector organizations as well as Multi-national Corporations. In a fitting tribute to this change maestro, it was Dr. Pritam Singh who was entrusted with the distinction of organizing and directing the first retreat of the Central Ministers as part of Late Shri Rajiv Gandhi’s initiative to develop Ministers as Transformational Leaders and Change masters.
As an academic administrator, Dr. Pritam Singh has an unparalleled record. With his entrepreneurial vision and path breaking innovative methods, Dr. Pritam Singh turnaround the fortunes of both MDI (where he was director 1994-1998 & 2003-2006) and IIM Lucknow(1998-2003) and quite fittingly earned the repute of Midas touch Director.His distinguished services were acknowledged by the country when the President of India conferred on him the prestigious ‘Padma-Shri’ in year 2003. It was for the first time that any Professor and a serving Director in India received this coveted award in the field of management education.

Management गुरु प्रीतम सिंह

Pritam Singh is the Director General of International Management Institute, India. Previously, he has been the Director of Management Development Institute (MDI), Gurgaon, India (1994–1998 and 2003–2006), and Indian Institute of Management, Lucknow (IIML), India (1998–2003).

An inspiring role model, Dr Pritam Singh has spent his entire life tirelessly doing what he does best: awakening students, academia, corporate heads, and policymakers to raise their excellence to the next level. As the chairman and member of several policymaking committees and bodies of Government of India, he has stamped his perspective on policy issues that surround both management education and corporate management in India. He sits on the boards of more than 20 reputed private- and publicsector organizations, helping them initiate change processes and charter winning corporate strategies. As a consultant, Dr Singh has worked with more than 200 CEOs in India and abroad and conducted more than 100 retreats for the top management of both private- and public-sector organizations as well as multinational corporations.

As an academic administrator, Dr Singh’s record is unparalleled. With his entrepreneurial vision and path-breaking innovative methods, Dr Singh turned around the fortunes of both MDI (where he was director in the periods 1994–1998 and 2003–2006) and IIML (1998–2003), and, quite fittingly, earned the repute of being the “Midas Touch” director. 

A thought leader with extraordinary insight, Dr Singh is the author of seven academically reputed books, three of which are award winning. He has also published over 60 research papers in various national and international journals. He is a globally sought-after speaker and has addressed various Indian and global audiences including chambers of commerce in various countries, notably, the Netherlands, France, Germany, Greece, Russia, UK, USA, Thailand, Mauritius, Egypt, and so on.

Dr Singh is and has been a member and the chairman of several important government committees:

1. Chairman, Sub-committee on Institutional Management and Leadership Development in Higher Education, Planning Commission of India (for Twelfth Five Year Plan, 2012–2017).

2. Member, Banking Selection Board (for selecting chairperson, managing directors, and executive directors).

3. Member, Department of Personnel and Training, Government of India committee on leadership building for the Indian Administrative Services officers.

4. Member, Ministry of Home Affairs, Government of India committee for the capacity building of Indian Police Service officers.

5. Member, Tenth Five Year Plan for Higher Education. 

His distinguished services were acknowledged by the country when the President of India conferred on him the prestigious Padma Shri in 2003 for excellence in education. It was for the first time that any professor and a serving director of a management institute in India received this coveted award in the field of management education.

Dr Singh is an MCom (Gold Medalist), Banaras Hindu University (BHU); PhD in Management, BHU; DLit, UP Technical University; and Fulbright Fellow, Kelley School of Management, Bloomington, Indiana, USA.

Indradeep Sinha / इन्द्रदीप सिन्हा

Indradeep Sinha (July 1914 – June 9, 2003) was a freedom fighter and veteran communist leader. He was born in Shakara village in present-day Siwan District of BiharIndia, in July 1914. He had an academic career and secured a gold medal in post-graduation in Economics from Patna University in 1938. He wrote about 25 books. He chose to serve the people by fighting for political freedom of the nation and social and economic justice to its people. With a master's degree in economics from Patna University and a gold medal, Sinha joined the Communist Party of India in 1940 and served the party as state secretary. A lecturer and journalist, Sinha was Secretary of the Bihar State Council of the Communist Party of India from 1962 to 1967 and had served as the General Secretary of the All India Kisan Sabha from 1973 until the late 1990s. Sinha was also editor of the HunkarJanasakti and New Age weeklies. Indradeep Sinha started his legislative career with the membership of the Bihar Legislative Council, where he was a member from 1964 to 1974. He also served as the Minister of Revenues in the United Front Government of Bihar from 1967 to 1968. As Revenues Minister, he took several initiatives to ameliorate the condition of the poor and took steps for distribution of land to the landless in the State. Sinha represented the State of Bihar in the Rajya Sabha for two terms from April 1974 to April 1980 and again from July 1980 to July 1986.

Partial bibliography of books authored[

  • Crisis of capitalist path in India: The policy alternatives, Communist Party of India (1982).
  • On certain ideological positions of Communist Party of India (Marxist) and Communist Party of India (1983).
  • Real face of JP's total revolution, Communist Party of India (1974).
  • Some features of current agrarian situation in India, All India Kisan Sabha, (1987).
  • The changing agrarian scene: Problems and tasks, Peoples Publishing House (1980).
  • Some questions concerning Marxism and the peasantry, Communist Party of India (1982).
  • Sathi ke Kisanon ka Aitihasic Sangharsha (Historic Struggle of Sathi Peasants), in HindiPatna (1969).