Friday, 23 November 2018

आपातकाल के धुमकेतु राजनारायण

ये वही शख्स थे ,जिनसे लौह महिला इंदिरा गांधी बुरी तरह डर गईं थीं. इतनी आतंकित हो गईं कि इमरजेंसी लगा दी. वो राजनारायण थे जो.अपने 69 साल के आयु में 80 दफा जेल गए कुल 14 साल से अधिक जेल में रहे आज़ादी के  पहले और बाद में भी , आज उनका जन्मशती है. लेकिन किसी को वो याद नहीं. वो ऐसी शख्सियत भी हैं, जिसके कारण केंद्र में गैरकांग्रेसी सरकारें बननीं शुरू हुई.आजाद भारत में समता, बंधुत्व, और सदभाव की खातिर कम लोगों ने जीवन में इतनी प्रताड़ना सही होगी. जो जगनारायण ने सही, राजनीति के फक्कड़ नेता थे। राममनोहर लोहिया के साथ सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापकों में थे. हर किसी के लिए उपलब्ध और हर किसी के मददगार. हालांकि बाद के बरसों में उन्हीं के सियासी साथियों ने उनसे दूरी बना ली और उन्हें भारतीय राजनीति का विदूषक भी कहा जाने लगा.विपक्ष कमजोर हाल में था
60 के दशक के खत्म होते होते इंदिरा मजबूत प्रधानमंत्री बन चुकी थीं. कांग्रेस के ताकतवर नेता उनके सामने पानी मांग रहे थे. विपक्ष बहुत कमजोर स्थिति में था. ऐसे में जब इंदिरा गांधी ने वर्ष 1971 में दोबारा चुनाव जीतकर आईं तो किसी बड़े नेता में उनसे टकराने की हिम्मत नहीं थी.ऐसे में राजनारायण ना केवल उनसे भिड़े बल्कि विपक्ष को एक करने की जमीन भी बनाई. अगर वह इंदिरा को मुकदमे में टक्कर नहीं देते तो ना जयप्रकाश नारायण संपूर्ण क्रांति का आंदोलन कर पाते, ना आपातकाल लगता और ना ही 1977 के चुनावों में इंदिरा गांधी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ता.
राजनारायण का जन्म बनारस के उस जमींदार परिवार में हुआ था, जो वहां के राजघराने से जुड़ा माना जाता था. बहुतायत में जमीनें थीं. लंबी चौड़ी खेती. रसूख और रूतबा. वह अलग मिट्टी के बने थे.समाजवाद में तपे और ढले हुए.
राजनारायण ने इंदिरा गांधी के खिलाफ लड़ाई हर जगह लड़ी. संसद में और सड़क पर भी.चुनाव के मैदान में और अदालत में भी. कोई मोर्चा छोड़ा नहीं. 1969 में जिन समाजवादियों को लगता था कि इंदिरा सही काम कर रही हैं, उनका मोहभंग हो चुका था. 1971 के चुनावों में रायबरेली से इंदिरा के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार खड़ा किया जाना था. कोई तैयार नहीं था. न चंद्रभानु गुप्ता तैयार हुए और न चंद्रशेखर की हिम्मत हुई . ऐसे में
राजनारायण 1971 का चुनाव लड़ा ओर हार गए. चुनाव जीतीं इंदिरा गांधी. राजनारायण ने चुनाव जीतने के लिए इंदिरा के सारे गलत हथकंडों पर नजर रखी. उसे संवैधानिक और असंवैधानिक रूप दिया. उनके एक–एक भ्रष्टाचार को गिनते रहे. चुनाव खत्म होते ही न्यायालय पहुंचे. उन्होंने सात आरोप लगाए. मुकदमा शुरू हुआ. लंबा चला. एक समय ऐसा भी आया जब इंदिरा गांधी को खुद अदालत में हाजिर होना पड़ा. सफाई देनी पड़ी. उनसे छह घंटे तक पूछताछ हुई.इंदिरा के खिलाफ
आखिरकार पांच साल बाद फैसला आया.  इंदिरा गांधी के रायबरेली चुनाव को अवैध घोषित कर दिया. उन पर छह सालों तक चुनाव लड़ने पर रोक लग गई. पुपुल जयकर ने इंदिरा की जीवनी में लिखा कि इंदिरा को आशंका थी कि फैसला उनके खिलाफ आ सकता है. 12 जून 1975 को फैसला आया. इसके 14वें दिन इंदिरा ने देशभर में आपातकाल लगा दिया.सबसे पहले राजनारायण की गिरफ्तारी
आपातकाल लगने के कुछ ही घंटों के अंदर सबसे पहले राजनारायण को गिरफ्तार किया गया. उसी दिन जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, सत्येंद्र नारायण सिन्हा और अटलबिहारी वाजपेयी की गिरफ्तारी हुई. देशभर में हजारों लोग जेलों में डाले गए. यकीनन राजनारायण वो शख्स थे, जिन्होंने इंदिरा को बुरी तरह आतंकित कर दिया था कि उन्होंने ये कदम उठाना पड़ा. लेकिन इसने विपक्ष को साथ आने का मौका दिया.वर्ष 1977 में पहली बार केंद्र में कांग्रेस के अलावा दूसरी पार्टी सत्तारुढ़ हुई. बेशक जनता पार्टी की सरकार अपने अंतरविरोधों की वजह से जल्दी ढह गई लेकिन देश में गैरकांग्रेसी आंदोलन को नई ऑक्सीजन मिली. 1977 में जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल हटाकर चुनाव कराया तो रायबरेली पर उनके खिलाफ फिर राजनारायण सामने थे. इस बार उन्होंने इंदिरा को बुरी शिकस्त दी. अपने पूरे राजनीतिक करियर में इंदिरा ने सही मायनों में एक ही शख्स से शिकस्त पाई. वो राजनारायण थे.

Wednesday, 21 November 2018

बुरहान वानी याद, कर्नल मुनीन्द्र राय को भूले @AM

कश्मीरी आतंकी बुरहान वानी का नाम देश में सब को याद है, चाहे उसके समर्थक हों अथवा विरोधी, पर कर्नल मुनीन्द्र नाथ राय, जो उसके षड्यंत्र का शिकार होकर अपने एक सहकारी के साथ दक्षिणी कश्मीर में डेढ़ साल पहले शहीद हुए थे, भुला दिए गए हैं . त्राल के उस हत्याकांड का मास्टरमाइंड वानी उसके पहले एक दर्जन से ज्यादा पंचों-सरपंचों की हत्याओं में भी वांछित था . इन जनप्रतिनिधियों ने वानी द्वारा मना किये जाने के बावजूद पहले तो 2011 के पंचायत चुनावों में खड़े होने की हिम्मत दिखाई, फिर 2012 के विधान परिषद् चुनाव में बहुत भारी संख्या में वोटर के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज की . इस सब से ऐसा प्रतीत होने लगा था कि वानी का संगठन 'हिजबुल मुजाहिदीन' कश्मीर में अपनी ताकत खो चुका है . यही वजह रही कि उसने पंचों-सरपंचों को मारा और 2015 में फ़ौज पर हमला किया . उसे हीरो बनाने वाला मीडिया जरा उसके राष्ट्र-विरोधी अपराधों को याद कर ले .