Sunday, 20 September 2015

1965: 'जिंदा या मुर्दा डोगरई में मिलना है' @रेहान फ़ज़ल

Image captionडोगरई की लड़ाई में भाग लेने वाले सैनिक प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के साथ. शास्त्री के ठीक पीछे हैं कर्नल हेड.
6 सितंबर, 1965 को सुबह 9 बजे 3 जाट ने इच्छोगिल नहर की तरफ़ बढ़ना शुरू किया.
नहर के किनारे हुई लड़ाई में पाकिस्तानी वायु सेना ने बटालियन के भारी हथियारों को बहुत नुक़सान पहुंचाया. इसके बावजूद 11 बजे तक उन्होंने नहर के पश्चिमी किनारे पर पहले बाटानगर पर कब्ज़ा किया और फिर डोगरई पर.
लेकिन भारतीय सेना के उच्च अधिकारियों को उनके इस कारनामे की जानकारी नहीं मिल पाई. डिवीजन मुख्यालय को कुछ ग़लत सूचनाएं मिलने के बाद उनसे कहा गया कि वो डोगरई से 9 किलोमीटर पीछे हट कर संतपुरा में पोज़ीशन ले लें.
वहाँ उन्होंने अपने ट्रेन्चेज़ खोदे और पाकिस्तानी सैनिकों के भारी दबाव के बावजूद वहीं डटे रहे.

डोगरई पर दोबारा हमला

Image captionडोगरई पर कब्ज़ा होने के बाद का दृश्य.
21 सितंबर की रात को 3 जाट ने डोगरई पर फिर हमला कर दोबारा उस पर कब्ज़ा किया, लेकिन इस लड़ाई में दोनों तरफ़ से बहुत से सैनिक मारे गए.
इस लड़ाई दुनिया की बेहतरीन लड़ाइयों में शुमार किया जाता है और इसे कई सैनिक स्कूलों के पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है. इस पर हरियाणा में लोकगीत भी बन गए हैं-
कहे सुने की बात न बोलूँ, आँखों देखी भाई
तीन जाट की कथा सुनाऊँ, सुन ले मेरे भाई
इक्कीस सितंबर रात घनेरी, हमला जाटों ने मारी
दुश्मन में मच गई खलबली, कांप उठी डोगरई

गोलों के बीच चहलकदमी

Image captionरेहान फ़ज़ल के साथ जनरल वर्मा बीबीसी स्टूडियो में.
मेजर जनरल बी आर वर्मा याद करते हैं, "21 और 22 की रात को हम सब अपनी ट्रेंच में बैठे हुए थे. सीओ लेप्टिनेंट कर्नल हेड ने ट्रेंच की दीवार से अपना पैर टिकाया हुआ था. जैसे ही पाकिस्तानियों ने गोलाबारी शुरू की उन्होंने अपना हेलमेट लगाया और ट्रेंच के बाहर आकर आ रहे गोलों के बीच चहलक़दमी करने लगे."
ये उनको लोगों को बताने का एक तरीका था कि उन्हें किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है. वो कहा करते थे कि तो गोली मेरी लिए बनी है वही मुझे मार पाएगी. बाकी गोलियों से मुझे डरने की ज़रूरत नहीं है.’
1965 की लड़ाई पर किताब लिखने वाली रचना बिष्ट रावत बताती हैं, "21 सितंबर की रात जब उन्होंने अपने सैनिकों को संबोधित किया तो उनसे दो मांगें की. एक भी आदमी पीछे नहीं हटेगा. और दूसरा ज़िदा या मुर्दा डोगरई में मिलना है. उन्होंने कहा अगर तुम भाग भी जाओगे, जब भी मैं लड़ाई के मैदान में अकेला लड़ता रहूँगा. तुम जब अपने गाँव जाओगे तो गाँव वाले अपने सीओ का साथ छोड़ने के लिए तुम पर थूकेंगे."

सीओ साहब मर गए तो क्या करोगे?

इसके बाद जब सारे सैनिकों ने खाना खा लिया तो वो अपने सहयोगी मेजर शेखावत के साथ हर ट्रेंच में गए और सिपाहियों से कहा, "अगर हम आज मर जाते हैं तो ये बहुत अच्छी मौत होगी. बटालियन आपके परिवारों की देखभाल करेगी. इसलिए आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं है."
Image captionइच्छोगिल नहर के किनाारे सेनाध्यक्ष जनरल चौधरी के साथ कर्नल हेड.
कर्नल शेखावत याद करते हैं, "हेड की बात सुन कर लोगों में जोश भर गया. उन्होंने एक सिपाही से पूछा भी कि कल कहाँ मिलना है तो उसने जवाब दिया डोगरई में. हेड ने तब तक जाटों की थोड़ी बहुत भाषा सीख ली थी. अपनी मुस्कान दबाते हुए वो बोले, ससुरे अगर सीओ साहब ज़ख्मी हो गया तो क्या करोगे. सिपाही ने जवाब दिया, सीओ साहब को उठा कर डोगरई ले जाएंगे, क्यों कि सीओ साहब के ऑर्डर साफ़ हैं... ज़िदा या मुर्दा डोगरई में मिलना है."

हमला शुरू हो चुका है

Image captionकर्नल डेसमंड हेड
54 इंफ़ैंट्री ब्रिगेड ने दो चरणों में हमले की योजना बनाई थी. पहले 13 पंजाब को 13 मील के पत्थर पर पाकिस्तानी रक्षण को भेदना था और फिर 3 जाट को हमला कर डोगरई पर कब्ज़ा करना था.
लेकिन हेड ने ब्रिगेड कमांडर से पहले ही कह दिया था कि 13 पंजाब का हमला सफल हो या न हो, 3 जाट दूसरे चरण को पूरी करेगी. 13 पंजाब का हमला असफल हो गया और ब्रिगेड कमांडर ने वायरलेस पर हेड से उस रात हमला रोक देने के लिए कहा.
हेड ने कमाँडर की सलाह मानने से इंकार कर दिया. उन्होंने कहा, हम हमला करेंगे, बल्कि वास्तव में हमला शुरू हो चुका है.

27 ही जीवित बचे

ठीक 1 बज कर चालीस मिनट पर हमले की शुरुआत हुई. डोगरई के बाहरी इलाके में सीमेंट के बने पिल बॉक्स से पाकिस्तानियों ने मशीन गन से ज़बरदस्त हमला किया.
सूबेदार पाले राम ने चिल्ला कर कहा, "सब जवान दाहिने तरफ़ से मेरे साथ चार्ज करेंगे." कैप्टेन कपिल सिंह थापा की प्लाटून ने भी लगभग साथ साथ चार्ज किया.
जो गोली खा कर गिरे उन्हें वहीं पड़े रहने दिया गया. पाले राम के सीने और पेट में छह गोलियाँ लगीं लेकिन उन्होंने तब भी अपने जवानों को कमांड देना जारी रखा.
हमला कर रहे 108 जवानों में से सिर्फ़ 27 जीवित बच पाए. बाद में कर्नल हेड ने अपनी किताब द बैटिल ऑफ़ डोगरई मे लिखा, "ये एक अविश्वसनीय हमला था. इसका हिस्सा होना और इसको इतने नज़दीक से देख पाना मेरे लिए बहुत सम्मान की बात थी."

आसाराम त्यागी की बहादुरी

कैप्टेन बीआर वर्मा अपने सीओ से 18 गज़ पीछे चल रहे थे कि अचानक उनकी दाहिनी जाँग में कई गोलियाँ आकर लगीं और वो ज़मीन पर गिर पड़े.
कंपनी कमांडर मेजर आसाराम त्यागी को भी दो गोलियाँ लगीं, लेकिन उन्होंने लड़ना जारी रखा. उन्होंने एक पाकिस्तानी मेजर पर गोली चलाई और फिर उस पर संगीन से हमला किया.
Image captionरचना बिष्ट रेहान फ़ज़ल के साथ.
रचना बिष्ट बताती हैं कि इस बीच बिल्कुल प्वॉएंट ब्लैंक रेंज से उनको दो गोलियाँ और लगीं और एक पाकिस्तानी सैनिक ने उनके पेट में संगीन भोंक दी.
वो अपना लगभग खुल चुका पेट पकड़ कर जैसे ही गिरे हवलदार राम सिंह ने एक बड़ा पत्थर उठा कर उन्हें संगीन भोंकने वाले पाकिस्तानी सिपाही के सिर पर दे मारा.
मेजर वर्मा बताते हैं, "त्यागी कभी बेहोश हो रहे थे तो कभी उन्हें होश आ रहा था. मैं भी घायल था. मुझे उस झोंपड़ी में ले जाया गया जहाँ सभी घायल सैनिक पड़े हुए थे. जब घायल लोगों को वहाँ से हटाने का समय आया तो त्यागी ने मुझसे कराहते हुए कहा, आप सीनियर हैं, पहले आप जाइए. मैंने उन्हें चुप रहने के लिए कहा और सबसे पहले उनको ही भेजा. उनका बहुत ख़ून निकल चुका था."
मेजर शेख़ावत बताते हैं, "त्यागी बहुत पीड़ा में थे. उन्होंने मुझसे कहा सर, मैं बचूंगा नहीं. आप एक गोली मार दीजिए. आपके हाथ से मर जाना चाहता हूँ. हम सभी चाहते थे कि त्यागी ज़िंदा रहें."
तमाम प्रयासों के बावजूद 25 सिंतंबर को त्यागी इस दुनिया से चल बसे

पाकिस्तानी कमांडिंग ऑफ़ीसर पकड़े गए

सुबह के तीन बजते बजते डोगरई पर भारतीय सैनिकों का कब्ज़ा हो गया. सवा छह बजे भारतीय टैंक भी वहाँ पहुंच गए और उन्होंने इच्छोगिल नहर के दूसरे किनारे पर गोलाबारी शुरू कर दी जहाँ से भारतीय सैनिकों पर भयानक फ़ायर आ रहा था.
3 जाट के सैनिकों ने झोंपड़ी में छिपे हुए पाकिस्तानी सैनिकों को पकड़ना शुरू किया. पकड़े जाने वालों में थे लेफ़्टिनेंट कर्नल जे एफ़ गोलवाला जो कि 16 पंजाब (पठान) के कमांडिंग ऑफ़ीसर थे.
इच्छोगिल नहर पर लांस नायक ओमप्रकाश ने भारत का झंडा फहराया. वहाँ मौजूद लोगों के लिए यह बहुत गर्व का क्षण था.
Image captionकर्नल हेड को महावीर चक्र से सम्मानित करते हुए राष्ट्रपति राधाकृष्णन.
उन लोगों की याद कर उनकी आखों में आँसू छलक आए जिन्होंने डोगरई पर कब्ज़े के लिए अपने प्राण न्योछावर किए थे.
इस लड़ाई के ले लेफ़्टिनेंट कर्नल डी एफ़ हेड, मेजर आसाराम त्यागी और कैप्टेन के एस थापा को महावीर चक्र दिया गया.

हुसैन ने चित्र बनाया

कर्नल हेड 2013 तक जीवित रहे. रचना बिष्ट की उनसे मुलाकात तब हुई थी जब उनका दिल्ली के सैनिक अस्पताल में त्वचा के कैंसर का इलाज चल रहा था.
Image captionकर्नल हेड का यह चित्र एमएफ़ हुसैन ने डोगरई के मोर्चे पर बनाया था.
रचना याद करती हैं, "वो अक्सर जॉन ग्रीशम की नॉवेल पढ़ते रहते थे. वो जानवरों के प्रेमी थे और वो 45 कुत्तों की खुद देखभाल किया करते थे. कोटद्वार के पास उनके गाँव वाले याद करते हैं कि वो अक्सर अपने घर के पास बहने वाली नहर में अपने कुत्तों के कपड़े धोते नज़र आते थे. उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक मोबाइल या कंप्यूटर का इस्तेमाल नहीं किया."
वे आगे बताती हैं, "वो शायद अकेले सैनिक अफ़सर थे जिनका चित्र मशहूर चित्रकार एम एफ़ हुसैन ने युद्ध स्थल पर ही बनाया था. वो चित्र अभी भी बरेली के रेजिमेंटल सेंटर म्यूज़ियम में रखा हुआ है."
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Wednesday, 16 September 2015

नीतीश के 'साथी' 'बाहुबली' अनंत सिंह अब किधर @चिंकी सिन्हा

अनंत सिंह, पूर्व जदयू नेताImage copyrightCHINKI SINHA
मोकामा के 'बाहुबली' कहे जाने वाले विधायक अनंत सिंह पर यूं तो कई आपराधिक मामले दर्ज हैं लेकिन फ़िलहाल वो अपहरण के एक मामले में गिरफ़्तार किए जाने के बाद पटना के बेऊर स्थित केंद्रीय कारा में बंद हैं.
अनंत सिंह को 24 जून को पटना पुलिस ने गिरफ़्तार किया था. 2010 के नवंबर में वे जेडी-यू के टिकट पर पटना ज़िले के मोकामा से विधायक चुने गए थे. लेकिन गिरफ़्तारी के बाद उन्होंने सिंतबर के शुरुआत में पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया है.
उनकी छवि किसी ज़माने में कुछ ख़ास वर्ग के लिए रॉबिन हुड की थी.
एक बार तो उन्होंने अपना ख़ुद का वीडियो बनवाया, जिसमें वे पटना की सड़कों पर एक बग्घी में सवार दिखते हैं. इसकी पृष्ठभूमि में बजने वाला गाना किसी और ने नहीं, उदित नारायण ने गाया था.
गाने के बोल की शुरुआत 'छोटे सरकार' से होती थी.
ख़ुद अनंत सिंह की ही बात मानें, तो उन्होंने तैर कर नदी पार किया और अपने भाई के हत्यारे को मार डाला. और इस तरह की बहुत सारी कहानियां वे स्वयं सुनाते हैं.
उन्होंने इस महीने बग़ैर कोई वजह बताए जनता दल (यूनाइटेड) से इस्तीफ़ा दे दिया.

हाशिए पर अपराजेय नेता

अनंत सिंह, पूर्व जनता दल (युनाइटेड) विधायकImage copyrightPTI
नीतीश कुमार सरकार में उनकी काफ़ी अहमियत थी. पर बीते कुछ समय से कई घटनाओं की वजह से उन्हें दरकिनार कर दिया गया था.
वे अपराजेय थे. पर समय बदला और वे बिहार सरकार के लिए बोझ समझे जाने लगे.
नए गठजोड़ बने, नए लोगों ने हाथ मिलाए ताकि वे, उनके ही शब्दों में, 'फासिस्ट ताक़तों' को दूर रख सकें.
इस 'ख़तरनाक डॉन' के बारे में कई तरह के क़िस्से हैं.
एक में तो यह कहा गया वे नाचने वाली लड़कियों के साथ खुले आम हाथ में एक 47 लहराते रहे. इसपर उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई होनी चाहिए थी लेकिन उनका काम बेरोकटोक जारी रहा.

घर में अजगर?

Image copyrightCHINKI SINHA
Image captionएके-47 से लैस सुरक्षा कर्मी के बीच अनंत सिंह
मैं पिछले साल जब पटना में अनंत सिंह के सरकारी घर पर उनसे मिलने गई, उनके पास एक भरा पूरा अस्तबल था. उनके पास 'मेरी' नाम का एक डरावना कुत्ता था.
उन्होंने मेरे सामने कमरे में ही एक हाथी को बुलवा लिया और उसके साथ 'हाय हेलो' की. लोग कहते हैं कि उन्होंने एक अजगर भी पाल रखा है.
उनका एक आदमी मुझे दिखाने के लिए एक-47 राइफ़ल भी ले आया.
लालू यादव और नीतीश कुमारImage copyrightmanish shandilya
अनंत सिंह ने उस समय एक बड़ा हैट पहन रखा था. उन्होंने मुझसे कहा कि वे स्टाइल में रहना पसंद करते हैं. जब जब उन्होंने सिगरेट पी, एक नौकर ट्रे में सिगरेट और एश ट्रे लेकर आया.
वे कई मुद्दों पर बात करते रहे और मुझसे पूछा कि मैं डर तो नहीं रही.
अनंत सिंह ने मुझसे कहा कि वे कभी किसी से नहीं डरे. उन्होंने मुझे यह भी बताया कि एक बार तो गैंगवार जैसे हालत में लोग उनके घर पर गोलियां बरसाते रहे और वे इत्मीनान से बैठ कर सिगरेट फूंकते रहे.
वे गांवों में सामूहिक विवाह करवाते हैं. वे विधानसभा घोड़ागाड़ी पर बैठ कर जाता करते थे.

जबरिया क़ब्ज़ा

नीतीश कूमारImage copyrightShailendra Kumar
मोकामा के इस 'बाहुबली' ने 2005 और उसके बाद 2010 में नीतीश कुमार के लिए बाढ़ में चुनाव प्रचार किया. पर नीतीश ने 2005 में सत्ता में आने पर अनंत सिंह के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज कराने का आदेश दे दिया.
सिंह पर आरोप था कि उन्होंने पटना के फ़्रेज़र रोड इलाक़े में मॉल बनाने के लिए ज़मीन पर जबरन क़ब्ज़ा कर लिया. लेकिन अब तक सिंह के ख़िलाफ़ कोई मामला दर्ज नहीं करवाया गया.
नीतीश कुमार ने क़ानून व्यवस्था को चुनावी मुद्दा बनाया था और इसे लागू करने का भरोसा दिलाया था.
नीतीश कुमार की इस पर ज़बरदस्त आलोचना होने लगी थी कि उन्होंने इस तरह के 'आपराधिक' तत्वों को शह दे रखी था.
बिहार के थिंक टैंक एशियन डेवेलपमेंट रिसर्च इंस्टीच्यूट(आद्री) के सैबल गुप्ता कहते हैं, "नीतीश कुमार ने राज्य में क़ानून व्यवस्था क़ायम करने की कोशिश की और तमाम बाहुबली हाशिए पर चले गए. वे पहले राज्य के समर्थन की वजह से ही फल फूल रहे थे."

150 मामले, सब में ज़मानत

Image copyrightCHINKI SINHA
Image captionअनंत सिंह का कहना है कि उन्हें स्टाइल मे रहना पसंद है.
मैं जब अनंत सिंह से मिली थी, उन पर 150 मामले चल रहे थे. उन्हें सभी में ज़मानत मिल गई.
अनंत सिंह ने मुझसे दावा किया था कि 2005 में जब उन्होंने उस समय के बाहुबली सूरजभान सिंह को चुनौती दी थी, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार, दोनों ने ही ख़ुद उनसे संपर्क किया था.
पर उन्होंने नीतीश कुमार को तरजीह दी. वे विधायक बन गए. पर सत्ता उनके लिए बहुत ज़्यादा महत्व नहीं रखती थी.
ज़्यादातर बाहुबली जाति उत्पीड़न और पहचान की राजनीति की उपज हैं. वे बाहुबली बन कर ही किसी समूह के रक्षक के रूप में अपनी स्थिति मज़बूत कर सकते हैं.
बिहार में आपराधिक तत्वों ने राजनीति में अपनी जगह बना ली और अराजकता छा गई, तब एक समानांतर न्याय प्रणाली उभरने लगी.

लोकतंत्र और अपराध

कार्नेगी एनडाउमेंट फ़ॉर इंटरनेशनल पीस के दक्षिण एशिया कार्यक्रम में काम कर रहे मिलन वैष्णव ने एक किताब लिखी. इसका नाम है 'द मेरिट्स ऑफ़ मनी एंड मसल्स: एस्से ऑन क्रिमिनलिटी, इलेक्शन्स एंड डेमोक्रसी इन इंडिया'.
इस किताब में इसकी पड़ताल की गई है कि किस तरह भारत में लोकतंत्र और आपराधिक राजनीति साथ साथ चलते हैं.
Image captionपप्पू यादव की भी छवि 'बाहुबली' की ही रही है.
उन्होंने अनंत सिंह को वोट देने वालों का इंटरव्यू किया. इन लोगों ने कहा कि सिंह उनके हितों की रक्षा कर सकते हैं.
सिंह का अपराध ही उनकी साख को बढ़ा रहा था. उनके समर्थकों को लगता था कि जातियों में बंटी राजनीति में यादवों के दबदबे को अनंत सिंह ही रोक सकते थे.

पत्रकारों को पीटा

सुशील मोदी और नरेंद्र मोदीImage copyrightAP
एनडीटीवी के पत्रकारों ने साल 2007 में रेशमा ख़ातून नाम की युवती से कथित बलात्कार में सिंह की भूमिका के बारे में सवाल पूछा था तो 'बाहुबली' ने उन्हें पीटा था.
पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस पर चुप्पी साध ली थी.
अब अनंत सिंह का कहना है कि नीतीश कुमार से उनका मोहभंग हो गया है.
वो भारतीय जनता पार्टी में शामिल होंगे या नहीं उन्हें इसका पता नहीं.
फ़िलहाल, बिहार में सारे लोग फूंक-फूंक कर क़दम रख रहे हैं. चुनाव पर काफ़ी कुछ निर्भर है.

Monday, 7 September 2015

विराज स्टील एंड एनर्जी लिमिटेड के डायरेक्टर राम दिलास राय

रेवतीपुर। प्रतिभाएं संसाधनों की मुहताज नहीं होती बल्कि विपरीत हालातों में अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए खुद की राह बनाती है। रेवतीपुर के दयाराम पट्टी के राम दिलास राय ने भी कुछ ऐसा ही कर दिखाया। वित्तीय क्षेत्र में वह अपना क्या मुकाम बनाएं थे यह गांव-जवार तब जाना जब वह 82 वर्ष की अवस्था में दुनिया को अलविदा कह चले गएं। उन्होंने आखिरी सांस गुरुवार को भुवनेश्वर(उड़ीसा) के अपोलो अस्पताल में ली। दाह-संस्कार काशी के हरिश्चंद्र घाट पर हुआ। इस मौके पर पूर्व सीएजी विनोद राय, डीआरडीओ के पूर्व सीईओ कमल नारायण राय, रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा, अंतर्राष्ट्रीय संस्था वाइपो के प्रमुख और पूर्व आइएएस पुष्पेंद्र राय, बिहार के डीजी ट्रेनिंग पारस राय वरिष्ठ प्रशासनिक विमल पान मसाला के हेड कमल लालवानी, कमला पसंद के चीफ अर्पित चौरसिया, केजी सोमानी ग्रुप के डायरेक्टर विनोद सोमवानी, डीएलएफ के डायरेक्टर राजेश कुमार आदि शख्सियतें शामिल हुई। उड़ीसा के झासूगुड़ा स्थित विराज स्टील एंड एनर्जी लिमिटेड के डायरेक्टर स्व. राय ने विधि स्नातक करने के बाद 1962 में सीए और सीएस कंप्लीट किया। ऐसा माना जाता है कि वह पूर्वांचल के पहले सीए थें। अपने पीछे वह भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। उनके पुत्र दिग्विजय राय दिल्ली की राय होल्डिंग कंपनी में सीईओ हैं। उनकी पहली पुत्री ममता के पति राजेश कुमार डीएलएफ के डायरेक्टर हैं जबकि दूसरी पुत्री सविता राय के पति अनिमेष राय स्नाइडर के रिसर्च हेड हैं।